ज्योतिबा फुले और उनके चिंतन की जीवंतता…

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डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, उत्तर- प्रदेश । फ़ोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी : डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी, उत्तर- प्रदेश, भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : themahamaya. Com

यदि भारतीय परिदृश्य में 21 वीं शताब्दी के सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक समस्याओं पर शोध करना है तो यह उचित होगा कि उसके ऐतिहासिक संदर्भ को समझने की चेष्टा करें। यह परिप्रेक्ष्य 19 वीं सदी की उस भारतीय पृष्ठभूमि को पहिचानने में हमारी मदद करेंगे जिसमें ज्योतिबा फुले जैसे महामानव का जन्म होता है। जिनके चिंतन और कर्म की जीवंतता आज भी उनकी उपस्थिति का एहसास कराती है। जिस दौर में देश में धार्मिकता के आवरण में लोग मोक्ष प्राप्ति की खोज में व्यस्त हैं, मनुष्य का एकाकी भाव रहस्य वादी धर्मों, नागरिक मत मतान्तरों तथा राजनीतिक त्राताओं से सभ्यता की सुरक्षा का आश्वासन मांगता है,उसी समय भारत के वंचित समाज की बेहतरी के लिए, ज्ञान के आलोक के लिए ज्योतिबा फुले जैसे लोग कट्टर पंथियों से लोहा ले रहे थे।कपोल कल्पनाओं से आगे बढ़ कर विवेक, तर्क और ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में लगे थे।

समाज में जब भी इंसानियत के मूल्यों पर अन्याय, अत्याचार, शोषण बढ़ता है तब कुरीतिओं का विनाश करने तथा भूले- भटके लोगों की सहायता के लिए किसी न किसी महापुरुष का उदय होता है ।ज्योतिबा फुले ऐसे ही महापुरुष थे जिन्होंने जाति भेद तथा धर्म भेद के विरोध में अपना जीवन खपा दिया ।मानवीय समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए अपनी वाणी और लेखन का प्रयोग किया ।फुले ने 1852 में अछूत लड़के और लड़कियों के लिए पूना में स्कूल खोला । 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना किया ।बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक शूद्र कौन थे ? ज्योतिबा फूले को समर्पित किया है ।

सत्यशोधक समाज ब्राह्मण वर्ग की श्रेष्ठता के विरूद्ध एक आन्दोलन था ।इस आंदोलन ने एकेश्वरवाद तथा पुरोहितवाद का विरोध किया ।मूर्ति पूजा तथा तीर्थ यात्रा निषेध किया ।मानव जाति की समता, बंधुत्व और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रबल समर्थन किया ।फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी में लिखा है कि प्रत्येक गाँव में स्कूल होना चाहिए ।उनका विश्वास था कि संकट और संघर्ष ही सुरक्षा और शांति के संस्थापक बनते हैं ।कल्याणकारी लक्ष्य पूर्ति में जीवन और मरण दोनों का मूल्य बराबर होता है ।मनुष्य का सार्वजनिक अपमान, क्रांति एवं निर्माण का प्रेरणास्रोत बनता है ।बा ने सती प्रथा की भी आलोचना की ।

आज 21 वीं सदी में जीने वाले हम लोगों के लिए यह सोचना भी अत्यंत कठिन है कि क्यों न सभी को समान रूप से पढ़ने लिखने का अधिकार दिया जाए ? कौन है जो इसे रोकना चाहता था ? इस पर प्रतिबन्ध के क्या कारण रहे होंगे ?क्या शिक्षा के अभाव में जीवन घनघोर रूप से दकियानूसी नहीं होगा ? जिसके अवशेष तथा प्रभाव पीढ़ियों तक रहते हैं। ज्योतिबा फुले ने 19 वीं सदी में जिस बौद्धिक विचार भूमि को उर्वर बनाया, शिक्षा जगत की महान व्यवस्था खड़ी की, वहीं आज विद्वानों की जमात पैदा हो सकी।अपने अंतिम दिनों में फुले ने लिखा था कि जब शूद्र, अतिशूद्र, कोल तथा भीलों के बच्चे, जिनको ब्राह्मणों ने नीच और अछूत कहकर धिक्कारा है, वे धीरे-धीरे समुचित ज्ञान प्राप्त करेंगे और एक दिन उन्हीं में से एक महान व्यक्ति पैदा होगा जो हमारी समाधि पर पुष्प वर्षा करेगा ।

यह बा का विश्वास था कि ज्ञान ही हर युग में दुविधाओं की अचूक कुंजी है।ज्ञान उन सभी विचारों को चुनौती देता है जो इंसान को आदिम मानकर गुलामी को उचित ठहराते हैं।जो शिक्षा पूर्णतया समर्थित हो तथा तात्कालिक भौतिक संतुष्टियों से आगे देख सके,वही उन प्रवृत्तियों से लड़ सकेगी जो व्यक्ति को अच्छाई से विरत करती है। शिक्षा ही व्यक्ति को उसकी मृगतृष्णाओं और इंद्रिय जगथ की परछाइयों की अधीनता से आजाद करती है।ज्ञान और समझदारी की ओर अग्रसर हो आदर्श का साक्षात्कार कराती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त शिक्षा व्यक्ति को भाव बोध से आगे सम्बन्धों तक ले जाती है, जहां व्यक्ति समस्त प्रलोभनों से मुक्त होता है।

महापुरुषों का प्रेरणादाई जीवन हमें यह भी सिखाता है कि हम बुराई करते समय कभी भी इसलिए सही नहीं हो सकते कि हमारे साथ भी तो बुरा हुआ है।बुरे साधनों का प्रयोग करना, मनुष्य में जो कुछ भी अच्छा है उसे विनष्ट करना है। उसके मनुष्यत्व को नकारना है। यह दायित्व सिद्धांत असंतोष जनक भले लगता हो किन्तु ऐतिहासिक परिवेश में यह एक व्यक्ति की ऐसी विजय है जिसने परिवार और कुनबों की हित परस्ती करने वालों को करारी शिकस्त दी है।बा इसमें स्पष्ट प्राथमिकता पा रहे हैं। किसी भी चिन्तन की दार्शनिक विवेचना की यही सच्ची नींव है। आज भी हम इन्हीं सवालों को दूसरी भाषा में पूछ रहे हैं, उनके अर्थों की गहराइयां ढूंढ रहे हैं और सम्भावित उत्तरों का चुनाव कर रहे हैं। ऐसा करते समय हम ज्योति बा फुले जैसे मनीषी के चिंतन और बहस की पृष्ठभूमि से उधार ले रहे हैं।यही उनकी जीवंतता है कि वह आज भी उदाहरणों और आदर्शों में जीवट के साथ जिंदा हैं। नमन प्यारे बा को।


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Dr. RB Mourya:

View Comments (18)

  • महात्मा ज्योतिबा फुले
    एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, समाज सुधारक और लेखक थे।
    ऐसे महान व्यतित्व को सादर नमन 🙏

  • सर्व समाज में शिक्षा की अलख जगाने वाले महामानव को नमन करती हूँ।महापुरुषों को श्रधान्जली अर्पित करने का सही तरीका यही है कि आप उनके महान कार्यों को प्रसारित करें।आपके ब्लॉग मूल्यवान हैं।

  • ऐसे महापुरुषों के योगदान के कारण ही भारतवर्ष आज प्रगति के पथ पर अग्रसर है

  • महामना ज्योतिबाराव फूले एवं माता सावित्री बाई फूले के संघर्ष से मै अपनी मुक़ाम तक पहुँच हूँ । जो कुछ भी में आज हूँ , वह महामना की देन है । हार्दिक से नमन करता हूँ ।
    डॉ. बृजेंद्र सिंह बौद्ध
    वरिष्ठ प्रवक्ता , बुंदेलखंड कालेज, झाँसी ।
    पूर्व सदस्य- उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग, प्रयागराज ।

    • हमें अपने देश के पूर्वजों के त्याग और तपस्या के लिए श्रृद्धावनत होना ही चाहिए। राष्ट्र के महापुरुषों के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि है। बेशक आप श्रेष्ठ हैं।

  • सत्य... ज्योतिबा न सिर्फ अपने समय से बहुत आगे थे बल्कि अपने काल के विराट तम व्यक्तित्वो में से एक थे।

  • This blog is dedicated to hon. Joyiti ba fule, he is the icon of the societies for the incorege the people for the upliftment of the Dalit and OBC.

    • ये बात सही है कि वंचित वर्ग को १९वी शताब्दी में सामाजिक स्तर पर मुख्य धारा में लाने के लिए बहुत प्रयास किए गए जिनका प्रभाव अब तलक देखने को मिल रहा है ऐसे महानुभावों को कोटि कोटि प्रणाम।।।। इसके साथ ही मैं ये भी अपने बक्तव्य में व्यक्तिगत रूप से आपकी सराहना करना चाहता हूं कि कागज़ कलम और तकनीकी के माध्यम से आपने जो कदम आगे बढ़ाए हैं वो सराहनीय हैं, आपके विचार हम नवयुवकों के लिए सदा मार्गदर्शन का कार्य करेगे।।।। धन्यवाद्

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