आधुनिकता के साथ, बौद्ध संस्कृति से सराबोर- थाईलैण्ड (भाग-२)

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थाईलैण्ड का प्राचीन नाम श्याम देश है। थाई शब्द का अर्थ, थाई भाषा में आजाद होता है।यह राजनीतिक रूप से एकात्मक राज्य है जो ७६ प्रान्तों में बंटा हुआ है। थाई भाषा में यह चंगवत कहलाते हैं। चाओ फ्रया थाईलैण्ड की प्रमुख नदी है। यह राष्ट्रीय राजधानी बैंकॉक से बहती हुई थाईलैण्ड की खाड़ी में बह जाती है।

थाईलैण्ड की आय का बड़ा हिस्सा पर्यटन से आता है। यह कुल जी.डी.पी. का लगभग १२ प्रतिशत है। यहां पर ३० से अधिक भाषा एवं बोली का प्रचलन है।थाई लेखन में पूर्ण विराम का उपयोग नहीं होता। केवल वाक्य पूरा होने पर थोड़ा स्थान रिक्त छोड़ दिया जाता है। यहां पर बुद्धिस्ट संवत् का प्रचलन है जो ईसा पूर्व ५४३ से प्रारम्भ होता है।

इमेराल्ड (मरकत मणि) बुद्ध की हरे रंग की प्रतिमा बैंकाक के ग्रैण्ड- पैलेस परिसर में एक विशेष मंदिर में स्थापित है। सन् १७८२ राजाराम प्रथम ने उक्त मंदिर का निर्माण कराया था। अधिकतर पुरातत्व वेत्ता इमेराल्ड की प्रतिमा को ईसवी सन् के प्रारंभिक शताब्दियों का मानते हैं।कहा जाता है कि यह एक प्रसिद्ध ग्रीक कारीगर द्वारा बनाई गई है तथा इसका पत्थर काकेशस से लाया गया है।इमेराल्ड बुद्ध की मूर्ति बैठी हुई स्थित में है। मूर्ति के निचले भाग की चौड़ाई ४८.३ सेंटीमीटर तथा ऊंचाई ६६ सेंटीमीटर है।इसके अलावा पानसबती पर बुद्ध की प्रतिमा विराजमान है।

लोपपुरी में अंकोरवाट शैली में बनी नागफन के नीचे बैठी हुई बुद्ध की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। एक ही पाद पीठ पर एक से अधिक बुद्ध मूर्तियों का निर्माण बयोन शैली की विशेष देन है।लोपपुरी में इस प्रकार की अनेक मूर्तियां मिली हैं।

अनेक बुद्ध मूर्तियों में बुद्ध के दाहिने ओर अवलोकितेश्वर तथा बांयी ओर प्रप्रज्ञा पारमिता की मूर्तियां बनाई गई हैं।लोपपुरी में ही निर्मित राजा के समान वस्त्राभूषण धारण किए हुए बुद्ध की प्रतिमाएं विशेषतः उल्लेखनीय है। थाईलैण्ड में मानव बसाहट के सबूत लगभग १० हजार वर्ष पूर्व से मिले हैं।

थाई वर्णमाला प्राचीन खमेर वर्णमाला से निकली है जो ब्राम्ही लिपि की दक्षिणी शाखा की एक लिपि है।इसे पल्लव लिपि भी कहते हैं।थाई लिपि में ४४ व्यंजन तथा १५ स्वर हैं।यह बाएं से दाएं लिखी जाती है।थाई में बिया शब्द का अर्थ कौड़ी है।धम्मलाना भी ब्राम्ही लिपि से उत्पन्न एक लिपि है।नागरी, सिद्धम और शारदा भी ब्राम्ही की वंशज हैं।

सुखोथाई की कला में चक्रमण- बुद्ध, अर्थात् टहलते हुए बुद्ध की मूर्ति विश्व प्रसिद्ध है। बुद्ध की कतिपय मूर्तियों में प्रभामंडल उठते अग्निशिखा के समान है जिस पर सिंहली प्रभाव है। यहां पर बुद्ध के पद चिन्ह भी पाषाण और कांस्य में उत्कीर्ण किए गए हैं।

थाईलैण्ड में गेरूए वस्त्र धारण किए हुए बौद्ध भिक्षु और सोने, संगमरमर व पत्थर से निर्मित बुद्ध आमतौर पर देखे जा सकते हैं। बैंकाक के पश्चिमी में स्थित नखोम- पथोम थाईलैण्ड का प्राचीन शहर है। कांचना पुरी पश्चिमी थाईलैण्ड में स्थित देश का एक प्रान्त है जिसका अर्थ कंचनपुरी या सोने की नगरी है।

थाईलैण्ड के राजपरिवार के द्वारा भारत के बोधगया, सारनाथ तथा कुशीनगर में भी सुन्दर बौद्ध विहारों का निर्माण किया गया है।थाई सरकार के द्वारा कुशीनगर (कसया) में निर्मित भव्य थाई बुद्ध विहार में भगवान बुद्ध का पवित्र अस्थि कलश स्थापित है। इसे बुलेट प्रूफ निर्माण के अंदर पारदर्शी रूप में स्वर्ण मंजूषा में रखा गया है। विहार में भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति भी स्थापित है। इसे वाट थाई चलेमराज बुद्ध विहार कहा जाता है। यह थाई स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। थाई बुद्ध विहार के द्वारा एक सुविधायुक्त चैरिटेबल अस्पताल का भी संचालन किया जाता है। यहां पर बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का भी कार्य किया जाता है। यहां थाई भाषा भी सिखाई जाती है। लगभग १० मिलियन डॉलर से निर्मित स्वर्ण युक्त थाई महाचैत्य, अद्भुत, आश्चर्यजनक और चकित करने वाला है।इसकी संरक्षिका थाईलैण्ड की राजकुमारी हैं।

धम्म चक्र प्रवर्तन स्थल सारनाथ में भी सुन्दर थाई बुद्ध विहार बना हुआ है।१९३३ में निर्मित यह विहार थाईलैण्ड की सरकार के द्वारा बनवाया गया है। इस थाई मुख्य भवन के सामने ही चार शेरों की मूर्ति और अशोक चक्र बना हुआ है। मंदिर में बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध देव की सुनहरे रंग की प्रतिमा स्थापित है। थाई सरकार द्वारा स्थापित लगभग २ करोड़ रुपए की लागत से निर्मित, भगवान बुद्ध की यहां पर ८० फ़ीट ऊंची प्रतिमा है। इसके निर्माण में १४ वर्ष का समय लगा है। इसमें ८१५ बड़े पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। यहीं पास के उद्यान में सारनाथ का चक्र तथा सुनहरे रंग की लाफिंग बुद्धा प्रतिमा है।

थाईलैण्ड का समाज एक जीवंत समाज है जो बुद्ध देव के दर्शन से सराबोर है। यहां के समाज में सहिष्णुता, सहानुभूति, सादगी और सरलता सर्वत्र झलकती है लोगों के अनुशासन और चिंतन में बुद्ध का प्रभाव है। यहां बालक और बालिकाओं में किसी प्रकार का कोई भेद भाव नहीं किया जाता है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययन रत एम.बी.बी.एस., झांसी, उ.प्र.(भारत)

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Dr. Raj Bahadur Mourya:

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