आधुनिकता के साथ, बौद्ध संस्कृति से सराबोर – थाईलैण्ड –(भाग-एक)

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५१३,११५ वर्ग किलोमीटर में बसे तथा लगभग ७ करोड़ की आबादी वाला देश थाईलैण्ड आधुनिकता के साथ-साथ बौद्ध संस्कृति से सराबोर है। यहां के ९५ प्रतिशत लोग बौद्ध धर्मावलंबी हैं। दक्षिण- पूर्व एशिया का यह देश संसदीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजशाही की राज व्यवस्था का है।

थाईलैण्ड की पूर्वी सीमा पर लाओस और कम्बोडिया, दक्षिणी सीमा पर मलेशिया तथा पश्चिमी सीमा पर म्यांमार है। थाईलैण्ड की मुद्रा बाट है। यहां का राष्ट्रीय धर्म, बौद्ध धर्म है। यहां का नदी के किनारे पर स्थित अयूथया उद्यान यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। थाईलैण्ड के वर्तमान राजा ६८ वर्षीय, महाराजा महावाजिरा लोंगकोर्न उर्फ रामदशम हैं। 

भारत की राजधानी नई दिल्ली से थाईलैण्ड की राजधानी बैंकॉक तक हवाई जहाज का किराया मात्र ८ से १० हजार रुपए है। नई दिल्ली से ४ से ५ घंटे में हवाई जहाज से थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक पहुंचा जा सकता है। इस देश में भारतीयों के लिए बीजा आन अराइवल की सुविधा उपलब्ध है। अर्थात् थाईलैण्ड की यात्रा से पूर्व भारत सरकार के द्वारा बीजा नहीं लेना पड़ता बल्कि यह सुविधा वहां पर पहुंच कर मिल जाती है।

थाईलैण्ड में वहां की सबसे ऊंची तथा दुनिया में ९ वीं सबसे ऊंची भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा महामींह शाक्य मुनि विसेज चाई चत्र के नाम से जानी जाती है जो आंग थोंग प्रांत में वाट मंग बौद्ध विहार में स्थित है। यह चाओ फ्रया नदी के मैदानी क्षेत्र पर विस्तृत है। इस प्रतिमा का निर्माण वर्ष १९९० से २००८ के बीच सम्पन्न हुआ है अर्थात् इसके निर्माण में १८ वर्ष लगे। इस मूर्ति की ऊंचाई ९२ मीटर (३०० फ़ीट) तथा चौड़ाई ६३ मीटर (२१० फ़ीट) है। कंक्रीट से निर्मित इस प्रतिमा पर सोने के पेंट का आवरण है।

थाई भाषा, थाईलैण्ड की मातृभाषा और राष्ट्रभाषा है। यहां के ९५ प्रतिशत लोग यही भाषा बोलते हैं। यहां सम्पूर्ण बौद्ध वांग्मय,थाई भाषा में उपलब्ध है।पत्तितम सम्पत्तिपान नामक ग्रंथ में बुद्ध का प्रामाणिक जीवन चरित्र प्रस्तुत किया गया है।

थाईलैण्ड धार्मिक आस्था का देश है। वहां पर घरों और दुकानों के सामने बुद्ध प्रतिमा के छोटे छोटे मंदिर दिखते हैं जिन पर लोग कपड़े, फल, अगरबत्ती आदि अर्पित करते हैं। यहां लगभग ४० हजार बौद्ध मंदिर हैं। फुकेट में पर्वत पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है जहां पर पहुंचने के लिए ऊंची चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां का बुद्ध मंदिर तीन मंजिला है। फुकेट में बुद्ध के प्रति आस्था व्यक्त करने के लिए श्रृद्धालु पटाखा चलाते हैं। पटाखा चलाने के लिए यहां पर एक गुम्बद बना हुआ है।

थाईलैण्ड में रंग बिरंगे फूलों से अतिथियों का स्वागत किया जाता है। अतिथि सत्कार की यहां पर एक विशेष परम्परा है। यहां पर दोनों हाथों को जोड़कर अभिवादन करने की भी परंपरा है। दुकानों में सामान की खरीदारी के बाद दुकानदार ग्राहक को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता है।

अभी हाल में ही थाईलैण्ड के बौद्ध उपासकों ने बोधगया में दो मुहान के पास कांस्य से बनी ३० फ़ीट लम्बी, महापरिनिर्वाण अवस्था की विशाल प्रतिमा प्रतिस्थापित की है। इस प्रतिमा के निर्माण में तीन वर्ष का समय लगा।मूल रूप से नेपाल में निर्मित इस प्रतिमा के ऊपर सोने का पानी चढ़ा हुआ है। थाईलैंड में हाथी का विशेष महत्व है।

यहां घरों की दीवारों पर, पेंटिंग और वस्त्रों पर भी हाथी का चित्रांकन दिखता है। यहां बौद्ध धर्म की थेरवादी शाखा का प्रभाव अधिक है जो पूर्व में हीनयान था। थेरवाद शब्द का अर्थ है- श्रेष्ठ जनों की बात। अवलोकितेश्वर शब्द का अर्थ है- दृष्टि नीचे जगत पर डालने वाले प्रभु तथा अमिताभ का अर्थ- अनन्त प्रकाश या अमित आभा होता है।

स्मरणीय है कि श्याम देश को भारत के पिपरहवा के महास्तूप से प्रथम उत्खनन में प्राप्त बुद्ध के अस्थि अवशेष प्रदान किए गए थे। अवशेष मंजूषाएं इंडियन म्यूजियम कोलकाता में आज भी सुरक्षित हैं। इन्हीं बुद्ध के अवशेषों के बैंकाक पहुंचते ही जापान, वर्मा, श्री लंका और साइबेरिया के प्रतिनिधि थाई राजा के सम्मुख पहुंच कर उनमें से अंश लेने हेतु प्रार्थना किए।थाई राजा ने पवित्र अवशेष के ५ भाग कर सभी को वितरित किया। श्री लंका में उस अवशेष पर ही अनुराधापुरा में मारीचवाड पैगोडा बना हुआ है। यह घटना थाई राजा चुललंकर्ण के समय की है। थाईलैण्ड में यह पवित्र अवशेष वाट साकेत एवं वाट केमा के स्तूपों में रखा गया है।

वाट स्तूप बैंकाक नगर के मध्य में स्थित है।चिंगमई के राजा त्रिलोक ने १५ वीं सदी में इसका निर्माण कराया। यह बोधगया के महाबोधि मंदिर का लघु रूप लगता है।वाट साकेत की गुम्बद पर स्वर्णिम रंग चढ़ाया गया है। नवम्बर माह में यहां पवित्र अवशेष की पूजा के लिए श्रृद्धालु लोगों का मेला लगता है। बैंकाक से ६५ किलोमीटर दक्षिण में पेचबुरी नगर में स्थित अयूथया के राजमहल के सामने वाट रकंग (बेलमठ) में सिरीलंका से लाये गये बोधिवृक्ष की शाखा का वृक्ष भी है।थाई नरेश चुललंकर्ण ने भारत में सारनाथ की भी यात्रा की थी।

यहां पर सम्राट अशोक के बनवाए धमेख स्तूप से प्रभावित होकर उन्होंने थाईलैण्ड में बैंकाक के आस पास धमेख स्तूप के सदृश अनेक ऊंचे गुम्बद वाले चेदि (स्तूप) बनवाए।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ अध्ययन रत एम.बी.बी.एस., झांसी,उ.प्र.(भारत)

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Dr. Raj Bahadur Mourya:
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