विश्व विरासत- लेशान के विशाल बुद्ध, अद्भुत, अकल्पनीय

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अद्भुत, अकल्पनीय, चकित कर देने वाली, आज से करीब १२०० वर्ष पूर्व चीन में निर्मित, लेशान के विशाल बुद्ध की प्रतिमा आज विश्व विरासत है। एमी पर्वत में उत्कीर्ण लेशान के विशाल बुद्ध की यह प्रतिमा तांग राजवंश (६१८-९०७) के कार्यकाल में बनायी गई है। लाल बलुआ पत्थर की चट्टान,एमी पर्वत को तराश कर बनायी गई गोतम बुद्ध की यह प्रतिमा ७१ मीटर (२३३ फ़ीट) ऊंची है। दक्षिणी चीन में स्थित सिचुआन प्रांत के शहर लेशान में यह प्रतिमा, मिनजियांग, दादू और किंग्यी नदी के संगम पर स्थित है। आज भी यह दुनिया की सबसे ऊंची पत्थर की प्रतिमा है। अपने निर्माण के समय यह दुनिया में सबसे ऊंची बुद्ध की मूर्ति थी।

सन् १९९६ के बाद से यह यूनेस्को के द्वारा सबसे ऊंची नक्काशीदार पत्थर से बनी मूर्ति, विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध है। सन् २००८ में सिचुआन प्रांत में आए भूकंप में भी यह प्रतिमा पूरी तरह से सुरक्षित रही। इस मूर्ति को बनाने में करीब ९० साल लगे। इसमें बुद्ध के पैर का अंगूठा सामान्य डाइनिंग रूम में रखी जाने वाली टेबल जितना बड़ा है। प्रतिमा के कन्धे २८ मीटर चौड़े हैं। मूर्ति में बुद्ध का हाथ पैरों (घुटनों) पर है और वह टकटकी लगाए नदी की ओर देख रहे हैं।

यहां पर नव वर्ष में इतनी भीड़ होती है कि लोगों को मुश्किल से पैर रखने की जगह मिलती है। भगवान बुद्ध की इस विशाल प्रतिमा को देखकर लोग अपने नए साल की शुरुआत करते हैं। इसे अत्यंत ही शुभ माना जाता है। लिंगयुवान पर्वत पर स्थित इस प्रतिमा में बुद्ध ध्यान मुद्रा में बैठे हुए हैं।

लेशान के विशाल बुद्ध, मिनजियांग, दादु और किंग्यी नदी के संगम पर.

चीन दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं का देश है। ईसा पूर्व २०० में ही बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से बौद्ध धर्म भारत से चीन में पहुंच गया था। चीन में अब तक कई ऐसे स्तूप पाये जाते हैं जिसके विषय में चीनियों का कथन है कि वे सम्राट अशोक के बनवाए हुए हैं। ईसवी सन् ६१ में मिंगती राजा के शासनकाल में भारतवर्ष से बौद्ध ग्रंथ और मूर्तियां चीन गयीं।

सन् ६७ में काश्यप मांतग नामक बौद्ध भिक्षु चीन गए तथा वहां पर उन्होंने सूत्रों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चीन में मानव बसाहट के सबूत लगभग साढ़े २२ लाख साल पुराने प्राप्त हुए हैं। चीन शब्द का प्रथम दर्ज उपयोग सन् १९५५ में किया गया।यह चिन् से निकला है जो मार्को पोलो द्वारा पश्चिम में प्रचारित किया गया।

चीन में भाषा की दृष्टि से बौद्ध धर्म की तीन शाखाएं हैं- हान भाषा में प्रचलित बौद्ध धर्म, तिब्बती भाषी बौद्ध धर्म और पाली भाषी बौद्ध धर्म। हान राजवंश ने चीन में २०६ ईसा पूर्व से २२० ईसवी तक राज किया। लगभग ४०० वर्षों से अधिक का हान राजवंश का समय चीन में सभ्यता का सुनहरा दौर माना जाता है। इस काल में चीन ने खूब तरक्की और विकास किया।

इसी काल में चीन में कागज़ का आविष्कार हुआ।हान साम्राज्य का विस्तार तारिम द्रोणी तक था जो आगे चलकर यूरोप और एशिया के बीच का प्रसिद्ध रेशम मार्ग बना। चीन में हान राजवंश की नींव लिऊ बांग नाम के एक नेता ने रखी थी जो बाद में सम्राट गाओजू कहलाया।

वर्तमान में चीन की जनसंख्या के लगभग ९२ फ़ीसदी लोग हान नस्ल के हैं। यह बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं। वर्तमान समय में मूल चीन में लगभग २८ हजार बौद्ध मठ और १६ हजार से अधिक बौद्ध विहार हैं। बौद्ध धर्म के स्कूलों व कालेजों की संख्या लगभग ३३ है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग २५ धार्मिक पत्र- पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती हैं। चीन में झोऊ राजवंश के दौर में बौद्ध धर्म का विकास हुआ। बौद्ध धर्म के कारण चीन में जातिगत एकता और शक्ति का विकास हुआ,दास प्रथा का खात्मा हुआ तथा छिन् राजवंश का उदय हुआ।

चीन की कुल जनसंख्या में लगभग ८० से ९० फ़ीसदी लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं। ब्रिटिश विद्वान और जीव रसायन शास्त्री जोसेफ नीधम ने प्राचीन चीन के ४ महान आविष्कार बताए हैं- कागज़,कम्पास,बारूद और मुद्रण।चीन की झोऊ कोऊ दियन गुफा में प्राचीनतम मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इन्हें ‘पेकिंग मानव, भी कहा जाता है।

विश्व के सभी महाद्वीपों में बौद्ध धर्म के अनुयाई रहते हैं। आज पूरे विश्व में बौद्ध धर्म को मानने वाले लगभग ५३.५ करोड़ लोग हैं। बौद्ध धर्म दुनिया का पहला विश्व धर्म है जो अपने जन्म स्थान से निकलकर पूरे विश्व में दूर – दूर तक फैला। आज दुनिया में बौद्ध धर्मावलंबी लोगों की आबादी विश्व में चौथे स्थान पर है। सम्पूर्ण एशिया में बौद्ध धर्म प्रभावशाली है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका और यूरोप जैसे महाद्वीपों में भी करोड़ों बौद्धों के समुदाय रहते हैं। लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैंड, म्यांमार और श्री लंका, यह ६ अधिकृत बौद्ध देश हैं। इन देशों के संविधानों में बौद्ध धर्म को राजधर्म या राष्ट्र धर्म का दर्जा प्राप्त है।

 – डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययन रत,एम.बी.बी.एस., झांसी, उ.प्र.

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Dr. Raj Bahadur Mourya:
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