वर्ष १९८५ में यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया सोमपुरा महाविहार वर्तमान समय में बांग्लादेश के नवगांव जिले के बादलगाछी उप जिले के पहाड़पुर में स्थित है।यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध विहारों में से एक है। १८७१ में कनिंघम के द्वारा इसकी खोज की गई थी। आज यह ध्वंस अवस्था में है।
पाल वंश के द्वितीय राजा धर्म पाल देव ने आठवीं शताब्दी के अंतिम काल में या नौवीं शताब्दी के दौरान इसका निर्माण कराया था। इस विहार के पास ही स्थित हलूद विहार और सीताकोट विहार (दिनाजपुर,जिला) भी उसी काल के हैं। पहाड़पुर के इस सोमपुरा महाविहार को संसार का सबसे बड़ा बौद्ध विहार कहा जा सकता है। आकार में इसकी तुलना नालन्दा महाविहार से की जा सकती है। चीन, तिब्बत, वर्मा, इण्डोनेशिया, मलेशिया आदि देशों के बौद्ध अनुयाई भी यहां पर धर्म ज्ञान के लिए आते हैं। १० वीं शताब्दी में अतीश दीपंकर श्री ज्ञान इस महाविहार के आचार्य थे।
भारत में पाल साम्राज्य की नींव ७५० ई. में गोपाल नामक राजा ने डाली थी।पाल वंश का सबसे बड़ा सम्राट गोपाल का पुत्र धर्मपाल था जिसने ७७० से ८१० ई. तक राज किया। धर्मपाल को उत्तर पथ स्वामिन भी कहा जाता है।वह बौद्ध धर्मावलंबी था। धर्मपाल के पुत्र देवपाल ने भी ४० वर्ष तक भारत में राज किया।देवपाल के शासनकाल में ही अरब यात्री सुलेमान भारत आया था। तिब्बती ग्रन्थों से पता चलता है कि पाल शासक बौद्ध धर्म तथा ज्ञान के संरक्षण को बढ़ावा देते थे। नालन्दा महाविहार का पुनर्निर्माण धर्मपाल ने ही कराया था तथा उसके खर्च के लिए २०० गांवों का दान दिया था।
विक्रम शिला विश्वविद्यालय की भी स्थापना पाल राजाओं ने ही किया था तथा उसके खर्च के लिए १०० गांवों का दान दिया था। नालंदा और विक्रमशिला में बड़ी संख्या में तिब्बती विद्वान बौद्ध दर्शन के अध्ययन के लिए आते थे।पाल वंश के शासक गोपाल ने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण भी कराया था। धर्मपाल के लेखों में उसे ‘परम सौगात, कहा गया है। माना जाता है कि अंकोरवाट मंदिर और बोरोबुदुर विहार समेत कम्बोडिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड की बौद्ध वास्तुकला, बांग्लादेश के प्राचीन बौद्ध मठ सोमपुरा महाविहार से प्रेरित है।
बांग्लादेश के नौगांव जिले में सोमपुरा महाविहार से लगभग १५ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में हलूद बौद्ध विहार स्थित है। वर्तमान समय में यह खंडहर अवस्था में है। यह विहार हलूद गांव के पास है जिसे स्थानीय लोग द्वीपगंज भी कहते हैं। यहां पर एक विशाल टीला है जो २५ फ़ीट ऊंचा और १०० फ़ीट व्यास का है। इस स्थान पर अन्य टीले और ईंट से निर्मित संरचनाओं के ध्वंसावशेष भी हैं।
खुदाई से पता चला है कि यह एक पूर्व मध्यकालीन स्थल है। १७ फरवरी १९७७ को इस स्थल को यूनेस्को के सम्भावित विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ का एक घटक है। इसका गठन १६ नवम्बर १८४५ को किया गया था। यूनेस्को का मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है।
बांग्लादेश में सभ्यता का इतिहास काफी पुराना है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इस क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता की शुरुआत ७०० ईसा पूर्व माना जाता है। उत्तरी बांग्लादेश में स्थापत्य के ऐसे हजारों अवशेष अभी भी मौजूद हैं जिन्हें मंदिर या मठ कहा जा सकता है। १६ दिसम्बर १९७१ को बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना। इसके पूर्व यह पूर्वी पाकिस्तान था।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी