– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुंदेलखंड कालेज, झांसी (उ. प्र.)
परिचय-
भारत में वामपंथी राजनीति से आशय कार्ल मार्क्स और उसकी विचारधारा से प्रेरित राजनीतिक दलों की राजनीति से है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना २६ दिसम्बर १९२५ ई. को उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर में, मानवेन्द्र नाथ राय के द्वारा की गई थी। यह भारत की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी है। भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा इसे राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता मिली हुई है। यह साम्यवाद की विचारधारा पर आधारित है। पार्टी का झंडा लाल रंग का होता है।जिस पर हंसिया और हथौड़ा बना हुआ है। यही पार्टी का चुनाव चिन्ह है।
उत्तर- प्रदेश में भाकपा
उत्तर प्रदेश में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने वर्ष १९५२ के पहले आम चुनाव से अब तक होने वाले सभी चुनाव में हिस्सा लिया है। वर्ष १९५२ के पहले प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाकपा ने ४३ स्थानों पर चुनाव लडा तथा कुल पड़े वैध मतों का ०.९३ प्रतिशत मत प्राप्त किया। इस चुनाव में पार्टी को जीत नहीं मिली थी। १९५७ में पार्टी ने ९० स्थानों पर अपने प्रत्याशी उतारे जिसमें से ९ स्थानों पर जीत हासिल किया।साथ ही ३.८३ प्रतिशत मत भी हासिल किया।
इसी प्रकार १९६२ में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में १४७ स्थानों पर चुनाव लड़कर १४ स्थानों पर जीत दर्ज की।साथ ही उसे कुल पड़े वैध मतों का ५.०८ फीसदी मत भी मिला।भाकपा का यह सर्वोच्च मत प्रतिशत था।इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पार्टी को इतना मत प्रतिशत फिर कभी नहीं मिला। १९६७ में पार्टी ने प्रदेश में ९६ सीटों पर चुनाव लड़कर १३ स्थानों पर जीत दर्ज की तथा ३.२३ प्रतिशत मत प्राप्त किया।
वर्ष १९६९ में भाकपा ने प्रदेश के विधानसभा चुनावों में १०९ सीटों पर चुनाव लड़कर ४ स्थानों पर जीत हासिल किया तथा ३.०५ प्रतिशत मत भी हासिल किया। १९७४ में पार्टी ने अब तक के सबसे कम यानी ४० स्थान पर चुनाव लडा तथा अब तक की सबसे ज्यादा सीटें यानी १६ सीटों पर जीत हासिल किया। जबकि मत प्रतिशत केवल २.४५ था। १९७७ में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में केवल २९ स्थानों पर चुनाव लडा तथा ९ सीटों पर जीत हासिल की। इस बार पार्टी के खाते में २.५७ प्रतिशत मत आए।
वर्ष १९८० के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने १५५ स्थानों पर चुनाव लड़कर केवल ७ स्थानों पर जीत हासिल किया। इस बार पार्टी को ३.५५ प्रतिशत मत प्राप्त हुए। वर्ष १९८५ में भाकपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में अब तक के सबसे अधिक १६१ स्थानों पर चुनाव लडा परन्तु केवल ६ स्थानों पर जीत मिली।मत प्रतिशत भी घटकर ३.०४ रह गया। १९८९ के चुनाव में पार्टी का मत प्रतिशत घट कर १.५६ पर आ गया।जीत केवल ६ स्थानों पर मिली जबकि पार्टी ने ६८ सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे।
वर्ष १९९१ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने ४४ स्थानों पर चुनाव लड़कर ४ सीटों पर जीत दर्ज किया और मात्र १.०४ फीसदी मत प्राप्त किया।१९९३ में प्रदेश में भाकपा को केवल ३ सीटों पर जीत मिली जबकि ३७ सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे। इस बार मत प्रतिशत घट कर मात्र ०.६४ पर आ गया। १९९६ में उत्तर प्रदेश में पार्टी को केवल १ सीट पर जीत मिली जबकि १५ स्थानों पर चुनाव लडा था।मत प्रतिशत भी घटकर ०.५९ रह गया।
वर्ष २००२, २००७, २०१२ तथा २०१७ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। जबकि २००२ में ५, २००७ में २१ तथा २०१२ में ५१ स्थानों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे।मत प्रतिशत भी घटकर मात्र क्रमशः ०.१३, ०.०९, तथा ०.१३ रह गया।
बुन्देलखण्ड में
उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत बुंदेलखंड में सात जिले आते हैं- जालौन, महोबा, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा तथा चित्रकूट। वर्ष २०१२ के विधानसभा चुनाव से पहले यहां पर सातों जनपदों में मिलाकर कुल २१ विधानसभा सीटें थीं। परन्तु २०१० में हुए परिसीमन में यहां की दो सीटें कम कर दी गई। ऐसा जनसंख्या में कमी आने के कारण हुआ है। जनपद जालौन की विधानसभा क्षेत्र कोंच और जनपद महोबा की विधानसभा क्षेत्र मौदहा को समाप्त कर दिया गया।
बुन्देलखण्ड में वामपंथी राजनीति कभी मजबूत स्थिति में थी। परन्तु भाजपा, सपा और बसपा के उभार के बाद वामपंथी पार्टियों की सक्रिय राजनीति में कमी आ गई। कामरेड रामसजीवन पटेल, कामरेड देवकुमार, कामरेड दुर्जन बहल, कामरेड रघुनंदन प्रसाद साहू, कामरेड सलाउद्दीन, कामरेड जस्टिस सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी, कामरेड मुहम्मद अहमद, कामरेड भगवान दास पहलवान, कामरेड लक्ष्मण सिंह परिहार, कामरेड प्रेम कुमार गौतम, बुंदेलखंड के प्रमुख वामपंथी आंदोलन कारी और नेता रहे हैं।
बुंदेलखंड में वामपंथी विचारधारा के प्रचार प्रसार में बुंदेलखंड कालेज झांसी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर इकबाल हुसैन तथा प्रोफेसर पी. सी. जैन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कामरेड जे. एन. पाठक, कामरेड दिनेश बैस, कामरेड ठाकुर दास बैस, कामरेड शिखर चन्द्र जैन, कामरेड राम दीन मौर्य तथा कामरेड रुस्तम सैकिन ने आजीवन वामपंथी मशाल को यहां पर जलाए रखा। कामरेड दिनेश बैस ने आजीवन पूरी निष्ठा से मजदूरों और मजलूमों के हक और हकूक की लड़ाई लड़ी और मृत्यु पर्यन्त अपनी देह को महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज, झांसी, को दान कर एक अनूठी और विरलतम मिशाल प्रस्तुत किया। यह दुनिया का बेनजीर, सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च दान है।
बुंदेलखंड के विभिन्न जनपदों में वामपंथी राजनीति का विश्लेषण निम्नलिखित है-
जनपद – जालौन
बुंदेलखंड के जनपद जालौन में वामपंथी राजनीति की जड़ें कभी बहुत मजबूत नहीं रही हैं। यहां की विधानसभा क्षेत्र माधौगढ़ ( क्रमांक- २१९) में वामपंथी पार्टियों का कोई भी प्रत्याशी न तो कभी जीत दर्ज कर पाया और न ही दूसरा स्थान हासिल हुआ। इसी जनपद की विधानसभा क्षेत्र कालपी ( क्रमांक- २२०) से भी वामपंथी दलों को कभी जीत नहीं मिली। केवल वर्ष १९७७ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री लालसिंह ने २८ हजार, ७०२ मत प्राप्त कर दूसरा स्थान हासिल किया।वह जनता पार्टी के उम्मीदवार श्री शंकर सिंह से १ हजार, २२४ मतों के अंतर से चुनाव हार गए।
जनपद जालौन की विधानसभा क्षेत्र, उरई ( क्रमांक- २२१) तथा वर्ष २०१० के बाद समाप्त कर दी गई विधानसभा क्षेत्र कोंच में भी वामपंथी राजनीति कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो पायी। चुनावी राजनीति में यहां पर कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी को जीत नहीं मिली और न ही दूसरा स्थान हासिल हुआ।
जनपद- झांसी
यह महत्वपूर्ण बात है कि जनपद झांसी की विधानसभा क्षेत्र, बबीना ( क्रमांक- २२२) में वर्ष १९६२ के विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री चंदन सिंह को १५ हजार, १९५ मतों के साथ दूसरा स्थान हासिल हुआ था। वह कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार श्री सुदामा प्रसाद गोस्वामी से ४ हजार, ८४१ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। परन्तु उनकी इस हार के बावजूद भी यहां पर वामपंथी विचारधारा की मजबूती का पता चलता है।तब, बबीना विधानसभा क्षेत्र को मोंठ विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
विधानसभा क्षेत्र झांसी सदर ( क्रमांक- २२३) तथा विधानसभा क्षेत्र मऊरानीपुर ( क्रमांक -२२४) व विधानसभा क्षेत्र गरौठा ( क्रमांक- २२५) में कम्युनिस्ट पार्टी न तो कभी जीत दर्ज सकी और न ही दूसरा स्थान हासिल किया।बेशक यहां वामपंथी राजनीति मजबूती नहीं पकड़ पाई। यद्यपि सार्वजनिक मुद्दों पर पार्टी के संगठन के नेताओं के द्वारा जन आंदोलन हुए हैं। और आज भी होते रहते हैं। झांसी से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र इस बात की तस्दीक करते हैं।
जनपद- ललितपुर
जनपद ललितपुर में वामपंथी राजनीति और आंदोलन १९७० के दशक में मज़बूत स्थिति में था। विधानसभा क्षेत्र, ललितपुर सदर ( क्रमांक- २२६) में १९७४ के विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री चंदन सिंह ने २३ हजार, ९४६ मत प्राप्त कर भारतीय क्रांति दल के उम्मीदवार श्री शादी लाल दुबे को १४ हजार, ६५२ मतों के बड़े अंतर से हराया।बी. के. डी. के प्रत्याशी श्री दुबे को मात्र ९ हजार, २९४ मत प्राप्त हुए थे। यह बुंदेलखंड में वामपंथी राजनीति की शानदार जीत थी। परन्तु इसके बाद पार्टी को पुनः जीत नहीं मिली।
इसी सीट पर वर्ष १९६२ में तथा वर्ष १९७७ में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे। १९६२ के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाकपा उम्मीदवार श्री मर्दन को यहां पर ६ हजार, २३५ मत प्राप्त हुए थे और वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री अयोध्या प्रसाद से ६ हजार, ८१२ मतों के अंतर से पराजित हो गए थे। जबकि १९७७ में भाकपा के प्रत्याशी श्री चंदन सिंह को यहां पर विधानसभा चुनाव में २० हजार, १०७ मत प्राप्त हुए थे और वह जनता पार्टी के उम्मीदवार श्री सुदामा प्रसाद गोस्वामी से ७ हजार, ७२६ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। यहां पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने जमीनी स्तर पर अच्छा काम किया था जिसका परिणाम चुनाव में देखने को मिला।
जनपद ललितपुर की विधानसभा क्षेत्र, महरौनी ( क्रमांक- २२७) में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी कभी न तो चुनाव में विजय प्राप्त कर सके और न ही दूसरा स्थान हासिल किया। यहां पर भारतीय जनसंघ और कांग्रेस का प्रभाव अधिक रहा है।
जनपद- हमीरपुर
बुन्देलखण्ड के जनपद हमीरपुर में वर्ष २०१२ के पूर्व विधानसभा की तीन सीटें थीं परन्तु वर्ष २०१० के चुनाव परिसीमन के बाद यहां की विधानसभा क्षेत्र मौदहा को समाप्त कर दिया गया। अब वर्तमान समय में यहां पर दो विधानसभा सीटें हैं। यह जनपद वामपंथी राजनीति के लिए मुफीद नहीं रहा है। यहां की विधानसभा क्षेत्र, हमीरपुर सदर ( क्रमांक- २२८) तथा विधानसभा क्षेत्र, राठ ( क्रमांक- २२९) से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी कभी जीत दर्ज नहीं कर सके और न ही दूसरा स्थान हासिल किया।
केवल विधानसभा क्षेत्र, मौदहा से वर्ष १९७४ में भाकपा के प्रत्याशी श्री गुरु दास दादा मुखर्जी ने चुनाव में ११ हजार, ७७६ मत प्राप्त कर दूसरा स्थान हासिल किया। वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री कुंवर बहादुर मिश्रा से ७ हजार, ३३५ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। इससे यहां पर वामपंथी आंदोलन की मजबूती का पता चलता है।
जनपद- महोबा
महोबा जिले की विधानसभा क्षेत्र, महोबा सदर ( क्रमांक- २३०) में भी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी कभी जीत दर्ज नहीं कर सके।केवल वर्ष १८७७ के चुनाव में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर श्री कीर्ति कुमार ने दूसरा स्थान हासिल किया। उन्हें कुल मिलाकर २१ हजार, ३०४ मत प्राप्त हुए थे और वह जनता पार्टी के प्रत्याशी श्री उदित नारायण से ९ हजार, ८४३ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। इसी जनपद की विधानसभा क्षेत्र, चरखारी ( क्रमांक- २३१) से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी कभी जीत नहीं सके और न उन्हें दूसरा स्थान हासिल हुआ।
जनपद- बांदा
जनपद बांदा की विधानसभा क्षेत्र, तिंदवारी ( क्रमांक- २३२) से वामपंथी पार्टियों को कभी जीत नहीं मिली और न ही दूसरा स्थान हासिल हुआ। इस सीट पर कभी किसी दल का एक छत्र राज नहीं रहा बल्कि समय समय पर यहां की जनता ने भिन्न-भिन्न दलों को प्रतिनिधित्व का मौका दिया है।
बांदा जिले की विधानसभा क्षेत्र बबेरू ( क्रमांक- २३३) पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने तीन बार विजय पताका फहराई। वर्ष १९६९ में पार्टी के प्रत्याशी श्री दुर्जन सिंह ने विधानसभा चुनाव में २२ हजार, ९७७ मत प्राप्त कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार श्री अर्जुन सिंह को ६ हजार, ५११ मतों के अंतर से पराजित किया। पुनः अगले चुनाव यानी वर्ष १९७४ में भाकपा उम्मीदवार श्री देवकुमार ने विधानसभा चुनाव में ३३ हजार, ३३६ मत प्राप्त कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार श्री जब्बार सिंह को १४ हजार, ३५० मतों के भारी अंतर से हराया।
वर्ष १९७७ के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री देवकुमार ने फिर से एक बार बबेरू सीट पर शानदार जीत दर्ज की। इस चुनाव में उन्हें ३५ हजार, ९०५ मत प्राप्त हुए और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी, जनता पार्टी के प्रत्याशी श्री अयोध्या प्रसाद सिंह को ६ हजार, ६१० मतों के अंतर से हराया। इस सीट पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की यह लगातार तीसरी जीत थी।जबकि देवकुमार लगातार दूसरी बार भाकपा के टिकट पर यहां से विधानसभा का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
उपविजेता
बांदा जिले की विधानसभा क्षेत्र बबेरू सीट पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने जहां लगातार जीत की हैट्रिक लगाई वहीं यहां से तीन बार पार्टी के प्रत्याशी उपविजेता रहे हैं। वर्ष १९६२ के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाकपा उम्मीदवार श्री भगवत प्रसाद को ७ हजार, २४९ मतों के साथ दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। वह निर्दलीय उम्मीदवार श्री देशराज से ३ हजार, ८०० मतों के अंतर से चुनाव हार गए। इसी प्रकार वर्ष १९६७ में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर श्री दुर्जन सिंह ने १८ हजार, ८३२ मतों के साथ ही दूसरा स्थान हासिल किया। वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री देशराज सिंह से मात्र १८० मतों से चुनाव हार गए।
इसी प्रकार बबेरू सीट पर ही वर्ष १९८० के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाकपा उम्मीदवार श्री देवकुमार यादव ने १९ हजार, ४२४ मत प्राप्त कर दूसरा स्थान हासिल किया। वह कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी श्री रामेश्वर प्रसाद से २२ हजार, ६७१ मतों के अंतर से चुनाव हार गए। बाबजूद इसके पार्टी को सम्मान जनक स्थिति प्राप्त हुई।
विधानसभा क्षेत्र नरैनी
बांदा जिले की विधानसभा क्षेत्र नरैनी ( क्रमांक- २३४) पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी को ४ बार जीत हासिल हुई। वर्ष १९७४ में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री चन्द्र भान आजाद ने पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर २० हजार, ८५६ मत प्राप्त कर जीत दर्ज की। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार श्री जगपत सिंह को ४ हजार, ०९४ मतों के अंतर से पराजित किया।
इसी प्रकार वर्ष १९७७ के प्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में भाकपा उम्मीदवार श्री सुरेन्द्र पाल ने इसी सीट से चुनाव लड़कर ३० हजार, ७३७ मत प्राप्त कर जीत दर्ज किया। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता पार्टी के प्रत्याशी श्री गोस्वामी राधा कृष्ण को १९९१ मतों के अंतर से पराजित किया।
वर्ष १९८० के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के टिकट पर श्री सुरेन्द्र पाल वर्मा ने नरैनी सीट से चुनाव लड़कर १५ हजार, ०४१ मत प्राप्त किया। उन्हें दूसरा स्थान मिला। वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री हरवंश प्रसाद पाण्डेय से १३ हजार, ५९८ मतों के अंतर से चुनाव हार गए।
वर्ष १९८५ के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री सुरेन्द्र पाल वर्मा ने नरैनी सीट पर पुनः लाल झंडा फहराया। पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर श्री सुरेन्द्र पाल वर्मा ने २२ हजार, ८४५ मत प्राप्त कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी श्री कांता देव को ७१७ मतों के अंतर से चुनाव हराया।
वर्ष १९८९ का अगला प्रदेश विधानसभा का चुनाव भी यहां से भाकपा के टिकट पर श्री सुरेन्द्र पाल वर्मा ने ही लड़ा और फिर से जीत दर्ज की। इस चुनाव में उन्हें कुल मिलाकर २२ हजार, ४०८ मत प्राप्त हुए और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार श्री हरिवंश प्रसाद पाण्डेय को ७ हजार, १४९ मतों के अंतर से चुनाव हराया। इसके बाद इस सीट पर पार्टी को अगली जीत नहीं मिली।
बांदा सदर
विधानसभा क्षेत्र बांदा सदर, ( क्रमांक- २३५) पर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी को जीत कभी नहीं मिली। वर्ष १९७४ में भाकपा के प्रत्याशी श्री दुर्जन बहल ने पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर दूसरा स्थान हासिल किया। उन्हें कुल मिलाकर १७ हजार, ३४६ मत प्राप्त हुए थे। वह सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री जमुना प्रसाद से मात्र ७९८ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
वर्ष १९७७ के प्रदेश विधानसभा चुनाव में पुनः पार्टी ने दुर्जन बहल पर दांव लगाया और एक बार फिर उन्हें चुनाव में उतारा। परन्तु इस बार भी पार्टी को दूसरा स्थान मिला। दुर्जन बहल को कुल मिलाकर ३१ हजार, २११ मत प्राप्त हुए और वह जनता पार्टी के प्रत्याशी श्री जमुना प्रसाद से पुनः १ हजार, ९६९ मतों के अंतर से चुनाव हार गए। इसके बाद भाकपा का प्रभाव क्षीण हो गया।
जनपद- चित्रकूट
बुन्देलखण्ड में जनपद चित्रकूट के अंतर्गत दो विधानसभा सीटें आती हैं – चित्रकूट सदर और मानिकपुर। वर्ष २०१२ तक यह विधानसभा क्षेत्र कर्वी के नाम से जाना जाता था।चित्रकूट सदर ( क्रमांक- २३६) पर वामपंथी राजनीति की जड़ें मजबूत रही हैं। वर्ष १९६२ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री रामऔतार ने यहां से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर ३ हजार, ६२४ मत प्राप्त कर दूसरा स्थान हासिल किया। वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री दीनदयाल से १ हजार, ९५० मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। दीनदयाल को ५ हजार, ५७४ मत प्राप्त हुए थे। इस विधानसभा क्षेत्र में यह जीत का न्यूनतम अंक था।
वर्ष १९६७ के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाकपा ने कर्वी से श्री राम सजीवन को अपना प्रत्याशी बनाया।राम सजीवन को कुल मिलाकर १२ हजार, २१४ मत प्राप्त हुए और उन्हें शानदार जीत मिली। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी श्री दीनदयाल को ३ हजार, ४६६ मतों के अंतर से चुनाव हराया।
वर्ष १९६९ के उत्तर प्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में भाकपा ने पुनः श्री राम सजीवन को अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार उन्हें १७ हजार, २०४ मतों के साथ दूसरा स्थान हासिल हुआ। वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री राधा कृष्ण गोस्वामी से २ हजार, ३२२ मतों के अंतर से चुनाव हार गए। बावजूद इसके पार्टी को सम्मान जनक स्थिति प्राप्त हुई।
वर्ष १९७४ के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने विधानसभा क्षेत्र कर्वी से तीसरी बार श्री राम सजीवन को अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार राम सजीवन को कुल मिलाकर २५ हजार, ९०३ मतों के साथ शानदार जीत मिली। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार श्री राधा कृष्ण गोस्वामी को १० हजार, ९७० मतों के अंतर से पराजित किया।
वर्ष १९७७ के चुनाव में पार्टी ने पुनः चौथी बार राम सजीवन को अपना उम्मीदवार बनाया। इस बार भी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी श्री राम सजीवन को यहां पर ३३ हजार, ४६० मतों के साथ जीत मिली।राम सजीवन ने जीत की हैट्रिक के साथ ही अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता पार्टी के प्रत्याशी श्री विनय कुमार को ३ हजार, ११८ मतों के अंतर से चुनाव में पराजित किया।
वर्ष १९८० में सम्पन्न उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कर्वी से रामसजीवन ने पांचवीं बार भाकपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर दूसरा स्थान हासिल किया। उन्हें कुल मिलाकर १६ हजार, २६८ मत प्राप्त हुए थे और वह कांग्रेस के उम्मीदवार श्री शिवनरेश से ८ हजार, ५१३ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
वर्ष १९८५ में कर्वी विधानसभा क्षेत्र से छठवीं बार भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने श्री राम सजीवन को अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार भी पार्टी को यहां पर २८ हजार, ०९७ मतों के साथ जीत मिली। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार श्री राजधर मिश्रा को १२ हजार, ५८१ मतों के बड़े अंतर से चुनाव हराया।
वर्ष १९८९ में यहां से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने श्री राम प्रसाद सिंह को चुनाव में उतारा। उन्होंने कुल मिलाकर १८ हजार, ४०० मत प्राप्त कर जीत दर्ज की।राम प्रसाद सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय प्रत्याशी श्री हीरालाल पांडेय को २ हजार, ६९९ मतों के अंतर से चुनाव हराया।
वर्ष १९९१ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पुनः राम प्रसाद सिंह को भाकपा ने कर्वी से अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार भी यहां से पार्टी को जीत मिली। रामप्रसाद सिंह को कुल मिलाकर २० हजार, ४८८ मत प्राप्त हुए। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार श्री हीरालाल पांडेय को ३ हजार, ८६० मतों के अंतर से चुनाव हराया। इसके बाद यहां पर भी वामपंथी राजनीति लगभग समाप्त हो गई।
जनपद चित्रकूट की दूसरी विधानसभा क्षेत्र, मानिकपुर ( क्रमांक- २३७) से वामपंथी पार्टियों को कभी जीत नहीं मिली। केवल दो बार, वर्ष १९८९ और १९९१ में यहां से पार्टी को दूसरा स्थान हासिल हुआ था। १९८९ में भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़कर श्री रामेश्वर प्रसाद ने १४ हजार, २२४ मत प्राप्त कर दूसरा स्थान हासिल किया। वह कांग्रेस के उम्मीदवार सिया दुलारी से ५ हजार, ११० मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
इसी प्रकार वर्ष १९९१ में पार्टी ने यहां पर दूसरी बार रामेश्वर प्रसाद को चुनाव मैदान में उतारा। परन्तु इस बार भी उन्हें जीत नहीं मिली। १७ हजार, ५०० मतों के साथ पार्टी को दूसरा स्थान हासिल हुआ। रामेश्वर प्रसाद अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के प्रत्याशी श्री मन्नू लाल कुरील से ५ हजार, २७४ मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
निष्कर्ष-
बुन्देलखण्ड के सातों जनपदों में वामपंथी पार्टियों का संगठन था और आज भी है। अंतर सिर्फ इतना है कि १९९० के दशक तक वह मजबूत स्थिति में था, परन्तु अब उसमें शिथिलता आ गई है। बुंदेलखंड में वामपंथी राजनीति का विश्लेषण यह बताता है कि जनपद चित्रकूट और बांदा में इसका प्रभाव सर्वाधिक रहा है। जनपद ललितपुर में भी पार्टी मजबूत स्थिति में थी। चित्रकूट सदर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने रिकॉर्ड ६ बार जीत दर्ज की और ३ बार उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे हैं। कामरेड रामसजीवन चित्रकूट सदर से ६ बार चुनाव लडे जिसमें से ४ बार उन्होंने जीत हासिल किया।राम प्रसाद सिंह भी यहां से २ बार विधायक बने।
बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा की विधानसभा क्षेत्र नरैनी से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने ४ बार जीत दर्ज की। कामरेड सुरेन्द्र पाल वर्मा यहां से ३ बार विधायक बने। विधानसभा क्षेत्र बबेरू से भी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी लगातार ३ बार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे।दो बार कामरेड देवकुमार तथा एक बार कामरेड दुर्जन बहल यहां से विधायक बने।। जनपद ललितपुर सदर से भी एक बार भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी कामरेड चंदन सिंह ने जीत का परचम लहराया।
१९९० के दशक और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा समाज वादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में उभार के साथ बुंदेलखंड में वामपंथी राजनीति का क्षरण हो गया और आज पार्टी की ताकत लगभग अवसान पर आ गई है।यदा कदा पार्टी जन आंदोलन में शामिल होती है, जिसकी खबरें दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।
– फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर – प्रदेश, भारत
संदर्भ स्रोत –
१- दुबे, प्रदीप कुमार, सम्पादक, उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों का उद्भव एवं विकास, पुस्तकालय शोध एवं संदर्भ – शाखा, विधानसभा सचिवालय, उत्तर प्रदेश, लखनऊ- २०१७, प्रथम संस्करण, फरवरी- २०१७
२- मौर्य, डॉ. राजबहादुर, उत्तर प्रदेश विधानसभा, अतीत से वर्तमान (१९५२-२०१७) एक विश्लेषणात्मक विवरण, दुसाध प्रकाशन, लखनऊ, ISBN: 978-81-87618-80-5
३- भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट www.eci.gov.in
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It's a matter of research and analysis as to why communist and socialist movement was and is relegated to states of Kerala, West Bengal, Tripura and others in India.. It couldn't achieve mass acceptance in North India.. There is lack of political socialisation and political culture among citizens who easily fall for personality cult instead of educational and leadership attributes of parties.. Hope this improves!
तथ्यात्मक और सारगर्भित राजनीतिक विश्लेषण... बुन्देलखण्ड के राजनीतिक मानचित्र के अतीत से वर्तमान की आपकी समीक्षाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावी अध्ययनों से परिपूर्ण है।
बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब, निरंतर उत्साह वर्धन के लिए।