प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम

परिचय एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि

देशप्रेम और देशभक्ति की भूमि जनपद बांदा, उत्तर- प्रदेश में दिनॉंक 6 सितम्बर, 1965 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मास्टर नारायण प्रसाद की सुपौत्री तथा श्रीमती आशा सिन्हा (माँ) व श्री प्रकाश चन्द्र (पिता) के घर जन्मीं प्रोफ़ेसर ज्योति वर्मा विद्वता, साहस और ममत्व से परिपूर्ण व्यक्तित्व हैं ।(1) जिन्होंने अपनी समझदारी, संवेदना, हौसला और जुझारूपन से सब को प्रभावित किया है । बेटी, पत्नी, मॉं, सहयोगी और प्रोफेसर के रूप में उनका साहस, ज्ञान और जज़्बा क़ाबिले तारीफ़ है । कायस्थ परिवार से ताल्लुक़ रखने वाली ज्योति वर्मा तीन बहनें श्रीमती रश्मि सिन्हा (परिनिवृत्त), श्रीमती नीति दत्ता (असिस्टेंट प्रोफेसर, मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय, भोपाल, मध्य-प्रदेश) व स्वयं प्रोफेसर ज्योति वर्मा तथा एक भाई मयंक श्रीवास्तव है । ज्योति वर्मा का पूरा परिवार देश की आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय रहा है । उनके बाबा मास्टर नारायण प्रसाद जी (जन्म- 08-06-1894, देहांत- 02-02-1969) का राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी और क्रांतिकारी चन्द्र शेखर आज़ाद के साथ नज़दीकी और घनिष्ठ संबंध था । गाँधी जी से प्रभावित होकर उन्होंने वर्ष 1918 में, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही “केसरी प्रेस” की स्थापना किया था । इस प्रेस में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ पर्चे छपते थे । मास्टर साहब देश की आज़ादी के लिए लड़ने के साथ-साथ चंदा इकट्ठा करते थे और स्वयं भी पूरी तरह से समर्पित थे । वर्ष 1919 में गाँधी जी के नेतृत्व में छेड़े गए असहयोग आन्दोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और सरकारी नौकरी छोड़ी । वर्ष 1921 में दफ़ा 17 रूल 14 के अंतर्गत अन्य साथियों के साथ मास्टर नारायण प्रसाद गिरफ़्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया और उन्हें 6 माह की जेल हुई । वर्ष 1930-35 तक चले सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के कारण पुनः वह 6 महीने के लिए जेल गए । उनका मकान क्रांतिकारियों के लिए रुकने तथा क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र रहा करता था । वर्ष 1969 में मास्टर नारायण प्रसाद का निधन हुआ । (2) उनके द्वारा स्थापित यह प्रेस आज भी बांदा जनपद मुख्यालय में बलखंडी नाका के पास स्थित है जिसका संचालन आज मास्टर साहब के सुपौत्र मयंक श्रीवास्तव के द्वारा किया जाता है ।

प्रोफेसर ज्योति वर्मा का इकलौता पुत्र डॉ. भरत वर्मा, मध्यप्रदेश के जनपद दतिया में स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज दतिया में एनेस्थीसिया विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफ़ेसर है तथा बहू डॉ. अमृता निधि राजकीय मेडिकल कॉलेज उरई जनपद जालौन (उत्तर- प्रदेश) में एनाटॉमी की एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं । दोनों की शादी वर्ष, 2015 में हुई । दिनांक, 23 जून, 2020 को जन्मीं दोनों डॉक्टर दम्पती की एक बेटी एशानी वर्मा (बानी) है ।(3)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा यात्रा में…

जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव :

ज्योति वर्मा के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव उनके पिताजी श्री प्रकाश चन्द्र का पड़ा है । अपने पिताजी से उन्होंने समर्पण, अनुशासन, वक्त की पाबंदी, नियमित दैनिक दिनचर्या, पढ़ने की ज़िद तथा अपने काम के प्रति जुनून सीखा ।बक़ौल ज्योति वर्मा, “मेरे पिता हमारा एहसास हैं, हमारी धमनियों में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा हैं, हमारी वाणी का प्रवाह हैं, हमारे कार्यों की गति हैं, हमारे समूचे वजूद हैं, हमारी सामर्थ्य हैं ।” ज्योति वर्मा की माँ श्रीमती आशा सिन्हा बहुत ही विनम्र स्वभाव की हैं । अपनी माँ से उन्होंने सहजता, सरलता, विनम्रता और साक्षी भाव सीखा । अपने माता-पिता को याद करते हुए वह कहती हैं कि, “पापा अपने में ही राजी और मम्मी सबमें राजी ।” पति के निधन के बाद ससुराल में ज्योति वर्मा को परिवार का पूरा सहयोग और स्नेह मिला । उनके पति के बड़े भाई डॉ. देश दीपक वर्मा बहुत ही सुयोग्य और सरल व्यक्ति थे । कम बोलते थे लेकिन ऑंखों से ही सबकी ज़रूरत समझ लेते थे । इसके साथ ही ज्योति वर्मा के ऊपर श्रीमद्भागवत गीता का भी प्रभाव है । बक़ौल ज्योति वर्मा, “मैने श्रीमद्भागवत गीता से निष्काम कर्म योग सीखा”। हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित नारी पात्रों सीताजी, द्रोपदी, कुन्ती इत्यादि से उन्हें जीवट के साथ जीवन जीने और संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है । बक़ौल ज्योति वर्मा, “इन नारियों के जीवन से मुझे दुःखों से उबरने और दुःखों को सहन करने की प्रेरणा तथा साहस मिला ।” आगे चलकर उनके जीवन पर बौद्ध साहित्य ने भी अपना प्रभाव छोड़ा । बौद्ध धम्म, बौद्ध दर्शन और बौद्ध साहित्य को पढ़ने, समझने की प्रेरणा उन्हें बुंदेलखंड कॉलिज, झाँसी में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. बृजेन्द्र सिंह बौद्ध से मिली ।(3-A) इन्हीं सब के बीच डॉ. ज्योति वर्मा के व्यक्तित्व ने आकार लिया ।

शिक्षा- दीक्षा :

ज्योति वर्मा की प्राथमिक शिक्षा वर्ष 1968 में, जनपद इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कनेली में आनन्द मठ मार्ग पर स्थित एक विद्यालय से प्रारम्भ हुई । उस समय ज्योति वर्मा के पिता श्री प्रकाश चन्द्र प्रशासनिक सेवा में कार्यरत खण्ड विकास अधिकारी थे और यहीं इलाहाबाद में निवास कर रहे थे । यद्यपि आगे चलकर उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और अपने मूल निवास स्थान बांदा लौट आए । इस प्रकार उनकी प्राथमिक शिक्षा बाल निकेतन, आर्य कन्या विद्यालय, रेलवे स्टेशन के पास, जनपद बांदा से पूरी हुई । यहीं से ज्योति वर्मा की आगे की पढ़ाई जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल और इंटरमीडिएट सम्पन्न हुई । वर्ष 1983 में उच्च शिक्षा (बी. ए.) के अध्ययन के लिए उन्होंने राजकीय महिला महाविद्यालय, बांदा में दाख़िला लिया । (4) इसी दौरान जनपद झाँसी निवासी प्रसिद्ध समाजसेवी और नगर विधायक (1969-1974) डॉ. जगमोहन नाथ वर्मा (जन्म-28-02-1913 – 02-02-1981 देहांत ) के सुपुत्र डॉ. नीरज वर्मा के साथ दिनांक 21 जून, 1983 को वह शादी के पवित्र बंधन में बंध गयीं और झाँसी की बहू बनकर बांदा से अपनी ससुराल वीरांगना नगरी झाँसी आ गयीं । डॉ. जगमोहन नाथ वर्मा ने 1969 के उत्तर- प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीता और झाँसी सदर सीट से विधायक बने । (5) इसके साथ ही वह झाँसी नगरपालिका के सभासद, उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष भी बने । यहाँ 99, खत्रियाना, मानिक चौक, झाँसी में एक प्रतिष्ठित और सम्पन्न परिवार के साथ हँसी ख़ुशी से जीवन व्यतीत होने लगा । डॉ. नीरज वर्मा के बड़े भाई डॉ. देश दीपक वर्मा भी झाँसी के प्रतिष्ठित चिकित्सक में शुमार रहे हैं । चूँकि यहाँ भी उनका पूरा परिवार उच्च स्तर पर शिक्षित था इसलिए ज्योति वर्मा का आगे की पढ़ाई का सिलसिला जारी रहा ।

केसरी प्रेस

झाँसी आगमन :

झाँसी आने के बाद स्नातक की अधूरी पढ़ाई को पूरा करने के लिए पुनः उनका प्रवेश झाँसी के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुआ और प्रथम श्रेणी में स्नातक उत्तीर्ण किया । इसी बीच वर्ष, अगस्त 1984 में उन्होंने एक सुपुत्र (भरत वर्मा) को जन्म दिया । वर्ष 1985-86 में ज्योति वर्मा ने संस्कृत विषय से प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर (एम. ए.) की उपाधि हासिल की । बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से संबद्ध अतर्रा पी. जी. अतर्रा जनपद बांदा के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश प्रसाद पाण्डेय के निर्देशन में “वृहत्त्रयी में प्रगतिशील तत्वों का अनुशीलन” विषय पर ज्योति वर्मा ने अपना शोध कार्य पूरा किया तथा वर्ष 1992 में विद्या वाचस्पति (पी एच- डी) की उपाधि धारण किया । अब ज्योति वर्मा, डॉ. ज्योति वर्मा बन गईं । अपने शोध कार्य, पारिवारिक जीवन और बेटे की परवरिश के साथ ही साथ वर्ष 1989, 1990 और 1991 में ज्योति वर्मा ने 3 वर्षों तक अपनी सेवाएँ आर्य कन्या महाविद्यालय, झाँसी के संस्कृत विभाग में अध्यापन कार्य में लगाई परन्तु उन्होंने इसके बदले एक रुपये का भी सहयोग या पारिश्रमिक नहीं लिया । उनका यह कार्य और योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा । केवल 3 दिनों के लिए संस्कृत की अध्यापिका के रूप में झाँसी शहर के प्रतिष्ठित सेंट फ़्रांसिस इंटर कॉलेज में भी ज्योति वर्मा ने अपनी सेवाएँ दीं । वर्ष 1994 में उत्तर- प्रदेश उच्चतर शिक्षा आयोग से चयनित होकर प्रोफ़ेसर ज्योति वर्मा बुंदेलखंड महाविद्यालय, झाँसी में संस्कृत विभाग की प्रवक्ता बनकर आ गईं । तब से लेकर अब तक निरंतर यहीं पर वह अपनी सेवाएँ दे रही हैं । (6)


कठिन दौर :

अभी सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक बड़ी घटना हो गई । 13 अगस्त, 1992 को अचानक ज्योति वर्मा के पति डॉ. नीरज वर्मा का अचानक देहांत हो गया । इस घटना ने ज्योति वर्मा को अंदर से तोड़ दिया । ऐसे दौर में बड़े भाई डॉ. देशदीपक वर्मा और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती डॉ. निरुपमा वर्मा ने सभी प्रकार से उन्हें सम्बल प्रदान किया ।

बुन्देलखण्ड कॉलेज में :

वर्ष 1994 से लेकर प्रोफेसर ज्योति वर्मा का अब तक क़रीब तीन दशक का लम्बा और सुदीर्घ जीवन बुंदेलखंड कॉलिज झाँसी में बीता है । चूँकि इस समय कॉलेज में संस्कृत विभाग में कोई नियमित अध्यापक नहीं था इसलिए यहाँ कार्यभार ग्रहण करते ही ज्योति वर्मा विभागाध्यक्ष बन गईं और आज तक इसी पद पर कार्यरत हैं । इन तीन दशकों में उन्होंने अपने आप को उच्च शिक्षा जगत में प्रतिस्थापित किया । अकादमिक जगत के उच्च पदों पर आसीन हुईं तथा श्रेष्ठ मानदंडों को स्पर्श किया । अब तक 4 विद्यार्थी (वन्दना कुलश्रेष्ठ, अपर्णा शर्मा, दिनेश कुमार यादव तथा आदर्श ज्योति) उनके निर्देशन में शोध कार्य कर विद्या वाचस्पति (पी एच-डी) की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं तथा एक शोधार्थी, दिनेश कुमार सिंह, अभी पंजीकृत है । अब तक आपके 50 से अधिक शोधपत्र राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । जिसमें ‘मानव मुक्ति का मार्ग’ ‘बुद्ध का नीतिशास्त्र’ ‘व्यक्तित्व विकास के विविध आयाम’ ‘साहित्य और मानवता’ जैसे विषयों पर लिखे गए शोधपत्र सम्मिलित हैं । पुस्तक लेखन के क्षेत्र में भी डॉ. ज्योति वर्मा ने विभिन्न विषयों पर कलम चलाई है । अब तक आपकी 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और एक प्रकाशनाधीन है । अब तक एक दर्जन से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग लेकर आपने विभिन्न विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया है । देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित लगभग 30 राष्ट्रीय सेमिनारों में आपकी उपस्थिति दर्ज है जहाँ आप ने अपना शोधपत्र भी प्रस्तुत किया है । लगभग 150 से अधिक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में भी ज्योति वर्मा की भागीदारी रही है । यहाँ पर आप ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया । वर्ष 2021 में आपने ‘संस्कृति और विरासत” पर एक लघु शोध परियोजना भी पूरी की है । (7)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा बुन्देलखण्ड कॉलेज में …

पुरस्कार और सम्मान :

प्रोफेसर ज्योति वर्मा के ज्ञान और परिश्रम तथा साधना को समाज से भरपूर सम्मान और प्रोत्साहन मिला है । अब तक कुल मिलाकर उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा 18 पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है । वर्ष 2005 में इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन कल्चर, चंडीगढ़, 2009 में भारत विकास परिषद, वर्ष 2013 और 2014 में गवर्नमेंट पीजी कॉलेज, झाँसी, 2014 में ही रमाबाई अम्बेडकर सामाजिक संस्थान, उत्तर प्रदेश, 2015 और 2016 में गवर्नमेंट पीजी कालेज, झाँसी, वर्ष 2016 में ही परशुराम महाविद्यालय, सिमरावारी, झाँसी, के द्वारा पुरस्कार और सम्मान प्रदान किया गया । वर्ष 2017 में प्रोफेसर ज्योति वर्मा को अलग-अलग तीन संस्थाओं के द्वारा पुरस्कृत किया गया । इनमें गवर्नमेंट पीजी कॉलेज, झाँसी, सिविल सर्विस एकेडमी झाँसी और सुगत बुद्ध विहार, पारीक्षा, झाँसी हैं । वर्ष 2020 में पुनः उन्हें दो बार, भारत के साहित्य रत्न सम्मान और भारतीय बहुजन संगठन, झाँसी के द्वारा सम्मानित किया गया । वर्ष 2021 में राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में “साहित्य लोक गौरव सम्मान” से विभूषित किया गया । अभिनन्दन और सम्मान का यह सिलसिला वर्ष 2024 में सर्वोत्कृष्ट रहा जबकि ज्योति वर्मा को अलग-अलग चार संस्थाओं के द्वारा सम्मानित किया गया । इसमें “भारत का साहित्य रत्न सम्मान”, भारतीय बहुजन संगठन के द्वारा “उत्कृष्ट समाज सामाजिक सेवाओं के लिए” भारतीय बौद्ध महासभा, झाँसी, के द्वारा “उत्कृष्ट समाज सेवा हेतु” तथा फनकार-ए-बसुन्धरा फ़ायनेंस ग्रुप के द्वारा सम्मानित किया गया । उपरोक्त सभी पुरस्कार और सम्मान प्रोफ़ेसर ज्योति वर्मा की विद्वता के साथ ही उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता और समाज सेवा के अवदान हैं ।(8)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा का सम्मान करते एमएलसी तिलक चंद्र अहिरवार

प्रशासकीय दायित्व :

प्राध्यापकीय कार्य के साथ ही साथ प्रोफेसर ज्योति वर्मा ने बुंदेलखंड कॉलिज और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रशासकीय दायित्वों का भी दक्षता पूर्वक निर्वहन किया है । वह बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम समिति की संयोजक, विद्या परिषद की सदस्य, यू. एफ. एम. समिति की सदस्य, विषय विशेषज्ञ, प्रशासनिक एवं परीक्षक जैसे पदों की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर चुकी हैं और आज भी कर रही हैं । वर्ष 2011 से 2014 तक वह बुंदेलखंड कॉलिज झाँसी की वार्षिक पत्रिका ‘उन्नयन’ की प्रधान संपादक रह चुकी हैं । वर्ष 2009 में बुंदेलखंड कॉलिज झाँसी में सम्पन्न महत्त्वपूर्ण “नैक” निरीक्षण की संयोजक जैसी प्रमुख ज़िम्मेदारी वह सम्भाल चुकी हैं । वर्ष 2009 से 2014 तक ज्योति वर्मा बुंदेलखंड कॉलिज प्रवेश समिति की संयोजक रह चुकी हैं । वर्ष 2005 से 2009 तक वह राष्ट्रीय सेवा योजना की कार्यक्रम अधिकारी रही हैं । माध्यमिक सेकेंडरी एवं उच्च शिक्षा समिति में विषय विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं । इसके साथ ही वह “नेशनल एसोसिएशन फॉर रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ ऑफ इंडिया,” “इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर”, स्पिक मैट्रिक्स, केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर, मध्यप्रदेश की संस्कृत विभाग की शोध पत्रिका “सागारिका” और “डाट्यम्” राष्ट्रीय शोध पत्रिका “शोध धारा” और “डिस्कवर नॉलेज” मैगज़ीन की आजीवन सदस्य भी हैं । स्वयं सेवी संस्था “सेवा” की भी वह एक सक्रिय सदस्य रह चुकी हैं ।(9)

एक प्रोफेसर के रूप में :

एक प्रोफ़ेसर के रूप डॉ. ज्योति वर्मा का तीन दशक लम्बा जीवन अनुभव और पुस्तकीय ज्ञान का अनुपम संगम है । अपनी नियमित कक्षाओं के अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने कॉलिज और घर- परिवार की चारदीवारी से बाहर निकल कर आम लोगों से भी संवाद स्थापित किया । उनके नज़दीक जाकर उनकी ज़िंदगी तथा ज़िल्लतों को गौर से देखा और महसूस किया । अपनी शैक्षणिक यात्रा में जहॉं उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों तथा शहरों का दौरा किया वहीं गॉंव की गलियों, कूचों और मुहल्लों तक भी पहुँचने की कोशिश की । उनके अध्ययन का दायरा विस्तृत है । भारत की वैदिक संस्कृति और सभ्यता से लेकर बुद्ध और ओशो उनके हीरो हैं । वह बड़ी बेबाक़ी से कहती हैं कि, “मेरी आस्था किसी से नहीं टकराती । मेरी अपनी दैनिक दिनचर्या भगवान के पूजा पाठ, तुलसी को जल देने और ठाकुर जी को भोग लगाने से प्रारम्भ होती है ।” बुद्ध उन्हें इसलिए पसंद हैं क्योंकि वह तर्कवादी हैं और उनके विचारों से प्रेम, दया, करुणा तथा सहानुभूति की सीख मिलती है । वैदिक साहित्य से उन्होंने साक्षी भाव, दृष्टाभाव, समभाव, प्रेम, आनन्द, भरा पूरा श्रृंगार, अपने भाव में जीवन जीना सीखा । जैन धर्म के त्याग से वह सहमत हैं लेकिन उनके अतिवाद से नहीं । हिंदू धर्म के अतिवाद के प्रश्न पर उनका कहना है कि, “हिन्दू धर्म में अतिवाद की बाध्यता नहीं है ।” ओशो का जीवन दर्शन ‘स्वयं के आनन्द में उतरना सिखाता है’ इस बात से वह प्रभावित हैं ।(10)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा का साहित्य सृजन

बहुजन आन्दोलन में :

भारत में बहुजन आंदोलन बौद्धिक चिंतन और सामाजिक परिवर्तन की वह धारा है जो हिन्दू समाज में पायी जाने वाली वर्ण व्यवस्था का डटकर विरोध करती है और समानता पर आधारित समाज निर्माण की पैरोकारी करती है । भारत में भगवान तथागत बुद्ध, महामना ज्योतिबा फूले, बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा अन्य बहुजन समाज में जन्में सन्तों, गुरुओं और महापुरुषों से यह आन्दोलन वैचारिक ऊर्जा ग्रहण करता है । प्रोफेसर ज्योति वर्मा बहुजन आन्दोलन की हिमायती हैं । इस आन्दोलन में उन्हें लाने का श्रेय कालेज में बहुजन आन्दोलन के मिशनरी साथी और अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. बृजेन्द्र सिंह बौद्ध को है । वर्ष 2014 से लेकर अब तक लगभग एक दशक तक का उनका जीवन बहुजन आंदोलन से जुड़ा हुआ है । समय- समय पर आयोजित होने वाले बहुजन आंदोलन के कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रहती है । दिनांक 03-01-2021 को राजकीय संग्रहालय झाँसी में भारतीय बहुजन संगठन के द्वारा आयोजित माता सावित्रीबाई फूले जयंती में बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल होकर अपना सम्बोधन भी किया । दिनांक 22 जनवरी, 2023 को आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के तत्वावधान में आई. एम. ए. भवन झाँसी में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि के रूप में हिस्सा लिया और “आरक्षण का वर्तमान स्वरूप और भविष्य की चुनौतियाँ एवं समाधान” विषय पर अपने विचार व्यक्त किए । दिनांक 16 अप्रैल, 2023 को बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में, डॉ. अम्बेडकर सामाजिक कल्याण समिति, शिवाजी नगर, झाँसी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि सम्मिलित होकर अपना व्याख्यान दिया । दिनांक 23 अप्रैल, 2023 को ही इसी प्रकार के कार्यक्रम में ग्राम बेरवई, तहसील मऊरानीपुर जिला झाँसी में आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया । इसी प्रकार दिनांक 7 मई, 2023 को राजकीय संग्रहालय झाँसी में आयोजित बुद्ध जयंती समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होकर अपना योगदान दिया । यह कार्यक्रम भारतीय बौद्ध महासभा के द्वारा आयोजित किया गया था । दिनांक 24 अक्टूबर, 2023 को बुद्ध विहार पारीक्षा में, अशोक धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया । दिनांक 03 नवम्बर, 2023 को भारतीय बहुजन संगठन के द्वारा राजकीय संग्रहालय में आयोजित मेधावी छात्र सम्मान समारोह में भाग लिया । दिनांक 27 नवम्बर, 2023 को महरौनी जिला ललितपुर में ज्ञान रत्न बुद्ध विहार उद्घाटन एवं धम्म समागम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित होकर पुण्य लाभ अर्जित किया ।आज भी वह निरंतर बहुजन आंदोलन के लिए समर्पित हैं । (10-A)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा को सम्मानित करती बी के डी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ संतोष रानी और माइक पर प्रोफेसर बृजेन्द्र बौद्ध

दिनांक 7 जनवरी, 2024 को झाँसी में आयोजित माता सावित्रीबाई फूले जयन्ती समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में हिस्सा लिया । दिनांक 11 फ़रवरी, 2024 को अखिल भारतीय एस सी/ एस टी कल्याण एसोसिएशन झाँसी के द्वारा, शुभ आशीर्वाद विवाह घर में आयोजित माता रमाबाई अम्बेडकर जयंती समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित होकर सहयोग प्रदान किया । दिनांक 10-05-2024 को जनपद झाँसी के रक्सा क़स्बे में एक गरीब दलित परिवार की बेटी की शादी में शामिल होकर उसे सहयोग प्रदान किया । दिनांक 23-05-2024 को अपने सहयोगी साथियों प्रोफेसर बृजेन्द्र सिंह बौद्ध, डॉ. अनिरुद्ध गोयल, डॉ. अरुण कुमार के साथ सुगत बुद्ध विहार पारीक्षा में आयोजित भगवान बुद्ध की जयंती समारोह में हिस्सा लिया तथा कार्यक्रम को सम्बोधित किया । दिनांक 09-06-2024 को सुगत बुद्ध विहार पारीक्षा जनपद झाँसी में भारतीय बौद्ध महासभा द्वारा आयोजित बुद्ध जयंती के कार्यक्रम में सम्मिलित होकर अपना उद्बोधन भी दिया । दिनांक 03-01-2025 को राजकीय संग्रहालय, झाँसी में भारतीय बहुजन संगठन के द्वारा आयोजित माता सावित्रीबाई फूले की जयंती के कार्यक्रम में प्रोफेसर ज्योति वर्मा ने हिस्सा लिया तथा कार्यक्रम को सम्बोधित भी किया । (11)

प्रोफेसर ज्योति वर्मा… सहयोगी साथियों की दृष्टि में…

किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके व्यक्तित्व, घर परिवार की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन, अपनी ड्यूटी के प्रति निष्ठा और ईमानदारी, समाज और देश के लिए किए गए उसके योगदान को याद करके किया जाता है । ज्योति वर्मा ने अपने जीवन के तीन दशक बुंदेलखंड कॉलेज के परिसर में बिताया है । इसलिए यहाँ पर दिए गए उनके अवदान अधिक महत्वपूर्ण हैं । उनके कार्यों को याद करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (बूटा) के महामंत्री डॉ. अनिरुद्ध गोयल कहते हैं कि, “प्रोफेसर ज्योति वर्मा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं । अध्यात्म की उन्हें गहरी समझ है । करुणा की प्रतिमूर्ति हैं और उनके व्यवहार में सौम्यता है । उनमें सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता है । निर्भीकता उनका विशेष गुण है ।” अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर (डॉ.) बृजेन्द्र सिंह बौद्ध कहते हैं कि, “प्रोफेसर ज्योति वर्मा का बहुजन आन्दोलन के साथ खड़े होना उनकी मानवतावादी सोच को दर्शाता है । यद्यपि वह ऐसे परिवार और समाज से ताल्लुक़ रखती हैं जिसने सामाजिक बहिष्कार, छुआ-छूत और हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था का दंश नहीं झेला बावजूद इसके समाज के आख़िरी पायदान पर खड़े व्यक्ति से उन्हें हमदर्दी है यह काबिले तारीफ़ है ।”


पिछले लगभग एक दशक से उन्हें क़रीब से जानने और समझने वाली श्रीमती कमलेश मौर्या कहती हैं कि, “प्रोफेसर ज्योति वर्मा का जीवन बहुत साफ़- सुथरा है । उनके व्यक्तित्व में सहजता, सरलता और विनम्रता है । वह हमेशा ग़रीबों और बेसहारा लोगों की मदद करती हैं । उनका जीवन संघर्ष, त्याग और समर्पण की अनूठी मिसाल है । लालच उन्हें छू भी नहीं गया है । उनके नज़दीक जाने पर एक विशेष सौम्यता का एहसास होता है । उनकी करुणा के द्वार सबके लिए खुले हुए हैं ।” क़रीब- क़रीब 22 सालों से वर्मा परिवार से खास ताल्लुक़ रखने वाले और अब 64 साल की उम्र पूरी कर चुके रियाज़ अहमद मंसूरी कहते हैं कि, “भाभी जी (ज्योति वर्मा) के यहाँ रहते, नौकरी करते 22 साल कब गुज़र गए पता ही नहीं चला । मुझे हमेशा उनके यहाँ घर जैसा प्यार मिला । कभी लगा ही नहीं कि मैं नौकरी में हूँ । घर में सभी लोग प्यार मुहब्बत से बात करते हैं । जहॉं पर ज़रूरत होती है वहाँ पर मदद करते हैं । बच्चों की परवरिश, पढ़ाई लिखाई सभी में मेरी मदद करती हैं । मैं इस परिवार के लिए हमेशा दुआ करता रहूँगा ।”(12)

अन्ततः :

भारतीय समाज में अपने आप को स्थापित करने के लिए महिलाओं को सदैव जूझना पड़ा है, संघर्ष करना पड़ा है बावजूद इसके औरत ने अपनी समझदारी, संवेदना, हौसले और जुझारूपन से सबको प्रभावित किया है । वैयक्तिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन में महिलाओं को पुरुषों से ज़्यादा ख़तरे और तकलीफें सहनी पड़ी हैं । नारी हर आन्दोलनों में, संघर्षों और चुनौतियों में जुझारू क़तारों की अग्रिम पंक्ति में रही है ।वह सत्ता शक्ति के साथ टकराती है । उसके परिवर्तन, बदलाव और क्रांति से उसकी मुक्ति की राह खुलती है । मॉं, बेटी, पत्नी और सहयोगिनी के रूप में यदि वह लाड़ प्यार और परवरिश के लिए समर्पित है तो सत्ता परिवर्तन, सामाजिक बदलाव तथा क्रांति के हर दौर में वह झूमकर, सड़कों,गलियों, कूचों और खेत खलिहानों में संघर्ष के लिए बेझिझक उतरी है । प्रोफेसर ज्योति वर्मा का जीवन इन सब से सम्बद्ध है । वह महिलाओं के सपने और श्रम को पूरा सम्मान देने की हिमायत करती हैं । पितृसत्ता, राजसत्ता और पूंजीसत्ता के अवांछित बंधनों से महिलाओं की मुक्ति की वह पक्षधर हैं । उनका मानना है कि औरत अपने स्व, अपनी अस्मिता, अपनी पहचान और अपने अधिकारों की दावेदारी पेश करती है ।

अपनी बात :

मैं अपने वैयक्तिक जीवन में उन महिलाओं का सम्मान और आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मेरी सोच, दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों के गढन में योगदान दिया है । प्रोफेसर ज्योति वर्मा को मैं पिछले एक दशक से अधिक समय से जानता हूँ । मैं उनकी सोच, सामाजिक दृष्टि, वैश्विक मुद्दों पर उनकी राय और जीवन मूल्यों की खुले दिल से तारीफ़ करता हूँ । मुझे इस बात की ख़ुशी है कि उन्होंने अब तक की अपनी जीवन यात्रा गहरे आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा के साथ पूरी की है । मैं उनकी रचना प्रक्रिया का क़ायल हूँ । उनके बहुमूल्य सुझावों से मैं अपने निर्णयों को समृद्ध करता हूँ । वह अनुचित और अतार्किक प्रभुत्व की संरचनाओं को नकारती हैं । दुनिया को बनाना और चलाना औरत की भागीदारी के बिना संभव नहीं है… उनका यह केन्द्रीय कथन चिरकालिक पैग़ाम है । जिस दिन महिलाएँ समाज, सत्ता, सभ्यता और संस्कृति के अवांछित विचारों और भेदभाव वाले बंधनों से मुक्त होंगी… वह दिन सम्पूर्ण मनुष्यता की मुक्ति का दिन होगा । अन्ततः प्रोफ़ेसर ज्योति वर्मा के जीवन से यह सीख मिलती है कि जो लोग इस दुनिया में नेकी करते हैं, उनके लिए नेक सिला है और वह अल्लाह की रहमत के हकदार हैं । सुख और दुःख तो मुकद्दर की बात है अनैतिकता, झूठ, धोखा और नफ़रत किसके लिए और क्यूँ ? परवरदिगार बड़ी अज़मत वाला है । वह अर्शे अज़ीम का मालिक है । तमाम तारीफ़ें उसके लायक़ हैं ।

सन्दर्भ स्रोत :

  • 1- प्रोफेसर ज्योति वर्मा, विभागाध्यक्ष , संस्कृत विभाग, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी के द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेखों के अनुसार
  • 2- पुस्तक, “बांदा केसरी, मास्टर नारायण प्रसाद”, सम्पादक- प्रोफेसर ज्योति वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, प्रकाशक – केसरी प्रेस, बलखंडी नाका, बांदा (उत्तर-प्रदेश) से साभार
  • 3- स्वयं के द्वारा जुटाई गई पारिवारिक जानकारी के अनुसार
  • 3-A- प्रोफेसर ज्योति वर्मा के द्वारा दिए गए साक्षात्कार के आधार पर
  • 4- प्रोफेसर ज्योति वर्मा के द्वारा, दिनांक 5 जनवरी, 2025 को, मेरे सरकारी आवास 02, शिक्षक आवासीय कालोनी, बुन्देलखण्ड कॉलिज कैम्पस, झाँसी में दिए गए साक्षात्कार के आधार पर
  • 5- उत्तर- प्रदेश विधानसभा, अतीत से वर्तमान ((1952-2017) विश्लेषणात्मक विवरण, सम्पादक डॉ. राजबहादुर मौर्य, पेज नंबर 224, दुसाध प्रकाशन, लखनऊ(उत्तर- प्रदेश) भारत
  • 6- प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी के द्वारा दी गई जानकारी और उपलब्ध कराए गए शैक्षणिक दस्तावेज़ों के अनुसार
  • 7- प्रोफेसर ज्योति वर्मा के द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेखों के आधार पर
  • 8- उपरोक्त विवरण के अनुसार
  • 9- उपरोक्त विवरण के अनुसार
  • 10- निजी साक्षात्कार के आधार पर
  • 10-A- प्रोफेसर बृजेन्द्र बौद्ध, बुन्देलखण्ड कालेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश) की फ़ेसबुक वाल से
  • 11- प्रोफेसर बृजेन्द्र सिंह बौद्ध की फ़ेसबुक वाल से साभार
  • 12- दिनांक- 09-01-2025 को मोबाइल फ़ोन पर हुई बातचीत के आधार पर


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Dr. Raj Bahadur Mourya:

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