– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी । फ़ोटो गैलेरी एवं प्रकाशन प्रभारी- डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : themahamaya. Com
(ए.एल.बाशम, स्वामी दयानंद सरस्वती, आयंकाली, आयोतीदास पांडीतर, आशीष नंदी, आन्ध्र प्रदेश, फ्रांस्वा ज़ेवियर कॉम्त, रॉयजॉर्ड लांगे, इतिहास का अंत, अल हदरामी, असबिया, इब्न रश्द, इमैनुअल कांट, इरावती कर्वे, इला भट्ट, इंटरएक्टिविटी, इम्पेरिया, मार्टिन लूथर, मैक्स वेबर, ईसैया बर्लिन, कोलोनिया, टाना आन्दोलन, उपनिषद, आधुनिकता, एडमंड बर्क, माइकल ओकशॉट, एडवर्ड हैलेट कॉर, विलियम सईद)
1– ब्रिटिश लेखक आर्थर लेवेलिन बाशम (1914-1986) की भारत विषयक पहली पुस्तक, हिस्ट्री एंड डॉक्टरिंस ऑफ द आजीवक काज : ए वैनिश्ड इंडियन रिलीजन थी ।आजीवकों पर किया गया यह पहला अनुसंधान था और आज भी उतना ही प्रासंगिक है । बाशम के सम्पादन में आयी अ कल्चरल हिस्ट्री ऑफ इंडिया एक ऐसी रचना थी जिसने गैरेट की रचना लीगेसी ऑफ इंडिया को प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया।1984-85 के दौरान बाशम ने फ़ार्मेशन ऑफ क्लासिकल हिन्दुइज्म विषय पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में दिए गए व्याख्यानों का केनेथ जी. जिस्क के साथ मिलकर सम्पादन किया जो द ओरिजिंस एंड डिवलेपमेंट ऑफ क्लासिकल हिन्दुइज्म के रूप में प्रकाशित हुई ।
2- उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक प्रभावशाली हिन्दू धर्म सुधार आन्दोलन आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) ने 7 अप्रैल, 1875 को मुम्बई में की थी ।स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात के टंकारा नामक स्थान पर हुआ था । उनका जन्म नाम मूलशंकर था । चौबीस वर्ष की आयु में स्वामी पूर्णानंद सरस्वती से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली और तब से मूलशंकर, दयानन्द सरस्वती कहलाने लगे । दयानंद सरस्वती ने वेदों की ओर लौटो’ का लोकप्रिय नारा दिया । उन्होंने शुद्धि के विचार और युक्ति के माध्यम से हिन्दुओं के बीच धर्मांतरण की स्थापना की ।स्वामी जी की 70 से अधिक रचनाएं हैं । सत्यार्थ प्रकाश उनमें सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है ।इसमें 14 अध्याय हैं । उनके द्वारा रचित ऋग्वेदाभाष्य-भूमिका वैदिक साहित्य में अपना अनूठा स्थान रखती है ।
2-A- सत्यार्थ प्रकाश के पहले अध्याय में ओउम् शब्द की व्याख्या की गई है । द्वितीय अध्याय में बच्चों के जन्म, उनकी प्रारम्भिक शिक्षा, मातृत्व की देखभाल, आदि का विवेचन किया गया है । तृतीय अध्याय में ब्रम्हचर्य, शिक्षा, प्राणायाम तथा स्त्रियों एवं शूद्रों को वेदाध्ययन की पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन किया गया है । चतुर्थ अध्याय में विवाह, वर्णाश्रम-व्यवस्था एवं ग्रहस्थाश्रम का विवेचन है । पंचम अध्याय में वानप्रस्थ एवं संन्यासश्रम तथा छठें अध्याय में शासन, शासक के कर्तव्य, राज्य परिषदें, मंत्रियों की योग्यता एवं अनुभव, बहुमत एवं अल्पमत, कराधान, शौर्य के नियम, सैनिक विद्या एवं व्यूह रचना, युद्ध बंदियों के प्रति व्यवहार, तटस्थता, न्याय और न्यायिक पद्धतियाँ, दण्ड, राजनीति आदि का सुन्दर विवेचन किया गया है । राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए इस अध्याय का विशेष महत्व है ।
2-B- स्वामी दयानन्द सरस्वती का दृढ़ विश्वास था कि वेद अपौरुषेय अर्थात् ईश्वर कृत हैं । स्वामी जी राज्य को सकारात्मक अर्थों में स्वीकार करते हुए उसे मानव जीवन के पुरुषार्थ चतुष्टय अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का साधन मानते थे ।उनके अनुसार राज्य इहलोक एवं परलोक दोनों की साधना का माध्यम है । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने राज्य को समुदायों का समुदाय कहा है । राज्य के साथ ही स्वामी जी ने तीन अन्य समुदायों का भी उल्लेख किया है : पहला, राजनीतिक समुदाय, दूसरा कला एवं विज्ञान सम्बन्धी समुदाय तथा तीसरा धर्म एवं नैतिकता सम्बन्धी समुदाय । यद्यपि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने राजनीतिक विचारों को अधिकतर मनुस्मृति पर आधारित किया है परन्तु उनकी व्याख्या अधिक तर्कपूर्ण और आधुनिक है ।
3– स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा स्थापित आर्य समाज ने समाज सुधारों के लिए क़ानून बनाने की माँग भी की । 1929 का बाल विवाह निरोधक क़ानून, 1937 का आर्य विवाह वैधता क़ानून और 1928 का नायक बालिका संरक्षण अधिनियम आर्य समाज के प्रयासों का ही परिणाम था ।उन्होंने स्वधर्म, स्वराज और स्वभाषा पर बल दिया ।आर्य समाज ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के अभियान में उत्साह पूर्वक भाग लिया । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने मूर्ति पूजा का प्रबल खंडन किया है । उनका यह मत है कि जब परमेश्वर निराकार और सर्वव्यापक है तब उसकी मूर्ति कैसे बन सकती है ।
4- स्वामी दयानंद सरस्वती मानते थे कि प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझना चाहिए ।वर्ष 1927 में आर्य समाज ने आर्य वीर दल की स्थापना किया ।स्वयं सेवकों के इस संगठन ने 1939 में हैदराबाद में और 1945 में सिंध में काफी सक्रियता दिखाई ।
5- आर्य शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ईरानी जरथुस्त्रवादी ग्रन्थ अवेस्ता से मानी जाती है ।विलियम जोन्स द्वारा 1784 में स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल और उनके कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुन्तलम् के अनुवाद ने इसे एक विमर्श का रूप दिया । उन्नीसवीं सदी के दौरान जे. ए. गोबिन्यु की रचना द मॉरेल्स एंड इंटलेक्चुअल डायवर्सिटी ऑफ रेसेज (1856) ने आर्य जाति के विचार का विस्तार किया ।वर्ष 1926 में गार्डन चाइल्ड की आर्य विषयक कृति द आर्यन्स (1926) प्रकाशित हुई ।
6- 19 वीं सदी में केरल में छुआ-छूत के शिकार दलित खेत मज़दूरों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले समाज सुधारकों में आयंकाली (1863-1941) का नाम उल्लेखनीय है ।तिरुवनंतपुरम के न्य्याटि्टकारा के वेंगनूर गाँव में जन्मे आयंकाली पुलिया जाति से थे ।दलित होने के कारण उन्हें कोई स्कूली शिक्षा नहीं मिली ।उन्होंने चेल्लमा नाम की महिला से विवाह किया था ।इस समाज के लोगों को कपड़े पहनने की अनुमति नहीं थी ।
7– आयंकाली ने 1904 में वेंगानूर में पहला स्कूल आरम्भ किया जिसे सवर्णों ने तत्काल जला दिया ।पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वहीं दूसरा स्कूल शुरू किया । 1905 में आयंकाली ने साधु जन परिपालना योगम नाम से दलितों का एक संगठन बनाया ।इसका उद्देश्य दलितों को आत्मविश्वास से लैस करते हुए अमानवीय परम्पराओं और प्रथाओं के खिलाफ लडना था । जून 1913 में केरल रियासत में खेतिहर मज़दूरों की ऐतिहासिक हड़ताल का नेतृत्व आयंकाली ने ही किया था । 1912 में त्रावणकोर के राजा ने उन्हें श्री मूलम प्रजा सभा ( विधानसभा) का सदस्य मनोनीत किया। 1941 तक आयंकाली इस पद पर रहे ।
8- दक्षिण भारत में ब्राह्मण वाद विरोधी चिंतन और आंदोलन के शिखर पुरूषों में आयोतीदास पांडीतर (1845-1914) ने उन्नीसवीं सदी में बुद्ध धर्म के जीर्णोद्धार की भूमिका निभाने के साथ-साथ द्रविड़ इयत्ता की नींव डाली ।उनकी जन्म कोयम्बटूर ज़िले के एक गाँव में अछूत परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम कंदा स्वामी था । 1898 में आयोतीदास पांडीतर ने मद्रास में शाक्य बुद्धिस्ट एसोसिएशन की स्थापना किया ।जिसमें उन्हें भंते अनागारिक धम्मपाल का सहयोग मिला था ।
9- बंगाली प्रोटेस्टेंट ईसाई परिवार में जन्मे आशीष नंदी (1937 -) राजनीतिक मनोविज्ञान के विद्वान, आधुनिकता, राष्ट्रवाद और सेक्युलरवाद के प्रखर आलोचक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है ।विकासशील समाज अध्ययन पीठ से जुड़े नंदी की 1983 में प्रकाशित रचना द इंटीमेट एन मी : लॉस एंड रिकवरी ऑफ सेल्फ़ अंडर कोलोनियलिज्म भारतीय समाज विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों में से एक है ।
10- वर्ष 1980 में आशीष नंदी की चर्चित पुस्तक, एज द एज ऑफ सॉइकोलॉजी : एसेज इन पॉलिटिक्स एंड कल्चर और आलटरनेटिव साइंसेज़ : क्रियेटिविटी एंड ऑथेंटिसिटी इन टू इंडियन साइंटिस्ट प्रकाशित हुई ।आशीष नंदी का कहना है कि यदि उत्पीडित अपने नज़रिए पर आधारित वैकल्पिक पश्चिम गढ़ लेंगे तो उन्हें उनके साथ रहने में सुविधा होगी और दूसरी तरफ़ वे प्रभुत्वशाली पश्चिम के लुभावने आग़ोश के खिलाफ प्रतिरोध भी करते रहेंगे ।
11- आन्ध्र प्रदेश दक्षिण भारत का एक राज्य है ।2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की कुल जनसंख्या लगभग १८ करोड़ के आस-पास है ।आन्ध्रप्रदेश का कुल क्षेत्रफल 2 लाख, 75 हज़ार वर्ग किलोमीटर है ।इसकी राजधानी हैदराबाद है ।द्रविड़ भाषा परिवार की तेलगू यहाँ की मुख्य भाषा है ।1946 से 1951 तक हैदराबाद राज्य के तेलंगाना क्षेत्र में जुझारू किसान आंदोलन चला ।1953 में इस आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता पोट्टी श्री रामुलु ने आन्ध्र के गठन की माँग करते हुए अपने जीवन का बलिदान दे दिया । 1956 में भाषाई आधार पर आन्ध्रप्रदेश देश का पहला राज्य बना ।
12– दिनांक 19 जनवरी, 1798 को फ़्रांस के मौटपेलियर नामक स्थान पर एक कैथोलिक ईसाई परिवार में जन्मे आधुनिक समाजशास्त्र के अग्रदूत और राजनीतिक दार्शनिक इसीडोरे ऑग्युस्त मारी फ्रांस्वा ज़ेवियर कॉम्त (1798-1857) प्रत्यक्षवादी दर्शन के संस्थापक थे ।सबसे पहले कॉम्त ने ही 1838 में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक द कोर्स इन पॉज़िटिव फ़िलॉसफी में किया था ।कॉम्ते ने सामाजिक अध्ययन के लिए प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों के प्रयोग की वकालत की जो प्रत्यक्ष वाद के नाम से जानी गई ।
13– काम्ते की प्रमुख कृतियों में छह खंडों वाली द कोर्स इन पॉज़िटिव फिलॉसफी और चार खंडों वाली द सिस्टम ऑफ पॉज़िटिव पॉलिटी को गिना जाता है ।काम्ते ने विज्ञानों के श्रेणीक्रम का सिद्धांत भी प्रतिपादित किया जिसमें जटिलता की ओर विकास की दृष्टि से विभिन्न ज्ञानानुशासनों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई ।उनका क्रम है- गणित, रसायन विज्ञान, खगोलिकी, भौतिकी, जैविकी, समाजशास्त्र और नैतिक मूल्य ।
14– पश्चिमी पोलैंड के एक छोटे से शहर में जन्मे ऑस्कर रायजॉर्ड लांगे (1904-1965) बाज़ार समाजवाद की थीसिस का प्रतिपादन करने वाले पहले अर्थशास्त्री थे । लांगे ने नियोक्लासिकल अर्थशास्त्र और कींसियन सूत्रीकरणों को समाजवादी उसूलों के साथ जोड़कर एक नया राजनीतिक अर्थशास्त्र रचने का प्रयास किया ।उनकी मान्यता थी कि समाजवाद पूंजीवाद का निषेध न होकर उसका विस्तार है ।
15– इतिहास का अन्त की अवधारणा को गढ़ने का श्रेय फ़्रांसिस फुकुयामा को जाता है जिन्होंने वर्ष 1992 में प्रकाशित अपनी पुस्तक द एंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन में इसका प्रतिपादन किया ।फुकुयामा के लिए इतिहास के अंत का मतलब है, उस प्रणाली बद्ध चिंतन का अंत जिससे राजनीतिक और सामाजिक संगठन के प्राथमिक उसूल निकलते हुए माने जा सकते हैं ।इतिहास के अंत की चर्चा सबसे पहले हीगल ने की थी ।उन्होंने कहा था कि मनुष्य की बुनियादी अभिलाषाओं को पूरा करने वाली सभ्यता की उपलब्धता के साथ ही इतिहास की ज़रूरत नहीं रह जाएगी ।
16– अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करने के लिए फुकुयामा, प्लेटो की मदद लेते हुए थिमोस की धारणा का इस्तेमाल करते हैं ।थिमोस का एक आयाम मेगलोथिमिया होता है, जिसके कारण ऐसे लोग इतिहास की रचना कर पाते हैं इसके विपरीत थिमोस का एक और आयाम होता है- आइसोथिमिया, जिसके तहत सामान्य व्यक्ति श्रेष्ठता के बजाय समानता के आधार पर मान्यता की माँग करता है ।
17– ट्यूनिश में जन्मे अरबी इतिहासकार और चिंतक अबू ज़ायद अब्दुर्रहमान बिन मुहम्मद बिन खाल्दून अल हदरामी (१३३२-१४०६) की महत्वपूर्ण पुस्तक मुकद्दिमा को 14 वीं सदी की सर्वकालिक महानतम कृति माना जाता है ।उन्होंने अपने इतिहास लेखन में मगरिब की सभ्यता के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया ।मगरिब के क्षेत्र में त्रिपोलितानिया, दक्षिणी ट्यूनिशिया तथा दक्षिणी मोरक्को के इलाके शामिल किए जाते हैं ।उनके लेखन में असबिया नामक अवधारणा केन्द्रीय महत्व रखती है ।
18– असबिया, एक ऐसा पद है जिसका हर विद्वान ने अलग-अलग अर्थ लगाया है ।कोई इसे क़बीलाई एकता के अर्थ में ग्रहण करता है तो कोई उसे राज्य की सक्रिय उपस्थिति, देशभक्ति, राष्ट्रीय चेतना अथवा सामाजिक एकता के अर्थ में ग्रहण करता है ।खाल्दून के मुताबिक़ असबिया मूलतः ग्रामीण और घुमंतू सभ्यता का लक्षण होती है ।उनके अनुसार असबिया का अवसान ही राज्य के पतन में परिणत होता है ।
19- स्पेन के कोरदोवा में जन्मे धर्म और दर्शन के बीच तनाव के रूढिमुक्त व्याख्याता, मूरों ( मुसलमानों) वाले स्पेन के दार्शनिक और चिकित्सा- विज्ञानी अबू अल वालिद मुहम्मद इब्न अहमद इब्न रश्द (1126-1198) के चिंतन ने पश्चिम की दार्शनिक परम्परा पर स्थायी प्रभाव डाला है ।पश्चिम में इब्न रश्द को एवेरॉस के नाम से ही जाना जाता है । इब्न रश्द ने अरस्तू की रचनाओं पर तीन अहम टीकाएँ लिखी हैं जिसमें जामी को अरस्तू के विचारों की संक्षिप्त प्रस्तुति माना जाता है ।
20– संगीत के क्षेत्र में इब्न रश्द ने अरस्तू की कृति डि एनीमा का सार- संक्षेप तैयार किया जिसका बाद में लैटिन में अनुवाद हुआ ।औषधि विज्ञान के क्षेत्र में इब्न रश्द ने 20 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें किताब अल- कुल्लियत फ़ि अल- तिब्ब (1162) को बहुत ऊँचा दर्जा प्राप्त है । विधि शास्त्र पर उनकी रचना बिदायत अल- मुज्तहिद वा- निहायत- अल- मुक्तासिद बहुत प्रसिद्ध है ।खगोलशास्त्र के क्षेत्र में इब्न रश्द की रचना किताब फ़ि- हरकत अल- फ़लक को मौलिक ग्रंथ माना जाता है ।उनकी अधिकांश रचनाएँ हिब्रू में सुरक्षित हैं ।
21-आदर्श वादी जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट (1724-1804) तत्व चिंतन, ज्ञानमीमांसा और नीतिशास्त्र के क्षेत्र में युग प्रवर्तक योगदान के लिए जाने जाते हैं ।उनकी मान्यता है कि ज्ञानमीमांसा के ज़रिए तत्व चिंतन का परिष्कार किया जा सकता है । यद्यपि राजनीति पर सीधे उनकी कोई रचना नहीं है बावजूद इसके अगर कांट के चिंतन को अलग कर दिया जाए तो आज का राजनीति सिद्धांत दरिद्र हो जाएगा । 1795 में प्रकाशित अपनी रचना परपैक्चुअल पीस में ही कांट ने लीग ऑफ नेशंस जैसा एक संगठन बनाने के पक्ष में तर्क दे दिया था ।
22– सन् 1782 में इमैनुअल कांट ने आंसर टु द क्वेश्चन : व्हाट इज ऐनलाइटेनमेंट जैसा बहुचर्चित निबंध लिखकर ज्ञानोदय के बुनियादी मूल्यों की लोकप्रिय व्याख्या की ।कांट ने लिखा, “ ज्ञानोदय मनुष्य को उस नादानी से मुक्त करता है जो उसने स्वयं अपने ऊपर लाद रखी है ।नादानी के कारण ही व्यक्ति अपनी समझ को दूसरे के मार्गनिर्देशन के बिना इस्तेमाल करने में अक्षम रहता है ।ऐसी नादानी क़ाबिलियत के अभाव का द्योतक नहीं होती और जानने की जुर्रत के ज़रिए इसे ज्ञानोदय में बदला जा सकता है ।
23– क्रिटीक ऑफ प्योर रीजन (1781), ग्राउंडवर्क ऑफ द मेटाफिजिक्स ऑफ मोरल्स (1785), क्रिटीक ऑफ प्रेक्टिकल रीजन (1788) और क्रिटीक ऑफ जजमेंट(1781) जैसी विख्यात रचनाओं में कांट की दिलचस्पी इस बात में दिखती है कि परम्परा से चले आ रहे सिद्धांतों को नई बुद्धिवादी कसौटियों के मुताबिक़ कैसे पुनः रचा जाए ।कांट ने अपने विज्ञान दर्शन से कर्तव्य निष्ठा और भलाई के सिद्धांत निकाले ।
24– मूल रूप से वर्मा में जन्मीं और भारतीय विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र और मानव विज्ञान को एक स्वतंत्र विषय की तरह स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाली इरावती कर्वे (1905-1970) की रचना किनसिप आर्गनाइजेशन इन इंडिया (1953) को सांस्कृतिक मानवशास्त्र का प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ माना जाता है ।वे पुणे में स्कूटर चलाने वाली पहली महिला भी बनीं ।
25– दिनांक 7 सितंबर, 1933 को अहमदाबाद में जन्मीं इला भट्ट ने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली गरीब स्त्रियों को सम्पूर्ण रोज़गार दिलाने के स्वयंसेवी प्रयासों का आज़ादी के बाद किए गए संस्थानीकरण की कोशिशों में अनूठा स्थान है । 1971 में इला भट्ट ने सेल्फ़ इम्प्लाइड वुमन एसोसिएशन की शुरुआत की ।आज इसके साथ 13 लाख से ज़्यादा स्त्रियाँ जुड़ी हुई हैं ।यह संगठन अनपढ़ कामगार महिलाओं का अपना बैंक भी चलाता है ।
26– इंटरएक्टिविटी एक व्यापक अवधारणा है जिसे मनुष्य और मनुष्य के बीच, मनुष्य और मशीन के बीच और मशीन और मशीन के बीच होने वाली अन्योन्यक्रिया पर लागू किया जाता है ।ऐंड्रू बैरी ने वर्ष 2001 में प्रकाशित अपनी रचना पॉलिटिकल मशीन में इंटरएक्टिविटी को सक्रिय नागरिकता के राजनीतिक आदर्श की रौशनी में समझने की कोशिश की है ।वे कहते हैं कि इंटरएक्टिविटी का जोर सिखाने और ऐसा करने के बजाय खोजने और तुम ऐसा कर सकते हो पर होगा ।
27- यूनानी शब्द इम्पेरिया के आधार पर गढ़े गए इम्पेरिसिज्म ने अपना दार्शनिक अर्थ इसके लैटिन अनुवाद एक्सपेरिंसिया से प्राप्त किया है ।जिसका मतलब होता है- अनुभव ।बारहवीं सदी में अरब दार्शनिक और उपन्यास इब्न तुफैल ने अपनी एक औपन्यासिक रचना में एक ऐसे बच्चे का ज़िक्र किया है जो दुनिया से कटे हुए एक रेगिस्तानी द्वीप पर बड़ा होता है ।इब्न तुफैल इस बच्चे के मस्तिष्क को कोरी स्लेट करार देते हैं ।1671 में तुफैल का उपन्यास ब्रिटेन में प्रकाशित हुआ जिससे प्रभावित होकर जॉन लॉक ने इंद्रियानुभववाद में केन्द्रस्थ टेबुला रसा थियरी का प्रतिपादन किया ।
28- आधुनिक दर्शन के दो महारथियों देकार्त और लीब्निज ने पारम्परिक ईश्वरवाद के पक्ष में दलीलें ज़रूर दी हैं, पर स्पिनोजा, ह्यूम, कांट और वाल्तेयर स्पष्ट रूप से ईश्वरवाद का विरोध करते नज़र आते हैं ।वाल्तेयर और उनके साथी बाइबिल में दर्ज ईश्वरीय इलहाम की धारणा में विश्वास नहीं करते ।उन्होंने डॉयलॉग्स कंसर्निग रिलीजन लिख कर ईश्वरवाद के ब्रम्हाण्डीय और प्रयोजनमूलक दावों की कड़ी आलोचना की ।कांट ने क्रिटीक ऑफ प्योर रीजन लिखकर ईश्वरवाद को बेहद कठोर कसौटियों पर कसा ।
29– कीर्केगार्द ने भी कहा कि ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध करने की कोशिश करने वाले लोग सच्ची आस्था के शत्रु हैं ।फ़्रेडेरिक नीत्से ने साफ कहा कि ईश्वर की अवधारणा का आविष्कार जीवन की अवधारणा के विरोध में हुआ है ।बीसवीं सदी में ही फ़्रांस के दो अस्तित्त्व वादी चिंतकों और साहित्यकारों ज्यां- पॉल सार्त्रे और अल्बैर कैमियो द्वारा अनीश्वरवाद का मुखर समर्थन किया गया ।बर्ट्रेंड रसेल एंग्लो- सेक्सन दुनिया के सबसे प्रभावशाली अनीश्वरवादियों में से थे ।
30– ईजलबेन, जर्मनी के एक किसान परिवार में जन्मे मार्टिन लूथर (1483-1546) ईसाई धर्म सुधार के प्रोटेस्टेंटवाद के प्रमुख प्रतिनिधि हैं । लूथर ने जर्मन भाषा में विपुल लेखन किया ।उन्होंने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया ।लूथर को आधुनिक जर्मनी का संस्थापक भी माना जाता है ।नाइंटी फाइव थिसिज ऑन इंडलजेंसिस लूथर का सूत्रीकरण था ।
31– मैक्स वेबर ने 1905 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना द प्रोटेस्टेंट इथिक्स एंड द स्प्रिट ऑफ कैपिटलिज्म में कहा है कि पूँजीवादी केवल आर्थिक कारकों या प्रौद्योगिकी विकास की देन नहीं हो सकता ।उसकी सफलता के पीछे प्रोटेस्टेंट मत द्वारा प्रतिपादित नैतिकताओं और मूल्यों की भूमिका है ।क्योंकि वह दुनियावी कामयाबियों को अहमियत देता है ।प्रोटेस्टेंट चिंतन के कैल्विनिस्ट पहलू ने पूँजी संचय की शुरुआत की जो प्रकारांतर से स्वयं का पुनरुत्पादन करने वाली प्रक्रिया में बदल गई ।
32- रिगा, लातविया में जन्मे और लंदन में पले बढ़े दार्शनिक और राजनीतिक सिद्धान्तकार ईसैया मेंदलेविच बर्लिन (1909-1997) उदारतावाद के एक बहुलवादी संस्करण की स्थापना के लिए जाने जाते हैं ।उनकी मूल मान्यता है कि अपनी विविधता और बहुलता के कारण मानवीय जीवन को लक्ष्यों और मूल्यों के टकराव से गुजरना ही पड़ता है ।बर्लिन यरूशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के गवर्नर भी रहे हैं ।सन् 1939 में कार्ल मार्क्स की जीवनी कार्ल मार्क्स : हिज लाइफ़ ऐंड ऐनवायरनमेंट की बर्लिन ने रचना की ।
33– 1953 में बर्लिन की पुस्तक द हेजहोग एंड द फ़ॉक्स: ऐन ऐसे ऑन टॉलस्टॉयज व्यू ऑन हिस्ट्री का प्रकाशन हुआ ।इस पुस्तक में उन्होंने विचारों के इतिहास पर शोध किया ।राजनीतिक विचार के अध्येताओं के बीच बर्लिन की रचना टू कंसेप्ट ऑफ लिबर्टी काफ़ी लोकप्रिय है ।1969 में प्रकाशित उनकी कृति फ़ोर एसेज ऑन लिबर्टी भी प्रसिद्ध है ।बर्लिन नकारात्मक स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे ।वह कहते थे कि, “ हस्तक्षेप निषेध का दायरा जितना बड़ा होगा, स्वतंत्रता उतनी विषद होगी ।
34- आइजिया बर्लिन की मान्यता थी कि जिस दुनिया में हम रहते हैं, वह अपनी विविधता में अनगिनत मूल्यों से सम्पन्न है । उनमें से किसी एक मूल्य या मानक को प्राथमिकता देने का मतलब होगा अन्य मूल्यों का दमन । बर्लिन के अनुसार ऐसा कोई विवेक सम्मत मानदंड नहीं हो सकता जिसके अनुसार उत्तम जीवन के किसी एक मानक को दूसरे मानकों से बेहतर ठहराया जा सके ।
35– औपनिवेशिक हुकूमत ने 1937 में जिन उत्तरी इलाक़ों को संयुक्त प्रान्त या युनाइटेड प्रॉविंसेज का नाम दिया था, उन्हीं को आज उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है । यह राज्य अगर एक अलग देश होता तो जनसंख्या के आधार पर विश्व का पाँचवा सबसे बड़ा देश होता ।यहाँ से देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी लोकसभा में 80 सांसद चुन कर जाते हैं ।नवम्बर, 2000 में इसके उत्तरी भाग को अलग करके एक नया राज्य उत्तराखंड बनाया गया ।
36– उत्तराखंड भारत का 27 वाँ राज्य है ।इसके उत्तर में तिब्बत स्वायत्त शासी क्षेत्र, पूरब में नेपाल, दक्षिण में उत्तर -प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा और उत्तर- पश्चिम में हिमाचल प्रदेश है । उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53 हज़ार, 566 वर्ग किलोमीटर है ।2011 की जनगणना के अनुसार इस राज्य की जनसंख्या 10,116,752 है ।हिन्दी और संस्कृत यहाँ की राजकीय भाषाएँ हैं ।एकसदनीय विधायिका में यहाँ पर कुल 71 सदस्य होते हैं ।जिनमें से एक आंग्ल भारतीय मनोनीत सदस्य होता है ।यहाँ से लोकसभा में 5 और राज्य सभा में 3 सदस्य चुने जाते हैं ।
37– लैटिन भाषा के शब्द कोलोनिया का मतलब है एक ऐसी जायदाद जिसे योजनाबद्ध ढंग से विदेशियों के बीच क़ायम किया गया हो ।17 वीं शताब्दी में जॉन लॉक की स्थापनाओं में ब्रिटेन द्वारा भेजे गए अधिवासियों द्वारा अमेरिका की धरती पर क़ब्ज़ा कर लेने की कार्रवाई को न्यायसंगत ठहराने की दलीलें मौजूद थीं ।उनकी रचना टू ट्रीटाइज ऑन सिविल गवर्नमेंट (1690) की दूसरी थिसिज “ प्रकृत अवस्था” में व्यक्ति द्वारा अपने अधिकारों की दावेदारी के बारे में है ।यही थिसिज आगे चलकर धरती के असमान स्वामित्व को उचित मानने का आधार बनी ।
38– भारत में मार्च, 1919 में अंग्रेज़ी हुकूमत के द्वारा रौलेट एक्ट लागू कर दिया गया ।जिसके अनुसार किसी को भी मात्र संदेह के आधार पर गिरफ़्तार कर मुक़दमा चलाया जा सकता था और सजा दी जा सकती थी ।इसे बिना अपील, बिना वकील और बिना दलील का क़ानून कहा गया ।इसी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के मौक़े पर आयोजित सभा में जनरल डायर ने निहत्थों पर गोलियाँ चलाकर भयंकर जनसंहार किया ।
39- 1912-1914 में बिहार की जनजातियों ने जतरा भगत के नेतृत्व में टाना आन्दोलन चलाया था ।जतरा भगत की गिरफ़्तारी के बाद एक स्त्री देवमनियां उराइन ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया ।इसी प्रकार 1931-32 के कोल आंदोलन में भी आदिवासी स्त्रियों ने सक्रिय भूमिका निभाई ।1930-32 में मणिपुर में नागा रानी गुइंदाल्यू ने अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया ।1930 में बंगाल में मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में हुए चटगाँव विद्रोह में युवा स्त्रियों ने पहली बार क्रांतिकारी आंदोलनों में सीधी भागीदारी की ।
40– उपनिषद, उप+नि+सद् का संयुक्त रूप है ।जिसमें सद् धातु का अर्थ है बैठना ।उप का अर्थ निकट है ।गुरू के निकट बैठकर जो चर्चा- प्रश्न आदि किए जाते हैं वे उपनिषद हैं ।उपनिषदों को वेद का गूढ़ रहस्य समझा जाता था, इसलिए उन्हें वेदोपनिषद् भी कहा जाता था ।उपनिषदों के विचार केन्द्र में आत्मा है ।आत्मा शुद्ध चैतन्य स्वरूप है ।किसी विषय का ज्ञान इसी चैतन्य का सीमित प्रकाश है ।
41– विज्ञान और प्रौद्योगिकी सम्बन्धी अध्ययन के विद्वान ब्रूनो लातूर और मिशेल कैलन ने समाजशास्त्री जॉन लॉक की मदद से एक्टर नेटवर्क थियरी का प्रतिपादन किया ।तकनीकी रूप से इसे मैटीरियल- सीमियोटिक पद्धति का नाम दिया जाता है ।यह थियरी मान कर चलती है कि कई सम्बन्ध एक साथ भौतिक और संकेतमूलक होते हैं ।जॉन लॉक और जॉन हैसर्ड द्वारा सम्पादित ग्रन्थ एक्टर नेटवर्क थियरी एंड ऑफ्टर में इसका विस्तृत उल्लेख है ।
42– आधुनिकता, एक ऐसी आंतरिक बहुलता से सम्पन्न है जो किसी विशिष्ट ऐतिहासिक परिस्थिति की देन न होकर आधुनिक सभ्यता की संरचना में अंतर्भूत गुण की तरह समाहित है ।एकाधिक आधुनिकता का सूत्रीकरण करने का श्रेय मुख्य तौर से एस.एन. आइजेनस्टैड को जाता है ।वह कहते हैं कि आधुनिकता और पश्चिमीकरण को एक- दूसरे का पर्यायवाची समझना एक भूल है ।
43– वर्ष 2003 में प्रकाशित अपनी पुस्तक कम्पैरेटिव सिविलाइजेशंस एंड मल्टीपिल मॉडर्निटीज में एस.एन. आइजेनस्टैड में लिखा, “समकालीन जगत को समझने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा और आधुनिकता के इतिहास की सबसे माकूल व्याख्या यही है कि उसे किसी एक सांस्कृतिक परियोजना के रूप में देखने के बजाय सांस्कृतिक परियोजनाओं की बहुलता के रूप में देखा जाए ।” आधुनिकता का इतिहास बताता है कि चिंतनशीलता की प्रवृत्ति उसके विकास के लिए लाज़मी है ।
44– डबलिन आयरलैंड में जन्मे, अनुदारतावाद के संस्थापक एडमंड बर्क (1729-1797) को राजनीतिक रैडकलिज्म और क्रांति के विचार का प्रमुख आलोचक माना जाता है । 1790 में प्रकाशित उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना रिफ्लेक्शंस ऑन द रिवोल्यूशन इन फ़्रांस ने समाज, राज्य और व्यक्ति के आपसी सम्बंधों की एक ऐसी समझ को जन्म दिया जिसे अनुदारतावाद के विरोधी भी आज किसी न किसी रूप में मानने के लिए मजबूर हैं ।
45– एडमंड बर्क की 1756 में अ विंडीकेशन ऑफ नेचुरल सोसाइटी शीर्षक से एक व्यंग्य रचना प्रकाशित हुई ।अगले ही साल उनकी सौन्दर्यशास्त्र सम्बन्धी रचना अ फिलॉसफीकल इनक्वैरी इन टू द ओरिजिन्स ऑफ अवर आइडियाज़ ऑफ द सबलाइम एंड ब्यूटीफुल के प्रकाशन ने उनकी धाक जमा दी ।1791 में उनकी पुस्तक एन अपील टु द न्यू टु द ओल्ड विग्स, वर्ष 1790 में थॉट्स ऑफ द फ़्रेंच एफेयर्स प्रकाशित हुई ।
46– माइकल ओकशॉट के अनुसार “बर्क के राजनीतिक सिद्धांत के केन्द्र बिंदु में बुद्धि वाद का नकार है ।बर्क यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि राजनीति मानवीय बुद्धि से निकले किसी ऐसे उसूल की रौशनी में चलाई जा सकती है जिसकी जड़ें अतीत के अनुभवों और रीति- रिवाजों में न हों ।उनकी मान्यता थी कि लोग जिस बन्दोबस्त के तहत रहते आए हैं, वह लम्बी आज़माइश का नतीजा है ।”
47– आधुनिक इतिहास चिंतन और लेखन के क्षेत्र में एडवर्ड हैलेट कार (1892-1982) को पारम्परिक और पुराने विमर्शों को नए नज़रिए से देखने, सोवियत संघ के इतिहास की एक वृहद् परियोजना पर सफलतापूर्वक काम करने और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अनुशासन को दिशा देने वाले विद्वान के रूप में देखा जाता है ।वह लीग ऑफ नेशंस के सलाहकार भी रहे ।कार को 1936 में वुड्रो विल्सन के नाम से गठित अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की पीठ में प्रोफ़ेसर नियुक्त किया गया ।
48– ई.एच. कार अपनी पुस्तक, द ट्वेंटी इयर क्राइसिस, 1919-1939 तथा कंडीशंड ऑफ पीस व नेशनलिज्म ऐंड आफ्टर जैसी महत्वपूर्ण रचनाओं के लिए जाने जाते हैं ।ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में रहते हुए अ हिस्ट्री ऑफ सोवियत रशिया जैसी 14 खंडों में फैली विशालकाय और व्हाट इज हिस्ट्री जैसी क्षिप्र लेकिन विचारोत्तेजक पुस्तकों की रचना की ।अपने इतिहास चिंतन में कार निश्चयवाद का समर्थन करते हुए प्रतीत होते हैं ।
49– ई.एच. कार का मानना है कि किसी भी घटना के निश्चित कारण होते हैं और उन कारणों में थोड़ी सी फेरबदल ही घटना के समूचे विन्यास को बदल देती है ।वह यह भी मानते हैं कि इतिहास को घटनाओं की पड़ताल में बुद्धि संगत कारणों पर ज़ोर देना चाहिए ।क्योंकि यही वह चीज है जो हमें अतीत को वर्तमान के सन्दर्भ में और वर्तमान को अतीत की रोशनी में देखने की समझदारी मुहैया कराती है ।
50– साहित्यशास्त्री और सांस्कृतिक सिद्धांतकार एडवर्ड विलियम सईद (1935-2003) को मुख्य तौर पर पश्चिमी प्राच्यवाद की प्रखर आलोचना के लिए जाना जाता है ।कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी और तुलनात्मक साहित्य के इस प्रोफ़ेसर ने सारे जीवन फ़िलस्तीनी आज़ादी के आंदोलन की पैरोकारी की ।1975 में प्रकाशित अपनी पुस्तक बिगनिंग्स में सईद ने इतालवी दार्शनिक गियामबतिस्ता विको की 18 वीं सदी की कृति न्यू साइंस से प्रेरणा लेकर उद्गम और प्रारम्भ से जुड़ी हुई अवधारणाओं की अलग-अलग व्याख्या दी ।उन्होंने उद्गम को दैवीय और प्रारम्भ को सेक्युलर बताया ।
नोट: उपरोक्त सभी तथ्य, अभय कुमार दुबे, द्वारा सम्पादित पुस्तक “समाज विज्ञान विश्वकोष”, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, द्वितीय संस्करण- 2016, ISBN : 978-81-267-2849-7 से साभार लिए गए हैं ।
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सर, वास्तव में,ये उन्नत लेख हैं। आपके लेख हमारे बहुत काम आते हैं।
धन्यवाद सर
विशाल शर्मा, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत
धन्यवाद आपको विशाल जी