राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य ( भाग- 17)

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डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी । फ़ोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी, उत्तर- प्रदेश, भारत ।email : drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : themahamaya. Com

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1– ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स (1883-1946) ने सैद्धांतिक स्तर पर मैक्रोइकॉनॉमिक्स अथवा समष्टिगत अर्थशास्त्र को नई दिशा दी । दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आज भी कींस की मदद के बिना समष्टिगत अर्थशास्त्र नहीं पढ़ाया जाता ।नीतिगत स्तर पर दुनिया में कई सरकारें और उनके केन्द्रीय बैंक व्यापार चक्रों को नियंत्रण में रखने के लिए कींस के बताए उपायों का सहारा लेते हैं ।व्यापार असंतुलन से निबटने के लिए अपनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय उपाय भी केन्द्र की देन हैं ।कींस द्वारा प्रतिपादित नीतियों के आधार पर ही ब्रिटेन वुड्स प्रणाली की रचना हुई जिसने कम से कम 25 साल तक विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया ।

2- जॉन मेनॉर्ड कींस को पहली प्रसिद्धि प्रथम विश्व युद्ध के बाद लिखी गई उनकी रचना द इकॉनॉमिक कांसीक्वेंसिज ऑफ पीस के ज़रिए मिली ।जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि पराजित जर्मनी पर लादी गई शर्तें उसकी तबाही का कारण बनेंगी जिसके कारण जर्मनी में आक्रोश पैदा होगा ।उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ ।अपनी एक अन्य रचना ट्रैक्ट ऑन मोनेटरी रिफार्म्स में कींस ने मुद्रास्फीति के ख़तरों की तरफ़ ध्यान खींचा और इसके नियंत्रण के लिए एक केन्द्रीय बैंक पर ज़िम्मेदारी सौंपी ।

3- कींस की सबसे महान रचना द जनरल थियरी ऑफ एम्प्लाइमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी (1936) मानी जाती है ।कींस ने आर्थिक विज्ञान में समय के महत्व पर विशेष ज़ोर देते हुए व्यक्ति के उपभोग की प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया और पता लगाने की कोशिश किया कि वह किन आधारों पर भविष्य में उपभोग करने का निर्णय लेता है ।कींस जोर देकर कहते थे कि सरकारों को अधिक घरों, सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण करना चाहिए ।उनकी निगाह में ख़ज़ाने में मुद्रा को सड़ाने से बेहतर था कि निवेश का समाजीकरण कर दिया जाए ।

4- अमेरिकी राजनीतिक विचारक जॉन रॉल्स (1921-2002) को राजनीति दर्शन की प्रमुख हस्तियों में शामिल किया जाता है ।वर्ष 1971 में प्रकाशित उनकी रचना अ थियरी ऑफ जस्टिस ने पिछले 40 सालों में आंग्ल- अमेरिकी दर्शन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव डाला है ।राजनीतिक दृष्टि से रॉल्स द्वारा किए गए न्याय सम्बन्धी सूत्रीकरण को अमेरिकी अर्थ में उदारतावाद की और यूरोपीय अर्थ में सामाजिक लोकतंत्र की तरफ़दारी के रूप में देखा जाता है ।अमेरिका की हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वह 40 साल तक प्रोफ़ेसर रहे ।

5- जॉन रॉल्स ने वर्ष 1993 में प्रकाशित अपनी दूसरी रचना पॉलिटिकल लिबरलिज्म में समुदायवादियों की आलोचनाओं का जबाब देने की कोशिश की ।रॉल्स की तीसरी रचना द लॉ ऑफ पीपुल (1999) में न्याय के सिद्धांतों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के बारे में विचार व्यक्त किया गया है ।इस कृति में उन्होंने दावा किया कि सुव्यवस्थित पीपुल या लोग उदारतावादी या मर्यादित होते हैं ।एक उदारतावादी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थिरता के लिए अनिवार्य है कि वह मर्यादित लोगों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाए ।

6- भारत में आदिवासी बहुल झारखंड राज्य का गठन 15 नवम्बर, 2000 को बिहार के दक्षिणी भाग को अलग करके किया गया ।इसका कुल क्षेत्रफल 79 हज़ार, 714 वर्ग किलोमीटर है ।2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 3 करोड़, 29 लाख, 66 हज़ार, 238 है ।यहाँ की कुल साक्षरता दर 67.63 प्रतिशत है ।यहाँ की विधानसभा में कुल 81 सदस्य होते हैं ।यहाँ से लोकसभा के 14 और राज्य सभा के 6 सदस्य चुने जाते हैं ।राँची झारखंड की राजधानी है ।यहाँ पर 28 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की आबादी है ।

7- झारखंड की भूमि विद्रोह के लिए जानी जाती है ।1832 में हुआ कोल विद्रोह, 1855 में सिदो मूर्मू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में हुआ संथाल विद्रोह, 1895 से लेकर 1900 तक चला बिरसा मुंडा का उलगुलान विद्रोह बहुत प्रसिद्ध है ।बिरसा मुंडा के विद्रोह के बाद ही अंग्रेजों ने 1908 में छोटा नागपुर टेनेंसी ऐक्ट बनाया, जिसमें स्थानीय आदिवासियों के भूमि पर प्रथागत अधिकार को स्वीकार किया गया ।

8- टेलरवाद आधुनिक प्रौद्योगिकी प्रबंधन की ऐसी विचारधारा है जिसका बुनियादी लक्ष्य आर्थिक दक्षता- ख़ासतौर पर श्रम की उत्पादकता में सुधार लाना है ।उत्पादन प्रबंधन के इस मॉडल के प्रणेता अमेरिकी विचारक के फ़्रेडेरिक विनस्लो टेलर थे ।इसका मूल सरोकार मनुष्य की दक्षता बढ़ाना, अपव्यय कम करना तथा उत्पादन के पारम्परिक तरीक़ों की जगह ज़्यादा कारगर विधियों को प्रतिष्ठित करना था ।इस तरह अपने आप में टेलरवाद प्रबन्धन के क्षेत्र में वैज्ञानिक तथा इंजीनियरिंग के नियमों को लागू करने का पहला प्रयास था ।

9- यहूदी मूल के अमेरिकी समाजशास्त्री टैलकॉट पार्संस (1902-1971) सामाजिक प्रकार्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन करने के लिए प्रसिद्ध हैं ।वर्ष 1951 में प्रकाशित अपनी पुस्तक द सोशल सिस्टम में उन्होंने प्रकार्यवाद के सिद्धांत पर विस्तार से प्रकाश डाला ।वह लम्बे समय तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे तथा वहाँ पर समाजशास्त्र के विभाग की स्थापना किया ।1937 में उनकी रचना द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन प्रकाशित हुई ।इसके अतिरिक्त द इवोल्यूशन ऑफ सोसाइटीज (1977), सोसाइटीज: एवोल्यूशनरी एंड कम्पेरेटिव पर्सपेक्टिव (1966) भी उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ।

10प्रकार्यवाद के तहत माना जाता है कि व्यवस्था का एक भाग अन्य भागों से जुड़ा रहता है ।इस तरह व्यवस्था के विभिन्न अंग परस्पर अंतर्निभर रहते हैं ।उन्होंने 4 क़िस्म की प्रक्रियात्मक पूर्वापेक्षाओं का उल्लेख किया है : अनुकूलन, लक्ष्य- प्राप्ति, एकीकरण तथा विन्यास- अनुरक्षण ।पार्संस ने ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर समाजों का विकासात्मक वर्गीकरण भी किया है ।जिसके अनुसार : आदिम तथा प्राचीन समाज, मध्यवर्ती समाज और आधुनिक समाज ।

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11ट्रस्टीशिप गांधीवादी अर्थशास्त्र का केन्द्रीय सिद्धांत है ।यह अर्थशास्त्र का अहिंसक विकल्प है जो नैतिकता की धुरी पर घूमता है ।इस सूत्रीकरण के माध्यम से गाँधी जी ने भारत की आध्यात्मिक- सांस्कृतिक विरासत और समतामूलकता के आधुनिक विचार के बीच एक पुल बनाने की चेष्टा की है ।गांधी के अनुसार सम्पूर्ण सम्पत्ति समाज की धरोहर है जिस पर सबका अधिकार है ।ट्रस्टीशिप एक नवीन समाज व्यवस्था की जीवनशैली का अनिवार्य अंग है ।

12– गांधी ने ट्रस्टीशिप के विचार को चार आयाम दिए : सम वितरण की अहिंसक प्रक्रिया, व्यावहारिक मनोविज्ञान पर आधारित अहिंसक सम वितरण की श्रेष्ठता, ट्रस्टीशिप का प्रयोग अहिंसा के द्वारा ही सम्भव, अहिंसक समाजवादी परिवर्तन एवं सम्पत्ति के सम वितरण का उपयोग ।ट्रस्टीशिप का सिद्धांत कोर्ट ऑफ इक्विटी की परम्परा में आता है ।स्नेल ने अपनी पुस्तक प्रिंसिपल्स ऑफ इक्विटी में ट्रस्टीशिप की अच्छी तरह से व्याख्या की है ।

13- डायग्लॉसिया शब्द फ़्रांसीसी भाषा के डियग्लोसी शब्द से बना हुआ है ।सबसे पहले 1959 में चार्ल्स फर्ग्युसन ने इस शब्द का प्रयोग बोली विज्ञान से सम्बन्धित अपने लेख में किया था ।फर्ग्युसन के अनुसार ‘ डायग्लॉसिया किसी भाषा के किसी ख़ास स्तर पर विकसित नहीं होता ।यह कई स्रोतों से एवं कई भाषागत परिस्थितियों के कारण विकसित हो जाता है ।’ भाषा विज्ञान कोष के अनुसार ‘ किसी भाषायी समाज में जब विभिन्न परिस्थितियों में एक ही भाषा के दो भिन्न रूपों का प्रयोग होता है तो ऐसी स्थिति भाषा द्वैत अथवा डायग्लॉसिया कहलाती है ।’

14डायस्पोरा का यूनानी भाषा में अर्थ होता है छितरा हुआ ।किसी एक राष्ट्रीय या जातीय अस्मिता से सम्पन्न लोगों का समूह जब अपनी मूल ज़मीन से दूर किसी दूसरे भूगोल का स्थायी रूप से वासी बनता है तो उसके लिए डायस्पोरा की संज्ञा का प्रयोग किया जाता है ।सबसे पहले इस अभिव्यक्ति का इस्तेमाल ईसा से 607 साल पहले बेबीलोनियनों द्वारा फ़िलिस्तीन से और रोमनों द्वारा जूडिया से यहूदियों के निष्कासन के लिए किया गया था ।आधुनिकता से पहले की अवधि का सबसे बड़ा डायस्पोरा अफ़्रीकियों को माना जाता है ।

15– दक्षिण- पूर्व एशिया के बाहर सबसे बड़ा डायस्पोरा भारतवंशियों का है ।इनकी संख्या लगभग ढाई करोड़ है ।मोटे तौर पर डायस्पोरा समाजों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है : उत्पीडित डायस्पोरा जिसमें यहूदी, आर्मेनियाई और अफ्रीकी आते हैं ।दूसरी श्रेणी मज़दूर और साम्राज्यवादी डायस्पोरा की है ।तीसरी श्रेणी तिजारती डायस्पोरा की है ।

16चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन (1809-1882) की वर्ष 1959 में प्रकाशित रचना ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज में प्रतिपादित जैविक विकासवाद, योग्यतम् के जीवित रहने, प्राकृतिक वरण और साझे पूर्वज होने के सिद्धांतों ने सामाजिक विचारधाराओं, जीव विज्ञान तथा धर्म के क्षेत्रों में खलबली मचा दी ।डार्विन से पहले प्रकृति और समाज रचना के पीछे दैवी योजना के सिद्धांत का दबदबा था जिसे डार्विन की खोजों ने पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया ।डार्विन के अनुसार प्राकृतिक चुनाव और प्रजातियों का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसने पर्यावरण के अनुकूल ख़ुद को किस प्रकार ढाला है ।

17क्रम विकास के सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए डार्विन ने विकास को दो हिस्सों में बाँटकर देखा : भिन्नताकारी विकास और समानताकारी विकास ।भिन्नताकारी विकास वह होता है जिसमें पर्यावरण और आत्मरक्षा के दबाव में एक प्रजाति के जीवों में अलग-अलग जैविक लक्षण पैदा होते हैं और समानताकारी विकास वह होता है जिसमें भिन्न प्रजाति के प्राणियों में एक जैसे लक्षण व गुण पाए जाते हैं ।

18– मानव विकास पर डार्विन ने अपनी रचना डिसेंट ऑफ द मैन एंड सिलेक्शन इन रिलेशन टू सेक्स (1871) में रौशनी डाली है ।यहाँ यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट की पदावली का प्रयोग डार्विन ने नहीं बल्कि विकासवादी ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर ने किया है ।स्पेंसर ने इसका प्रयोग पूरी दुनिया में युरोपीय साम्राज्यवाद को उपयोगी तथा तर्कसंगत ठहराने के लिए किया है ।

19एक फ़्रेंच यहूदी परिवार में जन्में डेविड एमील दुर्खाइम (1858-1917) को आधुनिक समाजशास्त्र का संस्थापक और समाज वैज्ञानिक शब्दावली में दुनिया का पहला आधिकारिक समाजशास्त्री माना जाता है ।अध्ययन की विश्वविद्यालयी व्यवस्था में वे समाजशास्त्र के पहले प्रोफ़ेसर भी थे ।व्यक्ति को समाज का उत्पाद मानना और सामाजिक परिघटना को केन्द्रीय महत्व देना ही समाजशास्त्र को अन्य अनुशासनों की तुलना में एक विशिष्ट स्वरूप प्रदान करता है ।समाजशास्त्र की यह विशिष्टता दुर्खाइम के बिना सम्भव नहीं है ।

20– दुर्खाइम की चार रचनाओं- द डिवीजन ऑफ लेबर, द रूल्स ऑफ सोसियोलॉजिकल मैथड, सुसाइड तथा द एलीमेंटरी फॉर्म्स ऑफ द रिलीजियस लाइफ को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।दुर्खाइम का अवदान समाजशास्त्रियों की कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, प्रश्नांकन, समावेशन और जिरह का विषय रहा है ।उनकी दृष्टि समाज को मूलतः सामूहिकता में समझने का आग्रह करती है ।

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21– लंदन के एक अमीर यहूदी परिवार में जन्में डेविड रिकार्डो (1772-1823) ने मूल्य का श्रम सिद्धांत और तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत प्रतिपादित करने के साथ पहली बार वितरण के आर्थिक सिद्धांत का सूत्रीकरण किया ।रिकार्डो ने यह समझने का प्रयास किया कि आमदनी लगान, मजदूरी और मुनाफ़े के बीच कैसे बंटती है ? अर्थव्यवस्थाओं के उत्थान और पतन के प्रमुख कारण कौन से होते हैं ? रिकार्डो ने मुक्त अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को समृद्धि की ओर ले जाने वाला करार दिया ।

22– श्रम का मूल्य सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए रिकार्डो ने लागत के रूप में केवल श्रम को ही देखने का आग्रह किया ।कौशल और श्रम की सघनता की अहमियत मानने से इनकार करते हुए रिकार्डो का आग्रह था कि जिंसों को बाज़ार में लाने में लगे वक़्त का फ़र्क़ उनके मूल्य पर छह से सात फ़ीसदी तक असर डाल सकता है ।इसी वजह से रिकार्डो के मूल्य सिद्धांत को श्रम का 93 फ़ीसदी मूल्य सिद्धांत भी कहा जाता है ।उन्होंने लगान की एक सी दर के बजाय भू- खंडों से होने वाली पैदावार के आधार पर लगान की कम या ज़्यादा दर रखने का सुझाव दिया ।

23- पश्चिमी राजनीतिक दर्शन की उदारवादी परम्परा में डेविड ह्यूम (1711-1776) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है ।सन् 1744 में उनकी रचना एसेज, मॉरल एंड पॉलिटिक्स का प्रकाशन हुआ ।ह्यूम का दर्शन आगे चलकर अज्ञेयवाद के नाम से मशहूर हुआ ।उन्होंने अपनी दूसरी रचना ट्रीटाइज ऑफ ह्यूमन नेचर में लिखा, ‘बुद्धि को संवेदनाओं का आज्ञा पालन करना ही होगा ।वह किसी और अधिकारी की सेवा और अनुपालन का दिखावा तक नहीं कर सकती ।’ संवेदनाएँ एक ख़ास तरह के बुद्धिसंगत व्यवहार के कारण नहीं होती बल्कि हमारा बुद्धिसंगत व्यवहार हमारी खास तरह की संवेदनाओं के कारण होता है ।

24– भारत के दक्षिणी भाग में स्थित राज्य तमिलनाडु को स्वतंत्रता से पहले मद्रास प्रेसीडेंसी के रूप में जाना जाता था ।इस राज्य के पश्चिम में केरल, उत्तर- पश्चिम में कर्नाटक, उत्तर में आंध्र प्रदेश, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और केन्द्र शासित प्रदेश पांडिचेरी है ।राज्य का कुल क्षेत्रफल 1 लाख, 30 हज़ार, 58 वर्ग किलोमीटर है ।वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 7 करोड़, 21 लाख, 38 हज़ार, 958 है ।तमिलनाडु की साक्षरता दर 80 प्रतिशत से ज़्यादा है ।यह एक ऐसा राज्य है जहां भारत में सबसे पहले और सबसे मज़बूत ब्राह्मण विरोध की राजनीति स्थापित हुई ।

25– वर्ष 1986 से पहले तमिलनाडु में द्वि- सदनीय विधायिका हुआ करती थी ।लेकिन 1986 में यहाँ विधान परिषद ख़त्म कर दी गई ।अब यहाँ पर एक सदनीय विधायिका अर्थात् विधानसभा है जिसकी सदस्य संख्या 235 है ।यहाँ से लोकसभा के 39 और राज्य सभा के 18 सदस्य चुने जाते हैं ।तमिलनाडु की सरकारी भाषा तमिल है ।

26- दुनिया में तीसरा सिनेमा की अवधारणा का प्रारम्भ 1969 में अर्जेंटीना के दो विमर्शकारों फ़र्नांडो सोलानास और ऑक्टावियो गेटिनो के द्वारा तैयार किए गए टुवर्ड्स अ थर्ड सिनेमा नामक एक घोषणा- पत्र से हुई ।तीसरा सिनेमा आंदोलन के फ़िल्मकारों की भावभूमि पर उनके अपने देश के यथार्थ की गहरी छाप थी ।वर्ग, नस्ल, संस्कृति, धर्म, सेक्स और राष्ट्रीय अखंडता से जुड़े मुद्दों को सम्बोधित करते हुए इन नई संहिताओं के मर्म में अमीर और गरीब का अंतर्विरोध था ।

27– भारत में तीसरे सिनेमा की संहिताओं की अभिव्यक्ति मृणाल सेन (भुवन सोम) और मणि कौल (उसकी रोटी) की फ़िल्मों में हुई ।इसकी पृष्ठभूमि में चालीस के दशक में चले भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) का रंगमंच और फ़िल्म आन्दोलन था, जिसने 1946 में ख़्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में धरती के लाल जैसी चर्चित फ़िल्म बनाई ।इसके साथ ही तीसरे सिनेमा पर पचास और साठ के दशक की शुरुआत में बनाई गई सत्यजीत राय ( पाथेर पांचाली, अपूर संसार, महानगर, चारुलता) की फ़िल्मों का भी असर था ।

28- लातीनी अमेरिका के तीसरे सिनेमा के केन्द्र में सशस्त्र संघर्ष की विषयवस्तु थी ।इस दौरान उभरे ब्राज़ीली सिनेमा की शिनाख्त ‘ भूख अथवा हिंसा के सौन्दर्यशास्त्र’ के तौर पर की जाती है ।अर्जेंटीना और क्यूबा के इस दौर के सिनेमा में क्रांति की झलक थी ।अस्सी के दशक के अंत में ब्रिटेन में ब्लैक सिनेमा उभरा जिसके तत्वावधान में एडिनबरा (1986) और बरमिंघम (1988) में दो सम्मेलन भी आयोजित किए गए ।

29– विल्टशायर, इंग्लैंड में जन्में, भौतिकवाद के दार्शनिक संस्थापकों में से एक थॉमस हॉब्स (1588-1679) को उनकी शाहकार रचना लेवायथन के कारण पश्चिमी राजनीतिक दर्शन की आधारशिला रखने का श्रेय दिया जाता है ।वे बेहद साहसी चिंतक और अत्यंत प्रभावशाली लेखक थे ।द एलीमेन्ट्स ऑफ लॉ नेचुरल एंड पॉलिटिक उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचना है ।उनकी बुनियादी मान्यता यह थी कि मनुष्य अपनी विनाशकारी प्रवृत्तियों का दास है इसलिए वह लम्बे समय तक और बड़ी संख्या में सामूहिक रूप से तभी रह सकता है जब उसकी इन प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर सकने वाली मज़बूत सरकार का उस पर शासन हो ।

30– थॉमस हाब्स ने गैलीलियो, फ़्रांसिस बेकन और रेने देकार्त से वैज्ञानिक पद्धति प्राप्त की ।वे यूनानी ज्यामितविद् युक्लिड की रचना एलीमेन्ट्स से बेहद प्रभावित थे ।बेकन के प्रभाव में आकर हाब्स 1630 तक मान चुके थे कि समग्र प्राकृतिक व्यवस्था को मस्तिष्क या चेतना जैसे हवालों के बिना केवल बॉडी या देह के रूप में समझा जा सकता है ।हर मनुष्य का शरीर एक घड़ी से मिलता जुलता जटिल मैकेनिज्म भर है ।इसमें ह्रदय स्प्रिंग की और स्नायु तारों की भूमिका निभाते हैं ।शरीर के जोड़ वे पहिए हैं जिनसे इस देह को गति मिलती है ।

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31- ब्रिटेन में एक साधारण क्वेकर परिवार में जन्में थॉमस पेन(1737-1809) एक लोकप्रिय लेखक और राजनीतिक चिंतक थे ।द राइट्स ऑफ मैन और कॉमन सेंस जैसी विख्यात् पुस्तकों के वह लेखक हैं ।वे कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का सूत्रीकरण करने वाले पहले चिंतकों में से एक थे ।लॉक के विचारों का अनुशरण करते हुए उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मनुष्य प्राकृतिक अधिकारों से सम्पन्न होता है और इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए वह समाज में भागीदारी करता है ।

32थॉमस पेन राजतंत्रीय और कुलीनतंत्रीय व्यवस्था के आलोचक थे ।उन्होंने कहा कि वंशानुगत शासन धोखाधड़ी से किया जाने वाला शासन है ।यह लोगों की अज्ञानता और अंधविश्वास पर टिका होता है ।उनका कहना था कि, ‘वंशानुगत विधिकर्ता का विचार उतना ही बेतुका है जितना कि वंशानुगत गणितज्ञ या वंशानुगत बुद्धिमान व्यक्ति का विचार ।’ उनकी दो अन्य पुस्तकें- द ऐज ऑफ रीजन (1784) और एग्रेरियन जस्टिस (1796) विख्यात् हैं ।

33वणिकवाद आधुनिक अर्थशास्त्र की एक शुरुआती विचारधारा रही है ।थॉमस मन (1571-1641) उसके सर्वाधिक प्रभावशाली और विख्यात् पैरोकार थे ।अर्थशास्त्र के इतिहास में मन की मुख्यतः दो रचनाएँ चर्चित हैं : अ डिस्कोर्स ऑफ ट्रेड अनटू द ईस्ट- इंडीज़ (1621) और इंग्लैंड्स ट्रैजर बाइ फॉरेन ट्रेड (1664)। थॉमस मन का सूत्र है : किफ़ायत से रहो,कम खर्च करो और ज़्यादा कमाओ ।

34- ब्रिटिश विचारक थॉमस रॉबर्ट माल्थस (1766-1834) जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धांत के लिए मशहूर हैं ।1798 में प्रकाशित अपनी पुस्तक एसे ऑन पॉपुलेशन में माल्थस ने कहा कि समाज व्यवस्था कैसी भी हो, जनसंख्या वृद्धि की समस्या के कारण मानवता एक बंद गली में फँस चुकी है ।न किसी क्रांति से काम चलेगा और न ही किसी सुधार से ।उनके अनुसार आबादी में वृद्धि ज्यामितीय गति से ( 1,2,4,8,16) होती है जबकि खाद्य उत्पादन अंकगणितीय रफ़्तार (1,2,3,4,5) से बढता है ।अत: एक सीमा के बाद भुखमरी की समस्या आएगी ।

35– राजनीति दायित्व के सिद्धांतकार, ब्रिटिश भाववादी दार्शनिक और सामाजिक राजनीतिक विचारक थॉमस हिल ग्रीन (1836-1882) ने उदारतावाद का सीमांकन करते हुए उसे लोकोपयोगी राज्य की सम्भावनाओं की तरफ़ मोड़ने का प्रयास किया ।स्वतंत्रता की अवधारणा को सकारात्मक और नकारात्मक रूप में बाँटकर उसे समझने की शुरुआत ग्रीन ने ही की थी ।वह मात्र 46 वर्ष की उम्र तक जिए ।लेक्चर्स ऑन द प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल ऑब्लिगेशन (1882) और प्रोलेगोमेना टू एथिक्स (1883) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ।

36– जर्मन यहूदी परिवार में जन्में थियोडोर लुडविग वीजेनग्रंट एडोर्नो (1903-1969) फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल के विद्वान थे ।प्रबुद्ध समाजविज्ञानी, दार्शनिक और संगीत के प्रखर अध्येयता के रूप में उनकी पहचान है ।उन्होंने ज्ञानमीमांसा और तत्व दर्शन के क्षेत्र में कालजयी योगदान करने वाली डायलेक्टिक ऑफ एनलाइटनमेंट, फिलॉसफी ऑफ म्यूज़िक, द अथोरिटेरियन पर्सनालिटी तथा मिनिमा मॉरैलिया जैसी यशस्वी कृतियों की रचना किया ।

37– समकालीन भारतीय दर्शन परम्परा के क्षेत्र में दया कृष्ण (1924-2007) की गणना प्रथम कोटि के थोड़े से विचारकों में की जाती है ।उन्होंने भारतीय दर्शन के इतिहास की विचार केन्द्रित और विचारक केन्द्रित पुनर्रचना की ।वे भारतीय दर्शन परम्परा को पुनर्गठित करने हेतु एक भाष्यधर्मी अभियान का आह्वान भी करते हैं ।यदि दया कृष्ण के दार्शनिक अभियान को कोई नाम देना आवश्यक हो तो उसे वैकल्पिकता के तर्क शास्त्र पर आधारित बहुलवादी समग्रता का दर्शन कहा जाना उचित होगा ।

38– दया कृष्ण की प्रमुख कृतियों में सोशल फिलॉसफी : पास्ट एंड फ्यूचर (1969), कंसीडरेशंस टुवर्डस ए थियरी ऑफ सोशल चेंज (1965) और पॉलिटिकल डेवलपमेंट : ए क्रिटिकल पर्सपेक्टिव (1979) प्रमुख हैं ।यह पुस्तकें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दर्शन से सम्बन्धित हैं ।प्रोलेगोमेना टू ऐनी फ्यूचर हिस्टोरियोग्राफी ऑफ कल्चर एंड सिविलाइजेशन (1997) में दया कृष्ण एक सभ्यता विज्ञानी के रूप में सामने आते हैं ।इसके अतिरिक्त भारतीय दर्शन पर भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं ।

39द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) बीसवीं सदी की एक ऐसी घटना थी जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय उपनिवेशवाद का अंत हो गया और वि- उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया निर्णायक चरण में पहुँच गई ।द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण ही विश्व की राजनीति पर अगले 45 साल के लिए दो महाशक्तियों का प्रभुत्व छा गया ।संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुई होड़ से शीत युद्ध का जन्म हुआ ।सुरक्षित विश्व के भविष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किया गया । क़रीब छः करोड़ लोगों को इस युद्ध में अपनी जान गँवानी पड़ी ।

40– द्वितीय विश्वयुद्ध में एक तरफ़ मित्र राष्ट्र ( ब्रिटेन, फ़्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, पोलैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ़्रीका, बेल्जियम, नीदरलैंड्स, यूनान, युगोस्लाविया और नार्वे) थे और दूसरी तरफ़ धुरी राष्ट्र ( जर्मनी, जापान, इटली, हंगरी, रोमानिया, फ़िनलैंड, थाईलैण्ड, बुल्गारिया, क्रोशिया और स्लोवाकिया) थे ।युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर, 1939 को हुई जब नाजी जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया ।युद्ध का अंत 14 अगस्त, 1945 को धुरी राष्ट्रों की पराजय के साथ हुआ ।अमेरिका इस युद्ध में 1941 में जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर हमला करने के कारण शामिल हुआ ।

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41– आन्ध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी ज़िले के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 जुलाई, 1909 में जन्मीं दुर्गा बाई देशमुख (1909-1981) का संघर्षपूर्ण जीवन स्त्री कल्याण के लिए समर्पित था ।वह आन्ध्र महिला सभा की संस्थापक, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा की सक्रिय सदस्य थी ।वह संविधान सभा की एक भी बैठक में अनुपस्थित नहीं हुई ।उन्होंने संविधान सभा में 750 संशोधन पेश किए थे ।डॉ. अम्बेडकर उन्हें अत्यधिक विचारशील स्त्री के लकब से पुकारते थे ।देश की आज़ादी के आंदोलन में वह तीन साल तक जेल में रहीं ।

42- विकासशील देशों प्रमुख नारीवादी अर्थशास्त्री देवकी जैन (1933- ) ने नारीवादी आन्दोलन में विकास की अवधारणा को समाहित किया ।उन्होंने 1984 में डेवलपमेंट ऑल्टरनेटिव्ज विद वुमन फ़ॉर ए न्यु ऐरा की स्थापना की ।यह नारीवादी विद्वानों और शोधकर्ताओं का नेटवर्क है जो आर्थिक समानता, लैंगिक न्याय के साथ दीर्घकालिक लोकतांत्रिक विकास के क्षेत्र में काम कर रहा है ।

43– संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी औपनिवेशिक काल की देन है ।इसका इस्तेमाल धार्मिक वेश्यावृत्ति की पर्दापोशी के लिए किया जाता है ।कन्नड़ और तेलुगु में इसका अर्थ है- वेश्या ।कर्नाटक में बेलगाँव ज़िले के सौदत्ती और शिमोगा के चन्द्रगुट्टी स्थल पर स्थित देवी येल्लमा में यह प्रथा थी कि यदि कोई दलित स्त्री अपना जीवन येल्लमा को समर्पित कर देती है तो अगले जन्म में वह स्वयं तो ब्राह्मण जाति में जन्म लेगी लेकिन अपने परिवार के लिए वह इसी जन्म में सौभाग्यदात्री बनेगी ।देवदासी को नित्यसुमंगली कहा जाता है क्योंकि वह कभी वैधव्य को प्राप्त नहीं होती ।

44– विद्वान चिंतक रॉबर्ट बिफ्रो, जेम्स फ़्रेज़र, जानकी नायर, ए. एस. मैन, सस्किया केरसेनबुम स्टोरी, ए. बी. ए. जे. दुबोई जैसे अनेक मानवशास्त्रियों और इतिहासकारों ने देवदासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थितियों का विश्लेषण कर उसमें निहित छद्म, क्रूर और घृणित यौनाचार के वीभत्स रूपों का पर्दाफ़ाश किया है ।भारत में जिस समय सुल्तान महमूद ने सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ा था, उस समय मंदिर की सेवा में 350 नृत्यंगनाएं संलग्न थीं ।

45– देवदासियों को भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है ।आन्ध्रप्रदेश में इन्हें विलासिनी, कलावंत, भोगम पात्रा, नर्तकी और जोगिनी नामों से जाना जाता है ।महाराष्ट्र के जेजुरी में मुराली, केरल में मराली, असम में नाटिस, कर्नाटक में जोगती और बैसवी, गोवा में भवानी और कुदिकार, पश्चिमी इलाक़ों में भोगम बंधी, तमिलनाडु में देवरादियालसम्भवतः देवरादियाल शब्द का ही तत्सम रूपांतरण देवदासी है ।

46फ़्रेडेरिक हायक ऐसे चुनिंदा अर्थशास्त्रियों में से एक थे जिन्होंने बड़ी निजी फ़र्मों और बड़े बैंकों को अपनी मुद्रा छापने का अधिकार देने का सुझाव दिया ।वे मानते थे कि नोट जारी करने वाली निजी कम्पनियाँ अपनी मुद्रा की प्रतिष्ठा की फ़िक्र करेंगी और उसमें कम से कम धन जारी करने की प्रवृत्ति होगी ।

47- कागज की मुद्रा सम्भवतः 1882 में पहली बार इस्तेमाल हुई ।कुबलई खान ने शहतूत की छाल से बने काग़ज़ के नोटों को जारी किया था ।उन पर उसकी मुहर लगी थी और ख़ज़ांची के दस्तख़त थे ।1368 से 1399 के बीच चीन के मिंग राजवंश द्वारा जारी मुद्रा कुआन सबसे पुराना काग़ज़ का नोट माना जाता है ।वियतनाम ने 1396 में पहली बार साओ के रूप में नोट जारी किए ।पश्चिमी जगत में सबसे पहले नोटों का प्रयोग 18 वीं सदी के दौरान फ़्रांस ने करना शुरू किया ।1518 में बोहेमिया की सेंट जोचिम घाटी में एक टकसाल में चाँदी का एक सिक्का ढाला गया ।इसे जोचिमस्थेलर का नाम दिया गया ।इसी सिक्के को हालैंड में डॉलडर, स्केंडेनेविया में डॉलेर, और इंग्लैंड में डॉलर कहा गया ।आजकल संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के 24 देश अपनी मुद्रा को डॉलर कहते हैं ।

48- ध्यान खास उद्दीपकों के प्रति चयनित अनुक्रिया है ।ध्यान के माध्यम से खास उद्दीपकों का चयन होता है और फिर मानसिक रूप से उन्हें व्यक्ति की चेतना में लाया जाता है ।मनोविज्ञान में ध्यान के अनेक प्रकार बताए गए हैं जिसमें- ऐच्छिक ध्यान, अनैच्छिक ध्यान,आदतन ध्यान, चयनात्मक ध्यान और सतत ध्यान प्रमुख हैं ।ध्यान के साथ ही जुड़ी हुई अवधारणा है ध्यान का विस्तार । उम्मीद, ध्यान का प्रमुख कारक है ।

49– आधुनिक इस्लामिक राष्ट्रवाद की शुरुआत मिस्र के हसन अल- बाना, जिन्होंने 1928 में इखवान अल -मुसलमीन की स्थापना की थी और पाकिस्तान के मौलाना मदूदी, जिन्होंने 1941 में जमात- ए- इस्लामी की स्थापना की थी, की रचनाओं से मानी जाती है ।इन दोनों चिंतकों ने पश्चिमी साम्राज्यवाद को इस्लामिक समाज का दुश्मन करार देते हुए कहा कि इस्लामिक व्यवस्था तब तक क़ायम नहीं की जा सकती जब तक पश्चिमी प्रभाव का अंत न कर दिया जाए ।

50यहूदी राष्ट्रवाद का उद्गम 1948 में स्वतंत्र और सम्प्रभु इज़राइल की स्थापना से जोड़ा जाता है ।इज़राइल पूर्व फ़िलिस्तीन के मुख्य रब्बी अब्राहम यिज्ताक हा- कोहेन कुक का कहना था कि इज़राइल का सेकुलर राज्य धार्मिक रूप से उपयोगी है ।अगर इसका शुद्धीकरण कर दिया जाए तो मसीहा की वापसी हो सकती है और बाइबिल में उद्धृत राष्ट्र की रचना की जा सकती है ।

नोटउपरोक्त सभी तथ्य, अभय कुमार दुबे के द्वारा सम्पादित पुस्तक, समाज विज्ञान विश्वकोष, खंड 2, दूसरा संस्करण : 2016, प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, ISBN : 978-81-267-2849-7, से साभार लिए गए हैं ।

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Dr. Raj Bahadur Mourya:
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