ह्वेनसांग की भारत यात्रा- गढ़वाल, कुमायूं, संकिसा और कन्नौज…

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गढ़वाल और कुमाऊं

मायापुर या हरिद्वार से आगे चलकर ह्वेनसांग “पन्हो लोहिह मोपुलो” अर्थात् “ब्रह्मपुर” राज्य में आया इसकी पहचान गढ़वाल और कुमायूं के रूप में की गई है यहां 5 संघाराम हैं जिनमें थोड़े से सन्यासी निवास करते हैं।(पेज नं 141) आगे चलकर वह “किउपीश्वांगना” (गोविशन) राज्य में आया। यहां भी उसे 2 संघाराम मिले जिसमें कोई 100 साधु हीनयान संप्रदाय के थे।

संकिसा टीला (स्तूप)

यहां एक और संघाराम है जिसमें अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप है।(पेज नं 142) यात्रा के अगले पड़ाव में वह “ओहीचीटलो” अर्थात् अहिक्षेत्र राज्य में आया। यह स्थान उत्तरी पांचाल अर्थात् रूहेलखंड की राजधानी था। यहां कोई 10 संघाराम और 1000 साधु हीनयान संप्रदाय के हैं। नगर के बाहर एक नाग झील है जिसके किनारे एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। यहां पर तथागत भगवान ने धर्मोंपदेश किया था। इसके निकट ही 4 स्तूप और हैं।(पेज नं 143)

संकिसा अथवा फर्रुखाबाद

यहां से पुनः उसने गंगा नदी पार किया और “पीलोशन्नन” अर्थात् “चीरासन” राज्य में आया। यहां दो संघाराम और 300 साधु थे जो महायान संप्रदाय से थे। राजधानी के मध्य में एक प्रधान संघाराम है जिसके मध्य में एक स्तूप है। यद्यपि यह स्तूप गिर गया है तो भी 200 फ़ीट ऊंचा है। यह अशोक राजा का बनवाया हुआ है। आगे चलकर वह “कईपी” अर्थात् “कपिय” नगर में आया। यहां उसे 10 संघाराम मिले जिसमें 1000 साधु थे। सब हीनयान संप्रदाय के थे। नगर के पूर्व 20 ली की दूरी पर एक बड़ा संघाराम बहुत सुंदर बना है। यहां भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है। (यह स्थान वर्तमान में संकिसा है जो उत्तर – प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में आता है।) यहां एक विहार बना है। विहार के बाहरी ओर उसी से मिला हुआ एक पत्थर का दालान 70 फीट ऊंचा अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इसका रंग बैंगनी तथा चमकदार है तथा सब मसाला सुदृढ़ और उत्तम लगा है। इसके ऊपर भाग में एक सिंह जिसका मुख सीढ़ियों की ओर है, अपने पुट्ठों के बल बैठा है। इस स्तंभ के चारों ओर सुंदर -सुंदर चित्र बड़ी विचित्रता से बने हुए हैं।(पेज नं 144)

यहीं थोड़ी दूर पर बुद्ध के पग चिन्ह हैं। इसके निकट ही दूसरा स्तूप है जहां पर तथागत ने स्नान किया था। इसके पास ही एक विहार बना है जहां तथागत ने समाधि लगाई थी। इस विहार के निकट एक दीवार 50 पग लंबी और 7 फीट ऊंची बनी है। इस स्थान पर बुद्ध भगवान् टहले थे। इस दीवार के दाहिने- बांए छोटे-छोटे स्तूप हैं।(पेज नं 145)

संकिसा, गांव बसंतपुर, फर्रुखाबाद में हाथी राजधानी, अशोक के स्तंभ में से एक, 3 शताब्दी ईसा पूर्व.

कान्यकुब्ज अथवा कन्नौज

यात्रा के अगले चरण में ह्वेनसांग “कान्यकुब्ज” राज्य में आया। वर्तमान समय में यह “कन्नौज” है। यहां उसे कई सौ संघाराम मिले जिसमें 10,000 साधु रहते थे। जिसमें हीनयान और महायान दोनों के अनुयाई थे। इस समय “हर्षवर्धन” यहां का राजा था। वह क्षत्रिय था। इसके पिता का नाम प्रभाकर वर्धन और बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन था। बंगाल के राजा शशांक जिन्हें नरेंद्र गुप्त के नाम से भी जाना जाता है, ने गुप्त रूप से राज्यवर्धन की हत्या करवा दिया था। इसके बाद हर्षवर्धन राज गद्दी पर बैठा।(पेज नं 146,150) कवि वाण ने हर्ष चरित्र नाम का ग्रंथ लिखा है। मैक्स मूलर मानता है कि हर्षवर्धन ही शिलादित्य है जिसका शासनकाल 610 ईसवी से 650 ईसवी तक रहा है। उसने गंगा के किनारों पर कई हजार स्तूप सौ – सौ फीट ऊंचे बनवाए। भारतवर्ष के प्रत्येक बड़े नगर और ग्राम में उसने पुण्य साला बनवायीं जिसमें खाने और पीने की सब प्रकार की सामग्री प्रस्तुत रहती थी। यहां वैद्य लोग औषधियों के सहित सदा तैयार रहते थे। सब स्थानों में जहां – जहां पर बुद्ध भगवान का कुछ भी चिन्ह था उसने संघाराम स्थापित किए। (पेज नं 152,153)

ह्वेनसांग को हर्षवर्धन शिलादित्य ने अपनी सभा में आमंत्रित किया था तथा उससे वार्तालाप भी किया था। राजधानी से पश्चिमोत्तर दिशा में एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है।इस स्थान पर तथागत भगवान ने 7 दिन तक धर्म उपदेश दिया था। यहां बुद्ध के पद चिन्ह हैं। इसके अलावा एक और छोटा स्तूप है जिसमें बुद्ध भगवान के शरीरावशेष, नख और बाल रखे हुए हैं। एक और स्तूप पास में ही है जहां पर बुद्ध भगवान ने उपदेश दिया था। दक्षिण ओर गंगा के किनारे 3 संघाराम एक ही दीवार घेर कर बनाए गए हैं, केवल फाटक तीनों के अलग- अलग हैं। इसमें बुद्ध भगवान की सर्वांग सुसज्जित मूर्तियां स्थापित हैं। विहार के भीतर एक सुंदर डिब्बे में भगवान बुद्ध का एक दांत करीब- करीब डेढ़ इंच लंबा और बहुत चमकीला रखा है। (पेज नं 160)

संघाराम के आगे दाहिनी और बाएं दोनों ओर दो बिहार 100, 100 फ़ीट ऊंचे बने हैं। इनकी बुनियाद तो पत्थर की है परंतु दीवारें ईंट की बनी हैं। बीच-बीच में रत्नों से सुसज्जित बुद्धदेव की मूर्तियां स्थापित हैं। इन मूर्तियों में से एक सोने और चांदी की है तथा दूसरी तांबे की है। प्रत्येक बिहार के सामने एक एक छोटा संघाराम है।(पेज नं 160,161)

महाराज हर्षवर्धन

संघाराम से दक्षिण – पूर्व दिशा में थोड़ी दूर पर एक बड़ा विहार है जिसकी नींव पत्थर से बना कर ऊपर 200 फीट ऊंची ईटों की इमारत बनाई गई है। इसके भीतर 30 फीट ऊंची बुद्धदेव की मूर्ति है। यह मूर्ति तांबे से बनाई गई है तथा बहुमूल्य रत्नों से आभूषित है। इस विहार की सब ओर की दीवारों पर सुंदर – सुंदर मूर्तियां तथागत भगवान की खुदी हुई हैं। नगर के दक्षिण – पूर्व 6 या सात ली दूर गंगा के दक्षिणी तट पर अशोक राजा का बनवाया हुआ 200 फीट ऊंचा स्तूप है। तथागत भगवान ने इस स्थान से 6 माह तक अनात्मा, दुःख, अनित्यता और अशुद्धता पर व्याख्यान दिया था। पास में ही एक और छोटा स्तूप है जिसमें तथागत भगवान के नख और बाल रखे हैं। नगर के पूर्व पांच ली की दूरी पर 3 संघाराम बने हुए हैं, जिनके घेरे की दीवार एक ही है परंतु फाटक अलग-अलग हैं। यहां लगभग 500 सन्यासी निवास करते हैं जो हीनयान संप्रदाय के अनुयाई हैं।(पेज नं 161)

संघाराम के सामने दो सौ कदम की दूरी पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। यद्यपि इसका निचला भाग भूमि में धंस गया है तो भी अभी यह कोई 100 फीट ऊंचा है। इस स्थान पर तथागत भगवान ने 7 दिन तक धर्म उपदेश किया था। इसके भीतर बुद्ध भगवान का शरीरांश है। संघाराम के उत्तर 3 या 4 ली पर गंगा के किनारे 200 फीट ऊंचा अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप है। इसके निकट एक और स्तूप है, इसमें तथागत के बाल और नख रखे हुए हैं।(पेज नं 162)

-डॉ.राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी

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Dr. RB Mourya:
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