ह्वेनसांग की भारत यात्रा- मगध देश में…

मगध देश में-

नेपाल की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग मगध देश में आया। इसका पुराना नाम पाटलिपुत्र भी था।

आजकल इस पटना के नाम से जाना जाता है और यह बिहार राज्य की राजधानी है। गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसे इस शहर का अतीत बहुत पुराना है। सम्राट अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया था। बाद में यहां चंद्रगुप्त मौर्य ने साम्राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनायी।

सम्राट अशोक के राजमहल का एक स्थम्ब.

ह्वेनसांग ने लिखा है कि यहां के लोग बौद्ध धर्म के विशेष भक्त हैं। कोई 50 संघाराम 10 हजार साधुओं सहित हैं जिनमें अधिकतर लोग महायान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं। इसकी प्राचीन राजधानी कुसुमपुर थी। जब प्राचीन राजधानी बदली जाने लगी तब यही स्थान नवीन राजधानी के लिए पसंद किया गया। यहां पर पहले से ही सुन्दर मकान बने हुए थे इस कारण से इसका नाम पाटलिपुत्र (पाटली वृक्ष के पुत्र) हो गया। प्राचीन राजभवन के उत्तर में एक पाषाण स्तम्भ 20 यों फ़ीट ऊंचा है। यह वह स्थान है जहां पर अशोक राजा ने एक भवन बनवाया था। संघाराम और स्तूप खण्डहर होकर धराशायी हो गये हैं। उनकी संख्या सैकड़ों में है। अशोक के राजमहल की केवल नींव शेष है।(पेज नं 246)

यहां सम्राट अशोक का बनवाया हुआ एक नरक कुण्ड था, जिसमें अपराधियों को सज़ा दी जाती थी। कालांतर में अशोक ने इसे बन्द कर तुड़वा दिया था। इस नरक कुण्ड के दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक स्तूप है। यह नक्काशी किये गये पत्थर से बनाया गया है। इसके चारों ओर कटघरा लगा हुआ है। यह 84 हजार स्तूपों में से पहला स्तूप है जिसको अशोक राजा ने अपने पुण्य प्रभाव से अपने राजभवन के मध्य में बनवाया था। इसमें तथागत भगवान् का शरीरावशेष रखा हुआ है।(पेज नं 248)

पाटलिपुत्र के कुम्हरार स्थल पर मौर्य सम्राटों के राजमहल के खँडहर ( Year – 1912)

सम्राट अशोक ने पूर्व आठों देशों के स्तूपों को जहां- जहां वे बने हुए थे, खोलकर शरीरावशेष को 84 हजार भागों में विभक्त कर लिया तथा सभी पर स्तूपों का निर्माण कराया।उपगुप्त ने इस कार्य में अशोक राजा की सहायता किया तथा परामर्श दिया। स्तूप के निकट थोड़ी दूर पर एक विहार बना हुआ है जिसमें एक पत्थर है जिस पर तथागत भगवान् चले थे। इसके ऊपर अब भी उनके दोनों पैरों के निशान बने हुए हैं। यह चरण चिन्ह 18 इंच लम्बे और 6 इंच चौड़े हैं। दाहिने और बांए दोनों पैरों में चक्र की छाप है।पैर की 10 सों उंगलियों में मछली और किनारे पर फूल बनें हुए हैं। पत्थर के निकट ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर गत चारों बुद्धों के उठने- बैठने तथा चलने फिरने के चिन्ह बने हुए हैं। इसी छाप वाले विहार के पास थोड़ी दूर पर, लगभग 30 फ़ीट ऊंचा एक पाषाण स्तम्भ है जिस पर कुछ बिगड़ा हुआ लेख उल्लिखित है। उसका मुख्य आशय यह है कि अशोक राजा ने धर्म पर दृढ़ विश्वास करके तीन बार जम्बू द्वीप को बुद्ध, धम्म और संघ की धार्मिक भेंट में अर्पण कर दिया और तीनों बार उसने धन रत्न देकर उसे बदल लिया और वह लेख उसी की स्मृति में लगवा दिया।(पेज नं 250)

बुद्ध देव के पदचिह्न

पास ही एक पहाड़ के दक्षिण- पश्चिम में 5 स्तूपों का एक समूह है।इसकी बनावट बहुत ऊंची है। आजकल यह सभी खंडहर हो रहे हैं। प्राचीन काल में जब अशोक ने 84 हजार स्तूप बनवा डाले तब भी पांच भाग शरीरावशेष बच गया था। उन्हीं पर यह उपरोक्त पांचों स्तूप बने हुए हैं। यह स्तूप तथागत भगवान् के शरीर सम्बन्धी पांचों आध्यात्मिक शक्तियों को प्रर्दशित करते हैं।(पेज नं 253) प्राचीन नगर के दक्षिण- पूर्व में एक संघाराम “कुक्कुटाराम” है जिसको अशोक राजा ने उस समय बनवाया था जब उसको पहले- पहल धर्म पर विश्वास हुआ था। संघाराम के पास “आमलक” नाम का एक बहुत बड़ा स्तूप बना हुआ है।(पेज नं 254) आमलक स्तूप के पश्चिमोत्तर में एक प्राचीन संघाराम के मध्य में एक स्तूप है।यह घण्टा बजाने वाला स्तूप कहा जाता है।(पेज नं 255) यहीं “नागार्जुन बोधिसत्व” की स्मृतियां हैं।वह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान थे।अश्वघोष बोधिसत्व भी अपने ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। नागार्जुन एक कवि भी था जिसने “सुहृदलेख” नामक एक ग्रंथ बनाया था।(पेज नं 258)

नगर के दक्षिण- पश्चिम कोण से निकल कर और लगभग 200 ली चलकर एक प्राचीन और खंडहर संघाराम मिलता है। इसके निकट ही एक स्तूप भी है। इसके दक्षिण- पश्चिम में लगभग 100 ली पर एक संघाराम “तिलंगक” नामक है। यहां कोई 1,000 संन्यासी निवास करते हैं,जो महायान सम्प्रदाय के अनुयायी हैं।(पेज नं 260) इसके मध्य वाले विहार में बुद्ध भगवान की एक मूर्ति बनाई गई है जो 30 फ़ीट ऊंची है। दाहिनी ओर वाले विहार में “अवलोकितेश्वर बोधिसत्व” बोधिसत्व की मूर्ति स्थापित है और बांयी ओर वाले विहार में “तारा” बोधिसत्व की मूर्ति बनी हुई है। यह सब मूर्तियां धातु की बनी हुई हैं।”तिलंगक” संघाराम के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 90 ली चलकर एक काले संगमरमर के पहाड़ के ऊपर एक स्तूप लगभग 10 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है। यही वह स्थान है जहां पर बुद्ध भगवान ने योगाश्रम में प्रवेश किया था।

पवित्र बोधि वृक्ष तथा बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर निर्मित करुणा स्तूप, पाटलिपुत्र (पटना)

पहाड़ की पूर्वी चोटी पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां से कुछ देर खड़े होकर तथागत भगवान् ने “मगध” देश को देखा था। पहाड़ के उत्तर- पश्चिम में लगभग 30 ली पर पहाड़ की ढाल में एक संघाराम बना हुआ है। यहां महायान सम्प्रदाय के कोई 50 संन्यासी निवास करते हैं।(पेज नं 261) यहीं पास में एक विजय का स्मारक संघाराम है। यह “गुणमति” नाम के विद्वान बौद्ध भिक्षु से एक ब्राम्हण के शास्त्रार्थ में पराजित होने पर पर बना था।(पेज नं 265) इस संघाराम के दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर लगभग 200 ली चलकर एक पहाड़ी के ऊपर “शिलाभद्र” नामक एक संघाराम बना हुआ है। इसके निकट ही एक नुकीली चोटी स्तूप के समान खड़ी है जिसमें बुद्ध भगवान का पुनीत शरीरावशेष रखा हुआ है।(पेज नं 266)

आओ नमन करें इन स्तूपों को,

इनमें वह भस्मी समायी हुई है,

जिसे कभी इंसान कहा जाता था।”


-डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.) झांसी

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Dr. RB Mourya:

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  • "आप का आशिर्वाद और स्नेह हमारे जीवन की हर मुश्किलों से लड़ने की ताकत प्रदान करती है "
    शत-शत नमन

  • मै परिवार सहित बौधगया गया था , रास्ते में पटना मिला लेकिन जानकारी के अभाव में , आपके द्वारा वर्णित स्थान को नहीं देख सका । आज मन असंतोष का भाव उठा । आपके द्वारा की गई समीक्षा सराहनीय है ।

    • बुद्ध देव की आप पर करुणा हो ताकि आप भविष्य में शीघ्र ही धम्म यात्रा पर जाएं। मैं दुवा करता हूं।

  • डॉ राज बहादुर मौर्य प्रारंभ से ही क्रियाशील और रचनात्मक सोच के व्यक्ति हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते हैं । हमेशा लिखते पढ़ते रहते हैं ।भगवान बुद्ध और उनके वंशजों पर उनका चिंतन मनन हमेशा जारी रहता है ।उनको हृदय की गहराइयों से साधुवाद।

  • अनवरत श्रम के लिए आप बधाई के पात्र है। आपकी समीक्षाएं प्रेरणा दायक है।