पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (भाग- 10)

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पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि दक्षिण भारत में पांड्य राज्य की राजधानी मदुरा थी और बंदरगाह कायल था। वेनिस का मशहूर यात्री मार्कोपोलो दो बार कायल आया था। एक बार सन् 1288 ई. में और दूसरी बार 1293 ई. में। उसने लिखा है कि यह बहुत बड़ा और भव्य शहर है। मार्कोपोलो ने यह भी लिखा है कि भारत के पूर्वी समुद्र तट पर महीन से महीन मलमलें बनती थीं जो मकड़ी के जाले की तरह मालूम होती थीं। उसने आगे लिखा है कि मद्रास के उत्तर में पूर्वी किनारे के तेलगू देश की रानी रूद्र मणि नामक एक महिला थी। इसने 40 वर्ष राज किया। मार्को ने इसकी बड़ी तारीफ़ किया है।

महमूद गजनवी के साथ अलबेरुनी भी भारत आया था। उसने सारे भारत की यात्रा की। संस्कृत सीखी और हिंदुओं की मुख्य पुस्तकें पढ़ी। भगवद्गीता इसे बहुत पसंद आई। अफगान शहाबुद्दीन के बाद, जिसने पृथ्वी राज चौहान को हराया था, दिल्ली में गुलाम वंशी बादशाह कहलाने वाले सुल्तानों का सिलसिला शुरू हुआ। उनमें सबसे पहला कुत्बुद्दीन था। यह शहाबुद्दीन का गुलाम था। अपनी कोशिशों से वह दिल्ली का सुल्तान बन गया। कुत्बुद्दीन ने ही कुतुबमीनार बनवानी शुरू किया जिसे उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा किया। यह दिल्ली में स्थित है।

इल्तुतमिश के जमाने में ही, यानी सन् 1211 ई. से 1236 ई. के बीच में, भारत की सरहद पर मंगोलों का आक्रमण हुआ। जिसका नेता चंगेज खान था। चंगेज खान सन् 1115 ई. में पैदा हुआ। वह मंगोलियन था। इसका असली नाम चिंड्- हिर- हान था। इसका पिता येसुगेई बगातुर था। बगातुर मंगोल अमीर सरदारों का लोकप्रिय नाम था, जिसका अर्थ है- वीर। 51 वर्ष की उम्र में चंगेज महान् ख़ान बना। सन् 1227 ई. में 72 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हुई। चंगेज मुसलमान नहीं था बल्कि वह शमां धर्म का अनुयाई था। जिसमें सदा रहने वाले नीले आसमान की उपासना थी।

चंगेज खान का साम्राज्य

चंगेज खान की मृत्यु के बाद उसका लड़का ओगोतई खान महान् हुआ। चंगेज को इतिहास में दानव या खुदा का कहर कहा जाता है। वह पढ़ा लिखा नहीं था। वह क्रूर, खूंखार तथा खाना बदोश था। वह शहरी जीवन से नफ़रत करता था, इसलिए उसने शहरों को जलाया और लूटा। वह तम्बुओं में रहता था। कालांतर में चीन और मंगोलिया के ज्यादातर मंगोल बौद्ध हो गये, मध्य एशिया के मुसलमान बन गये और रूस तथा हंगरी के कुछ मंगोल ईसाई हो गये। बाबर भी मंगोल या मुगल था जिसकी मां चंगेज खान के वंश की थी। वह तैमूर की पीढ़ी का था। सन् 1526 में दिल्ली के नजदीक पानीपत के मैदान में उसने भारत का साम्राज्य फतह कर लिया।

तैमूर एक तुर्क था। वह लंगड़ा था, इसीलिए तैमूरलंग कहलाता था। अपने बाप के बाद 1369 ई. में वह समरकंद का शासक बना। वह मुसलमान था लेकिन वहशी था। तैमूर दिल्ली में 15 दिन रहा और उसने इस बड़े शहर को कसाई खाना बना दिया। बाद में वह कश्मीर को लूटता हुआ समरकंद वापस चला गया। सन् 1405 में उसकी मृत्यु हो गई। सुल्तानों में रजिया नाम की एक औरत भी हुई है। यह इल्तुतमिश की बेटी थी। यह बहादुर और काबिल औरत थी।

रजिया सुल्तान & कुतुबमीनार

गुलाम बादशाहों का सिलसिला 1290 ई. में खत्म हो गया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी आया, जिसने अपने चचा को मारकर गद्दी हथियायी। इसने 20 से 30 हजार मंगोलों का क़त्ल करवाया। वह मध्य एशिया से आया था। अलाउद्दीन ने एक हिन्दू महिला से शादी की और उसके पुत्र ने भी ऐसा ही किया। इसने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया था। अलाउद्दीन का सेनापति मलिक काफूर हिन्दू से मुसलमान हुआ था।

दिल्ली का एक अन्य सुल्तान मुहम्मद -बिन- तुगलक, अरबी- फारसी का विद्वान था। कुछ लोगों ने गुमनाम पर्चों में उसकी नीति की आलोचना करने की गुस्ताखी की थी। इससे क्रोधित होकर उसने हुक्म दिया कि राजधानी दिल्ली से बदलकर दक्षिण के देवगिरी ले जायी जाए। इस जगह का नाम उसने दौलताबाद रखा। दिल्ली से दौलताबाद का रास्ता 40 दिन का था। अफ्रीका का मूर यात्री इब्नबतूता इसी समय भारत आया था। इसने 25 वर्ष तक यानी 1351 ई. तक सुल्तान बन कर हुकूमत किया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि चीनी सम्राट कुबलई खां के दरबार में वेनिस के तीन यात्री १- निकोलो, २- मैफियो, और निकोलो का पुत्र ३- मार्को पोलो आए थे। यह 13 वीं शताब्दी की घटना है। तीनों यात्री वेनिस से चलकर एशिया की पूरी लम्बाई तय की। वे फिलीस्तीन होकर आर्मीनिया आए और वहाँ से इराक़ और फिर ईरान की खाड़ी पहुंचे। ईरान को पार कर वह बलख आए। वहां से पहाड़ों को लांघते हुए काशगर से खुतन और खुतन से लोपनोर झील, वहां से फिर रेगिस्तान को लांघते हुए, चीन के खेतों से होते हुए पेकिंग पहुंचे। तीनो पोलों को वेनिस से पेकिंग पहुँचते – पहुँचते साढ़े तीन वर्ष लग गए। 1295 ई. में यह तीनों यात्री 24 साल बाद वापस वेनिस पहुँचे । मार्को पोलो ने अपनी यात्राओं का हाल जेल में लिखा था क्योंकि बाद में उसे बंदी बना लिया गया था।

लोपनोर झील को चलती फिरती झील कहा जाता है। इसमें तारिन नदी आकर गिरती है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी, डा. संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर-प्रदेश), भारत

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Dr. Raj Bahadur Mourya:

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