यूनान के प्रसिद्ध व्यक्तित्व (पुस्तक का नाम- विश्व इतिहास की झलक (भाग- एक), लेखक- जवाहरलाल नेहरू)
एस्किल एक प्रसिद्ध नाटककार था। इसका जन्म यूनान में ईसा से 525 साल पहले हुआ था। मैरेथन, सैलेमिस और लिटिपो की लड़ाई में इसने हिस्सा लिया था। अपने दुखान्त नाटकों पर दो बार इसे सर्वोत्तम पुरस्कार भी मिला था। कहा जाता है कि इसने कुल 70 दुखान्त नाटक लिखे जिनमें 7 अब भी मौजूद हैं। करीब 70 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हुई। इसी प्रकार यूरेपिदे भी यूनान का विख्यात दुखान्त नाटककार और कवि था। इसका जन्म ईसा से 480 वर्ष पूर्व हुआ था। यह नाटकों में आदर्श के बजाय वास्तविकता पर जोर देता था। इसे अपने नाटकों पर इनाम मिला था। इसकी कविता बहुत अच्छी है। यह उस समय के धर्म का मज़ाक उड़ाया करता था।
एरिस्तोफेन भी एथेंस का प्रसिद्ध हंसोड़ कवि और नाटक कार था। इसका समय करीब 445 से 380 ईसा पूर्व का है। इसके सुखान्त नाटकों से उस जमाने की बहुत सी बातों का पता चलता है। इसके शाब्दिक व्यंग्य चित्रों से उस समय के प्रधान व्यक्तियों का व्यक्तित्व आंखों के सामने खिंच जाता है। मैनेंदर भी यूनान के एथेंस नगर राज्य का प्रसिद्ध सुखांत नाटककार और कवि था। ईसा पूर्व 342 में इसका जन्म हुआ और 291 ईसा पूर्व में पाइरियस के बंदरगाह के पास के समुद्र में तैरता हुआ डूब गया।
पिंदार, यूनान के गीत काव्य का सर्वोत्तम कवि था। करीब ईसा पूर्व 552 में इसका जन्म हुआ था। यूनानी राष्ट्रों और राजाओं में इसकी कविता की बड़ी मांग रहती थी। इसकी इपिस्सिया नामक कविता ही बाकी बची है जो चार जिल्दों में है। इसी प्रकार सैफो भी यूनान की प्रसिद्ध कवियत्री थी। यह ईसा पूर्व 580 में पैदा हुई थी। कविता, फैशन और प्रेम की यह अपने समय की रानी थी।
सुकरात, जिसे सॉक्रेटीज भी कहते हैं, यूनान के एथेंस नगर राज्य का मशहूर वेदांती था। इसका जन्म ईसा पूर्व 479 में हुआ था। ईसा पूर्व 399 में उस पर नौजवानों को बिगाड़ने और दूसरे देवताओं में विश्वास करने का जुर्म लगाया गया। लेकिन यह तो एक बहाना था, असली कारण तो राजनीतिक था। उसे मौत की सजा दी गई और ज़हर का प्याला उसके पास भेजा गया जिसे वह खुशी-खुशी पी गया। आख़िरी दम तक वह अफलातून और अपने दूसरे शिष्यों से अमरता की चर्चा करता रहा। वह बहुत विद्वान था।
अरस्तू जिसे एरिस्टोटल भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध यूनानी तत्व वेत्ता था। इसका जन्म ईसा से 384 साल पहले हुआ था। यह प्रसिद्ध दार्शनिक अफलातून का शिष्य था और सिकन्दर महान का गुरु था। इसमें असाधारण प्रतिभा और विद्वत्ता थी और पश्चिमी राजनीति, दर्शन और तर्क के विद्यार्थियों को उसके ग्रन्थ अभी भी लाज़मी तौर पर पढ़ने पड़ते हैं। उसका पॉलिटिक्स नामक ग्रंथ बड़ा प्रसिद्ध है।
अलकसांदर, जिसको सिकन्दर महान भी बताया गया है, यूनान के मकदूनिया का रहने वाला था।सिकन्दर का पिता फिलिप मकदूनिया का बादशाह था। जब सिकन्दर बादशाह बना तब उसकी उम्र केवल 20 वर्ष की थी। मिस्र का शहर इस्कंदरिया उसी के नाम पर है। थीब्स, नाम का एक यूनानी शहर था जिसे सिकन्दर ने जला दिया था। विश्व विजय के इरादे से सिकन्दर यूनान से ईरान, हिरात, काबुल, समरकंद तथा ख़ैबर दर्रे को पार कर रावलपिंडी से कुछ दूर उत्तर में तक्षशिला होकर भारत में आया। यह ईसा पूर्व 326 की बात है। पुरु का यूनानी नाम पोरस है जिसे सिकन्दर के आक्रमण का सामना करना पड़ा था।
तक्षशिला, जो अब पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित है, भारत का एक अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध नगर था। रामायण के जमाने में यह गन्धर्वों की राजधानी थी और महाभारत के अनुसार यहीं पर जनमेजय ने अपना सर्प यज्ञ किया था। पहली सदी में यह नगर अमंद्र नाम से मशहूर था। इस शहर के खंडहर छः वर्ग मील में फैले हुए थे। उनमें बहुत से बौद्ध मंदिर और स्तूप देखने में आते हैं। वहां का विश्वविद्यालय प्राचीन इतिहास में सबसे अधिक मशहूर रहा है। उसमें शिक्षा पाने के लिए मध्य एशिया और चीन तक से विद्यार्थी आया करते थे। अब यह पश्चिमी पाकिस्तान में है।
अर्थशास्त्र के लेखक आचार्य विष्णु गुप्त कौटल्य, व्याकरण की अष्टाध्याई के लेखक महर्षि पाणिनि, नक्षत्र विज्ञान के विद्वान आचार्य वाराहमिहिर, आयुर्वेद के जनक आचार्य चरक तथा सुश्रुत तक्षशिला विश्वविद्यालय की उपज थे।
सिकन्दर मात्र 33 साल की उम्र में ईसा से 232 वर्ष पूर्व बाबुल पहुंच कर मर गया। ईरान पर धावे के लिए रवाना होने के बाद वह अपनी मातृभूमि मखदूनिया को फिर नहीं देख पाया। शाहनामा नामक पुस्तक में ईरान के बादशाहों का सिलसिले वार इतिहास है। यह फारसी भाषा की एक पुरानी किताब है जो फिरदौसी नामक कवि ने लिखा है। एशिया कोचक आजकल तुर्की का एशियाई भाग है। कन्याकुमारी को पश्चिमी देश केप कोमोरिन कहते हैं।
तालमी, सिकन्दर का एक सेनापति था, जो उसकी मृत्यु के पश्चात ईसा पूर्व 305 में मिस्र का सम्राट बन बैठा। इसी ने तालमी राजवंश चलाया जो ईसा पूर्व 30 तक चलता रहा। इस सम्राट का काल ईसा पूर्व 383 से 367 तक है। इसने उत्तरी मिस्र में टालेमाय नामक एक प्रसिद्ध और शानदार शहर बसाया और एक पुस्तकालय तथा अजायबघर की योजना बनाई। फीदियस, यूनान का एक मशहूर शिल्पकार था। इसका समय ईसा से 500 वर्ष पहले बताया जाता है। ओलम्पियस पहाड़ पर इसने यूनानी देवता जुपिटर की एक मूर्ति बनायी थी। यह मूर्ति सोने और हाथी दांत की थी। इस मूर्ति की गिनती दुनिया के सात आश्चर्यजनक चीजों में की जाती है।
एडगर एलन पो ने लिखा है कि मनुष्य खुद देवदूतों के सामने हार नहीं मानता और न ही मौत के सामने पूरी तरह शिर झुकाता है, अगर वह हार मानता है तो अपनी इच्छा शक्ति की कमजोरी की वजह से ही मानता है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिछले भाग– विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा भाग-१
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revew is very knowledgeful and useble for students of history
Thank you sir
बहुत सुन्दर व्याख्या..बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद आपको सर
बहुत अदभुत दृष्टिकोण से आपने सारगर्भित समीक्षा की है। आपको बहुत साधुवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब
बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब, निरंतर उत्साह बढ़ाने के लिए