पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक भाग एक में पेज नं पर लिखा है कि ‘‘अरब एक रेगिस्तानी मुल्क है। यहाँ के दो प्राचीन शहर थे- मक्का और यथरीब। यहाँ किसी को गधे की उपमा देना तारीफ़ समझा जाता था, गाली नहीं। अरब में जियारत के लिए मक्का जाते हैं। वहां पर भारी काले पत्थर (संगे असवद) की पूजा करते हैं जिसका नाम काबा है।
ईसवी सन् 570 में मक्का में जन्मे मोहम्मद साहब ने एक नया मज़हब चलाया जो इस्लाम था। उन्हें लोग ‘अल- अमीन, या अमानतदार कहा करते थे। वह कहा करते थे कि खुदा सिर्फ एक है और वह, मोहम्मद उसका रसूल है। मक्का में मूर्ति पूजा के विरोध के कारण उनको भागकर यथरीब में शरण लेनी पड़ी। कूच की इस भाषा को अरबी में ‘हिजरत, कहते हैं। मुसलमानी सन् इसी वक्त से यानी 622 ई. से शुरू होता है।
हिजरी सन् चांद्र है। यानी इसमें चन्द्रमा के अनुसार तारीखों का हिसाब लगाया जाता है। इसलिए सौर वर्ष से, जिसका आजकल आमतौर पर प्रचार है, हिजरी साल 5-6 दिन कम का होता है। हिजरी सन् के महीने हर साल एक ही मौसम में नहीं पड़ते। हिलाल, मुसलमानों का धर्म चिन्ह है। इस्लाम के झंडे में मौजूद चांद, दूज का चांद है। शरीयत मुसलमानों का धर्म शास्त्र है। ज़मीर का अर्थ धार्मिक विश्वास होता है।
इस्लाम हिजरत से, यानी 622 से शुरू हुआ। यथरीब शहर ने मोहम्मद का स्वागत किया और उनके आने की ताजीम में इस शहर का नाम बदलकर ‘मदीनत-उल-नबी, यानी नबी का शहर कर दिया गया। आजकल संक्षेप में इसे सिर्फ मदीना कहते हैं। मदीना के जिन लोगों ने मोहम्मद की मदद की थी वे अंसार कहलाये।
हिजरत के सात वर्ष के अंदर ही मोहम्मद मक्का के स्वामी बनकर लौटे। उन्होंने मदीना से ही दुनिया के बादशाहों और शासकों के पास परवाना भेजा कि वे एक अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लायें। मोहम्मद साहब का इंतकाल हिजरत के 10 साल बाद 632 ई. में हुआ। उन्होंने अरबों के आपस में लड़ने वाले कई कबीलों को संगठित करके एक राष्ट्र बनाया और उन्हें एक उद्देश्य के लिए प्रेरित किया।
मोहम्मद साहब के बाद इनके खानदान में एक व्यक्ति अबू बकर खलीफा हुए। दो साल बाद उनकी मौत हो गई और उमर उनकी जगह खलीफा बनाए गए। यह 10 साल तक खलीफा रहे। इस काल में उन्होंने यरुशलम पर कब्जा कर लिया। सीरिया, इराक़ और ईरान भी अरबी साम्राज्य के हिस्से बन गए। मोरक्को और अफ्रीका से समुद्र के तंग मुहाने को पार कर अरब लोग स्पेन और यूरोप में दाखिल हुए। इस तंग जल डमरू मध्य को पुराने यूनानी लोग ‘हरकुल के स्तम्भ, कहते थे। अरब सेनापति ने समुद्र को पार कर जिब्राल्टर में लंगर डाला था। यह नाम ही उस सेना पति की याद दिलाता है। उसका नाम तारिक था और जिब्राल्टर का असली नाम ‘जबल- उल- तारिक़, यानी तारिक़ की चट्टान है।
मोहम्मद साहब के इंतकाल के 100 वर्ष के अंदर ही अरबों का साम्राज्य दक्षिण फ्रांस और स्पेन से लेकर उत्तर अफ्रीका को पार कर स्वेज तक और आगे बढ़कर अरब, ईरान और मध्य एशिया को पार करके मंगोलिया की सरहद तक फैल गया था। सिंध को छोड़कर भारत इस साम्राज्य से बाहर था। फ्रांस के नेता चार्ल्स- मार्ते ने 732 ई. में तूर की लड़ाई में अरबों को हरा दिया। इस हार ने यूरोप को अरबों से बचा लिया।
लोग अरबों को सरासीन कहते थे। शायद यह शब्द सहरा नसीन से बना हो। जिसका अर्थ रेगिस्तान के बासिंदे होता है। कालान्तर में इस्लाम दो हिस्सों में बंट गया तथा दो सम्प्रदाय बन गए। इन्हें सुन्नी और शिया नाम से जाना जाता है। अमीरूल मोमनीन का अर्थ- ईमान वालों का सरदार होता है। ईरान और तुर्की में बाग बगीचों में बैठने के छोटे शामियाने को कुश्क कहा जाता है। हरम या अन्त: पुर, घर के भीतर स्त्रियों को परदे में रखने की जगह को कहा जाता है।
मोहम्मद साहब की बेटी फातिमा के पति अली कुछ दिनों के लिए खलीफा हुए। बाद में उनका कत्ल कर दिया गया और कुछ दिनों बाद उनके बेटे हुसैन सारे कुटुम्ब के साथ कर्बला के मैदान में मार डाले गए। कर्बला की इस दुखान्त घटना की याद में मुसलमान और ख़ासकर शिया लोग हर साल मुहर्रम के महीने में मातम मनाया करते हैं।
दूरबीन का आविष्कार अरबों ने सर्वप्रथम किया था। मोजा और जुर्राब पहनने की आदत सबसे पहले बगदाद के अमीरों में शुरू हुई। इन्हें मोजा कहा जाता था। इसी तरह फ्रांसीसी शब्द शेमीज यानी कुर्ता कमीज से निकला है। सन् 1258 ई. में एशिया के उस पार मंगोलिया में रहने वाले मुगल चंगेज खान ने बगदाद को नष्ट कर दिया था। यहाँ सिर्फ मिट्टी और राख का ढेर बचा था। लगभग 20 लाख लोग मारे गए थे। इस बात का जिक्र भी लेखक ने अपनी पुस्तक में किया है।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर प्रदेश) भारत