पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि विश्व में प्राचीन सभ्यता के दो पालने थे- भारत और चीन। उन्होंने लिखा है कि रचना ही जीवन का चिन्ह है, दोहराना या नकल करना नहीं। भारत में मोहनजोदड़ो की सभ्यता का काल आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व का है। सर जॉन मार्शल जिनकी देख रेख में मोहनजोदड़ो की खुदाई हुई थी, उन्होंने लिखा है कि एक बात जो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा दोनों जगहों में साफ़ तौर पर और बिना किसी भ्रम के दिखाई देती है, यह है कि जो सभ्यता इन दो स्थानों पर अभी तक प्रकट हुई है, वह नवजात सभ्यता नहीं है। बल्कि युगों पुरानी और भारत की जमीन पर रूढ़ हुई सभ्यता है। जिसके पीछे लाखों वर्षों का मानव प्रयत्न है।
सर जॉन मार्शल ने लिखा है कि ईरान, इराक़ और मिस्र के साथ साथ भारत की गिनती भी सभ्यता के उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में की जानी चाहिए, जहां सभ्यता की प्रक्रिया शुरू हुई। सिन्धु घाटी की कला और उसके धार्मिक दृष्टिकोण में अपना एक निरालापन है। हड़प्पा की दो छोटी मानव मूर्तियों में जिनके चित्र, प्लेट नम्बर 10 और 11 में दिए गए हैं, मूर्ति गढ़ने की कला जिस कोमलता की पराकाष्ठा को पहुंची है, उसका जोड़ यूनान के पौराणिक काल से पहले की कृतियों में मिलना सम्भव नहीं है।
शायद पाषाण युग के बहुत पुराने जमाने में उत्तरी अमेरिका और एशिया के बीच में खुश्की का रास्ता था। यह अलास्का होकर एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप को जाता था। बाद में आने- जाने का यह रास्ता कट गया। अमेरिका में सभ्यता के तीन केन्द्र थे- मैक्सिको, मध्य अमेरिका और पेरू। ईसा से लगभग 1000 साल पहले मध्य अमेरिका के तीन मुख्य राज्यों ने मिलकर एक संघ बनाया था, जिसे अब मयपान संघ कहते हैं। यह लगभग 200 वर्षों तक बना रहा। मध्य अमेरिका में मैक्सिको से आए हुए लोगों को अजटेक कहा जाता था।
इनका, दक्षिण अमेरिका के पेरू नामक देश के प्राचीन शासकों की उपाधि थी। इनका एक प्रकार से दैवी पुरुष माने जाते थे। पेरू में इनकाओं ने लगभग 300 वर्षों तक राज किया। अमेरिका में मय सभ्यता की तीन किताबें अभी तक शेष हैं जिन्हें अब तक पढ़ा नहीं जा सका। मय सभ्यता क़रीब 1500 वर्षों तक कायम रही।
मध्य एशिया के घुमक्कड़ों तथा लुटेरे कबीलों से अपनी रक्षा के लिए चीन ने एक बड़ी दीवार बनायी थी। चीन में दसवीं सदी में ही इंकम टैक्स लगाया गया था। जापान का नाम दाई निप्पोन चीन से ही आया है। मठवासी सम्राटों की अवधारणा जापान में थी क्योंकि वहां सम्राट भिक्षु बन जाते थे। जापान में फूजीवारा नामक घराने ने 200 वर्षों तक शासन किया। जापान में सरकारी टैक्स जमा करने वालों को दाइम्यो कहते थे, जिसका अर्थ- बड़ा नाम है। दाइम्यो, में दो मुख्य घराने थे। एक तायरा और दूसरा मिनामोतो।
रोमन कैथोलिक जगत में कार्डिनल लोग सबसे ऊँचे पादरी होते थे। इनका एक मंडल बनाया गया, जिसे पवित्र मंडल कहते थे। यही मंडल नये पोप को चुनता था। यह तरीका सन् 1059 में जारी किया गया था और कुछ फेरबदल के साथ आज़ तक चला आ रहा है। आजकल भी किसी पोप की मृत्यु हो जाने पर यही कार्डिनल बन्द कमरे में बैठते हैं। जब तक नये पोप का चुनाव नहीं हो जाता उस बैठक से न कोई बाहर जा सकता है और न अंदर आ सकता है। जैसे ही पोप का चुनाव हो जाता है, सफेद धुवाँ उड़ाया जाता है ताकि बाहर इंतजार करती भीड़ को सूचना मिल जाए।
ईसाई संघ के किसी कानून या परिपाटी को भंग करने की इजाजत को डिस्पेंसेशन कहा जाता था।इंडलजेंस की बिक्री वह प्रथा थी जो मनुष्यों को सीधे स्वर्ग पहुँचाती थी। इसे पोप जारी करते थे। इसी प्रकार परगेटरी या प्रायश्चित की जगह, स्वर्ग और नर्क के बीच की कोई जगह है जहाँ मनुष्य को इस दुनिया में किये हुए पापों के लिए यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। इसके बाद कहीं वह आत्मा स्वर्ग को जाती है। पोप रूपए लेकर लोगों को यह प्रतिज्ञा पत्र दे देता था कि वे परगेटरी से बचकर सीधे स्वर्ग पहुंच जायेंगे।
फ्रेडरिक बारबोसा कहता था कि जनता का यह काम नहीं है कि वह राजा को कानून बतलावे, उसका काम तो राजा का हुक्म मानना है। फ्रेडरिक बारबोसा का पोता फ्रेडरिक द्वितीय था जिसने जर्मनी पर 1212 से 1250 ई. तक राज किया।इसकी मृत्यु के बाद यहां पर 23 साल तक कोई सम्राट ही नहीं चुना गया। सन् 1273 में हैप्सबर्ग का रुदोल्फ सम्राट चुना गया। यूरोप का पोप ग्रेगरी सप्तम ( पूर्व नाम- हिल्दे ब्रांदे) बहुत शक्तिशाली था। यही वह पोप है जिसके सामने यूरोप के सम्राट काँपते थे।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी – डॉ. संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर प्रदेश), भारत