ह्वेनसांग की भारत यात्रा- वेणुवन…

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वेणुवन

गिरिव्रज पहाड़ी नगर के उत्तरी फाटक से एक ली चलने पर “करण्ड वेणुवन” है। यहां पर एक विहार की नींव और टूटी-फूटी दीवारें शेष हैं। इसका द्वार पूर्व की ओर है। तथागत भगवान् जब इस संसार में थे, बहुधा इस स्थान पर निवास करके मनुष्यों को त्राण देने के लिए, शुभ मार्ग प्रर्दशन करने के लिए और उनको शिष्य करके सुगति देने के लिए धर्मोपदेश किया करते थे।

इस स्थान पर तथागत भगवान् की प्रतिमा भी उनके डील के बराबर लगी हुई है। इस वेणुवन का निर्माण तथा दान एक “करण्ड” नामक धनी गृहस्थ ने किया था।(पेज नं 309) “करण्ड वेणुवन” के पूर्व में एक स्तूप राजा अजातशत्रु का बनवाया हुआ है। इसमें तथागत भगवान् का शरीरावशेष सुरक्षित रखा हुआ है। कालांतर में अशोक राजा ने इस स्तूप को तोड़कर शरीरांश निकाल लिया और उसके स्थान पर नवीन भव्य स्तूप बनवा दिया। अजातशत्रु के स्तूप के पास एक और स्तूप है जिसमें “आनन्द” का शरीरावशेष सुरक्षित रखा हुआ है। यहीं निकट ही वह स्थान है जहां पर बुद्ध देव आकर ठहरे थे। यहां से थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर सारिपुत्र और मुद्गलपुत्र ने प्रावृत काल में निवास किया था।

अजातशत्रु स्तूप के अवशेष, राजगीर/राजगृह.

(पेज नं 310)वेणुवन के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 5 या 6 ली पर दक्षिणी पहाड़ के उत्तर में एक और विशाल वेणुवन है। भिक्षु संघ को मिला यह प्रथम दान था। यहीं तथागत भगवान् ने पहला वर्षा वास व्यतीत किया था। यहीं वेणुवन विहार में 7 वर्ष बाद चन्ना और कालुदयी बुद्ध देव से मिले थे। यहीं आम्रपाली भी अपने पुत्र जीवक के साथ प्रथम बार बुद्ध भगवान से मिली थी। (वेणुवन विहार का क्षेत्रफल 40 एकड़ था। यहां बांस की नाना प्रजातियों के वृक्ष लगे थे जो मगध राज्य में जगह-जगह से लाकर यहां लगाए गए थे। यह विहार मगध की राजधानी राजगृह से इतनी सी दूर था कि यहां 30 मिनट में पहुंचा जा सकता था। राजा बिम्बिसार ने बुद्ध देव को अपने राजमहल में सम्मान सहित भोजन दान कर 1250 भिक्षुओं तथा 6 हजार आमंत्रित अतिथियों के समक्ष तथागत भगवान् को “वेणुवन” का दान किया था।)

वेणुवन, राजगीर/राजगृह.

इसके मध्य में एक वृहत् पाषाण भवन है जहां पर तथागत भगवान् के निर्वाण के पश्चात् 999 महात्मा अरहतों को महाकाश्यप ने इकट्ठा करके “त्रिपिटक” का उद्धार किया था। इसके सामने एक राजा अजातशत्रु के द्वारा बनवाए गए भवन का खंडहर है,जिसे उन्होंने अरहतों के निवास के लिए बनवाया था। यहीं महा काश्यप को तथागत भगवान् के महापरि निर्वाण का आभास हुआ था। अपने दिव्य बोधि नेत्रों से देख महाकाश्यप कुशीनगर के लिए चल पड़े थे।(पेज नं 310) अपनी सूचना को सत्यापित करने के बाद महाकाश्यप ने अपने शिष्यों से कहा “ज्ञान के सूर्य की किरणें शान्त हो गई, संसार इस समय अंधकार मय हो गया। हमारा योग्यतम मार्ग प्रदर्शक हमको छोड़कर चल दिया।” यहीं प्रसिद्ध सप्तपर्णी गुफा है जिसमें बौद्धों की प्रथम सभा हुई थी। दीपवंश ग्रंथ में लिखा है कि मगध के गिरिव्रज नगर की सप्तपर्णी गुफा में 7 मास तक प्रथम सभा हुई थी।

वेणुवन में भगवान बुद्ध की प्रतिमा।

इस प्रथम बौद्ध संगीति में उन्हीं अर्हत भिक्षुओं को सम्मिलित किया गया था जिन्होंने त्रिविद्या प्राप्त कर लिया था। जिन्होंने धर्म के पालन करने में कभी भूल नहीं किया था। जिनकी विवेक शक्ति प्रबल थी। महा काश्यप ने अर्हत पद न प्राप्त करने के कारण आनन्द को भी सभा में प्रवेश करने से मना कर दिया था। पश्चात् अर्हत पद प्राप्त करने पर आनंद को शामिल किया गया था। इस संगीति में “सूत्रपिटक”का संग्रह आनंद ने किया।उपाली ने “विनय पिटक” तथा महा काश्यप ने “अभिधम्मपिटक”का संग्रह किया।(पेज नं 312) जहां पर महाकाश्यप ने सभा की थी उसके पश्चिमोत्तर में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर आनंद सभा में बैठने से वर्जित किए जाने पर चला गया था और एकांत में बैठकर अर्हत के पद को पहुंचा था। फिर यहां से जाकर सभा में सम्मिलित हुआ था। यहां से थोड़ी दूर जाकर पश्चिम दिशा में एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इस स्थान पर एक बड़ी भारी सभा हुई थी जिसमें कोई 1 लाख भिक्षु एकत्र हुए थे। वेणुवन विहार के उत्तर में लगभग 200 पग पर “करण्ड झील” है। इसके पश्चिमोत्तर 2 या 3 ली की दूरी पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है जो लगभग 60 फ़ीट ऊंचा है। इसके पास एक पाषाण स्तम्भ लगा हुआ है जिस पर स्तूप के बनाने का विवरण अंकित है। यह कोई 50 फ़ीट ऊंचा है और इसके सिर पर एक हाथी की मूर्ति स्थापित है।

अशोक राजा का बनवाया हुआ स्तूप|

(पेज नं 313)पाषाण स्तम्भ के पूर्वोत्तर में “राजगृह” नगर है। अशोक राजा के समय तक यह मगध की राजधानी थी। अशोक ने इसका दान ब्राम्हणो को दे दिया था और पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। राजगृह की राजकीय सीमा के दक्षिण-पश्चिम कोण पर 2 छोटे-छोटे संघाराम हैं। इस स्थान पर बुद्ध देव ने धर्मोपदेश किया था। इसके अतिरिक्त पश्चिमोत्तर दिशा एक स्तूप है। इस स्थान पर पहले एक ग्राम था जिसमें ज्योतिष के विद्वान “गृहपति” का जन्म हुआ था। नगर के दक्षिणी फाटक के बाहरी ग्राम में सड़क के बांई ओर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने राहुल को उपदेश देकर शिष्य किया था।(पेज नं 315)


– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी

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Dr. RB Mourya:

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