ह्वेनसांग की भारत यात्रा- वैशाली नगरी…

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वैशाली बुद्ध देव की प्रिय नगरी थी।वज्जिका यहां की मुख्य भाषा थी। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र क़ायम किया गया था। तथागत भगवान् इस धरती पर तीन बार आये थे। यह उनकी कर्मभूमि थी।

भगवान बुद्ध के समय में 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्व पूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छिवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गई थी। लगभग छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में यहां का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा था। प्राचीन वैशाली नगर अति समृद्ध एवं सुरक्षित था। मौर्य और गुप्त राजवंश में जब पाटलिपुत्र राजधानी के रूप में विकसित हुआ,तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार और उद्योग का प्रमुख केन्द्र था।

वैशाली में भगवान बुद्ध की प्रतिमा.

ह्वेनसांग ने वैशाली नगर का विवरण करते हुए लिखा है कि मुख्य नगर के संघाराम के उत्तर- पूर्व में 3 या 4 ली की दूरी पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर विमल कीर्ति का मकान था।विमल कीर्ति वैशाली का निवासी और बौद्ध धर्म को मानने वाला था। निकट ही एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर रत्नाकर का निवास था। इसके निकट एक और स्तूप है जहां आम्रकन्या (आम्रपाली)का निवास स्थान था। इसी स्थान पर बुद्ध देव की चाची और अन्य भिक्षुणियों ने निर्वाण प्राप्त किया था।

ह्वेनसांग ने वैशाली नगर का विवरण करते हुए लिखा है कि मुख्य नगर के संघाराम के उत्तर- पूर्व में 3 या 4 ली की दूरी पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर विमल कीर्ति का मकान था।विमल कीर्ति वैशाली का निवासी और बौद्ध धर्म को मानने वाला था। निकट ही एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर रत्नाकर का निवास था। इसके निकट एक और स्तूप है जहां आम्रकन्या (आम्रपाली)का निवास स्थान था। इसी स्थान पर बुद्ध देव की चाची और अन्य भिक्षुणियों ने निर्वाण प्राप्त किया था।

आनंद स्तूप, वैशाली

संघाराम के उत्तर में 3 या 4 ली की दूरी पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् जब निर्वाण प्राप्त करने के लिए कुशीनगर जा रहे थे,तब आकर ठहरे हुए थे। यहां से थोड़ी दूर पर उत्तर- पश्चिम दिशा में एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां से बुद्ध देव ने अंतिम बार वैशाली नगरी का अवलोकन किया था। इसके दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक विहार बना हुआ है जिसके सामने एक स्तूप है। यहां कभी आम्रकन्या (आम्रपाली) का बाग था जिसको उसने बुद्ध देव को अर्पण कर दिया था। इस बाग के निकट ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां से तथागत भगवान् ने अपनी मृत्यु का समाचार प्रकट किया था।(पेज नं 231)

उसी स्थान से थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर हजार पुत्रों ने अपने माता-पिता का दर्शन किया था। इस स्थान के निकट ही एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने टहलते हुए भूमि में चिन्ह बनाया था। जिस स्थान पर उन्होंने अपना जातक वर्णन किया था वहां पर एक स्तूप बना हुआ है। इस स्थान के निकट एक स्तूप उस स्थान पर है जहां पर आनन्द का आधा शरीर समाधिस्थ है। इसके निकट ही और भी बहुत से स्तूप हैं जिनकी ठीक संख्या निश्चित नहीं हो पाई।

वैशाली नगर के भीतरी भाग में तथा उसके बाहर चारों ओर इतने अधिक पुनीत स्थान हैं कि उनकी गिनती करना कठिन है। परंतु अब सबकी हालत ख़राब है। मुख्य नगर से पश्चिमोत्तर 50 या 60 ली पर एक स्तूप है। यह विशाल स्तूप उस स्थान पर है जहां पर लिच्छिवी लोग बुद्ध देव से अलग हुए थे। वैशाली नगर से उत्तर- पश्चिम 200 ली की दूरी पर एक प्राचीन नगर है जो आजकल उजाड़ है। इस नगर के भीतर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर किसी अत्यंत प्राचीन समय में बुद्ध भगवान निवास करते थे।(पेज नं 235)

शांति स्तूप, वैशाली

नगर से दक्षिण- पूर्व 14 या 15 ली चलकर एक बड़ा स्तूप है। यह वह स्थान है जहां पर 700 भिक्षुओं की सभा हुई थी।(पेज नं 236) यह द्वितीय बौद्ध संगीति थी। इस स्थान से 80 या 90 ली दक्षिण दिशा में जाकर श्वेतपुर नामक संघाराम है। इस दोमंजिला इमारत के गुंबद गगन चुंबी हैं। यहां पर बुद्ध देव के पद चिन्ह भी हैं। इन पद चिन्हों के निकट एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। यह वह स्थान है जहां पर बुद्ध देव ने मगध देश को जाते हुए उत्तर मुख खड़े होकर वैशाली नगरी को नज़र भर कर देखा था। सड़क पर जहां से खड़े होकर उन्होंने देखा था, इस दृश्य के चिन्ह हो गये थे। श्वेतपुर संघाराम के दक्षिण- पूर्व में लगभग 30 ली की दूरी पर गंगा के दोनों किनारों पर एक- एक स्तूप है। यह वह स्थान है जहां आनंद का शरीर दो राज्यों में विभक्त हुआ था।(पेज नं 237)

इस स्थान के पूर्वोत्तर लगभग 100 ली जाने पर एक प्राचीन नगर है जिसके पश्चिम की ओर अशोक राजा का बनवाया हुआ लगभग 100 फ़ीट ऊंचा एक स्तूप है। इस स्थान पर बुद्ध देव ने 6 मास तक धर्मोंपदेश किया था। इसके उत्तर में 140 या 150 क़दम पर एक छोटा स्तूप है। यहां पर बुद्ध देव ने शिष्य लोगों के लिए कुछ नियमों का संकलन कराया था।(पेज नं 240) इसके पश्चिम में थोड़ी दूर पर एक स्तूप है जिसमें तथागत भगवान् के नख और बाल रखे हुए हैं।

प्राचीन काल में बुद्ध भगवान इस स्थान पर निवास करते थे।(पेज नं 241) यहां से आगे निकल कर ह्वेनसांग 1400 या 1500 ली चलकर “निपोलो” अर्थात् नेपाल देश में आया। उस समय यहां 2,000 संन्यासी रहते थे जो हीनयान और महायान दोनों सम्प्रदायों में से थे। राजा जाति का क्षत्रिय तथा लिच्छिवी वंश का था।


– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी

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Dr. RB Mourya:

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