ह्वेनसांग की भारत यात्रा- हिरण्य पर्वत तथा चम्पा नगरी…

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हिरण्य पर्वत तथा चम्पा

उत्तरार्द्ध मगध देश से 200 ली पूर्व दिशा में चलकर ह्वेनसांग अपनी यात्रा के अगले चरण में “इलाना पोफाटो” अर्थात् “हिरण्य पर्वत” पर आया। इसकी पहचान “मागिर” पहाड़ी के रूप में की गई है।इसे “कष्टहरण” पर्वत भी कहते हैं। यह पहाड़ी “मुद्गलगिरि”भी कही जाती है। यह राज्य गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा हुआ है।

हिरण्य पर्वत, ओदंतपुरी।

यहां कोई 10 संघाराम लगभग 4000 साधुओं सहित हैं। जिनमें से अधिकतर सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं। किसी सीमांत नरेश ने इसे विजित कर 2 संघाराम बनवाए हैं, जिनमें से प्रत्येक में लगभग 1000 साधु निवास करते हैं।(पेज नं 331) हिमालय पर्वत तक बीच-बीच में अनेक विश्राम गृह बने हुए हैं। देश की पश्चिमी सीमा पर गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर एक निर्जन पहाड़ है जिसकी चोटियां ऊंची हैं। यहां पर बुद्ध देव ने तीन मास तक निवास करके “वकुल यक्ष” को शिष्य बनाया था। पहाड़ के दक्षिण- पूर्व कोण के नीचे एक बड़ा भारी पत्थर है जिसके ऊपर बुद्ध देव के बैठने से चिन्ह बन गया है। यह चिन्ह लगभग 1 इंच गहरा, 5 फ़ीट 2 इंच लम्बा और 2 फ़ीट 1 इंच चौड़ा है। यह पत्थर एक स्तूप के भीतर रखा हुआ है।(पेज नं 335) दक्षिण दिशा में एक और छाप एक पत्थर पर है जिस पर तथागत भगवान् ने अपनी कुण्डिका को रख दिया था।

मौद्गल्यायन स्तूप, नालंदा के पास।

यहीं थोड़ी दूर पर ध्यानावस्था में बैठी हुई बुद्ध देव की एक मूर्ति है। इसके पश्चिम में थोड़ी दूर पर एक स्थान है जहां पर बुद्ध देव ने तपस्या की थी। इस पहाड़ की चोटी के उत्तर में बुद्ध देव की पगछाप 1 फुट 8 इंच लम्बी कदाचित 6 इंच चौड़ी और आधा इंच गहरी है। इसके ऊपर एक स्तूप बना दिया गया है। इसके पश्चिम में 6 या 7 तप्त कुंड हैं जिनका जल बहुत गर्म है।(पेज नं 335)

विक्रमशिला महाविद्यालय के खंडहर, चंपा, भागलपुर।

वहां से चलकर व्हेनसांग गंगा नदी के नीचे दक्षिणी किनारे पर पूर्व दिशा में गमन करते हुए लगभग 300 ली चलकर “चेनपो” अर्थात् “चम्पा” प्रदेश में आया। उस समय यह अंग देश की राजधानी थी। आजकल यह बिहार राज्य का “भागलपुर” जिला है। यह गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। उसने लिखा है कि यहां पर 20 यों संघाराम हैं परंतु सब के सब उजाड़ हैं।सब मिलाकर लगभग 200 साधु उसमें निवास करते हैं। सभी हीनयान सम्प्रदायी हैं।(पेज नं 336) राजधानी 40 ली के घेरे में है जिसके चारों तरफ ऊंची चहारदीवारी ईंटों से निर्मित है। देश की दक्षिणी सीमा पर निर्जन वन हैं जहां हिंसक पशु और जंगली हाथी रहते हैं।(पेज नं 337)

बुलंदी स्तूप, तेल्हदा,नालंदा, बिहार।

चम्पा से 400 ली पूर्व दिशा में चलकर व्हेनसांग “कयीचुहोहखीली” अर्थात् कंजूघिर या कंजिघर आया। इस स्थान की पहचान “रनेल” ने कंजेरी नामक गांव से की है। यह “चम्पा” से 92 मील (460 ली) है। उसने लिखा है कि यहां पर कोई 6 ,7 संघाराम 300 साधुओं सहित हैं। यहां शिलादित्य राजा ने अस्थायी निवास के लिए पत्तियों से भवन बनवाया था।जिसको बाद में विरोधियों ने जला दिया। देश की दक्षिणी सीमा पर जंगली हाथी हैं।(पेज नं 337) इस देश से पूर्व की ओर 600 ली चलकर ह्वेनसांग ने गंगा नदी पार किया और “पुन्नफटन” (पुण्डवर्धन) राज्य में आया। प्रोफेसर “विल्सन” ने माना है कि प्राचीन पुण्ड देश की राजशाही दीनाजपुर, रंगपुर, नदिया, वीरभूमि, बर्दवान, मिदिनापुर, जंगल महाल, राम गढ़, पचित, पलमन और कुछ भाग चुनार का सम्मिलित था।(पेज नं 338) इसकी राजधानी का क्षेत्रफल 30 ली है। यह बहुत सघन बसी हुई है। यहां कोई 20 संघाराम लगभग 3 हजार साधुओं सहित हैं जो महायान और हीनयान दोनों का अध्ययन करते हैं। राजधानी के पश्चिम में लगभग 20 ली पर “पाघिपओ” संघाराम है जिसमें साधुओं की संख्या लगभग 700 है। इसके आंगन चौड़े और हवादार तथा कमरे और मंडप ऊंचे-ऊंचे हैं।

केसरिया स्तूप, पूर्व चंपारण,  बिहार।

वहां से थोड़ी दूर पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इस स्थान पर तथागत भगवान् ने 3 मास तक धर्मोंपदेश किया था। इस स्तूप के निकट एक और भी स्थान है जहां पर बुद्ध देव के पुनीत चिन्ह हैं। यहां से थोड़ी दूर पर एक विहार बना हुआ है जिसमें अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की मूर्ति स्थापित है।(पेज नं 339) ह्वेनसांग ने यहां से 700 ली पूर्व दिशा में चलकर एक बड़ी नदी पार किया और “कियामोलुपो” अर्थात् कामरूप प्रदेश में आया। इसकी पहचान मनीपुर (मणिपुर), जयन्ती, कछार, पश्चिमी आसाम, मैमन सिंह और सिलहट के रूप में हुई है। वर्तमान जिला ग्वालपारा से गौहाटी तक विस्तृत है। यहां के लोग पनस तथा नारियल की खेती करते हैं।(पेज नं 339) उस समय यहां पर एक भी संघाराम नहीं था। यहां का राजा नारायण देव था। यद्यपि बुद्ध धर्म पर उसका विश्वास नहीं है तो भी वह विद्वान श्रमणों का अच्छा सत्कार करता है। ह्वेनसांग ने राजा के बुलावे पर, शील भद्र शास्त्री के कहने पर उनसे भेंट किया।(पेज नं 340) इस देश का पूर्वी भाग पहाड़ियों से बंधा हुआ है। देश के दक्षिण- पूर्व में जंगली हाथी बहुतायत में घूमते रहते हैं।


डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी, फोटो- संकेत सौरभ, झांसी ( उत्तर- प्रदेश)

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Dr. RB Mourya:

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