उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के निकट स्थित बौद्ध परिसर ललितगिरि, रत्नागिरी, उदयगिरि की पहाड़ियों पर स्थित हैं। इस जगह की खुदाई में प्राप्त कई शिलालेख,राक शिलालेख,स्तूप और बुद्ध की मूर्तियां,मगध नरेश सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म की ओर गहरे झुकाव का परिचय देती हैं। यहां की खुदाई में कई चैत्य व स्तम्भ भी प्राप्त हुए हैं। रत्नागिरी प्राचीन काल में एक महाविहार (बौद्ध मठ) था। यह उड़ीसा के जयपुर जिले के ब्राह्मणी और विरूपा नदियों की घाटी में स्थित है। पुष्पगिरी, ललितगिरि और उदयगिरि आदि अन्य प्राचीन बौद्ध स्थल इसके पास ही हैं। भुवनेश्वर से रत्नागिरी की दूरी लगभग १०० किलोमीटर है।
उदयगिरि और खण्डगिरि की गुफाएं भुवनेश्वर से करीब ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यह उड़ीसा राज्य में सबसे प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। उदयगिरि का शाब्दिक अर्थ है- सूर्योदय की पहाड़ियां।यह गुफाएं अतीत में बौद्ध धर्म की शिक्षा का केन्द्र थीं। यहां पर मठों, स्तूपों, शिलालेखों तथा राक कट मूर्तियों को अलंकृत किया गया है। यह गुफाएं मोटे दाने वाली बलुआ पत्थर से निर्मित हैं।जैन धर्मावलंबी भी उदयगिरि को पवित्र स्थान मानते हैं। उदयगिरि में १८ तथा खण्डगिरि में १५ गुफाएं हैं। उदयगिरि की गुफा संख्या १ को रानी गोम्पा या रानी की गुफा कहते हैं।हाथी गुम्फा शिलालेख में इसका वर्णन कुमारी पर्वत के रूप में आता है। यह दोनों गुफाएं आमने सामने हैं।
इतिहास, वास्तुकला,कला और धर्म की दृष्टि से इन गुफाओं का विशेष महत्व है। शिलालेखों में इन गुफाओं को लेना (लेणी) कहा गया है। गुफाओं के मुंह दरवाजों जैसे हैं जहां से दिन के समय में सूरज की किरणें तथा रात में चांद की रोशनी आती है। उदयगिरि की गुफाएं लगभग १३५ फ़ीट तथा खण्डगिरि की गुफाएं लगभग ११८ फ़ीट ऊंची हैं। यह ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की हैं। यहां पर पाये गए लेख ब्राम्ही लिपि में हैं। उदयगिरि की गुफाओं में फर्श को पत्थरों की समतल शिलाओं से बनाया गया है। उदयगिरि की गुफा संख्या २ बाजा घर गुम्फा कहलाती है जहां सामने २ विशाल स्तम्भ हैं।गुफा संख्या ३ को छोटा हाथी गुम्फा कहते हैं। इसके प्रवेश द्वार पर बहुत ही सुन्दर ६ हाथियों की मूर्तियां हैं। गुफा संख्या ४ अल्कापुरी गुम्फा है। यहां पर सिंह का एक दृश्य है। केन्द्रीय कक्ष में एक बोधि वृक्ष भी बनाया गया है।
गुफा संख्या ५,६,७ और ८, जय विजय गुम्फा,पनासा गुम्फा, ठकुरानी गुम्फा और पाताल पुरी गुम्फा के नाम से प्रसिद्ध हैं।गुफा संख्या ९ मंचापुरी और स्वर्ग पुरी गुफाएं हैं जो दोमंजिला हैं। यहां पर कई वास्तुकला कृतियां और शिलालेख हैं। इस गुफा में राजमुकुट पहने हुए एक व्यक्ति की मूर्ति भी स्थापित है जिसे चेदि नरेश वक्रदेव की बताया जाता है। गुफा संख्या १० गणेश गुफा है। यहां पर एक चैत्य कक्ष है। गुफा संख्या ११ को जम्बेश्वर गुफा, १२ को व्याघ्र गुफा, १३ को सर्प गुफा, १४ को हाथी गुम्फा, १५ को धनागार गुफा, १६ को हरिदास गुफा, १७ को जगम्मठ गुफा तथा १८ को रोसेई गुफा कहते हैं।इसी प्रकार खण्डगिरि में गुफा संख्या १,२ को तातोआ, ३ को अनन्त, ४ को तेन्तुली, ५ को खण्डगिरि गुफा कहा जाता है। हाथी गुम्फा शिलालेख प्राकृत भाषा में है।इसे कलिंग राज़ खारवेल ने उत्कीर्ण करवाया था।यह उसकी प्रशस्ति का शिलालेख है जिसमें १७ पंक्तियां हैं।
भुवनेश्वर भारत के पूर्व में स्थित उड़ीसा राज्य की राजधानी है। भुवनेश्वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। प्राचीन काल में यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल रहा है। यहां लगभग १००० वर्षों तक बौद्ध धर्म फूला- फला।जैन धर्म भी यहां पर काफी फैला। भुवनेश्वर का राज्य संग्रहालय जयदेव मार्ग पर स्थित है। यहां पर हस्तलिखित तारपत्रों का विलक्षण संग्रह है।इसी संग्रहालय में प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक ‘गीत गोविंद है जिसे जयदेव ने १२ वीं शताब्दी में लिखा था। भुवनेश्वर के दक्षिण में राजमार्ग संख्या २०३ पर धौली स्थित है। यही वह स्थान है जहां अशोक कलिंग युद्ध के बाद पश्चाताप की अग्नि में जला था। इसी के बाद उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था। अशोक के प्रसिद्ध पत्थर स्तम्भों में से एक यहीं पर है जिसमें उसके जीवन दर्शन का वर्णन किया गया है।
धौली पहाड़ की चोटी पर शांति स्तूप बना हुआ है। यहां पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। इस स्तूप से दया नदी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। अभी हाल में हुई खुदाई में उदयगिरि में माधवपुरा महाविहार नामक एक मठ के अस्तित्व का प्रमाण मिला है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी, उ.प्र.
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अत्यंत सारगर्भित और जानकारियों से परिपूर्ण... एक लंबे अंतराल के बाद आपको लिखते देखना सुखद अनुभव है।