प्राचीन सभ्यता का जीवंत प्रदर्शन- एलोरा, एलीफेंटा और कान्हेरी गुफाएं

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भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जिसमें बहुरंगी विविधता और संवृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने आप को बदलते हुए समय के अनुसार ढालती आयी है। भारत भूमि पर मौजूद विविध प्रकार की गुफाएं, स्तम्भ, शिलालेख तथा खुदाई में मिली शिल्प कला इसके प्रमाण हैं। महाराष्ट्र में अजन्ता, एलोरा, एलीफेंटा और कान्हेरी की गुफाएं बुद्ध की संस्कृति और सभ्यता तथा शिल्प कला और उनकी करुणामय भावनाओं से ओत-प्रोत हैं।

यह मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती है। सामाजिक समरसता की प्रतीक इन गुफाओं में आज भी शांति और सौहार्द्र झलकता है। इन्हें आपसी सदभाव, सहनशीलता तथा सद्भावना का अनुपम उदाहरण माना जाता है और हां यह चट्टानें अपने अन्त:स्थल में गौरवशाली विरासत को संजोए हुए इतिहास की गौरव गाथा को बयां करती हैं।

एलोरा

एलोरा गुफाएं

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से 30 किलोमीटर दूर वेरूल नामक स्थान पर एलोरा की गुफाएं स्थित हैं। दो किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई इन गुफाओं में प्राचीन सभ्यता का जीवंत प्रदर्शन है। यहां पर कुल 100 गुफाएं हैं, जिसमें से 34 पर्यटकों को देखने के लिए हैं।इन शैलकृत गुफाओं में 12 बौद्ध धर्म ( गुफा नं 2 से 12) से संबंधित हैं। राक कट खुदाई कर बनाई गई एलोरा की गुफाओं में 10 चैत्य गृह हैं। 27 गुफाएं हिंदू धर्म तथा 5 गुफाएं जैन धर्म से संबंधित हैं।

बुद्ध देव, घारापुरी ग़ुफाये।

बौद्ध धर्म पर आधारित गुफाओं की मूर्तियों में बुद्ध देव की जीवनशैली की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। इन्हें देखकर लगता है कि मानो ध्यान मुद्रा में बैठे हुए बुद्ध हमें शांति,सद्भाव तथा एकता का संदेश दे रहे हैं। यह बौद्ध शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है। एलोरा की गुफाओं को वेरूल के लेणी ( मराठी में गुफा को लेणी कहते हैं) के नाम से भी जाना जाता है। “द ग्रेट कईलसा’ गुफा वहां की सबसे बड़ी गुफा है। गुफा नं 10 में बुद्ध देव की एक 15 फ़ीट ऊंची प्रतिमा उपदेश देने की मुद्रा में विराजमान है। मान्यता है कि राष्ट्रकूट शासकों ने इनका निर्माण कराया है। वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा “विश्व विरासत स्थल” घोषित एलोरा की गुफाओं को देखकर लगता है कि यह मानव के द्वारा नहीं बल्कि “एलियंस” के द्वारा बनाई गई हैं। ईसा पूर्व दूसरी सदी से प्रारम्भ होकर छठी शताब्दी तक इनका निर्माण कार्य किया गया है। यह गुफाएं बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे किनारे बनी हुई हैं।

खुल्दाबाद, एलोरा से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। पास ही औरंगजेब का मकबरा है। दौलताबाद, औरंगाबाद से १३ किलोमीटर दूर स्थित है। इसे कभी देवगिरी के नाम से जाना जाता था। यहां पर शानदार किला है।

एलीफेंटा

Elephanta Caves

भारत में मुम्बई महानगर के “गेट वे ऑफ इण्डिया” से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित “एलीफेंटा” की गुफाएं भी प्राचीन भारत की कला की अनुपम अभिव्यक्ति है। अंग्रेजी में एलीफेंटा के नाम से मशहूर गुफाओं को मराठी में “धारापुरी” गुफाओं के नाम से भी जाना जाता है।कहा जाता है कि एलीफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहां पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया। यहां पर कुल 7 गुफाएं हैं। अजंता तथा एलोरा की भांति यहां पर भी मंदिर और मूर्तियां पत्थरों को काटकर बनाये गये हैं। ठोस पहाड़ियों को काटकर बनाई गई मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रभावित हैं। लगभग 6000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई यह कलाकृतियां 2 मुख्य कक्ष, 2 पार्श्व कक्ष, प्रांगण व 2 गौण मंदिर में विभाजित हैं।

एलीफेंटा की गुफाओं में बौद्ध धर्म और दर्शन की छाप है। कभी धारापुरी, कोंकणी मौर्य द्वीप की राजधानी थी। माना जाता है कि यह सिल्हारा राजवंश (८१००-१२६०) द्वारा बनाई गई हैं। वर्ष 1987 में इन्हें यूनेस्को ने “विश्व धरोहर स्थल” घोषित किया है।

कान्हेरी गुफाएं

कान्हेरी गुफाये ।

उत्तर कोंकण, महाराष्ट्र में समुद्र तल से लगभग 1500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित “कान्हेरी” की गुफाएं बौद्ध दर्शन की बेहतरीन कला वीथिकाएं हैं। मुम्बई के बोरीवली स्टेशन से ७ किलोमीटर उत्तर में स्थित संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में यह अवस्थित हैं। मुम्बई शहर से इसकी दूरी 25 मील है। यहां पर दूसरी सदी में कार्ली की परम्परा में निर्मित हीनयान सम्प्रदाय का चैत्य है और हाल भी है। कान्हेरी की बाहरी दीवारों पर जो बुद्ध देव की मूर्तियां बनी हुई हैं उन पर महायान सम्प्रदाय का प्रभाव है।इन मूर्तियों में से बुद्ध देव की एक मूर्ति 25 फ़ीट ऊंची है। यहां गुफाओं की संख्या अजंता और एलोरा से अधिक है। कन्हेरी का शाब्दिक अर्थ होता है- काला पहाड़।

आज से लगभग 2200 साल पहले की बनी हुई यह गुफाएं सालसेट द्वीप पर, चारों ओर असीम हरियाली के बीच में स्थित हैं। इसके बीच में एक जलधारा प्रवाहित है। बाहर एक प्रांगण नीची दीवार से घिरा हुआ है जिस पर मूर्तियां बनी हुई हैं। यहीं से होकर एक सोपान मार्ग चैत्य द्वार तक जाता है जिसके दोनों ओर द्वारपाल निर्मित हैं।

बुद्ध देव, कन्हेरी गुफाओ में।

समूची गुफा 86 फ़ीट लम्बी, 40 फ़ीट चौड़ी तथा 50 फ़ीट ऊंची है।कान्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध गिरि मंदिरों में की जाती है।इसकी वास्तुकला तथा द्वार, खिड़कियों तथा मेहराबों की कार्ली शिल्प परम्परा बेनजीर और अद्वितीय है। यहां पर कुल 109 गुफाएं हैं।गुफा की भित्तियों पर अजंता के समान चित्रकारी है।

कान्हेरी गुफाएं मौर्य और कुषाण सम्राटों के शासन काल में बनाई गई थीं।इन गुफाओं का प्रारम्भिक निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना जाता है। चूंकि बौद्ध धर्म में प्रारम्भिक चरण हीनयान का रहा है जिसमें बुद्ध देव की मूर्तियां नहीं बनती थीं।उसका प्रभाव यहां पर भी है। यहां निर्मित कक्ष सीधे साधे हैं। गुफाओं में प्रतिमाओं को भी नहीं उकेरा गया है।दूसरी तरफ अलंकृत गुफाओं में महायान सम्प्रदाय का प्रभाव है।गुफा के अंदर कई बुद्ध मूर्तियां खंडित हो गई हैं। लेकिन इनके सौन्दर्य को महसूस किया जा सकता है।

कान्हेरी गुफाये ।

गुफाओं तक पहुंचने के लिए चट्टानों को काटकर सीढियां बनाई गई हैं। गुफाओं के ऊपर समतल पठार है जहां पर कई स्तूप बने हुए हैं। दिनांक 26 मई 2009 को कान्हेरी गुफाओं को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हवाले किया गया। यह देश की 15 रहस्यमी गुफाओं में से एक हैं तथा बौद्ध कालीन कला एवं शिल्प की सुन्दरतम अभिव्यक्ति हैं।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ ( अध्ययनरत एम. बी. बी. एस.), झांसी (उत्तर प्रदेश)


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Dr. RB Mourya:

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  • ऐसी कितनी ही सरंचनाये हमारे समृद्ध और तकनीकी रूप से अत्यंत उन्नत इतिहास को दर्शाते है। ये दुःखद है कि हमारे ज्यादा पढ़े लिखे इतिहासकारो को हमारे उन्नत इतिहास से कभी कुछ लेना देना नही रहा, अन्यथा हमारा समाज ज्यादा आत्मविश्वास से भरा होता। हमारा स्वर्णिम इतिहास ही हमारे स्वर्णिम भविष्य की आधारशिला रखता। आपके समृद्ध लेख के लिए आभार।

  • भारत का खूब सूरत गेटवे आफ इंडिया वहीं से कुछ दूरी पर स्थित है एलीफेंटा की गुफाएं जो भारत की कला का अदभुत नजारा देखने को मिलता है । धन्यवाद सर
    शत-शत नमन

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