बौद्ध दर्शन तथा कला का उत्कृष्ट नमूना- कार्ले की गुफाएं

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भारत भूमि पर मौजूद बौद्ध दर्शन तथा कला के उत्कृष्ट शिल्प, देश के गौरवशाली अतीत की अनमोल धरोहर हैं। महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित,भोरघाट नामक पहाड़ी पर निर्मित कार्ली की गुफाएं भी बौद्ध धर्म की संस्कृति की बेहतरीन कला की प्रतीक हैं। पूना से 60 किलोमीटर तथा लानवी स्टेशन से 6 मील दूर लोनावाला के निकट कार्ली में स्थित यह राक -कट गुफाओं का परिसर है।

कार्ले की गुफाएं, लोनावला, महाराष्ट्र ।

“कार्ली” का प्राचीन नाम विहार गांव है। यह नाम यहां पर स्थित बौद्ध विहार के कारण हुआ था। आज यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा संरक्षित स्मारक है। कार्ली चैत्य प्राचीन भारत के सर्वाधिक सुंदर और भव्य स्मारकों में से एक है। इसमें एक लेख खुदा हुआ है जिसके अनुसार वैजयंती के भूतपाल नामक एक सेठ ने सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में इस शैलगृह को निर्मित कराया था।चैत्य गृह के विलक्षण वास्तु विन्यास एवं तक्षण को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि निर्माता का यह दावा निर्मूल नहीं है। सम्भवतः कार्ले चैत्य का निर्माण पुलुवामी के शासन काल (ईसा पूर्व दूसरी सदी) में करवाया गया था।

कार्ले की गुफाओं में भव्य चैत्य।

कार्ले की गुफाओं में एक भव्य चैत्य गृह तथा 3 विहार हैं जिन्हें विशाल चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यहां का चैत्य गृह सबसे बड़ा और सबसे सुरक्षित दशा में है। यह 124 फ़ीट 3 इंच लम्बा, 45 फ़ीट 5 इंच चौड़ा तथा 46 फ़ीट ऊंचा है। इसके सामने का भाग दुमंजिला है जो स्त्री- पुरुषों की आकृतियों से सजाया गया है। मंडप को पार्श्व बीथियों से अलग करते हुए 37 स्तम्भ हैं जिनमें 15-15 मंडप के दोनों ओर पंक्ति बद्ध खडे हैं तथा शेष 7 स्तूप को घेरे हुए हैं। मंडप के दोनों ओर के स्तम्भ भव्य नक्काशी से युक्त हैं, जबकि शेष सादे हैं। विराट कंठहार जैसे शोभायमान यह स्तम्भ कलात्मक सौष्ठव में अद्वितीय हैं। नक्काशी युक्त स्तम्भ के आधार चौकियों पर स्थापित पूर्ण कुओं में पिरोये गये हैं। ऊपर के भाग भी औंधे घडों से अलंकृत हैं, जो लहराती हुई पद्म पंखुड़ियों से आच्छादित हैं। शीर्ष भाग की चौकियों पर हाथी, घोड़े आदि पर आसीन दम्पत्ति मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। कुछ में सामने ओट के रूप में दीवार बनायी गई है। सबसे आगे विशाल स्तम्भ के ऊपर चार सिंह एक – दूसरे से पीठ सटाए हुए विराजमान हैं जो अशोक के सारनाथ सिंह स्तम्भ की याद दिलाते हैं। बौद्ध धर्म में शेर को विश्व गुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना जाता है। पालि गाथाओं में शाक्य सिंह और नरसिंह बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों के रूप में मिलते हैं।

बुद्ध देव, हांथियों की सवारी, कार्ले की गुफाएं ।

गुफा की ऊपरी मंजिल में प्रकाश के लिए वातायन तथा निचली मंजिल में 3 द्वार हैं। कार्ली की गुफाओं में स्तम्भों पर बुद्ध देव की मूर्तियां भी स्थापित हैं और ब्राम्ही लिपि में लेख भी उत्कीर्ण है। एक अभिलेख के अनुसार कार्ले चैत्य का निर्माण पुष्प दत्त ने करवाया था। वहीं उसे पूर्णता पर पहुंचाने का काम सातवाहन साम्राज्य ने किया है। इसमें ईसा पूर्व दूसरी सदी की तारीखें हैं।इनका निर्माण 80 ईसा पूर्व में कर लिया गया था। यहां के तीन विहारों का निर्माण साधारण कोटि का है।दूसरा तथा तीसरा विहार क्रमशः त्रिभूमिक तथा द्विभूमिक है। चौथे गुहा विहार में हरफान नामक पारसीक का नाम अंकित है जिसने इसे दान में दिया था। परिसर के भीतर गुफाओं के भिक्षुओं के रहने के लिए निवास स्थान भी हैं। अन्य नक्काशी युक्त चैत्य तथा विहार तथा उनके अंदरुनी घुमावदार प्रवेश द्वार इन गुफाओं की खूबसूरत तथा उल्लेखनीय विशेषता है।गुफा का केन्द्रीय आदर्श एक बड़े घोड़े की नाल के समान है।

अशोक राजा का राजचिंन्ह, कार्ले की गुफाओं में।

बौद्ध दर्शन में चैत्य गृह जिन्हें प्राय: गुहा मंदिर के नाम से जाना जाता है। चूंकि बौद्ध धर्म के प्रारम्भिक चरण में हीनयान प्रभाव के कारण बुद्ध देव की मूर्तियों का निर्माण नहीं किया जाता था तथा बुद्ध के प्रतीक के रूप में स्तूप पूजे जाते थे, इसलिए शुरुआती दौर में बने हुए विहारों में मूर्तियों का अभाव था। पूजित स्तूपों को ही “चैत्य” कहा जाता था जहां ध्यान, साधना और वंदना होती थी। चैत्य,संस्कृत भाषा का शब्द है जो पाली के “चेतीय” शब्द का समानार्थी है। चिता स्थल पर मृत व्यक्ति की पावन राख के ऊपर बने स्मृति भवन को चैत्य कहा जाता है। बौद्ध धर्म में “चैत्य प्रासाद” उसे कहा जाता है जहां उपासना के लिए स्तूप प्रति स्थापित किए जाते थे।यह “चैत्य गृह” भी दो प्रकार के होते थे- संरचनात्मक तथा शैलगृह चैत्य।शैलगृह चैत्य हीनयान तथा महायान दोनों परम्परा के होते थे।”कार्ले” एक गुफा विहार है।

बुद्ध देव, कार्ले की गुफाएं ।

चैत्यों के अंदर बने हुए छोटे- छोटे स्तूपों को “दागोब” कहा जाता था। बौद्ध धर्म में “विमोक्ष” स्तूप उसे कहते हैं, जिसके भीतर धातु के रखने और निकालने का मार्ग बना होता है। पश्चिम भारत में मुम्बई के निकटवर्ती नासिक के 200 मील के क्षेत्र में लगभग 900 चैत्य गुफाएं हैं।इन गुफाओं का निर्माण काल ईसा पूर्व दूसरी सदी से सातवीं शताब्दी के बीच का है। प्राचीन कालीन भारत में बौद्ध धर्म के उत्कर्ष के दिनों में भिक्षु संघ को भिक्षा कराते समय राजा अपना मुकुट उतार लेते थे और भिक्षु संघ के सामने खाट पर बैठने का साहस नहीं करते थे।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- संकेत सौरभ ( अध्ययनरत एम. बी. बी. एस.), झांसी (उत्तर -प्रदेश)

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Dr. RB Mourya:

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  • पहाड़ो को काट कर गुफाओं का निर्माण और वो भी इतनी उन्नत कारीगरी से अपने आप मे ही विस्मयकारी है। महायान से सम्बद्ध इन गुफाओं का इतिहास अपने आप मे स्वर्णिम है। विस्तृत जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद।

  • कोरोना महामारी के इस दौर में, जब आवागमन की सुविधाओं का अभाव हैं एवम् पर्यटन पूरी तरह से बंद हैं इस स्थिति में आदरणीय सर जी के द्वारा सचित्र जानकारियों का सिलसिला जारी है...........बहुत बहुत धन्यवाद सर जी।।।।।।।।

  • भारत भूमि पर मौजूद बौद्ध दर्शन तथा कला शिल्प देश के अतीत अनमोल धरोहर है । कार्ली का प्राचीन नाम विहार गांव है। यहीं से बौद्ध विहार अस्तित्व में आया है।यह जानकारी एतिहासिक एवं उपयोगी है। धन्यवाद सर।
    शत-शत नमन गुरु देव

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