चंदा देवी की गुफा
भारत में छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद जिले में चंदा देवी की प्राचीन कालीन बौद्ध गुफाएं स्थित हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर दूर बारन वापारा अभ्यारण्य के जंगलों में आदिवासी राजा सिंघा धुर्वा का किला है। यहीं पहाड़ों पर उनकी कुलदेवी चंदा दाई विराजमान हैं।इसे प्राचीन गोंड गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यह गुफा आदिवासी लोगों की आस्था का केंद्र है। इस गुफा में विशैले सांप पाये जाते हैं।
गुफा को प्रारम्भिक तौर पर 200 मीटर तक देखा जा सकता है। आगे बढ़ने पर यह गुफा 16 अलग-अलग खण्डों में विभाजित हो जाती है। मान्यता है कि यहां से एक सुरंग 17 किलोमीटर दूर सिरपुर तक जाती है जबकि सिंहनगढ जाने के लिए गुफा से बांई तरफ 2 किलोमीटर जाना पड़ता है। सिंहनगढ का मुख्य द्वार पत्थरों को तराशकर बनाया गया है। साथ ही इसके चारों ओर परकोटा बनाया गया है। इन गुफाओं में दार्शनिक नागार्जुन ने ध्यान साधना किया था। 2013 में तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा यहां पर आये थे।
सिरपुर कस्बे से इन गुफाओं की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। सिरपुर, छत्तीसगढ़ राज्य की जीवन दायिनी नदी, महानदी के तट पर स्थित है। यह छत्तीसगढ़ की प्राचीन नगरी तथा राजधानी थी। 5 वीं से 8 वीं सदी के बीच यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां की यात्रा किया था। उस समय यहां पर बौद्ध धर्म बहुत विकसित अवस्था में था। यहां पर ईंटों से निर्मित मंदिर हैं। मंदिर के समीप ही पुरातत्व विभाग के द्वारा एक संग्रहालय का निर्माण किया गया है। इस संग्रहालय में सिरपुर से खुदाई में प्राप्त बेशकीमती मूर्तियों को सुरक्षित रखा गया है। इनमें बौद्ध धर्म की स्मृतियां हैं। मां महामाया, सोमवंशी राजाओं की कुलदेवी थी।
छत्तीसगढ़ और उसके आस-पास का क्षेत्र सर्वप्रथम मौर्य साम्राज्य के आधिपत्य में रहा। कालांतर में सातवाहन, गुप्त, वाकाटक और अंततः सोमवंशी राजाओं ने यहां पर शासन किया। 17 वीं शताब्दी तक इसे दक्षिणी कोशल कहा जाता था। छत्तीसगढ़ की अवधारणा 300 वर्षों से अधिक पुरानी नहीं है। 1924 में रायपुर जिला परिषद ने एक संकल्प पारित कर मध्य प्रांत से प्रथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की।
1 नवम्बर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ भारत का 26 वां राज्य बना। भौगोलिक रूप से छत्तीसगढ़ दक्कन के पठार का भाग है। यहां का मैदान कडप्पा शैल समूह से कटकर बना है। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ राज्य में 90 सदस्यीय विधानसभा है। यहां से 11 लोकसभा सांसद तथा 5 राज्यसभा सांसद चुने जाते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य 27 जनपदों में विभाजित है।
कुटुमसर की गुफा
कुटुमसर की गुफा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में, कुटुमसर गांव के पास कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। यह भारत की सबसे गहरी गुफा मानी जाती है। इनकी गहराई 60 से 120 फ़ीट तथा लम्बाई 4,500 फ़ीट है।इस गुफा की तुलना विश्व की सबसे लम्बी गुफा कल्सवार आफ़ केव से की जाती है जो अमेरिका में स्थित है।कुटुमसर गुफा की खोज वहां के स्थानीय निवासी आदिवासियों के द्वारा सन् 1900 के आस-पास की गयी थी।
सन् 1950 के दशक में विलासपुर के रहने वाले भूगोल के प्रोफेसर डॉ. शंकर तिवारी के द्वारा स्थानीय लोगों की मदद से इन गुफाओं को प्रकाश में लाया गया। वर्ष 1980 में रोमानिया के गुफा विशेषज्ञों की मदद से डॉ.जयंत विश्वास ने पहली बार व्यवस्थित रूप से इस गुफा का मापन किया। जगदलपुर रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी 40 किलोमीटर तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 120 किलोमीटर है। गुफा घने जंगल तथा पहाड़ियों से घिरी हुई है। रास्ता खतरों से भरा हुआ है। बरसात के दिनों में यहां पर प्रवेश वर्जित रहता है।
कुटुमसर की गुफा जमीन से लगभग 54 फ़ीट नीचे है।इसका प्रवेश द्वार काफी संकरा है। पुरातत्व विभाग के द्वारा नीचे उतरने के लिए लोहे की सीढ़ियों की व्यवस्था की गई है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से बने हुए कक्ष हैं जिनकी लम्बाई 21 मीटर तथा चौड़ाई 72 मीटर तक मापी गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी के बहाव के चलते इस गुफा का निर्माण हुआ है। इसके अंदर कुछ हिस्सों को बंद करके रखा गया है जिसमें अन्य कक्ष व रास्ते मिलने की संभावना है।
गुफा सर्पीली आकार की है तथा घुप्प अंधेरी रहती है। साक्ष्य और शोध के अनुसार यहां पर आदिमानव निवास करते थे। गुफा के अंदर छोटे छोटे तालाब पाये जाते हैं। यहां पर एक छोटी सी नदी भी बहती है। इस तालाब तथा नदी में रंग- बिरंगी अंधी मछलियां पायी जाती हैं। इन मछलियों को उनके खोजकर्ता के नाम पर कप्पी ओला शंकराई कहते हैं। सदियों से गुफा के अंदर अंधकार रहने के कारण इन मछलियों की आंखों की उपयोगिता खत्म हो गई है जिससे यह जन्म से ही अंधी पैदा होती हैं।
छत्तीसगढ़ में ही बस्तर के घने जंगलों,सर्पीली घाटियों तथा नदियों के बीच कैलाश की गुफ़ा स्थित है।कैंगर वैली नेशनल पार्क में स्थित यह गुफा अपनी प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है। इस गुफा की खोज 22 मार्च 1993 को की गई थी।चूना पत्थर से निर्मित यह गुफा 1,000 फ़ीट लम्बी तथा 120 फ़ीट गहरी है। छत्तीसगढ़ राज्य में ही प्राचीन दंडक गुफा है। इस गुफा के सामने के दरवाजे पर एक शानदार चट्टान है। प्रवेश द्वार से आगे चलने पर एक विशाल कक्ष है जिसमें 500 लोग एक साथ आ सकते हैं। इस हाल में स्टालिनटेक्ट्स क्लस्टर जैसी भव्य झूमर है। दंडक गुफा की फर्श चिकनी है। इस गुफा की लम्बाई 200 मीटर तथा चौड़ाई 20 से 25 मीटर है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी
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