प्राचीन भारत में “निरंजना” नदी के नाम से मशहूर तथा अब “फल्गु” नदी के नाम से जानी जाने वाली, भारत के बिहार राज्य में झारखंड की सीमा पर बहने वाली नदी के तट पर जनपद “गया” बसा हुआ है। गया की पहचान एक धार्मिक नगरी के रूप में है। पितृपक्ष में यहां हजारों श्रृद्धालु पिण्ड दान के लिए आते हैं। गया से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोध गया, बौद्ध धर्म का तीर्थ स्थल है। इसे “बौद्ध धर्म की राजधानी” भी कहते हैं। बिहार की राजधानी पटना से यह 100 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। मेगस्थनीज की इंडिका, ह्वेनसांग तथा फाहियान के यात्रा वृत्तांत में यहां का वर्णन किया गया है। गया, मौर्य काल में भी एक महत्वपूर्ण नगर था। यहां पर खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है।
डूंगेश्वरी
सिद्धार्थ गौतम, अंतिम आराधना के लिए बोधगया जाने से पहले 6 वर्ष तक जहां पर कठिन तपस्या किए थे,उसे ही “डूंगेश्वरी की गुफाओं” के नाम से जाना जाता है। इस गुफा में एक बुद्ध प्रतिमा है।इन गुफाओं को “महाकाल गुफाओं” के नाम से भी जाना जाता है। यहां “प्रागबोधी”, एक पवित्र स्थान है जिसे “धूंगेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। यहां की गुफ़ाओं को “सुजाता स्तवन” भी कहते हैं। मान्यता है कि यहीं पर सुजाता ने गौतम को खीर खिलाकर उनकी प्राण रक्षा की थी।
बराबर की गुफाएं
गया से 20 किलोमीटर दूर उत्तर में “बरावर की गुफाएं” स्थित हैं। यहां तक पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल तथा 10 किलोमीटर रिक्शे से चलना पड़ता है। यह गुफाएं बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।बरावर और नागार्जुनी पर्वत श्रृंखला पर स्थित इस गुफा का निर्माण सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ ने कराया था। इस गुफा का उल्लेख ई.एम. फास्टर ने अपनी पुस्तक- “ए पैसेज टु इण्डिया” में भी किया है। उन्होंने इस स्थान का दौरा किया था।इन गुफाओं में से 7 गुफाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की निगरानी में हैं। बराबर पहाड़ी में 3 तथा नागार्जुनी पहाड़ी में 4 गुफाएं हैं।इन सातों गुफाओं को समूह में “सात घर” कहते हैं। बराबर की गुफाएं चैत्य गृहों तथा सभा गृहों का प्रारम्भिक रूप मानी जाती हैं। बराबर पहाड़ियों में स्थित इन तीन गुफाओं को सुदामा, कर्ण और लोमांस ऋषि की गुफाओं के नाम से जाना जाता है।
नागार्जुनी गुफाएं
नागार्जुनी गुफाओं में सम्राट दशरथ द्वारा गोपी गुफा, वेदाथिका गुफा तथा मिर्जा मंडी गुफा का निर्माण कर आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायियों को समर्पित किया था।आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना मक्खलि गोशाल द्वारा की गई थी। मक्खलि गोशाल बुद्ध के समकालीन थे। लोमेश गुफा में एक शब्द टोडा भी आया है। टोडा दक्षिण भारत में नीलगिरी की पहाड़ियों पर निवास करने वाली एक आदिवासी कौम भी है।
लोमांस की गुफाएं
बराबर की गुफाओं की छत और दीवारों पर उच्च स्तरीय पॉलिस है जो अशोक स्तंभों पर पायी जाने वाली पॉलिस के समान है।यह पॉलिस एकदम नयी लगती है। इसे देखकर लगता है कि आज से 2500 साल पहले शिल्प कला कितनी उत्कृष्ट थी। गुफाओं के गोलाकार चैत्य इतनी बारीक कारीगरी से निर्मित किए गए हैं कि इन्हें देखकर आश्चर्य होता है।लोमांस गुफा के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्णन का कार्य है। यहां उत्कीर्ण हाथियों की पंक्ति स्तूपों को श्रृद्धांजलि दे रहे हैं।सुदामा और लोमांस चैत्य के सभागृह तथा कर्ण की गुफा आवास गृह है। ग्रेनाइट की चट्टान पर यह राक -कट गुफ़ाएं हैं।1100 फ़ीट ऊंचे बराबर पर्वत को “मगध का हिमालय” भी कहा जाता है। यह भारत के पुरातन ऐतिहासिक पर्वतों में से एक है।
दशरथ मांझी का शौर्य
गया जिले में ही “गहलौर” पर्वत है जहां दशरथ मांझी के द्वारा बनाई गई सड़क है जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई। यह सड़क वजीरगंज से गहलौत को जोड़ती है। 360 फ़ीट लम्बे, 30 फ़ीट चौडे तथा 25 फ़ीट गहरे इस रास्ते को बनाने में दशरथ मांझी ने अपने जीवन के 22 साल लगा दिये।साहस, परिश्रम और जीवट का यह विरलतम उदाहरण है। हिंदी फिल्म “मांझी द माउंटेन” इसी पर आधारित है। दिनांक 21 अगस्त 2015 को यह फिल्म रिलीज हुई। इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने दशरथ मांझी की भूमिका निभाई थी जबकि फाल्गुनी देवी की भूमिका में राधिका आप्टे ने किरदार निभाया था। दशरथ मांझी के काम को एक कन्नड़ फिल्म “ओलवे मंदार” में जयतीर्थ द्वारा दिखाया गया था।यहीं पर उनका स्मारक है।
दिनांक 14 जनवरी 1929 को जन्मे दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी की मृत्यु अपने पति के लिए खाना ले जाते समय इसी पहाड़ के दर्रे में गिरकर हो गई थी। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि मैं इस पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाउंगा। एक हथौड़ा और एक छेनी लेकर उन्होंने यह करिश्मा कर दिखाया। मार्च 2014 में प्रसारित टी वी शो सत्यमेव जयते का सीजन -2, जिसकी मेजबानी आमिर खान ने किया था,का पहला ऐपीसोड दशरथ मांझी को समर्पित था। वर्ष 2007 में 73 वर्ष की उम्र में दशरथ मांझी का देहांत हो गया।पूरे राजकीय सम्मान के साथ बिहार की राज्य सरकार के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया। फिल्म निर्माता केतन मेहता ने दशरथ मांझी को “गरीबों का शाहजहां” क़रार दिया।गया शहर से इसकी दूरी 36 किलोमीटर है।
मेहर हिल्स
गया जिले में ही पाई बिगहा से 2 किलोमीटर पश्चिम में “घेजन” नामक स्थान भी प्रमुख पुरातात्विक रुचि का केन्द्र है। यहां से प्राप्त भगवान बुद्ध की 250 ईसा पूर्व की प्रतिमा पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।जनपद मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर तनकुप्पा प्रखंड में “मेहर हिल्स” की श्रृंखला है जो राजगीर की पंच पहाड़ियों से मिलती है। माना जाता है कि बुद्ध देव यहां आये थे और कुछ दिनों तक विश्राम किए थे। यहीं गया जिले में ही गुरपा पहाड़ी है। बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध अपने प्रिय शिष्य महाकाश्यप के साथ गुरपा पर्वत पर आये थे। इस पवित्र चोटी को कुकुपपुद गिरि के रूप में भी जाना जाता है। आज भी काश्यप की तपोस्थली गुफा में विद्यमान है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी
View Comments (7)
बहुत-बहुत धन्यवाद, शुभकामनाएं एवं बधाई सर आपको। इतिहास कीउन गाथाओं
से हम सभी को परिचित करा रहे हैं जो आपाधापी के इस जीवन में कहीं खो सी गई हैं
Interesting and valuable information Sir.. Keep up the good work..
Thank you very much Dr sahab
सारगर्भित लेख और ऐतिहासिक विवरण के जीवन्त प्रस्तुतिकरण के लिए आपका आभार। फ़िल्म का नाम "माँझी द माउंटेन मैन" है ।
जी, बिल्कुल। मैं जोड़ लूंगा। धन्यवाद आपको डाक्टर साहब।
Very nice sir
Thanks a lot