प्राकृतिक सौंदर्य के साथ इतिहास बोध- बाघ की गुफाएं(म.प्र.)

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“शब-ए-मालवा” के नाम से मशहूर तथा प्राचीन काल में धारा नगरी के नाम से विख्यात, मध्य- प्रदेश के ऐतिहासिक शहर की स्थापना परमार राजा “भोज” ने किया था। यहीं धार जिले से 97 किलोमीटर दूर विन्ध्य पर्वत की दक्षिणी ढलान पर, प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की याद दिलाती हुई “बाघ की गुफाएं’ स्थित हैं। यह गुफाएं प्राकृतिक सौंदर्य के साथ इतिहास बोध भी कराती हैं। बाघ की गुफाओं की खोज सन् 1818 में डेन्जर फ़ील्ड ने की थी। भारत में बौद्ध धर्म के पराभव के दौर में इन गुफाओं को भुला दिया गया और यहां पर बाघ निवास करने लगे, इसीलिए इन्हें “बाघ गुफाओं” के नाम से जाना जाता है। इन गुफाओं के कारण ही यहां पर बसे हुए गांव को “बाघ गांव” तथा यहां से बहने वाली नदी को “बाघिन नदी’ के नाम से जाना जाता है। यह ‘ नर्मदा” की सहायक नदी है।

बौद्ध धर्म को दर्शाती हुई इन गुफाओं में से केवल 5 गुफाएं ही शेष बची हुई हैं। गुफा नं 1, 7, 8 और 9 नष्ट प्राय हैं। मध्य- प्रदेश के शहर इंदौर और गुजरात के शहर बड़ोदरा के बीच बाघिन नदी के बाएं किनारे पर स्थित इन गुफाओं में अनेक बौद्ध मठ और विहार देखे जा सकते हैं। इन गुफाओं के चैत्य गृह में स्तूप हैं और रहने की कोठरी भी बनी हुई हैं जहां पर बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। अजंता और एलोरा की गुफाओं की तर्ज पर बनी हुई बाघ की गुफाओं की चित्रकारी मनुष्य को हैरत में डाल देती है। यह गुफाएं लगभग 1600 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध की दिव्य वाणी प्रतिपादित करने हेतु निर्मित की गई थी।

इन गुफाओं में गुफा संख्या 2 “पांडव गुफा’ के नाम से प्रचलित है। तीसरी गुफा को ‘हाथी खाना” के नाम से जाना जाता है तथा चौथी गुफा ‘रंग महल’ के नाम से जानी जाती है। गुफा संख्या 4 और 5 से मिला बरामदा 65 मीटर लंबा है और जिसकी छत 20 भारी खम्भों पर टिकी हुई है। गुफा संख्या 4 में अंकित राजकुमार का चल समारोह दृश्य तत्कालीन ऐश्वर्य का सुन्दर उदाहरण है। इस दृश्य में राजकुमार हाथी पर सवार हैं तथा 6 हाथी और 3 घोड़े समारोह में चल रहे हैं। यह सब बड़ी बारीकी से उकेरा गया है। विहारों में चित्र अलंकरण का वर्णन मूल सर्वास्तिवाद संस्था के विनय में पाया जाता है।

बाघ की इन गुफाओं में बुद्ध तथा बोधिसत्व के चित्रों के अतिरिक्त राज दरबार, संगीत दृश्य तथा पुष्प माला का दृश्य चित्रण महत्वपूर्ण है। नदी, पहाड़, जंगल आदि के असीमित मनोहारी भू-दृश्य हैं। बाघ गुफाओं के यह चित्र 1907-8 से पुनः संसार के सामने आए हैं। 1953 में सरकार ने इसे राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसकी निगरानी करता है। यहीं पास में एक संग्रहालय बना हुआ है। यहां ताम्रपत्र पर ब्राम्ही लिपि में अंकित लेख भी है। पास में ही आदिवासी क्षेत्र टांडा है। विन्ध्य पर्वत का यह अंश मालवा क्षेत्र में धार जिले की कुक्षी तहसील के अंतर्गत आता है।

आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व अखंड भारत में कई विशालकाय और चमत्कारिक वास्तुकला के अद्भुत मंदिरों तथा गुफाओं का निर्माण हुआ। उनमें से कुछ आज भी उसी अवस्था में मौजूद हैं तो कुछ खंडहर बन चुके हैं। इनकी निर्माण कला को देख कर ताज्जुब होता है। वस्तुत: यह गुफाएं अथवा खंडहर इस बात के प्रमाण हैं कि भारत, प्राचीन सभ्यता का एक बड़ा केन्द्र था। साम्राज्यों में हुई छीना-झपटी तथा उससे हुई बर्बादी के बावजूद यहां सभ्यता का सिलसिला निरंतर कायम रहा। यहां पर सभ्यता की अटूट धारा बहती आयी है और आज भी हमारे जीवन का आधार है।आज हम इस सभ्यता के उत्तराधिकारी के हैं, कल अगली पीढ़ी आएगी।

सभ्यताएं हमें जीवन से प्रेम करना सिखाती हैं। अपनी ओर बुलाती हैं तथा साहस और सम्बल प्रदान करती हैं। विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। प्रस्तर और काष्ठ खंडों से निर्मित यह गुफाएं, खंडहर और भग्नावशेष हमें लम्बे युगों की याद दिलाती हैं। मिल-जुल कर रहने तथा सबकी भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देती हैं। इनका चिरंतन संदेश है कि त्याग और नि: स्वार्थ सेवा भाव हमारा आदर्श होना चाहिए। वाजिब बात कहने का हक सभी को होना चाहिए। महान् उद्देश्य के लिए यत्न करने का आनन्द उठाना चाहिए। यदि हम देश और मानवता की सेवा करना चाहते हैं तो हमें उसके स्वर्णिम गौरव की रक्षा करनी चाहिए। यह हमारे लिए पवित्र धरोहर तथा देश के इतिहास का शानदार पृष्ठ है।


– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.) झांसी (उ.प्र.)


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Dr. RB Mourya:

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