बौद्ध गुफा वास्तुकला की बेनजीर शिल्प- भाजा और पीतल खोरा की गुफाएं

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भाजा की गुफाएं

महाराष्ट्र के पुणे जनपद में, मुम्बई और पुणे के बीच आधे रास्ते के पुराने कारवां मार्ग के पास, डेक्कन पठार पर स्थित “भाजा” गुफाएं, बौद्ध गुफ़ा वास्तुकला की बेनजीर शिल्प हैं। करली से इनकी दूरी केवल तीन किलोमीटर है। लोणावाला के निकट स्थित यह 22 राक- कट गुफाओं का एक समूह है जो भाजा गांव से 400 फ़ीट ऊंचाई पर स्थित है।

भाजा बुद्धिस्ट गुफाएं।

यहां पर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से लेकर दूसरी सदी ईसवी तक के हीनयान बौद्ध सम्प्रदाय की 18 गुफाएं हैं जिनमें ठोस कटे हुए 14 स्तूपों का समूह है। गुफा संख्या 1, जो एक मकान तथा 10 अन्य गुफ़ा विहार हैं, वास्तुकला के महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। गुफा संख्या 13 एक चैत्य कक्ष है और यह सबसे बड़ा है। यहां पर लकडी की नक्काशी लाजबाब है। यह गुफाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं।

स्मारक का एक हिस्सा, जो 14 स्तूपों का समूह है उसमें 5 अंदरुनी तथा 9 अनियमित उत्खनन के बाहर हैं इनमें बहुत से स्तूप वहां पर रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के अस्थि अवशेष हैं जिनका परिनिर्वाण भाजा में हो गया था। वहां से प्राप्त शिलालेखों में अम्पीनिका, धम्म गिरि तथा संगदीना भिक्षुओं के नाम हैं। “भाजा” के अन्य गुफाओं में पत्थर के बिस्तर भी देखे जा सकते हैं। बड़े पैमाने पर संरक्षित लकडी के वाल्ट के साथ पूजा हाल भाजा के बौद्ध गुफ़ा मठ का केन्द्र है। यह पूरा कमरा लगभग 17 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा है। स्तूप की ऊंचाई 3.50 मीटर है। मुख्य हाल की घुमावदार छत में 2 छोटे शिलालेखों की खोज की गई है जिनमें ईसा पूर्व दूसरी सदी की तारीखें हैं।

भाजा की यह गुफाएं एक भारतीय टक्कर उपकरण, तबला के इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण सबूत प्रदान करती हैं। क्योंकि 200 ईसा पूर्व में नक्काशी तथा एक महिला को तबला से खेलते और दूसरे को नृत्य करते हुए देखा जा सकता है। आखिरी गुफा के पास एक झरना है, जिसका पानी मानसून के मौसम के दौरान नीचे एक छोटे से पूल में पड़ता है। गुफाओं में 8 शिलालेख हैं जिनमें दान- दाताओं के नाम हैं। “भाजा” स्तूप पर स्थित खेरवा, दीपों के नाम हैं।

पीतल खोरा की गुफाएं

भारत के पश्चिमी घाटों की सतमाला पहाड़ियों में, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित “पीतल होरा” गुफाएं प्राचीन बौद्ध स्थल हैं, जिनमें 14 राक कट गुफ़ा स्मारक शामिल हैं। इन्हें अजंता की गुफाओं के बाद खोजा गया है।

पीतल खोरा बुद्धिस्ट गुफाएं ।

अजंता की गुफाओं से इनकी दूरी लगभग 110 किलोमीटर है । यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन जलगांव है। औरंगाबाद तक हवाई मार्ग की सुविधा उपलब्ध है। एलोरा की गुफाओं से इनकी दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। ईसा पूर्व दूसरी सदी से प्रारम्भ होकर तीसरी शताब्दी तक निर्मित इन गुफाओं में 35 खम्भे हैं जिनमें सफ़ेद,काला, भूरा या पिंकी में चित्रित बुद्ध सान्या की तस्वीरें हैं।

पीतल खोरा गुफाओ में बुद्ध देव की कलाकृति

शहरी परिवेश से दूर, सह्याद्रि पर्वत पर स्थित पीतल खोरा 13 गुफाओं का समूह है जो अपनी अद्भुत शैल चित्र कला के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रारम्भिक रूप से बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से प्रभावित इस गुफा में, गुफा संख्या 2,3,4 में प्रांगणों का निर्माण किया गया था जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। गुफा संख्या 2 और 3 की दीवारें नष्ट हो चुकी हैं। गुफा में सजे हुए हाथियों के चित्र कला के उत्कृष्ट शिल्प हैं। अवशेषों के आधार पर यहां का चैत्य गृह 15 मीटर लंबा, 10.25 मीटर चौड़ा तथा 6.10 मीटर ऊंचा रहा होगा।

“खान देश’ में स्थित पीतल खोरा की गुफाओं में 37 अष्टकोणीय स्तम्भ लगे हुए हैं जिनमें 12 अभी भी सुरक्षित दशा में हैं। चैत्य गृह में बने स्तूप के भीतर धातु अवशेषों से युक्त मंजूषाएं रखी गई हैं जिसमें 11 सीढियां हैं। 6 चैत्य गवाक्ष अब भी सुरक्षित हैं। बौद्ध ग्रंथ “महामयूरी’ में इस स्थान का नाम “पीतंगल्य” दिया गया है।

जंगली वनस्पतियों से ढंकी हुई यह गुफाएं दूर से नजर नहीं आती हैं। इन्हें क़रीब से जाकर ही देखा जा सकता है। गुफा के कई कोनों से छोटे जल प्रपात भी निकलते हैं जो इस स्थान को ख़ास बनाने का काम करते हैं। यहां पर 17 खम्भों की मदद से एक गलियारे का निर्माण किया गया है। खम्भों पर शानदार चित्रकारी की गई है। गुफा संख्या चार में आप छोटी गुफाओं को देख सकते हैं। इसके अलावा यहां पर बनायी गई घोड़े की नक्काशी लाजबाब है। यहां की पहाड़ी पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा है जिन्हें “पहाड़ का राजकुमार” माना गया है।

बुद्ध देव, पीतल खोरा बुद्धिस्ट गुफाएं ।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, (अध्ययनरत एम.बी.बी.एस) झांसी 

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Dr. RB Mourya:

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