अतीत के वैभव का खजाना – जोगेश्वरी, मण्डपेश्वर तथा महाकाली की गुफाएं

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भारत में राक- कट गुफाओं की खूबसूरत वास्तुकला देश के अतीत के वैभव का खजाना है। यह गौरवशाली शिल्प कला ईसा पूर्व दूसरी सदी में, सम्राट अशोक के ज़माने में अपने चरमोत्कर्ष पर थी। इस बात के प्रमाण उनके स्तम्भ लेखों, शिलालेखों तथा गुफाओं में मिलते हैं। देश में अब तक लगभग 1200 राक- कट गुफाओं का उत्खनन कर प्रकाश में लाया गया है। काश् इन पत्थरों में जुबान होती और वह अपनी कहानी को बयां कर पाते तो अनुमान की गुंजाइश ही न होती। जाने क्या रहस्य है इन गुफाओं में, क्यों बरबस इनकी ओर ध्यान जाता है, हमसे इशारों में यह क्या कहना चाहती हैं ?

जोगेश्वरी की गुफाएं

10 स्तम्भों वाला कॉरीडोर, जोगेश्वरी की गुफाएं

मुम्बई से लगभग 21 किलोमीटर दक्षिण में अंबोली गांव के सामने योगेश्वरी का विशाल गुफा मंदिर है। माना जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण 520 से 550 ईसवी के दौरान कोंकण के मौर्य और कलचुरी राजवंशों के द्वारा किया गया है। यह गुफाएं नहीं बल्कि अतीत के वैभव का खजाना हैं। यहां पर पाषाण कला के नमूने हैं। इसमें मुख्य गुफा के एक दरवाजे से 10 स्तम्भों वाला एक लम्बा सा भव्य कॉरीडोर है जिसके दोनों ओर गुफाएं हैं। इस गुफा की समानता अजंता की गुफा संख्या एक तथा एलोरा की गुफा 9 से की जाती है। यह मुम्बई के सबसे शुरुआती गुफा मंदिरों में से एक हैं और लगभग 1500 साल पुरानी हैं।

जोगेश्वरी की गुफाएं

जोगेश्वरी गुफाएं पश्चिम एक्सप्रेस वे राजमार्ग पर स्थित हैं और अतिक्रमण से घिरी हुई हैं। यह पश्चिमी घाटों की तटीय तलहटी है जो डेक्कन और तटीय बंदरगाह के पुराने व्यापार मार्गों के निकट है। यहां पर पहुंचने के लिए चर्च गेट से 45 मिनट की यात्रा करनी पड़ती है। बाजार के भीड़भाड़ से भरी हुई सड़क से जुड़ी एक पतली सी गली इस गुफा तक ले जाती है।गली के शुरू में ही एक सीमेंट से बना हुआ दीप स्तंभ है तथा पास ही एक शिलालेख है।

मंडपेश्वर गुफ़ाए

योगेश्वरी गुफाओं की भांति ही बोरीवली पश्चिम में माउंट पिनसुर के पास मंडपेश्वर की राक- कट गुफ़ाए हैं। माना जाता है कि इन गुफाओं को भी 1500 से 1600 साल पहले बनाया गया था। मूल रूप से यह गुफाएं दहिसर नदी के तट पर स्थित थीं लेकिन बाद में नदी का मार्ग बदल गया। यह गुफाएं कान्हेरी गुफाओं की तुलना में छोटी हैं और कम ज्ञात हैं। प्रारम्भ में यह बौद्ध विहार थीं। प्रारम्भिक पुर्तगाली इनका प्रयोग प्रार्थना के लिए करते थे। आज यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की निगरानी में हैं।

मंडपेश्वर की राक- कट गुफ़ाए

महाकाली गुफाएं

भारत में राक – कट कला के अधिकांश चट्टान मंदिर बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनाए गए हैं। भिक्षु, बुद्ध देव के संदेशों के प्रचारक होते थे। वह ऐसे स्थानों का चयन करते थे जो व्यापार मार्गों में होते थे। यहां से बुद्ध के संदेशों को चारों दिशाओं में फैलाने में सहूलियत होती थी। बुद्ध देव के दौर से लेकर चौथी शताब्दी तक इसका आरम्भिक काल था। पांचवीं शताब्दी ईस्वी में इस कला का दूसरा चरण शुरू हुआ। इस दौर में लकड़ी के आभासी उन्मूलन और बुद्ध की छवि को वास्तु शिल्प डिजाइन की प्रमुख विशेषता के रूप में पेश किया गया था।

ईसा पूर्व पहली सदी से लेकर छठीं शताब्दी ईस्वी काल में निर्मित महाकाली की गुफाएं मुम्बई में कोंडिविटा गांव के नजदीक स्थित हैं। यहां पर एक बड़े क्षेत्र में पहाड़ी के दोनों तरफ निर्मित इन गुफाओं में दोनों ओर चैत्य और प्रार्थना हाल तथा 19 मूर्ति युक्त तथा खाली गुफाएं व कोठरियां बनी हुई हैं। उनके ऊपर स्तूप और गुम्बद बने हुए हैं। सीढ़ियों के साथ स्तम्भ युक्त बरामदे और गर्भ गृह बने हुए हैं। गुफा नं 9 में मौजूद स्तूप चट्टान को तराशकर बने एक जालीदार बाहरी आवरण से घिरा हुआ है।

बुद्ध देव के जीवन काल से जुड़ी प्रतिमाएं, महाकाली गुफाएं

चैत्य गुफा के बाहरी मंडप की दीवारों में “अवलोकितेश्वर” तथा बुद्ध देव के जीवन काल से जुड़ी प्रतिमाएं हैं। यहीं पर पास में दूसरी गुफा में चार स्तम्भों पर निर्मित हाल है। सीढ़ियों से होकर बरामदा और बरामदे से जुड़े हुए आवास के कमरे हैं। पीछे वाले हिस्से में एक जैसी 15 गुफाएं हैं जो भिक्षुओं का निवास स्थान रही होंगी। यहां पर जो सबसे बड़ी गुफा है उसमें बुद्ध और बौद्ध आख्यानों को दर्शाते हुए 7 उत्कीर्णन हैं। यहां पर जल भंडारण की वैसी ही व्यवस्था है जैसी कि कान्हेरी गुफाओं में है। आंतरिक कक्ष में आज जिसकी पूजा शिव लिंग के रूप में की जाती है दरअसल, वह पहले स्तूप रहा होगा।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययनरत (एम बी बी एस ), झांसी

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Dr. RB Mourya:

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