भारत की ऐतिहासिक धरोहर- बेडसा, कोण्डाने, जुन्नर, शिवनेरी तथा लेण्याद्रि गुफाएं

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बेडसा गुफाएं

मुम्बई- पुणे रेलमार्ग पर बड़गांव स्टेशन से 6 मील की दूरी पर स्थित “बेडसा” की गुफाएं महाराष्ट्र के प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक हैं।

अशोक कालीन स्तम्भ, बेडसा गुफाएं

पुणे से लगभग 45 किलोमीटर दूर,मावल तालुका में स्थित इन गुफाओं का निर्माण ईसा पूर्व पहली सदी में किया गया था यहां पहाड़ी पर कार्ले और भाजा के गुफा मंदिरों के समान ही बौद्ध गुफाएं हैं।कार्ले की गुफाओं से इनकी दूरी लगभग 10 मील है। बेडसा की गुफाओं की गणना गुहा वास्तुकला के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में की जाती है।इन गुफाओं में चट्टान को काटकर कुछ तालाब और एक स्मारक स्तूप भी बनाया गया है। यहां पर दो पूरी और दो अधूरी गुफाएं हैं। ढलान पर बनी सीढ़ियों की एक श्रृंखला के माध्यम से वहां पर पहुंचा जा सकता है।

बौद्ध स्तूप, बेडसा गुफाएं

“बेडसा” की गुफाओं के मुख मंडप में दो बड़े स्तम्भ हैं जिन पर अशोक कालीन स्तम्भों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यह स्तम्भ अष्टकोणीय हैं। यहां पर मानव एवं पशु दोनों की आकृतियों का सफल शिल्पांकन किया गया है। गुहा के मुख्य द्वार का पूरा भाग वेदिका अलंकरण से सुसज्जित है तथा शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। चैत्य शाला के अंदर का मंडप 45 फुट 6 इंच लम्बा एवं 21 फ़ीट चौड़ा है। इस चैत्य शाला के समीप ही आयताकार विहार है।उसके चौकोर मंडप का पिछला भाग वृत्ताकार है तथा तीनों ओर चौकोर कोठरियां बनी हुई हैं। यहां पर स्थित चैत्य स्तम्भों की ऊंचाई 25 फ़ीट है। चैत्य में अंदर जाने के लिए तीन प्रवेश द्वार हैं।

कोण्डाने गुफाएं

कोण्डाने बौद्ध गुफाएं

“कोण्डाने” गुफाएं मुम्बई के लोनावाला से 33 किलोमीटर उत्तर में तथा कार्ले की गुफाओं से 16 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं। राक- कट इन गुफा समूहों में 16 बौद्ध गुफाएं हैं जो लगभग 2 हजार साल पुरानी हैं। महाराष्ट्र के, रायगढ़ जिले के कर्जत तहसील के पास निर्मित इन गुफाओं की खूबसूरत निर्माण कला अद्भुत है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में निर्मित यह गुफाएं उस प्राचीन जीवन शैली की झलक दिखलाती हैं जिसका अनुपालन बौद्ध लोग करते थे।

चट्टानों को काटकर बनाई गई इन प्राचीन गुफाओं में अनेक मूर्तियां, स्तूप, विहार और चैत्य शामिल हैं। यह मूर्तियां और स्तूप बौद्ध वास्तुकला के प्रतिनिधि हैं। यहां पास में “उल्हास” नदी बहती है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 60 मीटर है। पास में ही कुछ आदिवासी बस्तियां हैं। ग्रामीण क्षेत्र में एक वान विहार है जहां पर ठहरने की व्यवस्था है। बदलापुर रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी लगभग 7 किलोमीटर है।

जुन्नर गुफाएं

जुन्नर बौद्ध गुफाएं

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित “जुन्नर” गुफाएं भी अपने अतीत में इतिहास को संजोए हुए हैं। यह गुफाएं तीन भागों में बंटी हुई हैं- मनमोदी हिल्स समूह, गणेश लेना समूह तथा तुलजा लेना समूह। मनमोदी हिल्स समूह तथा गणेश लेना समूह अपनी वास्तुकला और डिजाइन के लिए प्रसिद्ध हैं जबकि तुलजा लेना समूह चैत्य, विहार और कक्ष के लिए जाना जाता है। तुलजा गुफा में सर्पुल के चारों ओर 12 अष्टकोणीय स्तम्भों से घिरा हुआ चैत्य गृह है। इसकी खुदाई ईसा पूर्व पहली शताब्दी की है। इस बौद्ध गुफा समूह में 11 गुफाएं शामिल हैं। यहां पर अब एक “तुलजा” देवी का मंदिर बना दिया गया है।

जुन्नर गुफाएं बौद्ध कालीन भिक्षुओं के रहने का स्थान मानी जाती हैं। पुरातत्व वेत्ता स्व. विष्णु श्रीधर वाकणकर मानते हैं कि यह गुफाएं 2 हजार वर्ष पूर्व निर्मित की गई हैं। गुफाएं दक्षिण- पूर्व से उत्तर- पश्चिम तक चट्टान के चेहरे के साथ चलती हैं जो दक्षिण-पश्चिम के सामने आती हैं। जुन्नर से २ किलोमीटर दक्षिण- पश्चिम में “शिवनेरी” की गुफाएं बनी हुई हैं। यहां पर भी 60 गुफाओं का समूह है जिनकी खुदाई पहली शताब्दी ईसा पूर्व में की गई है।

लेण्याद्रि गुफाएं

लेण्याद्रि बौद्ध गुफाएं

जुन्नार से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर “लेण्याद्रि” गुफा स्थित हैं। यहां पर 30 बौद्ध गुफाओं की श्रृंखला है। यहां की गुफ़ा संख्या 7 को छोड़कर बाकी सभी अन्य गुफाएं बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से संबंधित हैं। यहां पर बने ज्यादातर कमरे बौद्ध भिक्षुओं द्वारा साधना स्थल के रूप में प्रयोग किए जाते थे।लेण्याद्रि गांव “कुकडी” नदी के पास बसा हुआ है। इस गुफा तक पहुंचने के लिए 321 सीढियां चढ़ना पड़ता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा संरक्षित इस स्मारक में एक अष्टविनायक मंदिर भी है।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययनरत एम. बी.बी.एस.) झांसी (उ.प्र.)

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Dr. RB Mourya:
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