दर्द, पिछड़े वर्ग का…..

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न्याय की जरूरत उसे होती है,जिसके साथ अन्याय हुआ है। इंसाफ उसे चाहिए जिसके साथ नाइंसाफी की गयी है। जिसने नाइंसाफी और अन्याय का दौर नहीं देखा, वह इसकी केवल किताबी परिभाषा दे सकता है, वेदना और व्यथा का अहसास नहीं कर सकता है।

देश में पिछड़ा वर्ग भी इसी दर्द के एहसास के साथ जी रहा है। मानव विकास सूचकांक 2011 की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर -प्रदेश में अन्य पिछड़े वर्गों की आबादी 52.5 फीसदी है, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 16.3 प्रतिशत है। उत्तर -प्रदेश के अन्य पिछड़े वर्ग के 62.8 प्रतिशत लोग मज़दूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं। प्रदेश में इस वर्ग की साक्षरता दर 71 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 78 प्रतिशत तथा महिलाओं की 62.8 प्रतिशत है। 1952 में उत्तर- प्रदेश विधानसभा में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व मात्र 9 फीसदी था जो कि वर्ष 2001-5 में बढ़कर 27.5 प्रतिशत हो गया है। अगस्त 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने पर इस वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण मिला। अभी भी पिछड़े वर्गों में गुणात्मक शिक्षा का अभाव है। 22 फीसदी बच्चे 17 वर्ष की आयु तक विद्यालय छोड़ देते हैं।हक और इंसाफ़ की जंग जारी है।


श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने जीवन के प्रारम्भिक दौर से ही पिछड़े वर्गों के हक़ और हुकूक के लिए संघर्ष किया है। दिनांक 06.11.1983 को उन्होंने दलित, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग सम्मेलन का संयोजन, जनपद प्रतापगढ़ में किया। इस कार्यक्रम में सांसद श्री राम नरेश कुशवाहा तथा सांसद मौलाना हासमी जैसी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। दिनांक 01.10.1985 को बेगम हजरत महल पार्क में विशाल रैली का आयोजन किया।दिनांक 05.11.1986 को कस्बा शिवगढ़, जनपद रायबरेली में, दिनांक 25.12.1986 को बछरावां में आयोजित पिछड़े वर्गों के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। 1986 में ही किसानों के आंदोलन में शामिल होकर 10 दिन की जेल यात्रा किया। 1992 में “भंडाफोड़ रथ यात्रा”का संयोजन किया। कुल 37 दिन चली इस यात्रा ने उत्तर प्रदेश के 40 जनपदों का भ्रमण किया।

वर्ष 1990-92 में श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने सक्रिय रूप से आरक्षण समर्थन आन्दोलन में हिस्सा लिया।उनका यह मिशन निरंतर जारी है। दिनांक 20.08.2017 को पिछड़ा वर्ग प्रतिभा सम्मान समारोह बहराइच में तथा दिनांक 27.08.2017 को इसी प्रकार के कार्यक्रम में भोगांव, जनपद मैनपुरी में श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिस्सा लिया।

वस्तुत: हमारा समाज बेहद कृतज्ञ लोगों से मिलकर बना है। समाज को अपना प्रेम तो दीजिए। अपने अलावा दूसरों के लिए भी कुछ पल जीकर भी तो देखिए। इसके बदले आप को कभी निराश नहीं होना पड़ेगा। जब आप समाज के लिए कुछ करते हैं तो समाज दोनों हाथों से आप पर अपना प्यार कैसे लुटाता है, यह देखना हो तो स्वामी प्रसाद मौर्य के जीवन को पलटकर देख लीजिए, उत्तर मिल जाएगा। उनके सहज, सौम्य और स्नेहिल व्यक्तित्व ने अनगिनत लोगों की ज़िंदगियों को छुआ, उन्हें जिजीविषा के साथ जीने का ढंग सिखाया। ऐसे कितने ही लोग होंगे जो उनसे कभी नहीं मिले ,परंतु उनका भी उनसे अनजाना रिश्ता है। निरंतर चलते रहना ही जिंदगी है, चाहे यह पहाड़ों से गुज़रे या समतल मैदानों से।

—  डॉ.राजबहादुर मौर्य, झांसी

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Dr. RB Mourya:

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