बीसवीं शताब्दी के प्रवेशद्वार पर भारत में एक महानतम व्यक्तित्व का आविर्भाव होता है।उसे उनके अनुयायी प्यार से बाबा साहेब कहते हैं। देश ने उन्हें भारत रत्न से अलंकृत कर, उनके अवदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है। धर्म के क्षेत्र में वह बोधिसत्व हैं। दुनिया ने उन्हें ज्ञान का प्रतीक माना है। वह व्यक्ति बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर हैं। विगत 6 दशकों से उन पर गहन चर्चा और बहस होती रही है। वर्तमान शताब्दी को भी अभी बाबा साहेब के चिंतन,लेखन और दर्शन से जूझना है। वर्ष 1960 के दशक से ही भारत में लाखों-करोडों लोगों की दर्शन – दृष्टि ने अम्बेडकरवाद के चश्में से देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा संवैधानिक परिदृश्य को देखा है और उन लोगों को भी परखा है जोअम्बेडकर वाद के कट्टर विरोधी रहे हैं।
अभी बाबा साहेब और उनके उत्तराधिकारियों के प्रश्नों के जवाब सभी को देने हैं।अनेक भाषाओं में उपलब्ध बाबा साहेब डॉ .अम्बेडकर का और अम्बेडकर वाद पर समालोचना साहित्य आज़ बड़े – बड़े पुस्तकालयों का आकार ले चुका है। बावजूद इसके एक व्यक्ति और विचारक के रूप में बाबा साहेब डॉ .अम्बेडकर का सांगोपांग तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययन अभी लिखा जाना बाकी है।
बाबा साहेब डॉ .अम्बेडकर ने भारत की सामाजिक व्यवस्था में उन प्रश्नों से लोहा लिया जो ईश्वर को मानवीय देवता बना कर मानवीय गरिमा को क्षतिग्रस्त करता है तथा जिसको अपनी अधीनता में रख कर आनंदित अनुभव करता है।
अम्बेडकर वाद उस पाखंड के विरुद्ध ऐसी प्रतिक्रिया है जो अन्याय, अत्याचार तथा शोषण को किसी भी स्तर पर उचित ठहराने के लिए विवेकीकरण की अन्तर्दृष्टि पैदा करता है। बाबा साहेब का चिंतन उसको जड़ से उखाड़ रहा है।वह कहते हैं कि यह एक ऐसा अन्याय या गलती है जिसका ठीक किया जाना जरूरी है। इसे ठीक करने की कसौटी वही धार्मिक आदर्शों की परम्परा है जिसकी आलोचना से वह अपनी चिंतन यात्रा आरम्भ करते हैं।
बाबा साहेब डॉ .अम्बेडकर के परि निर्वाण के पश्चात् पूरे देश में उनके प्रति समर्पित, निष्ठावान तथा प्रतिबद्ध कार्य- कर्ताओं ने बाबा साहेब के आंदोलन को आगे बढ़ाया। हजारों- हजार मिशनरी साथियों ने अविवाहित रहकर, घर- परिवार त्याग कर निस्वार्थ भाव से अपने जीवन को बाबा साहेब के मिशन को समर्पित कर दिया। उत्तर भारत में भी बाबा साहेब के कारवां को आगे बढ़ाने का गम्भीर प्रयास हुआ।
स्वामी प्रसाद मौर्य उन समर्पित मिशनरी कार्यकर्ताओं में एक हैं। अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कोई भी वर्ष उनका ऐसा नहीं रहा जब उन्होंने बाबा साहेब के जन्मोत्सव कार्यक्रम में, उनकी प्रतिमा के शिलान्यास तथा उदघाटन कार्यक्रम में, उनके नाम पर विद्यालयों की स्थापना दिवस समारोह में भागीदारी न की हो। आज भी उनके ओजस्वी भाषणों में बाबा साहेब के चिंतन की झलक मिलती है। यदि स्वामी प्रसाद मौर्य के उपरोक्त कार्यक्रमों का विस्तृत विवरण दिया जाय तो यह एक ग्रंथ हो सकता है।
अंततः यह मानना होगा कि अम्बेडकर वाद एक ऐसा सामाजिक संदेश है जिसका औचित्य निर्विवाद है। यहां मानव अस्तित्व का एक अर्थ है। जिसमें कला, विज्ञान, दर्शन, इतिहास, अर्थ शास्त्र सभी समाहित हैं। क्योंकि क्या है? और “क्या होना चाहिए? “इस शाश्वत तनाव से मानव जीवन कभी मुक्त नहीं हो सकता। एक समूह को प्यार करने के बदले पूरी मानव जाति को प्यार करना अधिक अच्छी भावना है। स्वामी प्रसाद मौर्य इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
– डॉ.राजबहादुर मौर्य, झांसी
दि. 31 दिसम्बर, 2019 ई.