यात्राओं का परिवेश तथा परिप्रेक्ष्य

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मानव सभ्यता के विकास तथा उसके जटिल अंतर्संबंधों को समझने में यात्राओं का विशेष महत्व है।

चीनी यात्री ह्वेनसांग,फाहियान तथा इतसिंग की भारत यात्राओं ने दो सभ्यताओं को समझने की दृष्टि दी। कोलंबस और वास्कोडिगामा की साहसिक यात्राओं ने दुनिया को आपस में जोड़ा। इसी प्रकार यदि अतिशयोक्ति से बचा जाए तब भी यह कहा जा सकता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के अब तक के सामाजिक और राजनीतिक जीवन का लगभग आधा हिस्सा यात्राओं में गुज़रा है।

दि. 06.04.2017 से 31.05.2018 ई. तक के मात्र एक वर्ष, एक माह, पच्चीस दिन की अवधि में उनकी 175 दिन अर्थात् लगभग 6 माह उनका यात्राओं में बीता है। इन दौरों में उन्होंने लगभग 50 से अधिक उ.प्र.के जनपदों का भ्रमण किया। हजारों किलोमीटर की यात्रा किया। स्वामी प्रसाद मौर्य के दौरों का ऐसा ही सिलसिला वर्ष 1981 से अब तक निरंतर और अबाध गति से चालू है। अपने इन दौरों में वह हजारों- हजार लोगों से मिलते हैं। उनके दुख- दर्द के सहभागी बनते हैं। शहर के लोग उन्हें जितना अपना प्रिय मानते हैं, उतना ही दूर- दराज के गांवों, गलियों, कस्बों तथा मुहल्ले के लोग भी उन्हें अपना सगा मानते हैं। युवा पीढ़ी उन्हें अपना पथ- प्रर्दशक मानती है। आंधी- पानी, सर्दी- गर्मी या अन्य कोई भी बाधा उन्हें गरीबों व मजलूमों के बीच पहुंचने से रोक नहीं पाती। रात हो या दिन, सुबह हो या शाम अगर किसी ने उन्हें कहीं से पुकारा तोवह स्वामी प्रसाद मौर्य को अपने बीच में पाता है। गांव की गलियों से लेकर विधानसभा की गैलेरियों तक वह आम जनता के हक़ और हुकूक के लिए लड़ते हैं। यह उनके सामाजिक सरोकारों की प्रतिबद्धता है।

स्वामी प्रसाद मौर्य का विजन हमें सिखाता है कि कैसे आहिस्ता- आहिस्ता मनुष्य ने तरक्की की है।  बर्बरता से निकल कर सभ्यता की ओर मनुष्य ने प्रगति की है। मिल-जुलकर रहने की भावना निरंतर बढ़ी है।सबकी भलाई का आदर्श विकसित हुआ है। समझदार और वाजिब बात कहने की हमें सीख मिली है। दुनिया बहुत बड़ी जगह है। हमें हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए। उतार- चढ़ाव समय का क्रम है। आपसी सहयोग और समाज की भलाई के लिए त्याग ही सभ्यता की कसौटी है। महान उद्देश्य के लिए यत्न करने का आनंद उठाना चाहिए।  समाज की प्रगति में मदद करके हम भी अपना कुछ फर्ज अदा कर सकते हैं।

–   डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी

 

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Dr. RB Mourya:
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