पूर्वजों की एक लंबी कतार में एक स्थिति विशेष में जन्म लेना जीवन को गरिमा प्रदान करता है और साथ ही उच्च स्तर के दायित्वों का आरोपण भी करता है। यद्यपि हमारी लोकनीति एवं दृष्टि कोणों में परिवर्तन होते हैं, परंतु ऐतिहासिक दृष्टि विशेष महत्व रखती है। इसे समझने के लिए इस बात पर बल दिया जाता है कि यह किस प्रकार की परिस्थितियों में विकसित हुआ और किन किन कारणों ने किन परिवर्तनों को प्रभावित किया। सामाजिक एकता की गति रहस्य पूर्ण तथा निश्चित नियमों की अनुगामी है,जो विरासत एवं उत्तराधिकार को अंर्तगुम्फित करती है।
जबकि यूनानी सम्राट अलेक्जेंडर अपने विश्व विजय का सपना संजोए मात्र 33 वर्ष की उम्र में बाबुल पहुंचकर मृत्यु को प्राप्त हो गया,उसी समय जंगलों में बैठा चंद्रगुप्त मौर्य अपने साम्राज्य की पुनर्स्थापना की क्रांति के सूत्रपात में लगा था। सिकंदर की मौत के मात्र 5 वर्ष बाद वह अपने पराक्रम तथा साहस के बलबूते 321 बी.सी.में मगध का शासक बन बैठा। 24 वर्ष तक उसने मगध पर राज किया। 296 बी.सी. में उसकी मौत हुई। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में, अफगानिस्तान के एक हिस्से में, काबुल से बंगाल तक और अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था। उसनेे अपनी अदम्य इच्छा शक्ति और संघर्ष से 5500 टुकड़ों में बंटे देश का एकीकरण कर अखंड, अजेय,संबृद्ध और प्रबुद्ध भारत का निर्माण किया।
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यदि समकालीन परिप्रेक्ष्य में संदर्भ को बदल दिया जाए तो श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कम से कम उत्तर भारत में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की धरोहर से सभी को परिचित कराया। यदि अतिशयोक्ति से बचा जाए तो भी यह कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने सामाजिक जीवन के प्रारम्भिक दौर से ही लोगों को सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के महान व्यक्तित्व के निमित्त बनने के सपने दिखाए।उसे पाने का मार्ग सुझाया।
दिनांक 22 अप्रैल 1982 को जनपद रायबरेली में भारत मौर्य संघ शाखा रायबरेली द्वारा रिफार्म क्लब में आयोजित सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जयंती में भाग लेने का उनका जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वह आज तक निरंतर जारी है। तब से लेकर आज तक कोई भी वर्ष ऐसा नहीं गया जब श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने पूरे प्रदेश में दौरा करके सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की जयंतियों में हिस्सा न लिया हो। प्रत्येक कार्य-क्रमों में आज भी वह ओजस्वी भाषण करते हैं। वर्ष 2017 में भी उन्होंने दि. 30अप्रैल 2017 को रुस्तम आजाद चौक आशीर्वाद लान, गोरखपुर में,दि. 3.5.2017 को सवैया हसन ऊंचाहार, जनपद रायबरेली में तथा दि. 6.5.2017 को रामलीला मैदान अमेठी में आयोजित सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जयंती में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान देश और दुनिया की अनमोल धरोहर हैं।वह हमारे पुरखे हैं। उन्हें सीमित दायरे में बांधना सूरज को रौशनी दिखाने जैसा है। उन्हें पहचानना, उनके दिखाए मार्ग पर चलना, उनसे अपने आप को जोड़ना स्वयं को गौरवान्वित करना है।
– डॉ.राजबहादुर मौर्य, झांसी