राजनीति को कोई भी व्यक्ति न छू सकता है,न सूंघ सकता है और न ही उसके स्पर्श की अनुभूति कर सकता है। ऐंद्रिक जगत में तो राजनीति से सरोकार केवल अप्रत्यक्ष रूप से ही किया जा सकता है। फिर हम राजनीतिक गतिविधियों के उद्देश्यों और गंतव्यों को किस प्रकार स्वयं समझ सकते हैं अथवा लोगों को समझा सकते हैं? राजनीति के प्रारंभ से ही इस प्रकार के प्रश्न विचारकों को उद्वेलित करते रहे हैं। यहां हम उपरोक्त प्रश्न का उत्तर राजनीतिक सिद्धांतों के संदर्भ में नहीं वरन् समाज की अन्य गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयत्न करते हैं। किसी समाज में पायी जाने वाली राजनीतिक गतिविधियों के उद्देश्यों और गंतव्यों को उस समाज के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित किया जाना चाहिए। किसी भी राजनेता के मूल्यांकन में इन्हीं तत्वों की निर्णायक भूमिका होती है। एक नेता ने समाज की बुराइयों के विरुद्ध कितना निर्णायक संघर्ष किया है तथा उसके परिणामस्वरूप समाज की आर्थिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों में कितना गुणात्मक सुधार आया है। यही मूल्यांकन अतीत की मज़बूत धरोहर तथा विरासत होती है।
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श्री स्वामी प्रसाद मौर्य आज सम्मानित तथा प्रतिष्ठित राजनेता हैं। लेकिन अपने चार दशक के राजनीतिक जीवन में उनका लंबा समय सामाजिक आंदोलनों में भी बीता है। उनके पास कोई राजनीतिक विरासत नहीं थी। खुद अपने संघर्ष के बल बूते पर उन्होंने आज यह मुकाम हासिल किया है। वह पहले भी सामाजिक कार्यक्रमों में बढ – चढकर हिस्सा लेते थे तथा क्रांतिकारी व ओजस्वी भाषण करते थे और आज भी उसी प्रकार सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रहती है। उनका भाषण अपने आप में चिंगारी की तरह से होता है। जिसको सुनकर समाज में नया जोश पैदा होता है, वहीं विरोधी तिलमिला जाते हैं। अशिक्षा, अंधविश्वास, पाखंड तथा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उनका स्वर मुखर होता है। अपनी पूरी शक्ति तथा सामर्थ्य से वह जुर्म, अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ते हैं। इसका प्रभाव यह हुआ है कि समाज में व्यापक स्तर पर जन चेतना का जागरण हुआ है। समाज सुधार तथा परिवर्तन को गति मिली है। समाज कुरीतियों तथा पाखंड से बाहर निकला है।अच्छी शिक्षा के प्रति लोगों में ललक बढ़ी है। सांस्कृतिक बदलाव का भी कारवां चल पड़ा है। यह सब एक मात्र स्वामी प्रसाद मौर्य के कारण हुआ है। उनकी प्रतिबद्धता अनुकरणीय है।
— डॉ राजबहादुर मौर्य, झांसी