अस्तित्व अवसान के कगार पर “अंडमानी आदिवासी”…

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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की एक अन्य आदिवासी क़ौम “अंडमानी”समाप्त होने के कगार पर है। 1981 में की गई गणना के अनुसार इनकी संख्या मात्र 28 थी। अंडमानी आदिवासी भी “निग्रिटो” जनजाति श्रेणी के हैं। यह भी “जारवा” आदिवासियों की तरह बहुत खुंखार व हिंसक थे।

जब अंग्रेज इन द्वीपों में आए उसके पूर्व यह लोग पोर्ट ब्लेयर तथा उसके पास दक्षिण अंडमान में रहते थे। कैदी बस्ती बसाने में अंडमानियों ने सबसे पहले अंग्रेजी प्रशासन से टक्कर ली। अंडमान और निकोबार में अंग्रेजी शासन की स्थापना के प्रयास का इन आदिवासियों ने घोर विरोध किया था परन्तु उनके धनुष और बाण अंग्रेजों की बंदूकों का मुकाबला नहीं कर सके। अंततः इन्हें पराजय झेलनी पड़ी। इस पराजय की बहुत बड़ी कीमत इन आदिवासियों को चुकानी पड़ी। इन्हें दर -बदर विस्थापित होना पड़ा और अपने सम्मान तथा स्वाभिमान से समझौता करने को विवश होना पड़ा। अंग्रेजों ने इन आदिवासियों का प्रयोग कैदी बस्ती के कैदियों की देखरेख में किया। उन्हें संतुष्ट रखने तथा उनकी चंचल प्रकृति पर नियंत्रण करने की दृष्टि से अंग्रेजों ने उन्हें अफीम का आदी बना दिया।

“अंडमानी” आदिवासी समुदाय के लोग जब तक बाहरी दुनिया से दूर थे तब तक यह लोग रोगमुक्त हो स्वस्थ जीवन का आनंद ले रहे थे। स्वतंत्र और स्वछन्दता पूर्वक जीवन जीना इनकी विशेषता थी। किन्तु बाहरी दुनिया से सम्पर्क के कारण उनमें अनेकों बीमारियां फैल गई, जिसके कारण अनेक जानें गईं। पिछले कुछ वर्षों में इस समुदाय की बेहतरी के लिए सरकार द्वारा प्रयास किया गया है।

पोर्ट ब्लेयर से करीब बीस किलोमीटर दूर स्टे्ट द्वीप में इन्हें बसाया गया है। वहां पर इनके लिए घर बनाए गए हैं। आदिम जाति सेवक संघ की ओर से एक सामाजिक कार्यकर्ता भी है जो उनकी देखभाल करता है। सरकार द्वारा एक डाक्टर भी तैनात किया गया है जो निश्चित तिथियों पर आता है। जब भी इस आदिवासी समुदाय में किसी नवजात शिशु का जन्म होता है तो वह अखिल भारतीय स्तर पर समाचार बन जाता है।अब यह लोग हिन्दी बोल लेते हैं। इनका एक नेता लौका था जिसकी मृत्यु हो गई है। वह बहुत सक्रिय व्यक्ति था। वह पहले बुश पुलिस में भी था। बताया जाता है कि पहले वह अंग्रेजों के गुप्त भेदिए के रूप में भी काम करता था।

अंडमानी आदिवासी समुदाय कानून की पेंचीदगियों को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। यह अपनी सरल, सीधी व तुरन्त न्याय व्यवस्था में विश्वास करते हैं।। प्रशासन की दृष्टि से यह बहुत कठिन तथा चुनौती भरा क्षेत्र है। यहां आय अर्जित करने का एक मात्र जरिया नारियल के पेड़ों से नारियल बेचना है। निकोबार के लोग आज भी वहां की समस्त भूमि के मालिक हैं। यहां जमीन की बहुत कमी है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रशासन का मुख्य उत्तरदायित्व उप राज्यपाल के कंधों पर है, जिसमें उन्हें पांच पार्षदों के मदद मिलती है। प्रशासनिक दृष्टि से इन द्वीपों को 2 जिलों, अंडमान तथा निकोबार व 4 परगनों और विकास खंडों में विभाजित किया गया है। इन्हें 160 मील का खुला समुद्र प्रथक करता है। इसमेें 10 अंश का ख़तरनाक चैनल भी शामिल है। अंडमान, मध्य अंडमान तथा दक्षिणी अंडमान के महत्त्वपूर्ण द्वीपों को मिलाकर वृहद अंडमान बना है।इसमें 30 थाने हैं। इस क्षेत्र से एक सांसद भी चुना जाता है।

इन द्वीपों का जनजीवन विशेष रूप से पोर्ट ब्लेयर का, पूरी तरह से जहाज रानी की सेवाओं पर आश्रित है। जहाज के कार्यक्रम में ज़रा भी गड़बड़ी से सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। यहां के अधिकांश द्वीप ऊंचे-नीचे हैं। उत्तरी अंडमान में एक छोटी सी नदी “कलपांग” है जो सैडल पीक से निकलती है। निकोबार द्वीप समूह में 2 नदियां हैं- गलतिया तथा एलेक्जेंड्रिया। द्वीपों का दक्षिणी छोर “पिगमैलियन प्वांइट”, जिसका नामकरण अब “इंदिरा प्वांइट” के रूप में किया गया है, हिंदेशिया से केवल 154 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुल मिलाकर 554 द्वीप हैं। जिनमें छोटे बड़े चट्टानी द्वीप भी सम्मिलित हैं। किंतु वास्तविक द्वीप केवल 298 हैं। अधिकांश द्वीप बहुत छोटे-छोटे हैं जिनका क्षेत्रफल 20 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। वर्ष 2011 की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार यहां 6.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 19.1 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्गों से तथा 74.4 प्रतिशत अन्य समुदाय के लोग रहते हैं, जिसमें 69.7 प्रतिशत हिंदू, 8.8 प्रतिशत मुस्लिम, 21.3 प्रतिशत ईसाई तथा 0.2 प्रतिशत सिख समुदाय के लोग हैं।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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