आदिवासी समुदाय “गारो”…

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“गारो” पूर्वोत्तर भारत का एक प्रमुख आदिवासी समुदाय है। यह मुख्य रूप से मेघालय की गारो पहाड़ियों में रहते हैं तथा स्वयं को एचिक या मांडे नाम से पुकारते हैं। यह असम में भी पाये जाते हैं।

जलपाईगुड़ी,कूच बिहार जिला,पश्चिम बंगाल में भी यह आदिवासी समुदाय पाया जाता है। गारो आदिवासी अनेक उपसमूहों में बंटे हुए हैं जिसमें अवेस, माता, बेंग, अबेंग, चिसाक, माट्ची, माची दुबल, अतोंग, मेटास, गोच, अतोंग प्रमुख हैं। गारो स्वयं को तिब्बती मूल का मानते हैं। यह मातृसत्तात्मक समूह है।

इनके यहां उत्तराधिकार व पदाधिकार दोनों का निर्धारण मां के वंश से होता है। सामान्यत: सबसे छोटी बेटी को उत्तराधिकार मिलता है। विवाह की पहल लड़की की तरफ से की जाती है।गारो आदिवासी समुदाय में विवाह के कई प्रकार हैं। इनमें प्रमुख हैं- दोसिया अर्थात् सामान्य विवाह, चासेंग अर्थात् प्रेमी या प्रेमिका के घर जाकर रहना, नोक्रोम ना साला, नपे तुवा, कामे जिया आदि। शादी ब्याह में यहां मुर्गी और मुर्गा की जोड़ी की बलि देने की परम्परा है। गारो आदिवासी समुदाय में सास और दामाद का विवाह एक खास बात है। यह पुत्री को सम्पत्ति के हस्तांतरण के लिए किया जाता है। इस समुदाय में 100 से अधिक गोत्र हैं।

गारो भाषा की अपनी लिपि नहीं है इसलिए इसको लिखने के लिए रोमन लिपि प्रयुक्त होती है। गारो लिखित साहित्य के प्रवर्तन का श्रेय ईसाई मिशनरियों को जाता है। गारो साहित्य की शैली 1940 से शुरू हुई। प्रोफेसर हावर्ड डेनिसन डब्ल्यू मोमिन के प्रयासों से 1940 में गारो भाषा में एक मासिक पत्रिका ए?चिक खू? रंग (गारो जन- स्वर) प्रकाशित की गई। प्रोफेसर मोमिन को आधुनिक गारो साहित्य का जनक कहा जाता है। कालांतर में गारो साहित्य में काव्य और नाटक भी लिखे गए।

गारो आदिवासी समुदाय कृषि पर निर्भर है। यह लोग झूम खेती करते हैं।गारो आदिवासी समुदाय अलग गारोलैण्ड की मांग कर रहे हैं।मूल गारो प्रकृति पूजा करते हैं। मेघालय में कुल जनसंख्या का 88.5 प्रतिशत, जनजाति समुदाय निवास करती है। यहां हिंदू आबादी सिर्फ 6.6 प्रतिशत है। ईसाई समुदाय की आबादी 79.6 फीसदी है। मेघालय की साक्षरता दर 92.1 प्रतिशत है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मेघालय की कुल आबादी 29,64,4007 है।

-डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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Dr. RB Mourya:
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