खंगार समाज के साथ……

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वीरांगना नगरी झांसी से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खंगार राजवंश के वैभव का प्रतीक, सुदृढ़, अभेद्य तथा गौरवशाली दुर्ग गढ़ कुण्डार बेतवा नदी के तट पर स्थित है। वर्तमान में यह मध्य -प्रदेश के जनपद टीकमगढ़ में आता है।खंगार राजवंश के प्रतापी राजा खेत सिंह खंगार के द्वारा इस किले का निर्माण कराया गया था। यही खंगार राजवंश की राजधानी थी।श्री वृन्दावन लाल वर्मा द्वारा लिखित उपन्यास”गढ़ कुण्डार”इसी कथानक पर आधारित है। इतिहास में खंगार राजवंश का गौरवशाली अतीत रहा है। गुजरात स्थित गिरनार में आज भी भगवान नेमिनाथ के मंदिर में 12 शिलालेख लगे हैं, जिसमें खंगार राजाओं की कीर्ति एवं वंशावली अंकित है। सन् 712 ई.में मुहम्मद बिन कासिम के सिंध आक्रमण के समय वहां के राजा दाहिर,मानासामा, और लोहाना का संबन्ध खंगार राजवंश से था। जूनागढ़ नरेश,रा-नवघण, गुजरात के राजा भीमदेव,मालवा के राजा भोज तथा अजमेर के राजा बीसलदेव का संबन्ध भी इसी राजवंश से है। जूनागढ़ नरेश रा-नवघण के बाद रा-कपाट सौराष्ट्र पति हुए। कुंवर खेत सिंह इन्हीं के पुत्र थे।खेत सिंह की वीरता का बखान चन्द्र बरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में किया गया है। बुंदेलखंड का नाम ” जुझौति” महाराज खेत सिंह खंगार के द्वारा ही दिया गया है।खंड(तलवार)धारण करने के कारण यह खंगार कहलाये। नन्द बाबा के यहां जन्मी पुत्री महामाया,जिसको कंस मारना चाहता था, खंगार राजाओं की कुलदेवी के रूप में पूज्य थी। किंवदंती है कि महाराज खेत सिंह खंगार ने अपनी तलवार से पत्थर की शिला के दो टुकड़े कर दिए थे। कभी चम्बल के बीहड़ों में रहे दस्यु सम्राट मलखान सिंह भी खंगार समाज से ताल्लुक रखते हैं।
निरंतर राष्ट्र- धर्म तथा रक्त- रक्षा में संघर्ष करने वाला जुझारू खंगार राजवंश कालांतर में छिन्न भिन्न हो गया और आज़ एक जाति विशेष के रूप में जाना जाता है। देश के विभिन्न भागों में यह जाति खंगार, मिर्धा,आरख,कनैरा,अक्रवंशी, मंडल आदि विभिन्न नामों से लाखों की संख्या में निवास रत रहकर पुनः संगठित होकर सत्ता में भागीदारी हेतु संघषर्रत है।श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने उनके इस संघर्ष में कंधे से कन्धा मिलाकर उनका साथ दिया है। दिनांक 31.05.2008ई.को जनपद झांसी के दीनदयाल सभागार में आयोजित खंगार समाज के प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम में उन्होंने हिस्सा लिया। उनकी समस्याओं से रूबरू हुए तथा यथाशक्ति उनका निराकरण किया।तब से लेकर निरंतर जब भी खंगार समाज ने स्वामी प्रसाद मौर्य को याद किया,तब-तब वह उनके बीच पहुंचते हैं। अपने को उनसे जोड़ते हैं तथा निरंतर उन्हें आगे बढ़ने की सीख देते हैं।खंगार समाज भी उन्हें अपना प्रिय मानता है। बुंदेलखंड में कहावत है कि,
” गिरि समान गौरव रहे, सिंधु समान सनेह।वन समान वैभव रहे,ध्रुव समान रहे ध्येय।। विजय पराजय न लखें,यम न पावे पंत। जय-जय भूमि जुझौति की,होय जूझ के अंत।।”
डॉ. राजबहादुर मौर्य,झांसी

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Dr. RB Mourya:

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