गरासिया राजस्थान की एक प्रमुख आदिवासी क़ौम है। राजस्थान में सिरोही, उदयपुर और पाली जिलों में मुख्य रूप से इनका निवास है। सिरोही जिले की आबूरोड और पिण्डवारा तहसीलों में गरासियों की बहुसंख्यक आबादी रहती है।
“गरासिया’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “ग्रास’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है चारा या जीवन निर्वाह के साधन। एक अन्य मत के अनुसार ‘गरासिया’ का अर्थ है “पहाड़ों पर रहने वाला मनुष्य।” एक दूसरे मत के अनुसार ‘गिरासिया “का मतलब है- गिरा हुआ या अपमान झेला हुआ। एक मत यह भी है कि यह चौहानवंशी राजपूतों के वंशज हैं। वास्तव में गरासिया को भीलों का ही एक उप समूह कहा जा सकता है। यह लोग भी तीर- कमान रखते हैं।
जनगणना में गरासियों की तीन श्रेणियां बनाई गई हैं- गरासिया, राजपूत गरासिया और भील गरासिया। होलंकी, सोहाल, बासियां, रोडारा इत्यादि गरासिया आदिवासियों के गोत्र हैं। प्रत्येक गोत्र का कोई न कोई संस्थापक होता है, जिसके नाम पर गोत्र चला। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार राजाओं के आने से पहले गरासिया सिरोही, पिण्डवाड़ा और आबू रोड के पहाड़ी इलाकों में रहते थे, जहां उनका स्थानीय शासन था। इस पूरे पहाड़ी क्षेत्र को “भाखर” कहते हैं और यह गरासियों का इलाका था।
गरासिया जनजाति आज भी परम्पराओं में जीती है। उनकी महिलाएं एक खास पोशाक पहनती हैं जो घाघरा और ऊपरी वस्त्र झूटा से मिलकर बनती है। यह कमर पर बांधा जाता है। गरासिया पुरुष एक हाथ में चांदी का कड़ा पहनते हैं। यह जनजाति मुख्य रूप से मांसाहारी है। मक्का और गेहूं भी खाते हैं। फल,शब्जियां और दालें सीमित मात्रा में खाते हैं। पुरुष बाजार से शराब खरीद कर पीते हैं। अंतर्जातीय और बहिरगोत्रीय विवाहों का प्रचलन है। महिलाओं के लिए विवाह का प्रतीक चूड़ा होता है। तलाक होने या विधवा अथवा विधुर होने की स्थिति में स्त्री तथा पुरुष दोनों पुनर्विवाह कर सकते हैं। स्त्री के पुनर्विवाह को नाता कहते हैं। इस समाज में पुरुष उत्तराधिकार का प्रचलन है। महिलाएं सामाजिक दायित्व निभाने के साथ ही दिहाड़ी मजदूरी भी करती हैं। शादी ब्याह में लड़की का मामा पंडित की भूमिका निभाता है।
गरासियों के लिए भूमि मुख्य आर्थिक संसाधन है। अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं। दिहाड़ी मजदूरी भी करते हैं। यहां आपसी झगड़े पंच निबटाते हैं। पंचों के प्रमुख को पटेल कहते हैं। यह पद वंशानुगत होता है। शिव,आबू माता,अबा जी आदि उनके प्रमुख देवी-देवता हैं।भोपा धार्मिक विशेषक होता है। जो उनका पुजारी और ओझा होता है। होली, दीवाली,राखी, गणगौर आदि इनके प्रमुख त्योहार हैं। बैसाख पूर्णिमा को लगने वाला बैसाखी उनका प्रमुख मेला है जहां लड़के और लड़कियां अपना जीवन साथी चुनते हैं।
गरसियों की अपनी स्वतंत्र भाषा है जो वे अपने समुदाय के बीच बोलते हैं। परंतु इस भाषा की अपनी लिपि नहीं है। कुछ लोग इसे देवनागरी लिपि में लिखते हैं।गरासियों में लोककथाओं और लोकगीतों की एक समृद्ध परम्परा है। विशेष अवसरों के लिए उनके पास अलग-अलग गीत हैं। मेलों और त्यौहारों के अवसर पर पुरुष और महिला मिलकर साथ में ढोलक की थाप पर नृत्य करते हैं। गरासिया जनजाति में मृत्यु के बाद भांजा चिता को आग देता है।आज भी यह समुदाय गरीबी से जूझ रहा है।
डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी