धरकार समाज के बीच……

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उत्तर – प्रदेश में धरकार समाज की पहचान एक शिल्पी के रूप में है। इस समुदाय का पारंपरिक पेशा बांस से डलिया,मौनी,टोकरी,बेना, दउरी, तथा बेंत से कुर्सी बनाना है।

धरकार समाज के 99 फीसदी लोगों की जीविका इसी पर आश्रित है। यह समाज अनेक उपजातियों में विभक्त है। धरकार समाज की एक उपजाति बांसफोड कहलाती है। यह घुमंतू तथा खानाबदोश जातियों की तरह जीवकोपार्जन के लिए, बांस की तलाश में, अपने डेरे बदलती रहती है तथा सपरिवार झुंड बनाकर सड़कों के किनारे अस्थायी डेरा डालकर रहने को मजबूर है। एक ऐसी भी उपजाति है जो पत्थर तोड़ने,प्लास्टिक बीनने तथा सुअर पालन का कार्य करती है।

धरकार समाज के लोग शादी-ब्याह ब्याह में बाजा बजाने का भी काम करते हैं। मान्यता रही है कि धरकार समाज की वंशावली रजवाड़ों की रही है।

राजा वेन धरकार समाज के पूर्वज हैं। इस समुदाय के कुछ लोग वेनवंशी टाइटिल भी लगाते हैं। धरकार समाज के लोग सीधे-सादे ,सरल स्वभाव वाले तथा शांति प्रिय होते हैं। इस समाज के पास नौकरी, खेती- बाड़ी,कल कारखाने एवं व्यवसाय का अभाव है। पलायन इस समाज की बड़ी समस्या है। अधिकतर लोग शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन यापन करते हैं। प्रदेश में धरकार समाज अनुसूचित जाति में शामिल अति दलित समाज है। प्रौद्योगिकीकरण के दौर में आज यह समाज भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है। देश तथा प्रदेश में राजनीतिक भागीदारी के अभाव में धरकार समाज अंधेरे और गुमनामी में खो गया है।

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अपने राजनीतिक और सामाजिक जीवन के प्रारम्भिक दौर से ही श्री स्वामी प्रसाद मौर्य का जुड़ाव धरकार समाज से रहा है।वह निरंतर उनके बीच में पहले भी जाते रहे हैं और आज भी जाते हैं। धरकार समाज भी उन्हें अपना प्रिय मानता है और अपने दुःख दर्द उनसे कहता है। दिनांक 16.11.2008 ई. को काली प्रसाद इंटर कालेज, इलाहाबाद में अखिल भारतीय धरकार समाज जागृति मंच के द्वारा विशाल राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिस्सा लिया तथा धरकार समाज को आगे बढ़ाने में अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। आज भी जहां और जब भी धरकार समाज को मदद की दरकार होती है, स्वामी प्रसाद मौर्य उनके कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं और उन्हें संबल प्रदान करते हैं। उक्त कार्यक्रम में, कार्यक्रम के आयोजक श्री अभिमन प्रसाद ने अपने समाज का दर्द बयां करते हुए कहा था,”तुम्हीं शर्तें ताल्लुक तय करो,हम क्या बतायेगें। तुम्हारे पास दरिया है, हमारे पास प्यासे हैं।”अपने समाज को भी झकझोरते हुए उन्होंने कहा,”दफन न कर दे दुनिया कहीं लाश समझकर।जब तक सांस है, करवटें बदलते रहिए।

डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी

इसके कुछ धन्यवाद जो मेरे पास आये…

1- धरकार समाज को लोग भूलते जा रहे । आप जैसे लोगों की कलम ने उनका अस्तित्व बनाये रखा है।

2- मन के अंधेरे को महिमामंडित करने का नाम दिया जाता है, आत्मविश्लेषण करना। जबकि इसका सरल सा उपाय है किसी भी चीज पर सचेतना के साथ रोशनी डालना। आपके सभी लेख गरीबों, पिछड़ों आदि के यथार्थ जीवन से जुड़े चित्र की झलकियां दिखाते है। इसके लिए समाज आपको अनंत समय तक याद करेगा। 🙏🙏🙏

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Dr. RB Mourya:

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