“नागा जनजाति”- एक अनसुलझी पहेली…

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पूर्वोत्तर भारत में निवास करने वाली “नागा” जनजाति का जीवन,रहन – सहन, परिवेश तथा उद्ग्म अभी भी एक अनसुलझी पहेली है। इस समुदाय के बारे में अभी तक कोई व्यवस्थित और वैज्ञानिक ढंग से शोध नहीं हो पाया है।जो कुछ भी हुआ है वह केवल अनुमान पर ही आधारित है।

वस्तुत: नागा जनजाति कई जनजातीय समूहों से मिलकर बनी है जो नागालैण्ड,असम, अरुणाचल प्रदेश, मनीपुर एवं वर्मा (म्यांमार) के पश्चिमी भाग में निवास करते हैं। बर्मी भाषा में “नाका” शब्द का अर्थ है- वे लोग जो कानों में बालियां पहनते हैं और कानों को छिदवाते हैं। कछारी भाषा में “नांग्रा” शब्द का अर्थ होता है- “योद्धा”। लेफ्टिनेंट कर्नल बडाल के अनुसार “नागा वे होते हैं जो पहाड़ियों या पहाड़ों पर रहते हैं।” सभी नागा लोगों के रीति-रिवाज, परमपराएं तथा भाषा थोड़े से हेर – फेर के साथ लगभग समरूप होती है। नागा लोग खुद को “मंगोल” मानते हैं। वह भारत में निवास करने वाले “आर्यों” और “द्रविडों” से न केवल चेहरे मोहरे से भिन्न हैं वरन् उनके रहन-सहन के तौर – तरीके भी बिल्कुल अलग हैं।

वह निरंतर अपने आप से यह प्रश्न करते हैं कि- उनका उद्ग्म क्या है- उनके पूर्वज कौन हैं ?यह देश में सिर्फ अन्य समूहों से अलगाव का मामला ही नहीं है बल्कि वे इसे अपनी अस्मिता या पहचान का सवाल मानते हैं। अपने देश में ही जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या आप चीनी हैं- क्या आप बर्मी या जापानी हैं ? तब वे हतप्रभ रह जाते हैं। नागा बुद्धिजीवी नैचुरियाजो चुचा कहते हैं कि “चूंकि हमारे पास कोई लिखित दस्तावेज या रिकॉर्ड नहीं है इसलिए यह इतिहास तो नहीं है बल्कि कुछ प्रागैतिहासिक जैसा है। हमने जो निष्कर्ष निकाले हैं वे समानताओं पर आधारित हैं, जैसे- रहन – सहन के तौर तरीके, भाषा, आभूषण आदि का एक जैसा होना।दूसरा तथ्य हमारे परम्परागत पहनावों और आभूषणों का- जो हम पहनते थे का जलीय अस्थियों एवं सीपियों से बने हुए होना।” नगालैंड में बोली जाने वाली नई भाषा “जेलियांग्रोंग” वहीं की दूसरी बोली जाने वाली भाषा “जेमी” का वर्णसंकर है जो तीन भाषाओं से प्रथम अक्षर समूहों को जोड़कर बना है। दूसरी सम्पर्क भाषा, जिसे “चकेसंग” कहा जाता है, कोहिमा में तीन भिन्न भिन्न भाषाओं चोकरी, खेझा और संगताम से उत्पन्न हुई है।

नागा समुदाय की प्रमुख जनजातियों में अंगामी,आओ, चाखेसांग, चांग,खियामनीउंगन, कुकी, कोन्याक, लोथा, फौम,पोचुरी,रेंग्मा, सतनाम,सुमी,यिमचुंगरू और जेलियांग हैं। इन्हें तिब्बत- बर्मा भाषा परिवार में वर्गीकृत किया जाता है। प्रतिवर्ष दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में यहां “हार्नबिल” उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें नागालैण्ड की सभी जनजातियां एक जगह आकर उत्सव मनाती हैं और अपनी पारम्परिक वस्तुओं, खाद्य पदार्थों और शिल्पगत चीजों का प्रर्दशन करती तथा बेचती हैं। संगीत और नृत्य नगा जीवन के मूलभूत अंग हैं। वीरता,प्रेम, सुन्दरता और उदारता का गुणगान करने वाले लोकगीत और लोकगाथाएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। नृत्य हर उत्सव का महत्व पूर्ण हिस्सा है। हर त्योहार पर दावत,नाच गाना और उल्लास होता है।

चावल नागालैण्ड का मुख्य भोजन है। यहां मुख्यत:”स्लेश” और “बर्न” खेती प्रचलित है। जिसे स्थानीय तौर पर “झूम” के नाम से जाना जाता है।यह राज्य पूर्व में म्यांमार, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम में असम और दक्षिण में मणिपुर से घिरा हुआ है। असम घाटी की सीमा से लगे क्षेत्र के अलावा इस राज्य का क्षेत्र अधिकांशतः पहाड़ी है।इसकी सबसे ऊंची पहाड़ी “सरमती” है जिसकी ऊंचाई 3,840 मीटर है। यह पर्वत श्रृंखला नगालैंड और म्यांमार के बीच एक प्राकृतिक रेखा खींच देती है।

नागाओं ने अपनी राष्ट्रीय पहचान को क़ायम करने के लिए निरंतर संघर्ष किया है। 1918 में नागा क्लब की स्थापना हुई। 1946 में नागा नेशनल काउंसिल (एन.एन.सी.) की स्थापना की गई। जून 1947 में नागा नेशनल काउंसिल ने ब्रिटिश सरकार के साथ एक समझौता किया जिसमें अन्य बातों के साथ ही वहां की भूमि और उसके संसाधनों पर एन. एन. सी. के पूर्ण अधिकार को स्वीकार किया गया था। 1956 में नागा फेडरल गवर्नमेंट की स्थापना हुई जिसने नागा सेना गठित किया। यह नागालैण्ड में अस्थिरता का दौर था। जुलाई 1960 में नागा जनता की ओर से एन पी सी ने केन्द्र सरकार के साथ एक समझौता किया। 1962 में नागालैण्ड सुरक्षा अधिनियम बना।

1 दिसम्बर 1963 को नागालैण्ड भारतीय संघ का 16 वां राज्य बना। आदिवासियों ने अपने भारतीय बंधुओं के साथ एकजुटता की यात्रा शुरू कर दी है। अब हमें दो कदम आगे बढ़ना है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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Dr. RB Mourya:
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