ईश्वर के प्रिय बच्चे – “लेपचा आदिवासी” …

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भारत के पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जनपद, सिक्किम तथा पूर्वी नेपाल के पर्वतीय जिले इलाम, तिब्बत व पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम भूटान में “लेपचा” जनजाति के लोग पाये जाते हैं। इस समुदाय की अपनी भाषा भी लेपचा है जिसकी लिपि, तिब्बती लिपि से ली गई है। ईसाई प्रभाव से पहले लेपचा मूल रूप से बौद्ध धर्म के अनुयाई थे।

कृषि एवं पशुपालन इनका प्रमुख पेशा है। इलाम में एक लेपचा जनजाति का संग्रहालय भी है। यह लोग स्वयं को “मुतांची रोंग कुप” कहते हैं जिसका अर्थ है- मां, प्रकृति तथा ईश्वर के प्यारे बच्चे। संक्षेप में वे खुद को केवल मुतांची या रोंग कहते हैं। लेपचा शब्द अनुमानतः लापचाओं का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है- रास्ते में ठहरने या इंतजार करने का स्थान। ऐसे स्थानों पर साधारणतया राहगीरों की सुविधा के लिए पत्थरों पर संकेत अंकित होते हैं। इलाम में इस समुदाय के लिए “लापचा” शब्द प्रयुक्त होता है। रोंग लोग परस्पर वार्ता में एक दूसरे को गर्व से “मुतांची” अथवा “रोंग” ही कहते हैं।

यद्यपि भाषा और संस्कृति के आधार पर लेपचाओं में कोई विभाजन नहीं है लेकिन राजनीतिक और भौगोलिक रूप से लेपचा आदिवासी समुदाय चार समूहों में विभाजित है- रेंग ज्योंगमू, इलम्मू, दमसंगमू तथा प्रोमू। रेमू ज्योंगमू सिक्किम, दार्जिलिंग, कुर्सियोंग और सिलीगुड़ी क्षेत्र के लेपचा हैं। 1835 तक यह क्षेत्र सीधे सिक्किम प्रशासन के अधीन था। इलम्मू, इलाम के लेपचा हैं। इलाम पहले “माएल ल्यांग” का भाग था जो बाद में सिक्किम में आ गया। 2 दिसम्बर 1815 को अंग्रेजों की मध्यस्थता में सिक्किम तथा नेपाल के बीच “सुगाओली” की संधि हुई जिसके अनुसार यह नेपाल के अधिकार क्षेत्र में चला गया। दमसंगमू आज के कालिमपोंग यानी पुराने दमसंग सब-डिवीजन के लेपचा हैं। कभी दमसंग स्वतंत्र प्रदेश था। 1781 में पानो गायबू अच्योक की मृत्यु के बाद भूटान ने इसे अपने साथ मिला लिया। 1865 में ब्रिटिश सेना ने भूटानियों को डेलिंग किले के पास “दमसंग” में परास्त कर उसे ब्रिटिश क्षेत्र में मिला लिया था। “प्रोमू”, भूटानी लेपचा हैं। यह पश्चिमी भूटान में बसे हैं। लेपचा भाषा में “प्रो” का मतलब भूटान होता है।

लेपचा समुदाय प्रकृति प्रेमी हैं। दार्जिलिंग और इलाम में पायी जाने वाली वनस्पतियों और पशुओं के बारे में उनकी जानकारी अप्रतिम है। मां प्रकृति ने लेपचा जनजाति को जी भर कर दिया है। लेपचा लोग पहाड़ों, नदियों, बादलों, जलस्रोतों, पत्थरों, धरती, मिट्टी, पेड़ों तथा सूर्य को मां पृथ्वी का रूप मानकर अपना प्यार, आदर और आराधना अर्पित करते हैं। वे अपनी प्रार्थनाओं और आह्मनों में सभी पहाड़ों, चोटियों, नदियों और प्रकृति के सभी अंगों के नाम लेकर पुकारते हैं। वे अपनी “रुम फाट” नामक प्रार्थना में अपने सर्व शक्तिमान ईश्वर “रुम दार “को धन्यवाद देते हैं और उसे याद करते हैं। लेपचा लोगों की अपनी विशिष्ट भाषा, साहित्य, संस्कृति, परम्पराएं, धर्म, मिथक, त्योहार, सभ्यता और जीवनशैली है जिसमें वह जीते हैं।

लेपचा समुदाय का अपना एक इतिहास है। उनके प्राचीन राज्य का नाम “माएल ल्यांग” है। जिसका शाब्दिक अर्थ है- “लेपचाओं के छिपे स्वर्ग का देश।” यह उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में तितालियाया तक और पूर्व में सिक्किम, भूटान और तिब्बत के मिलन बिंदु पर स्थित गिपमोची पहाड़ से लेकर पश्चिम में नेपाल की अरुण नदी तक फैला हुआ था। लेकिन कालांतर में उनका यह वैभव कुछ आपसी कलह के कारण और कुछ विश्वास घात के कारण नष्ट हो गया और आज यह लोग दर बदर की ठोकरें खाने के लिए अभिशप्त हैं। सीधे साधे लेपचा लोगों को पूछने वाला अब कोई नहीं है।इनका भविष्य निराशाजनक है। धीरे धीरे यह समुदाय लुप्त होता जा रहा है। ग़रीबी और बेरोजगारी ने इस समुदाय को विपन्नता की स्थिति में पहुंचा दिया है। इन्हें सहयोग तथा सम्बल की आवश्यकता है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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