किसी भी भू-भाग के ज्ञात प्राचीनतम निवासियों को मूलनिवासी अथवा आदिवासी कहते हैं। विश्व की कुल जनसंख्या के 6 अरब में से 3 अरब 70 करोड़ लोग मूलनिवासी हैं जो करीब 70 देशों में रह रहे हैं। उत्तर – अमेरिका में रेड इंडियन, दक्षिण- अमेरिका में बुश नीग्रो, अफ्रीका में सान की हो, मैक्सिको में माया, न्यूजीलैंड में मोरानी, आस्ट्रेलिया में कुरी,नुनगा,टी वी तथा यूरोप में खिनालुग,कोमी,सामी मूलनिवासी समुदाय हैं।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में आदिवासियों की कुल तादाद 8 करोड़ 20 लाख थी।ऐसी ही देश की एक जनजाति है सहारिया,जो मध्य – प्रदेश के गुना, ग्वालियर, शिवपुरी,भिंड, मुरैना, विदिशा और रायसेन जिले में पायी जाती है। मध्य-प्रदेश प्रदेश से लगे हुए उत्तर – प्रदेश के ललितपुर तथा झांसी जनपद में भी सहारिया समुदाय के लोग पाये जाते हैं।
उत्तर – प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया है। उड़ीसा के गंजाम, मद्रास के विशाखापत्तनम तथा छत्तीसगढ़ के जिलों में सहारियों का निवास है। सहारिया समुदाय के लोग सीधे-सादे कम बोलने वाले,दब्बू तथा भोले होते हैं। यह घास फूस, बांस, लकड़ी और गारा मिट्टी की टटिया दीवारों से बनी झोपड़ियां बनाकर रहते हैं। इनका रहन – सहन सादा और आडम्बर हीन होता है। यह समाज रूढ़ियों और परम्पराओं में जकड़ा हुआ है। ऊपर से आर्थिक अभावों और सदैव संघर्ष की स्थिति ने सहारियाओं की सामाजिक प्रगति को अवरुद्ध कर रखा है। प्राकृतिक वनों में ठेकेदारी प्रथा लागू होने से सहारिया समुदाय के पास मज़दूरी के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। लकड़ी की टोकनी बनाना, झाड़ू बनाना,रस्सी बुनना इनके परम्परागत पेशे हैं। ठाकुर देव, भैरों देव, नाहर देव, परीत देव उनके आदि देव हैं। कोटवार, बराई, भोपा, हथनरिया तथा गांव के वयोवृद्ध सहारिया, पंचायत में पांच – पंच के रूप में सम्मान पाते हैं।
अन्य समाजों की भांति, सहारिया समुदाय के लोगों के बीच भी श्री स्वामी प्रसाद मौर्य पहुंचते हैं। जब भी उनका ललितपुर तथा झांसी का दौरा होता है, तब-तब सहारिया समुदाय के लोग उनसे मिलते हैं तथा अपनी समस्याओं से उन्हें रूबरू कराते हैं। वर्ष 2017 मार्च, के बाद से अब तक लगभग आधा दर्जन दौरे उनके दोनों जनपदों के हो चुके हैं। इसके पहले भी दिनांक 22 जनवरी 2008 को झांसी, दिनांक 27 जनवरी 2008 को ललितपुर, 31 जनवरी 2008 को झांसी तथा 20.10.2011 को श्री स्वामी प्रसाद मौर्य झांसी आये। अपने सम्बोधन में वह सहारिया समुदाय को कुरीतियों तथा व्यसनों से दूर रहने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें बच्चों की अच्छी तालीम के लिए कहते हैं।
वस्तुत:जिसे हम हासिये का समाज कहते हैं उसका अधिकांश ज्ञात स्तर पर देश का मूलनिवासी है।वह इस देश की संस्कृति व सभ्यता का निर्माता है। इस राष्ट्र की भूमि का असली वारिस है। देश को ऐसी मानसिकता, समानता, सामूहिकता, प्रकृति व प्राणियों के साथ सह -अस्तित्व,श्रम की महत्ता आदि में विश्वास करना चाहिए,जो आदिवासियों की मूल भावना तथा पहचान है। 1999 में प्रकाशित पुन्नी सिंह का उपन्यास “सहराना” आदिवासियों के शोषण और पीड़ाओं पर केन्द्रित है।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी