दक्षिण अंडमान द्वीप के पश्चिमी तट के समीप एक “नार्थ द्वीप” सेंटीनेल है जहां “सेंटीनली” आदिवासी जनजाति के लोग रहते हैं। यह दुनिया के आश्चर्यजनक मानव हैं जिनके बारे में शेष दुनिया के पास कोई जानकारी नहीं है। इन “नीग्रिटो” आदिवासियों से शायद आज तक कोई बाहरी मनुष्य नहीं मिल सका है। इनका जीवन एक “अनबूझ पहेली” है।
यहां न तो कभी कोई जनगणना हुई है और न कभी किसी ने इस द्वीप में जाने का साहस ही किया। सरकारी अनुमानों में उनकी संख्या लगभग 70 से लेकर 80 बतायी जाती है जबकि कुछ लोग भूमि और वनस्पति की उपलब्धता के आधार पर इनकी जनसंख्या 250 तक होने का अनुमान लगाते हैं। प्रशासन ने अनेकों बार उनसे संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया परन्तु वे सभी असफल सिद्ध हुए। सम्भवतः जीवित रहने की इच्छा शक्ति उन्हें आधुनिक सभ्यता के सम्पर्क में आने से रोक रही है।
“सेंटीनली” आदिवासियों की जितनी झलक अब तक मिल सकी है उस आधार पर लगता है कि वे ओंगी,अंडमानी और जरावों से भी कुछ और अधिक लम्बे व हष्ट -पुष्ट हैं। उनकी अद्भुत शारीरिक शक्ति का आभास उनके बहुत बड़े विशाल धनुषों तथा तीरों से मिलता है जिन्हें वे अपने लक्ष्य पर कुशलता से साधने में सफल होते हैं। एक बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार का एक दल स्थानीय प्रशासन के कुछ अधिकारियों के साथ “मैन इन सर्च आफ मैन” का एक वृत्त चित्र बनाने इस द्वीप के समुद्र तट के समीप पहुंचने में सफल हुआ।वे वहां बालू तट पर कुछ केले, नारियल आदि रख कर वापस नाव पर आ गए,जो समुद्र तट से करीब 200 मीटर दूर खड़ी थी। कुछ समय बाद सेंटनली लोग समुद्र तट पर आए तथा उत्तेजित हो कर उन लोगों से वापस जाने का इशारा करने लगे।
उनके क्षेत्र में इस तरह घुस आने से वह अत्यंत क्रोधित थे तथा प्रचंड रूप से अपना क्रोध व्यक्त करते हुए उनकी तरफ तीर छोड़ने लगे। एक तीर कैमरा मैन के पांव में आकर लगा। सभी लोग वापस लौट आए। सेंटनली आदिवासी लोग तीर चलाते समय अपना लक्ष्य आसमान की ओर करते हैं क्योंकि तीर परवलयिक उड़ान भरता है इसलिए उसकी गति व लक्ष्य में विशेष नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इस आदिवासी समुदाय के जीवन की कुछ झलक कभी कभी पश्चिमी तट पर जलयान में यात्रा करते हुए मिल जाती है, किंतु आज भी उनकी दिनचर्या,रहन -सहन आदि सब कुछ एक पहेली बनी हुई है।
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