रहस्यमयी दुनिया में जीते “सोम्पेन आदिवासी”…

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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पायी जाने वाली जनजातियों में जारवा, ओंगी, संतनली और अंडमानी आदिवासी नीग्रिटो वर्ग के आदिवासी हैं जबकि “सोम्पेन आदिवासी” मंगोली वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। यह लोग ग्रेट निकोबार के द्वीप की नदियों के किनारे घने जंगलों में छिप कर रहते हैं। इन्होंने घने जंगलों के बहुत अंदर अपनी झोपड़ियां बनायी हैं। चारों ओर से घनी वनस्पतियों से घिरे होने के कारण यह झोपड़ियां दूर से नज़र नहीं आती हैं।

सोम्पेन समुदाय कृषि से पूर्णतया अनभिज्ञ है और मुख्यतया नारियल,केले, केवड़ा, कंदमूल के अलावा मछली, जंगली सूअर, छिपकली आदि से अपना जीवन यापन करते हैं। यह लोग शहद बहुत चाव से खाते हैं। सोम्पेन आदिवासियों ने शहद निकालने की विशेष कला सीखी है।छत्ते से मधुमक्खी को बिना भगाये यह लोग आराम से शहद निकाल लेते हैं। वे एक विशेष प्रकार की पत्तियों का रस अपने बदन पर मल लेते हैं जिसकी सुगंध से मधुमक्खियां उन्हें नहीं काटतीं, यद्यपि वे उनके चारों ओर मंडराकर गुनगुनाती रहती हैं। यह लोग अत्यंत भीरु व शर्मीले स्वभाव के होते हैं तथा किसी अन्य व्यक्ति को, जो उनकी जाति या समुदाय का न हो, उसकी नज़र पड़ते ही यह गायब हो जाते हैं।

आधुनिकता के इस दौर में भी यह परम्परा में जीते हैं। दो पत्थरों को आपस में रगड़कर ये आग पैदा कर लेते हैं। अपने दैनिक जीवन में यह लोग बांस व पेड़ की छालों का प्रयोग करते हैं। समुद्र के तट पर बहकर आए बांस व लकड़ी के टुकड़ों से यह अपनी डोंगी स्वयं बनाते हैं और उसके साथ एक अन्य बांस अलग से जोड़ देते हैं जिससे कि नाव उलट न सके। आज भी इस समुदाय में कपड़े के नाम पर पुरुष लंगोट व महिलाएं पत्तियों या पेड़ की छालों के पेटीकोट पहनती हैं। एक दौर में मलाया के समुद्री डाकुओं द्वारा इन्हें पकड़ कर गुलामों के रूप में दक्षिण -पूर्व एशिया में बेंच दिया जाता था। इसी कारण से आज भी इनके मन में बाहरी लोगों को लेकर भय व्याप्त है। शायद यही कारण है कि प्रशासन के लिए इन आदिवासियों से आज तक संपर्क स्थापित करना संभव नहीं हो पाया है। परिणामस्वरूप अभी तक इनकी कोई जनगणना सम्भव नहीं हो पाई है।

ग्रेट निकोबार द्वीप का मुख्यालय “कैम्पल बे” है जो पोर्ट ब्लेयर से 294 नौटिकल मील दूर है।ऊंचे पहाड़ों तथा “एलेक्जेंड्रिया” व “गलतिया” जैसी बड़ी नदियों के निकोबार द्वीप में ग्रेट निकोबार सबसे बड़ा द्वीप समूह है। यहां के दो बड़े मार्गों पूर्व -पश्चिम तथा उत्तर- दक्षिण ने यातायात को सुगम बना दिया है। यहां एक विशेष प्रकार का पपीता मिलता है जो अंदर से बिल्कुल लाल होता है और बहुत स्वादिष्ट होता है। “इंदिरा गांधी प्वांइट” इस द्वीप तथा देश का सबसे दक्षिणी छोर है जो अत्यंत रमणीय स्थान है। यहां एक प्रकाश स्तंभ भी है जो कोलम्बो तथा सिंगापुर के बीच चलने वाले जहाजों का पथ -प्रदर्शन करता है। बंदरों की एक अजीब किस्म की जाति केवल इसी द्वीप में पायी जाती है। पश्चिमी तट में एक छोटा सा मैगापौड द्वीप है जहां संसार में दुर्लभ पक्षी “मैगापौड” पाया जाता है।”पिगमैलियन प्वांइट” तथा “गलतिया” नदी का नाम यूनानी देवी- देवताओं के नाम पर है।

“सोम्पेन “आदिवासियों की कुछ बस्तियों में उनको भय व शर्म से मुक्त कर उनसे जन संपर्क करने में हाल के वर्षों में विशेष सफलता मिली है। उनके बच्चों की शिक्षा के लिए एक स्कूल भी खोल दिया गया है। कुछ खाने की वस्तुओं का आदान-प्रदान भी अब यह लोग करने लगे हैं।

-डॉ.राजबहादुर मौर्य,झांसी



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Dr. RB Mourya:
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