– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुन्देलखण्ड कॉलेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya@ gmail.com, website : themahamaya.com
दिनांक 4 जनवरी सन् 1928 ई. को राजस्थान प्रांत के जनपद अजमेर में एक मध्यम वर्गीय जैन परिवार में ममतामयी मां भून कुंवर तथा परम पूज्य पिता श्री नाहर सिंह कोठारी के घर जन्मे प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी, बुंदेलखंड के उच्च शिक्षा जगत की अनमोल धरोहर हैं। कुशाग्र बुद्धि, श्रम साधना के प्रतिबद्ध पुजारी, सत्यवादी और स्पष्ट वक्ता प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी जी की प्राथमिक, उच्च प्राथमिक तथा इंटरमीडिएट तक की शिक्षा श्रषिराज कालेज अलवर, राजस्थान से सम्पन्न हुई।रेल विभाग की नौकरी करने वाले पिता श्री नाहर सिंह कोठारी के निरंतर स्थानांतरण के कारण प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी के अध्ययन संस्थान भी बदलते रहे।
वर्ष 1948 में पिता जी स्थानांतरण के कारण वह सपरिवार उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर आ गए। यहीं विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कालेज कानपुर से प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी ने स्नातक शिक्षा ग्रहण की। उनकी परास्नातक शिक्षा वर्ष 1950 में सागर विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश से, प्रथम श्रेणी में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त कर पूर्ण हुई। दिनांक 19 जुलाई 1950 ई. को प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी बुंदेलखंड महाविद्यालय झांसी में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए।आज का बुंदेलखंड कालेज (बी के डी) तब टपरा कालेज के नाम से जाना जाता था तथा जहां पर आज भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा है, यहीं पर अभी 1949 में ही स्थापित किया गया था।
हिन्दी, अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोलने वाले प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी अन्य कई भारतीय भाषाओं के पारंगत विद्वान थे। राजनीति शास्त्र के तत्कालीन विद्वान मानते हैं कि कि प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी को राजनीति शास्त्र की गहरी समझ थी। दिनांक 8 अक्टूबर 1960 को वह बुंदेलखंड महाविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष बने। दिनांक 1 सितम्बर 1970 से 30 जून 1971 तक प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी, जनपद रायबरेली में फ़ीरोज़ गांधी कालेज के प्राचार्य भी रहे। परन्तु बुंदेली धरा की खुशबू उन्हें पुनः बुंदेलखंड महाविद्यालय में खींच लायी। दिनांक 1 जुलाई 1971 को पुनः वह बुंदेलखंड कालेज में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष बने। वर्ष 1971 और 1978 में बुंदेलखंड महाविद्यालय के प्राचार्य भी रहे।
महाविद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रदेश और देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी विभिन्न शैक्षणिक समितियों व संगठनों से जुड़े रहे। लगभग तीन दशक तक महाविद्यालय परिवार को अपनी सेवाएं देने वाले प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी का मात्र 54 वर्ष की उम्र में, सेवाकाल की अवधि में ही दिनांक 27 जनवरी 1982 ई. को मस्तिष्क पक्षाघात के कारण ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में अकस्मात निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में झांसी का अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था। पूरी झांसी में अभूतपूर्व बंदी थी। उनके साथी रहे प्रोफेसर विजय गोपाल श्रीवास्तव बताते हैं कि उनकी अंतिम यात्रा में हर किसी की आंखें नम थीं।
बुंदेलखंड महाविद्यालय परिवार ने अश्रु पूरित नेत्रों से अपने प्रिय साथी को अंतिम विदाई दिया। प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी की स्मृति को संजोने के लिए महाविद्यालय परिवार ने उनकी विशाल प्रतिमा महाविद्यालय परिसर में स्थापित किया तथा म्यूजियम का निर्माण कर उन्हें समर्पित किया। कालेज के प्राध्यापकों ने उनकी स्मृति में एक स्मारिका का भी प्रकाशन किया था। जिसमें शहर के गणमान्य लोगों ने भी प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी तथा उनके निधन को अपूर्णनीय क्षति बताया था। कालेज में हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष रहीं प्रोफेसर कुसुम गुप्ता याद करते हुए कहती हैं कि प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी, सचमुच शेर थे – निर्भीक और निडर।
कर्म को धर्म मानने वाले तथा यश की कामना से कोसों दूर, शिक्षा के लिए समर्पित प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी की धर्म पत्नी श्रीमती बिन्दा कुमारी थी। अपने माता-पिता के प्रति श्रवण कुमार जैसी भक्ति रखने वाले प्रोफेसर कोठारी का एक बेटा श्री वीरेन्द्र कोठारी तथा दो बेटियां अनुराधा कोठारी ( परिनिवृत) व मधुलिका कोठारी है। आई.आई.टी. से बी. टेक की शिक्षा पूरी कर बेटा निजी क्षेत्र की कम्पनी में कार्यरत है।
प्रसन्न बदन, प्रतिभा सम्पन्न, हंसमुख स्वभाव, अच्छे प्रशासक व शिक्षाविद प्रोफेसर शेर सिंह कोठारी का सम्पूर्ण जीवन एक जलती हुई मशाल है। निष्पक्षता, निर्भीकता, विनम्रता, सहनशीलता व अनुशासन प्रियता उनके व्यक्तित्व की विशेषताएं थीं।सर्व धर्म समभाव, त्याग भावना तथा उदारता उनके जन्मजात संस्कार थे। महाविद्यालय के निर्माण हेतु चन्दा एकत्र करते हुए कभी भी उन पर एक पैसे हेरा फेरी का आरोप नहीं लगा।उनका निजी जीवन भी बहुत साफ सुथरा था। उनके विरोधी भी उन पर यह आरोप नहीं लगा पाए कि वह कभी भी भाई भतीजावाद के शिकार हुए हैं।
वर्ष 2010 में बुंदेलखंड महाविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग में नौकरी प्रारम्भ करने के साथ ही न जाने क्यों मेरा उनसे एक अनजाना सा रिश्ता हो गया। यद्यपि मैं कभी उनके परिवार से भी नहीं मिल पाया, सिर्फ एक बार उनके बेटे से फोन पर बात कर पाया हूं …! बावजूद इसके इतने दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो जब वह मेरी स्मृतियों में न रहे हों। कभी कभी विभाग में अकेले बैठे मेरी तन्हाई उनकी मूर्ति को एकटक देखती रहती है। शायद मैं उनसे संवाद स्थापित करने का प्रयास करता हूं…! प्रति वर्ष कृतज्ञता पूर्वक उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि और दीपदान कर उनसे प्रेरणा और आशीर्वाद लेता हूं…!
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति शास्त्र विभाग, बुंदेलखंड महाविद्यालय झांसी (उ. प्र.)
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मैं भी कभी उनका छात्र रहा हूं
रवि चतुर्वेदी
जी, बिल्कुल ।आपने सच कहा ।
धन्यवाद गुरु जी।
आज इस लेख को पढ़कर एक नई जानकारी मिली कि बुंदेलखंड महाविद्यालय का पूर्व नाम टपरा महाविद्यालय था।
धन्यवाद गुरु जी।
आज इस लेख को पढ़कर एक नई जानकारी मिली कि बुंदेलखंड महाविद्यालय का पूर्व नाम टपरा महाविद्यालय था।
धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद आपको
राजनीति विज्ञान के प्रखर विद्वान स्वनामधन्य प्रोफ़ेसर शेर सिंह कोठारी को नमन ।