श्री अरुण कुमार शर्मा : बेज़ुबानों के रहनुमा

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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश) email : drrajbahadurmourya@gmail.com, website : themahamaya.com

बुन्देलखण्ड कॉलेज झाँसी, में मनोविज्ञान विभाग में प्रयोगशाला सहायक के पद पर कार्यरत श्री अरुण कुमार शर्मा बेज़ुबानों के रहनुमा हैं । सरकारी नौकरी तथा पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के साथ ही उन्होंने अपने जीवन को कुत्तों, बिल्लियों, पशु- पक्षियों और अन्य बेज़ुबान प्राणियों की सेवा में समर्पित कर रखा है । वर्ष 2010 में बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी में आने के बाद आज तक मैं उनकी इस निःस्वार्थ सेवा भाव का साक्षी और मुरीद हूँ । मुझे यह नहीं मालूम कि उनके इस करुणा भाव और प्रेम की पीछे कौन सी प्रेरणा है ? परन्तु जब भी मैं उन्हें देखता हूँ तो उनके इस पुनीत कार्य के प्रति मेरा सर झुक जाता है । मन करता है कि कॉलेज में प्रोटोकॉल और अनुशासन से इतर उनसे बात करुं और उनका सम्मान करूँ ।

परिचय

दिनांक 16 अगस्त, 1963 को मुहल्ला नरसिंह राव टौरिया, झाँसी शहर में ममतामयी मॉं श्रीमती इंदिरा शर्मा और पिता श्री मक्खन लाल शर्मा के घर जन्में अरुण कुमार शर्मा ने दिनांक 3 सितम्बर, 1991 को बुंदेलखंड कॉलेज में नौकरी ज्वाइन किया । इसके ठीक 6 माह पूर्व दिनांक 1 मार्च, 1990 में श्रीमती रीता शर्मा के साथ उनका विवाह हुआ । उनका एक बेटा सागर शर्मा और बेटी चारु शर्मा है । छोटी नौकरी करके भी श्री अरुण कुमार शर्मा ने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलायी । बेटा बी. टेक और एम. बी.ए. करके बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है जबकि बेटी भी मैनेजमेंट में एम. बी. ए. की शिक्षा प्राप्त कर अपना व्यवसाय कर रही है । दिनांक 31 अगस्त, 2023 को अरुण कुमार शर्मा जी अपनी सेवा को पूर्ण कर सेवानिवृत्त हो रहे हैं । अरुण कुमार शर्मा ने इसी बुंदेलखंड कॉलेज से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की है जबकि इंटरमीडिएट की शिक्षा उन्होंने एस पी आई इंटर कॉलेज से ग्रहण की है । कक्षा एक से आठ तक की उनकी औपचारिक शिक्षा नार्वल स्कूल, कचेहरी चौराहा, झाँसी में सम्पन्न हुई है ।

श्री अरुण कुमार शर्मा, झाँसी (उत्तर-प्रदेश)

जीवन संघर्ष

मात्र 13 वर्ष की आयु में अरुण कुमार शर्मा के पिता जी का असामयिक निधन हो गया और परिवार चलाने की पूरी ज़िम्मेदारी उन पर आ गई । उनके पिता श्री माखनलाल शर्मा झाँसी में ही दैनिक जागरण में समाचार संवाददाता थे इसलिए कोई स्थायी नौकरी तो नहीं । हॉं घर अवश्य चल जाता था, वह भी तंगी में । उन्होंने बताया कि जब उनके पिता का देहान्त हुआ तो उनकी कुल जमा पूँजी 250 रुपये बची थी । ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी अरुण शर्मा ने धैर्य नहीं खोया और अपने पिता जी की तेरहवीं संस्कार के ठीक दूसरे दिन ही उन्होंने दैनिक भास्कर में ही नौकरी कर ली । उस समय उन्हें इस काम में 200 रूपये प्रतिमाह मिलने लगे । इससे उन्हें थोड़ी राहत मिली और खाने- पीने की व्यवस्था हो गई । मुफ़लिसी के इस दौर में अरुण शर्मा ने एक फेरी वाले के रूप में साइकिल पर गट्ठर बनाकर गली मुहल्ले में रेडीमेड कपड़ों की बिक्री का भी काम किया । चूँकि उनके ननिहाल पक्ष के लोग रेडीमेड का व्यवसाय करते थे इसलिए उन्हें उधारी पर कपड़े मिल जाते थे जिसे बेच कर वह पैसा अदा कर देते थे । इसी के साथ ही उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी ।

पढ़ाई, रेडीमेड कपड़ों की बिक्री और रात्रि में अख़बार में मुलाजिम बनकर अरूप शर्मा ने घर – गृहस्थी को सम्भाला । थोड़ी-थोड़ी बचत करके उन्होंने पंचकुइंचा चौराहे पर एक च्वाइस लेडीज़ गारमेन्ट्स नाम की दुकान खोली । अब उनके पास जीविका का एक साधन हो गया । यहीं से उनके सामाजिक सम्बन्धों का भी विस्तार हुआ । अरुण शर्मा ने बताया कि यहीं दुकान पर बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी में तत्कालीन मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. जी. प्रकाश सामान लेने आती रहती थीं । चूँकि मैं ख़ाली समय में अपनी किताबें पढ़ता रहता था, तभी एक दिन प्रकाश मैडम ने मुझसे कहा कि क्या वह कॉलेज में नौकरी करना चाहते हैं ? मुझे लगा जैसे मेरा भाग्योदय होने वाला है । मैंने विनम्र भाव से कहा कि यदि ऐसा हो सकता है तो मैं आजीवन आपका एहसान मानूँगा । उन्होंने मुझे कॉलेज के प्रबंधक श्री भीम प्रकाश त्रिपाठी जी से मिलवाया और इस तरह मैं बुंदेलखंड कॉलेज में अस्थायी रूप से काम करने लगा । कालान्तर में मैं नियमित हो गया ।

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बेज़ुबानों से लगाव

बक़ौल, अरुण शर्मा “वर्ष 2005-06 में मैं सपरिवार ऑंतिया तालाब के पास शक्ति नगर मुहल्ले में रहता था । यहीं मेरे घर के पास एक कुतिया ने 4 बच्चों को जन्म दिया था । परन्तु जन्म देने के बाद उसकी मौत हो गई । उसके बच्चे अनाथ हो गए । उन्हें इस हालत में देखकर मुझसे नहीं रहा गया और मैं उन्हें अपने घर ले आया ।यहीं पर मेरी पत्नी और मैंने मिलकर उनकी परवरिश किया । उनकी परवरिश करते, उन्हें प्यार करते और उनके साथ समय बिताते हुए मैं भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ गया । बड़े होकर वह सब तो चले गए लेकिन प्रेम की जो डोर मैंने उनसे बाँधी वह आज तक नहीं टूटी ।” तब से लेकर आज तक जगह- जगह जाकर कुत्तों को खाना खिलाना, बीमार होने पर उनकी दवा करना अरुण शर्मा का दैनिक कार्य हो गया । इस कार्य में उनकी धर्म पत्नी रीता शर्मा कन्धे से कन्धा मिलाकर उनकी मदद करती हैं ।

वर्ष 2010 के बाद अरुण कुमार शर्मा ने अपना आशियाना सारन्ध्रा नगर में बनाया । यहाँ भी बेज़ुबान प्राणियों से उनका प्रेम प्रगाढ़ होता गया । वर्ष 2012 मैं निजी तौर पर उनसे मिलने उनके घर गया । चूँकि झाँसी मेरे लिए नया शहर था इसलिए मुझे बस्तियों की सटीक जानकारी नहीं थी । मैं अपनी पत्नी के साथ पूछते हुए जब उस कालोनी में पहुँचा तो पहले मोड़ पर खड़े हुए एक सज्जन से मैंने अरुण शर्मा के मकान का पता पूछा । उन सज्जन ने मुझे बड़ी आत्मीयता के साथ उँगली से उनके घर की ओर जाने वाली गली की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि जहाँ पर लगभग एक दर्ज़न कुत्ते बैठे मिल जाएँ, समझना वही अरुण शर्मा का मकान है । घर पहुँचने पर पता चला कि जितने कुत्ते यहाँ पर घर के सामने बैठे हैं उतने ही घर की छत पर आराम फ़रमा रहे हैं ।

समर्पण

छोटी सी नौकरी करने वाले अरुण शर्मा का दिल बहुत बड़ा है । पिछले लगभग एक दशक से अपने वेतन का एक हिस्सा वह इन बेज़ुबान प्राणियों के खाने- पीने और दवा में खर्च करते हैं । प्रतिदिन दो से ढाई लीटर दूध केवल कुत्तों को पिलाने के लिए ख़रीदते हैं । प्रतिदिन 100 रुपये की ब्रेड उनके नास्ते के लिए ख़रीदते हैं । उनकी धर्म पत्नी श्रीमती रीता शर्मा प्रतिदिन 100 रोटी केवल कुत्तों के लिए स्वयं बनाती हैं ।उनके घर में काम करने वाली कोई बाई नहीं है । जब मैंने इस सिलसिले में उनसे पूछा कि आप बाई क्यों नहीं रखतीं तो उन्होंने बताया कि जब मैं यहाँ नई- नई रहने के लिए आयी थी तो बाइयाँ काम की तलाश में आती थीं । वह मुझसे पूछती कि कितने लोगों का खाना बनाना है तो मैं जबाब देती दो लोगों का । तब वह शीघ्र काम करने को तैयार हो जाती, परन्तु जैसे ही मैं उनसे बताती कि रोटी 100 रोज़ बनानी पड़ेंगी तो वह तौबा करके काम छोड़ देतीं थीं और अब तो कोई पूछने भी नहीं आता । इस तरह अरुण शर्मा जी का लगभग 6 से 7 हज़ार रुपये प्रतिमाह इन बेज़ुबानों की सेवा में खर्च हो जाता है ।

कोविड -19 और लॉक डाउन का दौर

पिछले सालों में पूरी दुनिया ने कोविड-19 जैसी भयावह महामारी का सामना किया है । उस दौर में किए गए लॉक डाउन ने इंसानों को घरों में क़ैद होने पर मजबूर कर दिया था । ऐसे दौर में सबसे अधिक कष्ट मनुष्यों पर निर्भर रहने वाले जीवों को उठाना पड़ा । ऐसे कठिन दौर में भी अरुण शर्मा का कुत्तों को खिलाने का अभियान कभी नहीं रूका । विपरीत हालातों में भी वह अपने घर से प्रतिदिन खाना बनवाकर कुत्तों को खिलाने कॉलेज आते थे । कॉलेज परिसर में रहने वाले कुत्ते ठीक उनके आने के सुनिश्चित समय पर गेट पर उनका इन्तज़ार करते थे । ऐसा कभी नहीं हुआ जिस दिन अरुण शर्मा ने उनके खाना खाने की व्यवस्था न की हो । यदि कभी ऐसा हुआ कि वह नहीं आ पाते तो उसके एक दिन पहले ही हल्लू को पैसा देकर सहेज जाते कि मेरी अनुपस्थिति में इनके खाने की व्यवस्था कर देना । आज भी कॉलेज में रहने वाले कुत्ते सुबह बड़ी बेसब्री से अरुण शर्मा का इन्तज़ार करते हैं और कॉलेज के गेट पर आते ही उनको लेकर कैम्पस में जाते हैं और वहाँ पर बैठकर बारी- बारी से अपना खाना लेते हैं । कभी किसी पर झपटते नहीं । अरुण शर्मा ने इन सभी के नाम भी रखे हैं – खित्तू, कालू, गोल्डी, रिप्पी, सोना, तेंदु इत्यादि ।

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ब्रेन स्ट्रोक, कोमा और नवजीवन

दिनांक 13 फ़रवरी, 2014 की रात लगभग 2 बजे अचानक अरुण शर्मा को ब्रेन स्ट्रोक हो गया और वह तुरन्त कोमा में चले गये । लगभग 15 दिन वेंटिलेटर पर जीवन और मौत की जंग लड़ते रहे । लगातार 37 दिन कोमा की स्थिति में रहे । झाँसी में बेहतर इलाज न मिल पाने की स्थिति में उनकी पत्नी ने उन्हें ग्वालियर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया । एक बार तो उनके इलाज करने वाले डाक्टरों ने भी निराशा ज़ाहिर कर दी । लेकिन उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रीता शर्मा ने विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखा और लगातार उनका बेहतर से बेहतर इलाज, सेवा और देखभाल करती रहीं । कभी उनका मनोबल नहीं टूटा । पत्नी का अटूट विश्वास, आजीवन साथ निभाने का वायदा, बच्चों की दुवाएं, अपने साथियों का प्यार, ईश्वरीय अनुकम्पा और जीवन में की गई नेकी ने अरुण शर्मा को नवजीवन दे दिया । 37 दिनों के बाद उनकी चेतना लौट आयी और वह कोमा से बाहर आ गए । धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य ठीक होने लगा । एक बार फिर से उन्होंने अपनी ड्यूटी करनी प्रारम्भ कर दिया ।

बहुत पहले अरेबियन नाइट्स की कहानी हातिमताई में नायक एक प्रश्न का हल ढूँढने निकलता है… वह प्रश्न था : नेकी कर दरिया में डाल । उसे उसका उत्तर बेज़ुबान मछलियों की सेवा में मिलता है… ठीक उसी प्रकार हमारे जैसे कई लोग जो अरुण शर्मा की बेज़ुबान प्राणियों की सेवा को देखते और जानते हैं, उनका मानना है कि दवाओं के साथ-साथ अरुण शर्मा के प्राणों पर आये संकट से उन्हें बचाने में उन बेज़ुबान प्राणियों की भी दुवाएं थी जिनकी वह निःस्वार्थ भाव से सेवा करते थे । यह अनायास ही नहीं है कि जिस दिन से अरुण शर्मा को ब्रेन स्ट्रोक पड़ा उसके अगले दिन से ही उनके घर में पले एक कुत्ते ने तथा कॉलेज के एक कुत्ते ने खाना- पीना त्याग दिया और शोक में अपने प्राण त्याग दिए… शायद अपने प्राणों को त्याग कर वह अरूण शर्मा जैसे अपने मसीहा को जीवनदान दे गए… यदि वह इंसानों जैसा बोल पाते हो अवश्य ही हमसे कुछ कहकर जाते ।

सीख

वर्षों पहले भगवान बुद्ध ने कहा था कि यह सृष्टि परस्परावलम्बी सहवर्धन (प्रतीत समुत्पाद) पर आधारित है । जिसका सामान्य अर्थ है कि दुनिया के समस्त प्राणी और जीव जगत एक दूसरे पर अवलंबित हैं । सभी का अस्तित्व एक दूसरे से अंतर्गुम्फित है । इस सच को समझ कर हमें सभी के प्रति दया और करुणा का भाव रखना चाहिए । करुणा व्यक्ति को संवेदनशील बनाती है । संवेदना सेवा के लिए प्रेरित करती है । सेवा से परिपूर्ण मैत्री, करुणा और प्रेम मानवता का आधार है ।

यह बात महत्वपूर्ण है कि छायावादी युग की महान लेखिका महादेवी वर्मा ने अपने लेखों में अपने घर के सभी पालतू जानवरों का ज़िक्र किया है । मेरा परिवार और गिल्लू नाम की रचनाओं में उन्होंने गिलहरी, हिरन, बिल्ली, कुत्ते सभी जानवरों की कहानियों का संग्रह किया है । मंगोलिया के लोग हाई ब्लड प्रेशर से मुक्ति पाने के लिए बिल्ली को धीरे-धीरे सहलाते हैं । यह रोगी को सुकून देता है और सुकून उपचार का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है । अभी हाल में ही झाँसी में एक पालतू बिल्ली ने एक ज़हरीले साँप से अपने मालिक की जान बचाई । वस्तुतः पालतू जानवर मनुष्य के अकेलेपन के साथी होते हैं तथा इंसान को निराशा और तनाव से मुक्ति देते हैं । जानवरों के साथ हम अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय जीवन बिताते हैं । यह ईमानदार साथी होते हैं । अधिक आत्मीयता होने पर पक्षी आपके निकट आते हैं और आपकी हथेली पर रखे दाने उठा लेते हैं । यह आनन्ददायक क्षण होते हैं । जहॉं प्रेम है- वहीं आनन्द है ।

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Dr. Raj Bahadur Mourya:
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