इन्दौर, शिरडी, नासिक, मुम्बई, भोपाल और साँची की यात्रा, दिनॉंक : 22-12-2023 से 28-12-2023 तक

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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website:themahamaya.com

यात्राओं का महत्व

“सैर कर दुनिया की, गाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ.. ज़िंदगी भी ग़र रही तो नौजवानी फिर कहाँ ।” यदि इन पंक्तियों के असली भाव और अर्थ को आप समझना चाहते हैं तो उठाइए बैग और ज़रूरी सामान तथा निकल जाइए भ्रमण पर..! यात्राएँ ही ज्ञान, व्यवहार, सभ्यता और संस्कृति की नई दुनिया से आपको रूबरू कराती हैं । यात्राएँ हमें रोमांच, अनुभव और हिम्मत प्रदान करती हैं । यात्राएँ हमें देश और दुनिया में फैली हुई अनुपम और बेनज़ीर प्राकृतिक सुन्दरता के क़रीब ले जाती हैं । यात्राओं से ही हम यह जान पाते हैं कि प्रकृति में कितनी निरंतरता और परिवर्तन है । हमें यह भी बोध होता है कि ख़ुशी और ग़म, हर्ष और विषाद, प्रेम और नफ़रत, मिलन और वियोग की एक दुनिया उनसे बाहर भी बसती है । सफ़र में मुसाफ़िर बनकर हम अपने तनाव, कष्ट, रोज़ की मुसीबतों और मतभेदों को भूल जाते हैं । यात्राएँ हमें सिखाती हैं कि हमारे अपने विचारों, दृष्टिकोणों, तरीक़ों के साथ ही दूसरे अन्य लोगों के विचारों, तरीक़ों, दृष्टिकोणों को भी सम्मान और आदर देना चाहिए । यात्राएँ हमारी समझ को बढ़ाकर पूर्वाग्रहों और नकारात्मक प्रभाव को कम करती हैं । ऐसा होने पर हमारे अन्तस् में सभी के लिए मानवीय गरिमा, स्वाभाविक सम्मान और प्रतिष्ठा जैसे भावों का उदय होता है । नए दोस्त, नया खाना, नया परिवेश, नई परिकल्पना, मज़बूत आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता तथा नेतृत्व जैसी क्षमताओं का विकास यात्राओं के माध्यम से ही होता है । यात्राएँ हमें सिखाती हैं कि दुनिया बहुत बड़ी, बहुत ख़ूबसूरत और विविधता से परिपूर्ण है और यहाँ पर खुलकर तारीफ़ करने तथा अपनी स्मृतियों में संजोने के लिए बहुत कुछ है… दार्शनिक शब्दों में “जीवन केवल एक यात्रा है…अनन्त, अविरल और अविराम..!

यात्रियों का परिचय

डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, मूल निवासी- गाँव- जमुनी पुर चरुहार, पोस्ट- जलाल पुर धई, जनपद- रायबरेली, वर्तमान निवास- आवास संख्या-2, शिक्षक आवासीय कालोनी, बुन्देलखण्ड कॉलेज कैम्पस, सिविल लाइन, झाँसी (उत्तर-प्रदेश), मैम- श्रीमती कमलेश मौर्या (पत्नी डॉ. आर. बी. मौर्य) इंजीनियर सपना मौर्या- साफ्टवेयर इंजीनियर (बेटी श्रीमती कमलेश मौर्या और डॉ. आर. बी. मौर्य), श्री बृजेश कुमार मौर्य- ग्राम- चकलोदीपुर, पोस्ट- रुस्तमपुर, ज़िला- रायबरेली (उत्तर-प्रदेश), अजीत भाई- सुपुत्र, श्री बृजेश कुमार मौर्य, अरबाज़ क़ादरी उर्फ़ राजा- गाड़ी के ड्राइवर, निवासी- झाँसी (उत्तर-प्रदेश), वाहन – इनोवा क्रिस्टा, नम्बर- UP- 93-AY-7387.

भूमिका :

वर्ष 2023 का साल निजी तौर पर मेरे स्वयं और परिवार के दृष्टिकोण से अच्छा नहीं रहा । 12 जनवरी, 23 ई. को बहुत संक्षिप्त बीमारी के बाद पिता के देहान्त में मुझे गहरा कष्ट दिया । धीरे-धीरे अपने चित्त को शांत करते हुए मैंने अपने आप को पुन: दुनिया की दिनचर्या शामिल किया । बेशक मुझसे कहीं अधिक कष्ट मेरी माँ को हुआ । बेटा होने के नाते उनके कष्ट और विषाद को कम करने के लिए मैं निरंतर उनके साथ रहकर उन्हें सांत्वना देता रहा । मई के महीने में मैंने मॉं को साथ लेकर पत्नी के साथ देहरादून, मसूरी, रिषिकेश और हरिद्वार की यात्रा किया । इस यात्रा से जहां मैंने भी सुकून महसूस किया वहीं मॉं को भी मानसिक रूप से जीवन जीने की और ईश्वरीय विधान को गहराई से समझने में मदद मिली । अभी मैं अपनी उक्त यात्रा को सम्पन्न करके वापस आया ही था कि बेटी ने नौकरी मिलने की ख़ुशख़बरी दी । प्रकृति का शायद यही परिवर्तन चक्र है कि वह ग़म और ख़ुशी बारी बारी से प्रदान करती है । बेटी के नौकरी मिलने की ख़ुशी ने ग़म के काले बादलों को हटाकर कुछ हद तक पुनः ख़ुशियाँ प्रदान किया । चूँकि पिछले लगभग एक दशक से बेटी निरंतर पढ़ाई और नौकरी के लिए प्रयासरत थी इसलिए इस दौरान उसके साथ कहीं घूमने का अवसर नहीं मिला था । अब जबकि उसे नौकरी की सौग़ात मिली तो उसकी यह इच्छा थी कि मम्मी और पापा के साथ देश के किसी हिस्से की यात्रा किया जाए । यही वह पृष्ठभूमि थी जिसके परिप्रेक्ष्य में मैं स्वयं, मेरी पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या, बेटी इंजीनियर सपना मौर्या, पारिवारिक मित्र श्री बृजेश कुमार (बेटी के मामा) तथा उनका बेटा अजीत भाई के साथ पूरी यात्रा सम्पन्न हुई ।

यात्रा की तिथि, समय, साधन तथा गन्तव्य का निर्धारण

हमारी यह यात्रा प्रारम्भ होती इसके पहले अक्टूबर माह में पुनः एक बड़ी दु:खद घटना घट गई । मेरी पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या के छोटे भाई ग्राम – चकलोदी पुर, पोस्ट- रुस्तमपुर, जनपद रायबरेली, श्री बृजेश कुमार मौर्य की धर्मपत्नी श्रीमती ऊषा मौर्या की अचानक बहुत संक्षिप्त बीमारी के बाद असमय मृत्यु हो गई । अचानक हुई इस दु:खद घटना ने सभी को झकझोर दिया । अभी ऊषा मौर्या जी की उम्र अधिकतम 40 वर्ष की रही होगी । उनके इकलौता बेटा अजीत कुमार मौर्य अभी मात्र 12 वर्ष का है । घर के सूनेपन और बेटे को सांत्वना देने तथा भाई को सम्बल प्रदान करने के लिए पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या ने कुछ दिन उन लोगों के साथ रहने का निर्णय किया । स्थिति कुछ सम्भलती इसके पहले स्वयं बृजेश कुमार का स्वास्थ्य बिगड़ गया और उन्हें जनपद रायबरेली में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मुंशीगंज में भर्ती होना पड़ा । अभी उनका स्वास्थ्य ठीक होता इसी बीच मॉं की मौत के सदमे से बेटे अजीत कुमार को मानसिक झटके आने लगे तथा उसकी स्थिति गंभीर होने लगी । परिणामतः बेटे को भी वहीं एम्स, मुंशीगंज के न्यूरोलॉजी विभाग में भर्ती करना पड़ा । इस तरह एक के बाद एक मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही थीं । इसी बीच मैम (मैं अपनी पत्नी को इसी नाम से बुलाता हूँ) को मेरे अपने गाँव- जमुनी पुर चरुहार, पोस्ट – जलालपुर धई , जनपद रायबरेली में धान (चावल) की फसल की कटाई तथा गेहूँ की फसल की बुवाई के लिए गॉंव भी जाना पड़ा । बहरहाल धीरे-धीरे सभी स्थितियाँ सामान्य हुईं । इस बीच बेटी के “वर्क फ्राम होम” की सहूलियत के कारण वह मेरे पास झाँसी में ही रही । स्थितियों के सामान्य होने पर हम “पिता और पुत्री” ने मिलकर तय किया कि दिसम्बर माह के तीसरे सप्ताह में दिनांक 22 दिसम्बर को यात्रा पर निकलेंगे । कश्मकश इस बात की थी कि पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या का अभी रायबरेली से वापस आना होगा या नहीं । यदि नहीं आना हो पाया तब क्या किया जाएगा ? बहरहाल हम दोनों लोगों ने आख़िरी तौर से जाने का निर्णय कर लिया । चूँकि इसके बाद हम लोगों को जाने की लम्बी छुट्टी मिलना मुश्किल था । चूँकि मौसम सर्दी का है इसलिए यह तय किया गया कि यात्रा का गन्तव्य झाँसी से चलकर वाया शिवपुरी, गुना, इन्दौर, शिरडी, नासिक और मुम्बई होगा जबकि वापसी में मुम्बई से चलकर उज्जैन, भोपाल, साँची, विदिशा, ललितपुर से झाँसी होगा ।

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लगभग सभी चीजों का निर्धारण कर बेटी अपने ऑफिस के काम से गुड़गाँव, नई दिल्ली, चली गई और मैं अपनी ड्यूटी पर लग गया । चूँकि हमारी यात्रा सड़क मार्ग से होनी थी इसलिए मैंने इनोवा क्रिस्टा से चलने का निर्णय किया। इनोवा क्रिस्टा के मालिक और ड्राइवर अरबाज़ क़ादरी उर्फ़ राजा, निवासी झाँसी को बुलाकर मैंने पूरी यात्रा को समझाया और उनसे पूछा कि उन्हें किसी तरह की समस्या हो तो बताएँ । उन्होंने ख़ुशी- ख़ुशी चलने की सहमति दे दिया । बेटी इंजीनियर सपना से यात्रा में चलने से पूर्व की तैयारी पर लगातार बातचीत होती रही । उसने गुड़गाँव में ही पूरी तैयारी की और ख़रीदारी किया तथा इन्दौर और शिरडी में रुकने के लिए होटल बुक कर दिया । मेरे लिए नए शूज तथा मैम के लिए ब्लेज़र व अन्य ज़रूरी सामान लेकर दिनांक 20 दिसम्बर को वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन से नई दिल्ली से चलकर शाम को झाँसी आ गई । इसी बीच मैम का भी रायबरेली से वापसी झाँसी आने का कार्यक्रम बन गया और उनके साथ उनके भाई बृजेश तथा भतीजे अजीत कुमार का भी यात्रा में साथ चलने का कार्यक्रम निश्चित हो गया । दिनांक 20-12-2023 को रायबरेली से ट्रेन से चलकर तीनों लोग 21 दिसम्बर को प्रातः काल झाँसी आ गए । दिनांक 21-12-2023 को गाड़ी मालिक राजा को बुलाकर कुछ अग्रिम पैसे दे दिए गए तथा उन्हें अग़ले दिन यानी 22 तारीख़ को प्रातः काल 6 बजकर 15 मिनट पर घर आ जाने के लिए बोल दिया गया । बेटी ने राजा के खाते में टोल टैक्स का पैसा ट्रांसफ़र कर दिया । ज़रूरी दवाएँ तथा कपड़ों की पैकिंग देर रात तक पूरी कर ली गई । मैम ने रास्ते के लिए अनीता (घर में काम में मैम का हाथ बँटाने वाली बाई) के साथ मिलकर मीठी पूड़ी, सादी पूड़ी और आलू की चटपटे दार शब्जी तैयार करा लिया । यह सब काम निबटाते हुए कब रात्रि के कब 12 बज गए पता ही नहीं चला । मुझे तो बमुश्किल रात में नींद आई । क़रीब- क़रीब यही हाल सबका रहा ।

यात्रा की शुरुआत, दिनांक : 22-12-2023, दिन शुक्रवार

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दिनांक 22-12-2023, दिन शुक्रवार को हम सब यात्री प्रातः 5 बजे भोर में ही नींद से जग गए । मैम ने सुबह 4:30 पर ही जगकर सभी को गर्मागर्म चाय पिला दिया । चाय की चुस्की लेते ही सभी को ताजगी आ गयी । सभी लोग 6 बजकर 15 मिनट पर तैयार हो गए । अब तक राजा गाड़ी लेकर आ चुके थे । यात्रा का सभी सामान सुरक्षित रूप से गाड़ी में रखा गया और सारे यात्री उल्लासित मन से गाड़ी में बैठ गए । चूँकि राजा ने गाड़ी में डीज़ल कल ही ले लिया था इसलिए ठीक 6 बजकर 30 मिनट पर हमारी गाड़ी (यू. पी. -93-AY -7387) सारे यात्रियों के साथ सफ़र पर निकल पड़ी । अभी लगभग पूरी झाँसी नींद में सोई हुई थी । तीव्र गति से चलती हुई इनोवा क्रिस्टा ने झाँसी शहर को पार किया और झाँसी शिवपुरी के रास्ते पर आ गई । लगभग डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद हम लोग आगरा- मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग, 46, के क़रीब आ गए । यहाँ शिवपुरी ढाबा, करई, पर रुककर सभी ने चाय पिया और आगे के लिए चल पड़े । लगभग दो घंटे के तीव्रगामी सफ़र के बाद हमारी गाड़ी ने मध्यप्रदेश के गुना शहर को पार किया । आगे एक टोल प्लाज़ा पर रुककर सभी ने होटल “अलकरीम ढाबा” पर गर्म जलेबी और पोहे का नाश्ता किया तथा आगे बढ़ गए । दोपहर 1 बजे के आस-पास हम लोगों ने छापरा टोल प्लाज़ा, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52, व्यावरा, देवास, मध्यप्रदेश, को पार किया । दोपहर 2 बजकर, 30 मिनट पर मध्यप्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर पहुँच गए । आज का रात्रि विश्राम यहीं पर था । इंदौर में होटल “रीगल रीजेंसी” में रुककर सभी ने विश्राम किया । यह होटल इंदौर के प्रसिद्ध “बाम्बे हास्पिटल” के पास बना हुआ है । सायंकाल में राजा के साथ मैम, बेटी और अजीत भाई इंदौर के प्रसिद्ध मॉल “फ़ीनिक्स” को देखने गए । मैं होटल में ही रहा ।

इंदौर से शिरडी, दिनांक : 23-12-2023, दिन शनिवार

इंदौर का सुबह का मौसम सुहावना था । प्रातः काल 6 बजे ही नींद से जग गए । सभी लोग 8 बजे तक आगे के सफ़र के लिए तैयार हो गए । होटल से निकलकर थोड़ा चलने पर हमारी गाड़ी बाम्बे हास्पिटल चौराहे पर आ गई । यहीं पर कार्नर पर बने एक सुसज्जित होटल पर सभी ने इंदौर का मशहूर और स्वादिष्ट पोहा खाया और गर्मागर्म चाय का आनन्द उठाया । यहाँ से लगभग 15 मिनट का रास्ता तय कर हम लोग पुनः आगरा- मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गए । तीव्र गति से चलती हमारी गाड़ी पहाड़ों, पठारों और समतल मैदानों को पार करती हुई आगे बढ़ती जा रही थी ।क़रीब तीन घंटे के लगातार सफ़र के बाद हम लोग मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य की सीमा पर स्थित होटल “राज-हंस” में रूके । यह एक साफ़ सुथरा और सुसज्जित होटल था । यहाँ सभी ने मीठी -मीठी स्वादिष्ट जलेबी खायी । मैम, अजीत और बबलू भाई ने मसाला डोसा खाया । बेटी सपना, मैंने और राजा ने कटलेट का आनन्द लिया । सभी ने साथ-साथ चाय पिया । कुछ फ़ोटोग्राफ़ लिए गए और आगे के लिए चल पड़े । लगभग तीन घंटे चलने के बाद हम लोग मालेगांव पहुँच गए । एक रास्ता यहाँ से भी शिरडी के लिए जाता है । परन्तु हम लोगों ने इससे लगभग 40 किलोमीटर आगे चलकर आगरा- मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़कर शिरडी साईं धाम का रास्ता लिया । यहाँ मोड़ पर रुककर पुनः सभी ने चाय और नाश्ता किया । यहाँ होटल में चाय को मराठी/स्थानीय भाषा में चहा लिखा जाता है । इस पर अजीत भाई ने आश्चर्य जताया तथा इस पर हल्की फुल्ली हँसी हुई । यहाँ से आगे का रास्ता खेतों और गाँवों के बीच से होकर गुजरता है । सड़क के दोनों ओर खूबसूरत अंगूर के खेत हैं जिनकी सुन्दरता देखते ही बनती है । बीच- बीच में खूब हरी हाइब्रिड मक्का की फसल है । यद्यपि इस सीज़न में उत्तर भारत में मक्का की फ़सल नहीं होती तो भी यहाँ मक्का की फसल खूब दिखाई पड़ती है । प्रकृति के इस खूबसूरत नज़ारों को देखते हुए हमारी गाड़ी शिरडी धाम पहुँच गयी । यहाँ बेटी ने पहले से ही ओयो के ज़रिए होटल बुक कर रखा था परन्तु वहाँ पहुँचने पर उस होटल ने कमरा देने से मना कर दिया । काफ़ी मसक्कत के बाद होटल “इन्दौर पैलेस” में दो कमरे मिले । यहीं रात्रि विश्राम किया गया ।

साँई की समाधि पर…दिनांक- 24-12-2023, दिन रविवार

दिनांक- 24-12-2023, दिन रविवार को साँई की पवित्र नगरी शिरडी में सभी लोग भोर में ही जग गए ताकि प्रातः काल ही साँई की समाधि का दर्शन और नमन करने का सौभाग्य प्राप्त हो । सुबह 8 बजे सभी लोग तैयार होकर होटल से नंगे पैर चलकर साँई की समाधि स्थल पर पहुँच गए । यहाँ बेटी सपना ने सभी के लिए रुपये 200-200 के टिकट ख़रीदा । लगभग 20 मिनट के बाद हम लोग प्रवेश द्वार पर चेकिंग प्वाइंट पर पहुँच गए । सभी की विधिवत तलाशी के बाद आगे बढ़ने दिया गया । यहाँ पर मोबाइल लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । चेकिंग प्वाइंट से समाधि स्थल तक पहुँचने में लगभग 45 मिनट का समय लगा । अपार भीड़ थी और श्रद्धालु साँई के जयकारे लगा रहे थे । माहौल में हर्ष और विषाद दोनों था । लोग स्वयं अनुशासित ढंग से चल रहे थे । साँई की समाधि पर जाकर हम सब ने उन्हें नमन किया तथा सभी के लिए अमन चैन की दुआ की । भीड़ अधिक होने के कारण लगभग चार क़दम पीछे हटकर हम लोगों ने वहीं समाधि के सम्मुख माथा टेका और साँई का शुक्रिया अदा किया साथ में यह भी अरदास किया कि वह हमें हमेशा अपने दरबार में बुलाते रहें । साँई का पैग़ाम था कि अल्लाह और राम दोनों एक ही हैं सारी दुनिया की मानवता की सेवा करो । किसी को धोखा मत दो । प्रेम और भाईचारे के साथ रहो । साँई के भक्त नशामुक्त जीवन जीने की कोशिश करते हैं । शिरडी के साँई की समाधि का दर्शन कर जीवन के पावन मूल्य मन और मस्तिष्क में जीवित हो उठते हैं ।


समाधि स्थल से निकलने पर सभी को शिरडी साँई ट्रस्ट की ओर से भभूत और एक पैकेट प्रसाद मुफ़्त मिलता है । अभी प्रातः काल का ही वक़्त था और मौसम में थोड़ी सर्दी थी । वहीं परिसर में साँई के भक्तों के बीच हम लोग भी बैठ गए । मन में यह ख़्याल आया कि साँई की महिमा अपरम्पार है । ख़ुद फ़क़ीरी का जीवन जीकर सभी को श्रद्धा और सबूरी के साथ जीवन जीने की सीख दे गए । साँई कौन थे ? वह कहाँ से आये थे ? यह किसी को नहीं मालूम.. लेकिन यहाँ तक पहुँचने के लिए हर कोई आतुर है । आज शिरडी में साँई हैं और साँई की शिरडी है । कभी गुमनाम सा क्षेत्र आज महानगरों जैसा आबाद है । यहाँ आज लगभग 1300 होटल हैं । साँई ट्रस्ट के द्वारा लंगर चलाया जाता है जहाँ केवल 10 रुपये में भरपेट भोजन मिलता है । साँई ट्रस्ट के द्वारा संचालित होटल और गेस्टहाउस काफ़ी किफ़ायती दाम पर श्रद्धालुओं को मिलते हैं । सारी व्यवस्था ऑनलाइन है । समाधि दर्शन करने के बाद कुछ ख़रीददारी की गई और वापस लौट कर होटल आ गए । चूँकि राजा और अजीत दर्शन करने नहीं गए थे और होटल में ही ठहरे थे इसलिए उन लोगों को साथ लेकर वहीं पास के एक होटल “साईं राज फ़ूड कोर्ट” पर सभी ने सुबह का नाश्ता किया तथा गर्मागर्म चाय पिया । चाय और नाश्ते के बाद पुनः हम लोग होटल पर वापस लौटे तथा एक वीडियो शूट किया । पुनः गाड़ी पर सभी सामान रखा गया और साँई से विदा लेकर राजा ने गाड़ी को नासिक के रास्ते मुम्बई के लिए मोड़ा ।

शिरडी से नासिक और मुम्बई के रास्ते पर…

सड़क मार्ग से शिरडी से मुम्बई की दूरी लगभग 250 किलोमीटर है जबकि शिरडी से नासिक की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है । शिरडी से नासिक तक नया एक्सप्रेस हाइवे बन चुका है । इसलिए अब इस रूट पर गाड़ियाँ तीव्र गति से चलती हैं । राजा ने अपनी प्यारी गाड़ी को एक्सप्रेस हाइवे पर तेज़ी से चलाया और देखते ही देखते हम लोग एक घंटे से कुछ ही अधिक समय में नासिक आ गए । नासिक में भी हमें शहर के अंदर नहीं जाना पड़ा और बाइपास से चलकर हमने नासिक शहर को पार कर लिया । नासिक से मुम्बई तक का रास्ता पहाड़ों और घाटियों के बीच से गुज़रता है । यहीं पर कसारा की प्रसिद्ध घाटियाँ हैं । सभी लोग बड़ी कौतूहल और रोमांच से ऊँचे -नीचे रास्ते का आनन्द लेते हुए चल रहे थे । मैम, बबलू भाई, अजीत और सपना दीदी अपने अपने मोबाइलों में फ़ोटो शूट कर रहे थे और वीडियो बना रहे थे । इन्हीं घाटियों से सटे एक होटल में राजा ने गाड़ी खड़ी किया ।अब तक सबको खाने की भूख लग चुकी थी । होटल बहुत ही सुन्दर और आकर्षक था । सभी ने अपनी- अपनी पसंद का खाना लिया । लगभग एक घंटे के विश्राम और भोजन के पश्चात् पुनः गाड़ी आगे चल पड़ी । दोपहर का लगभग तीन बज रहा था । लगभग आधे घंटे चलने पर हम लोग इगतपुरी पहुँच गए । यहाँ पर राजा ने गाड़ी में डीज़ल लिया और बिना देर किए मुम्बई के रास्ते पर आगे चल पड़े । इगतपुरी से आगे चलने पर मुम्बई की झलकियाँ शुरू हो जाती हैं । सभी लोग मुम्बई के पहले पड़ने वाले रास्ते को गौर से देखते हुए चल रहे थे । लगभग 4 बजे के आस-पास राजा ने बताया कि जहॉं चलना है वहाँ का मोड़ आ गया । यद्यपि वह रास्ता संकरा दिख रहा था परन्तु राजा ने बताया कि सर गूगल इधर से ही रास्ता बता रहा है । थोड़ा विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि इसी गूगल के बताए रास्ते पर चला जाए । ध्यान इस बात का रखा जाए कि लगातार दूरी घटती नज़र आए । अन्ततः कश्मकश के साथ गूगल बाबा ने हम सबको हमारे गन्तव्य तक पहुँचा दिया । चूँकि मुम्बई में जनपद प्रतापगढ़ के कुण्डा क़स्बे के निवासी श्री बृजेश कुमार मौर्य के घर पर रुकना था इसलिए वहाँ पहुँच कर मैंने उनको फ़ोन किया और वह तत्काल गाड़ी के पास आ गए । उनसे मिलकर लगा कि हम सब सचमुच बम्बई आ गए । सभी लोग प्रसन्न थे ।

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श्री बृजेश कुमार मौर्य…

मुम्बई में इस बार हमारा आशियाना रीजेंसी सर्वर, टावर नम्बर- 11, फ़्लैट नम्बर- 605, टिटवाला ईस्ट, थाणे, मुम्बई, महाराष्ट्र-421605 में श्री बृजेश कुमार मौर्य के आवास पर था । बृजेश जी मूलतः ग्राम- शाहपुर बेंती, कुण्डा, जनपद प्रतापगढ़ के निवासी हैं । बृजेश कुमार जी से मेरी मुलाक़ात 12 से 15 साल बाद हुई । उस समय वह फ़ीरोज़ गांधी कालेज, रायबरेली में विद्यार्थी थे और मैं वहीं पर सान्ध्यकालीन कक्षाओं में अध्यापन कार्य कर रहा था । तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार के हम सब मिशनरी साथी और करीबी सहयोगी थे । कालान्तर में बृजेश कुमार जी मुम्बई में रहने लगे और मैं झाँसी आ गया । लगभग डेढ़ दशक के अंतराल के बाद जब मैं उनके बुलावे पर मुम्बई गया और उनसे मिला तो अचानक पहले की सभी बातें याद आ गयीं । इतने दिनों में बहुत कुछ बदला लेकिन बृजेश जी का हँसने, मुस्कुराने और गर्मजोशी से मिलने का अंदाज बिल्कुल नहीं बदला । बृजेश जी की पत्नी श्रीमती सीमा भी उतनी ही विनम्र, सहज, सरल और सेवाभावी हैं । अब उनका एक तीन साल का छोटा बेटा, आद्विक है जो बहुत ही प्यारा और समझदार है । सामाजिकता उसे विरासत में मिली है । लगभग 6 बजे हम सायं में हम उनके आवास पहुँच गए । कुशल क्षेम और चाय नाश्ते के बाद वह तत्काल हम सबको आवासीय परिसर दिखाने ले गए । ऊँची- ऊँची गगनचुंबी इमारतों के बीच हम सब बौने से लग रहे थे । शाम को हम सब लोग वहीं पास के ही एक रेस्टोरेंट में पारिवारिक स्नेह भोज (डिनर) के लिए गये । यह डिनर बेटी सपना की ओर से दिया गया था । सभी ने अपनी पसंद का खाना खाया । खाने की मेज पर ही बहुत सी बातें हुईं । चूँकि अगले दिन प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन था इसलिए मैम ने यहीं पास की एक दुकान से केक ख़रीदा । हम सभी लोग वापस गाड़ी से बृजेश के आवास पर आ गए । अब तक काफ़ी रात्रि हो चुकी थी परन्तु बातें ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थीं । मैंने सभी को बोला कि चुपचाप सो जाओ क्योंकि कल सुबह मुम्बई घूमने निकलना है । बमुश्किल सभी को नींद आई । अब तक बृजेश जी के बेटे आद्विक की गहरी दोस्ती अजीत भाई से हो चुकी थी । दोनों एक दूसरे से ऐसे घुले- मिले थे जैसे कोई पहले की जान- पहचान हो ।

मुम्बई भ्रमण, दिनांक- 25-12-2023, दिन सोमवार

25 दिसम्बर, प्रभु ईसा मसीह के पवित्र जन्मदिन पर बच्चों के साथ मुम्बई का भ्रमण किया गया । घूमने के लिए बृजेश जी का सुझाव था कि मुम्बई की लोकल ट्रेन से चला जाए और वहाँ चलकर टैक्सी ले ली जाएगी । इससे समय की बचत होगी और हम अधिक घूम पायेंगे । मैम इस पर राजी थीं । लेकिन मैंने कहा कि अपनी गाड़ी से चला जाए तो बेहतर होगा क्योंकि एक तो मुम्बई लोकल ट्रेन में बहुत अधिक भीड़ होती है दूसरा बच्चे थक कर परेशान हो जाएँगे । अन्ततः हम लोग लगभग 9:30 बजे सुबह में राजा के साथ गाड़ी से मुम्बई शहर देखने निकले । मुम्बई की ख़ूबसूरती, साफ़ सुथरी और चौड़ी सड़कें, आसमान को छूती इमारतें, प्राचीनता और आधुनिकता का मेल बच्चों को खूब पसंद आ रहा था । सपना, बबलू और अजीत भाई ने पहली बार मुम्बई शहर को देखा था । वह बड़े गौर से मुम्बई की बनावट और बसाहट को देख रहे थे । इसी बीच मैम अपने मोबाइल में गाना बजा रही थीं “ई है मुम्बई नगरिया तू देख बबुआ । सोने चाँदी की डगरिया तू देख बबुआ ।” सभी लोग मन ही मन इस गाने को गुनगुना रहे थे ।

चैत्य-भूमि, दादर, मुम्बई

लगभग दो घंटे के सफ़र के बाद हम लोग बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की समाधि स्थल चैत्य भूमि दादर पहुँच गए । यहाँ सुकून इस बात का रहा कि गाड़ी पार्क करने की जगह मिल गई क्योंकि सामान्यतः मुम्बई में गाड़ी पार्किंग की समस्या होती है । चैत्य भूमि पहुँच कर सभी ने माथा टेक कर परम् पूज्य बाबा साहेब को नमन् किया और उनके पवित्र अस्थि अवशेष पर निर्मित पावन स्तूप की तीन बार प्रदक्षिणा किया । चैत्य भूमि समुद्र के बिलकुल किनारे पर स्थित है । दिनांक 6 दिसम्बर, 1956 को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण के बाद उनकी निर्मल काया को इसी स्थान पर अग्नि को समर्पित किया गया था तथा उनके अस्थि कलश को इसी स्थान पर स्थापित कर स्तूप बनाया गया । इस स्तूप को विशाल गोलाकार मंडप बनाकर ढंक दिया गया और इसे चैत्य भूमि नाम दिया गया । चैत्य भूमि परिसर में ही लगे स्टालों पर कुछ ख़रीदारी की गई । बच्चों ने फ़ोटो ग्राफी किया । मैंने एक छोटी वीडियो क्लिप बनायी । लगभग एक घंटे बिताने के बाद हम लोग गाड़ी पार्किंग के पास आ गए । यहीं पास के एक रेस्टोरेंट में सभी ने मुम्बई का मशहूर गरम नाश्ता, डोसा, कटलेट और चाय लिया । गाड़ी आगे चल पड़ी ।

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मुम्बई की गलियों में घूमती चलती राजा की छबीली गाड़ी इनोवा क्रिस्टा समुद्र के किनारे स्थित फ़िल्मी सितारे शाहरुख़ खान के घर मन्नत के पास पहुँच गई । यद्यपि यहाँ काफ़ी भीड़ थी लेकिन यह अच्छा रहा कि यहाँ भी सुव्यवस्थित रूप से गाड़ी की पार्किंग हो गई । मैम, सपना, अजीत भाई और बबलू ने अपने पसंदीदा एक्टर के घर के सामने फ़ोटो खिंचवाई । मन्नत के ठीक सामने अनन्त गहराइयों से लहरें लेता समुद्र है । यहाँ का नजारा देखने लायक़ है । ख़ूब पर्यटकों की भीड़ लगी थी । बच्चों ने ख़ूब लुत्फ़ उठाया । पास में ही आलीशान होटल ताज पैलेस बना हुआ है । यहाँ पर भी सभी ने फ़ोटो ग्राफ़ लिए । लगभग एक घंटे यहाँ पर बिताया गया । इसके बाद राजा ने गाड़ी को हाजी अली की दरगाह की ओर मोड़ा । मुम्बई की अति व्यस्त सड़कों पर चलते हुए हमारी गाड़ी हाजी अली दरगाह के पास आ गयी । हाजी अली दरगाह पर हमेशा लोगों की अपार भीड़ रहती है । आसपास पार्किंग भी नहीं है । एक टैक्सी चालक ने हमें स्थानीय पार्किंग की जानकारी दी और हम लोगों ने वहाँ जाकर एक सौ रुपये प्रतिघंटे की दर से गाड़ी को पार्क किया गया । लगभग पाँच सौ मीटर व्यस्त सड़क को पार कर हम लोग अंडर ब्रिज से होते हुए हाजी अली दरगाह की ओर चलते गए । यहाँ जाने वाली सड़क संकरी है तथा किनारे पर दुकानों की भीड़ लगी रहती है । राजा ने इन्हीं दुकानों से एक टोपी अपने लिए और एक मेरे लिए ख़रीदी । हम सभी पूरी अकीदत के साथ दरगाह पर पहुँचे । हाथ मुँह धुलकर वजू बनाया और दरगाह पर ज़ियारत पेश किया । मुल्क के अमन और चैन की दुआ की । मैम, बेटी सपना, बबलू और अजीत भाई ने भी हाजी अली दरगाह पर ज़ियारत कर सभी के लिए दुआएँ किया । वापस आते समय हल्की-फुल्की ख़रीददारी की गई । सपना ने राजा की बेगम तन्नो के लिए एक चुनरी ख़रीदकर उन्हें भेंट किया । सभी लोग वापस पुनः गाड़ी के पास आ गए ।

हाजी अली दरगाह

विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार हाजी अली की दरगाह मुम्बई में वर्ली तट के निकट एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद एवं दरगाह है । हाजी अली एक सूफ़ी संत थे जो उज़बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुँचे थे । सन् 1431 में उन्हीं की स्मृति में दरगाह का निर्माण किया गया । मुख्य सड़क से दरगाह की दूरी लगभग 400 मीटर है । यह टापू के 4500 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है । दरगाह के निकट एक 85 फ़ीट ऊँची मीनार है जो इस परिसर की पहचान है । मस्जिद के अंदर पीर हाजी अली की मज़ार को लाल एवं हरी चादर से सुसज्जित किया गया है । मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई स्तम्भ हैं जिनके ऊपर रंगीन काँच से कलाकारी की गई है और अल्लाह के 99 नाम भी उकेरे गए हैं । किंवदंती है कि संत हाजी अली का इंतकाल तब हुई जब वह मक्का की यात्रा पर गए थे लेकिन चमत्कारिक रूप से उनका ताबूत समुद्र के पार तैर गया और मुम्बई के तट पर आ गया । हाजी अली की दरगाह हिन्दू- मुस्लिम एकता का प्रतीक है । दरगाह जाने के लिए मज़हब का कोई प्रतिबंध नहीं है । मान्यता है कि यहाँ पर आने वाले जायरीनों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं । 700 साल पुरानी यह दरगाह इन्डो- इस्लामिक वास्तुशैली का एक बेहतरीन उदाहरण है । गुरुवार और शुक्रवार को यहाँ आने वाले लोगों की तादाद 40-50 हज़ार तक हो जाती है ।

गेटवे ऑफ इंडिया पर…

मुम्बई में हम सबका अगला गन्तव्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल गेटवे ऑफ इंडिया था । हाजी अली दरगाह से निकलकर हमारी गाड़ी बांद्रा- कुर्ला सी लिंक से होती हुई, मुम्बई की गगनचुंबी इमारतों के बीच से गुजरती हुई गेटवे ऑफ इंडिया की ओर चल पड़ी । राजा, हाथों में गाड़ी की स्टीयरिंग सम्भाले पूरे मनोयोग से मायानगरी मुंबई के दर्शन सभी को करा रहे थे । मुम्बई परम्परा और आधुनिकीकरण का ग़ज़ब समन्वय दिखाती है । यहाँ सब का आसरा है। मुम्बई के दिल में सबके लिए प्यार और दुलार है । मुम्बई सबको भूखा जगाती है लेकिन भूखा सुलाती नहीं है । बातें करते हुए हम लोग कब गेटवे ऑफ इंडिया पहुँच गए पता ही नहीं चला । गेटवे ऑफ इंडिया से लगभग 500 मीटर दूर गाड़ी को पार्क किया गया और हम लोग पैदल ही चल पड़े । सड़क पर बहुत भीड़ थी और उससे भी अधिक भीड़ गेटवे ऑफ इंडिया पर थी । हम सभी एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए चल रहे थे ताकि कोई बिछड़ न जाए । धक्का- मुक्की करते हुए गेटवे ऑफ इंडिया पर सभी लोग पहुँच गए । बच्चों ने बड़े कौतुहल के साथ गेटवे ऑफ इंडिया को निहारा, फ़ोटो ग्राफी कराई और समुद्र की लहरों को जी भर कर निहारा । गेटवे ऑफ इंडिया के पास ही शानदार होटल ताज खड़ा है । यहाँ होटल ताज, गेटवे ऑफ इंडिया और समुद्र तीनों का नजारा बेहद खूबसूरत है । गेटवे ऑफ इंडिया अर्थात् भारत का प्रवेश द्वार मुम्बई शहर के दक्षिण में समुद्र तट पर स्थित है जो वर्ष 1911 में ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम और महारानी मैरी के प्रथम आगमन की याद में बनाया गया है । इसकी ऊँचाई 26 मीटर है और इसके निर्माण में 21.13 लाख की लागत आई थी । लगभग आधे घंटे यहाँ बिताने के बाद हम लोग पुनः अपनी गाड़ी की ओर चल पड़े और एक दूसरे से रगड़ खाते गाड़ी के पास आ गए । सभी लोग एक बार फिर से गाड़ी में लद गए और धन्नो इनोवा समुद्र के किनारे- किनारे चलती हुई कल्याण की ओर चल पड़ी । अब तक सायंकाल के 6 बज गए थे और गाड़ी वापस बृजेश के आवास की ओर तेज़ी से दौड़ने लगी ।

लगभग दो घंटे के सफ़र के बाद हम लोग मुम्बई- आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से नीचे उतरकर टिटवाला के रास्ते पर आ गए । यहाँ रास्ते में एक पटेल रेस्टोरेंट पर रुककर गर्मागर्म पकौड़ी और चाय ली गई । सभी लोग ने चाय पीकर ताजगी महसूस किया । अगले आधे घंटे के अंदर हम लोग बृजेश जी के आवास पर पहुँच गए । यहाँ पर फिर से सीमा ने अदरक की स्वादिष्ट चाय पिलाई । चूँकि आज प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में घर पर केक काटा जाना था इसलिए सभी लोग हाथ मुँह धुलकर फ़्रेश हो गए । मैम, सीमा और सपना ने केक काटने और मोमबत्ती जलाकर सारी तैयारियाँ पूरी किया । केक काटने की रस्म बृजेश के बेटे आद्विक, अजीत भाई तथा सपना ने पूरी किया । हम सब ने सामूहिक रूप से मैरी क्रिसमस का उद्घोष किया । पूरा माहौल प्रभु ईसा मसीह की करुणा से भर गया । ऐसा लगा मानो यहाँ सचमुच प्रभु ईसु और माँ मरियम मौजूद हैं । इसी माहौल में मैंने एक गीत गाया, जिसके बोल थे – “प्रभु ईसु तेरी करुणा का संसार प्यासा है । नफ़रत भरी इस दुनिया में इक तू ही आशा है ।” इस गीत को पूरा करते हुए मेरा गला भर आया । सबकी ऑंखें नम हो गईं । … थोड़ी देर बाद माहौल को हल्का करते हुए मैंने कहा कि आज इस अवसर पर कुछ पुराने गीत हो जाएं । सबसे पहले शुरुआत अजीत भाई ने अपनी शायरी से किया । फिर मैंने “ बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा । सलामत रहे दोस्ताना हमारा ।” गीत गाकर सबको गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया । फिर सपना ने “होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो । बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीति अमर कर दो ।” जैसा दिल को छू लेने वाला गीत गाया । अब मैम कहाँ पीछे रहने वाली थीं, उन्होंने, “तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है । अंधेरों से मिल रही रोशनी है ।” जैसा भावपूर्ण गीत गाकर सबके दिल को भावों से भर दिया । सब लोग अपनी सुध-बुध भूल गए । बृजेश जी ने एक प्रेरणा गीत, “ज्योति से ज्योति जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो ।” प्रस्तुत किया ।

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अब तक रात्रि के 10 बज गए थे और किसी को पूरा दिन सफ़र करने के बावजूद थकान का एहसास नहीं था । हम सभी लोग 12 वर्ष पूर्व की पुरानी यादों में खो गए और बड़ी देर तक बीते दौर को याद करते रहे । तभी सीमा ने कहा कि सर रात के खाने का वक़्त हो गया है, सभी लोग खाना खा लीजिए । सभी ने सीमा के हाथों का बना बहुत स्वादिष्ट भोजन किया । आज कई दिनों के बाद घर का खाना मिला था । मज़ा आ गया । सभी ने भरपेट भोजन किया और सोने की तैयारी की जाने लगी । आज जाने क्या हो गया था जैसे नींद किसी की आँखों में थी ही नहीं । बड़ी मुश्किल से कफ़ सीरफ पीकर और कुछ दवाओं को खाकर नींद को बुलाया गया । क्योंकि सुबह सात बजे मुम्बई से निकलने का कार्यक्रम था इसलिए रात एक बजे तक सभी लोग सो गए । आज की एक और बात यह रही कि बृजेश का बेटा आद्विक, अजीत भाई से इतना घुलमिल गया था कि वह अपने मम्मी-पापा को छोड़कर अजीत भाई के बग़ल में हाथ में हाथ डालकर सोया । ऐसा प्यार और ऐसी दोस्ती मात्र ढाई- तीन वर्ष की उम्र में… सोचने पर गला भर आता है । लगता है कि इन दोनों की पूर्व जन्म की कोई जान- पहचान है ।

मुम्बई से वापस इंदौर वाया नासिक के रास्ते पर, दिनांक- 26-12-2023, दिन, मंगलवार

इंदौर, शिरडी और मुम्बई के विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर आज वापस मुम्बई से विदा लेने का वक़्त आ गया । भारी मन से बृजेश और उनके परिवार से विदा ली गई और पुनः राजा गाड़ी को उत्तर भारत की ओर मोड़ा । मैंने मुम्बई की ओर एक बार मुड़कर देखा और मन ही मन सोचा कि यही वह शहर है जहॉं लोगों के सपने जन्म लेते, फलते- फूलते और विकसित होते हैं । कितनी ही पीढ़ियों से यह शहर भारत का गौरव रहा है । यही देश की वाणिज्यिक राजधानी है । यहीं पर मुम्बा-आई हैं । यहीं बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को अंतिम विदाई दी गई थी । यहीं खुदा के वली हाजी अली हैं । यहीं चर्च गेट है । यहीं विक्टोरिया टर्मिनल है । यहीं छत्रपति शिवाजी महाराज हैं । यहीं गणपति बप्पा मोरिया हैं । यहीं हमारे अपने अनगिनत लोग हैं जो रोज़ी रोटी की तलाश में यहाँ आये और यहीं पर बस गए । यही वह शहर है जिसको देखने से कभी मन नहीं भरता । यही सोचते- सोचते हमारी गाड़ी मुम्बई- आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गई । चूँकि मुम्बई से चलते वक़्त सीमा ने चाय और पोहा का नाश्ता करा दिया था इसलिए अभी कहीं रुकने की आवश्यकता नहीं महसूस हुई । तेज़ी से चलती हुई हमारी गाड़ी इगतपुरी को पास कर नासिक शहर आ गयी । देखते ही देखते नासिक शहर को पार कर बाहर निकल आए । पहले नासिक शहर के बीच से होकर गुजरना पड़ता था इसलिए समय अधिक लगता था और जाम की समस्या का सामना करना पड़ता था लेकिन अब राष्ट्रीय राजमार्ग पर यहाँ पर फ़्लाई ओवर बना दिया गया है इसलिए जाम की समस्या समाप्त हो गई है । नासिक शहर को पार कर हम लोग एक ढाबे पर रुके और बड़ा पाव तथा चाय ली गई । सभी लोग रिफ़्रेश हो गए । पुनः हमारी गाड़ी तीव्र गति से आगे की ओर चल पड़ी ।

मुम्बई से इंदौर शहर की दूरी लगभग 600 किलोमीटर है । आज पुनः इंदौर शहर में ही रात्रि विश्राम करने का फ़ैसला किया गया । नासिक शहर से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी तय कर हमारी गाड़ी दोपहर 2 बजे के क़रीब महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित एक होटल “राज-हंस” पर आ गई । यहीं पर दोपहर का भोजन करने का फ़ैसला किया गया । इस मार्ग पर यह एक सुसज्जित रेस्टोरेंट है और इस रास्ते पर लम्बी दूरी तय करने वाले अधिकतर मुसाफ़िर खाना खाने और चाय नाश्ते के लिए यहीं पर रुकते हैं । पहाड़ियों के बीच खुले स्थान पर निर्मित यह रेस्टोरेंट बहुत रमणीक स्थान पर है । गाड़ी पार्किंग की अच्छी सुविधा है । यहाँ पर सभी ने अपनी पसंद का खाना खाया तथा अजीत भाई ने अपनी फ़ोटो ग्राफी कराई । लगभग एक घंटे के बाद यहाँ से पुनः गाड़ी आगे के लिए चल पड़ी । लगभग 6 बजे के क़रीब हम लोग इंदौर शहर आ गए । रात्रि विश्राम यहीं के होटल में किया गया । हल्का- फुल्का भोजन किया गया । चूँकि सभी लोग सफ़र करते हुए थक गए थे इसलिए सभी लोग जल्दी सो गए ।

इन्दौर से भोपाल मार्ग तथा रात्रि विश्राम, दिनांक- 27-12-2023, दिन बुधवार

सुबह बिना जगाए ही सब लोग जल्दी जग गये । यद्यपि मैं चाहता था कि आज की रात भोपाल में रुका जाए लेकिन यह बात मैंने किसी को ज़ाहिर नहीं किया । अजीत भाई ने कल रात्रि को ही अपने पिताजी से कह दिया था कि पापा, फूफाजी जल्दी से सुबह सभी को जगा देते हैं इसलिए नींद पूरी नहीं हो पाती । इसलिए आज मैंने किसी को भी जल्द जगने के लिए या तैयार होने के लिए नहीं बोला बावजूद इसके ठीक 9 बजे प्रात: ही सभी लोग तैयार होकर होटल से बाहर निकल आए और सामान गाड़ी पर रख दिया गया । मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि बिना किसी प्रयास के ही सभी मुसाफ़िर समय पर आगे बढ़ने के लिए बिलकुल तैयार । होटल से निकलकर हम लोग “बाम्बे हास्पिटल” चौराहे पर आए और यहाँ पर पोहा और चाय नाश्ते में लिया गया । इन्दौर का पोहा बहुत स्वादिष्ट होता है । राजा ने तो दो प्लेट पोहा खाया । गाड़ी आगे बढ़ी और शहर पार करके इन्दौर- भोपाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गए । गाड़ी में बैठी हुई मैम ने कहा कि भोपाल में अजय भाई से मिलकर तथा उनकी चाय पीकर आगे निकल चलेंगे । मैंने कहा ठीक है । तभी भोपाल में बने डी.बी मॉल की चर्चा होने लगी तो अजीत भाई ने कहा कि बुआजी हमें मॉल घूमना है । बबलू ने कहा कि ठीक है बाबू को मॉल घुमा दिया जाएगा । बबलू भाई अपने बेटे को प्यार से बाबू कहकर बुलाते हैं । मैं मन ही मन समझ गया कि अब तो आज की रात्रि विश्राम भोपाल में ही होगी । तभी लगे हाथ मैंने भी कह दिया कि भोपाल में बने इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय मानव संग्रहालय का भी भ्रमण कर लिया जाए । सभी लोग इस बात पर सहमत हो गए ।

भोपाल भ्रमण…

इंदौर से भोपाल की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है और रास्ता बहुत बेहतर है । हमारी गाड़ी बिना रुके हुए लगभग तीन घंटे के सफ़र के बाद भोपाल शहर में आ गई । शहर में प्रवेश करते ही एक पेट्रोल पम्प पर रुककर गाड़ी में राजा ने डीज़ल लिया । इसी बीच अजय भाई ने हम सबका लॉइव लोकेशन ले लिया था और अपने आवास का लोकेशन हमें शेयर कर दिया था । हमारी गाड़ी बिना किसी बाधा के गूगल बाबा के सहारे सीधे अजय भाई के आवास, टाइप -3, हाउस नम्बर, 68, ए. जी. कॉलोनी भदभदा रोड, भोपाल पहुँच गई । लॉइव लोकेशन ट्रेस कर रहे अजय भाई हमारे पहुँचते ही आवास से बाहर निकलकर सड़क पर आ गए । सभी लोग एक दूसरे से मिले और प्रफुल्लित मन से घर में दाखिल हो गए । अजय भाई से लगभग एक साल बाद मेरी, बेटी सपना और मैम की मुलाक़ात हुई थी लेकिन यादें बिलकुल ताज़ा थीं । पिछले साल मेरे पिताजी की तेरहवीं में अजय भाई पत्नी और बेटी के साथ सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी से भोपाल चलकर लगभग 700 किलोमीटर की यात्रा करके सीधे मेरे गाँव पहुँचे थे । हम सभी के पहुँचने पर उनकी पत्नी श्रीमती शीला मौर्या ने बिना देर किए हुए सभी को गर्मागर्म चाय और नाश्ता कराया । इस बीच अजीत भाई का परिचय उनकी लगभग तीन साल की बेटी, बीहू से हो गया और थोड़ी देर में उनकी मित्रता खेल में बदल गई । हम लोग इधर बातें करते रहे उधर शीला ने खाना लगा दिया । सभी ने खाना खाया और खाते- खाते ही भोपाल घूमने का कार्यक्रम तय हो गया । खाने के बाद हम लोग भोपाल भ्रमण पर निकल पड़े ।

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श्री अजय कुमार मौर्य…

वर्तमान समय में सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी ए. जी. आफिस, भोपाल, मध्यप्रदेश में कार्यरत भाई अजय कुमार मौर्य मूल रूप से ग्राम-अजीजगंज, पोस्ट- महराजगंज, जनपद रायबरेली के मूल निवासी हैं। दिनांक 5 दिसम्बर, 1987 को ममतामयी मॉं श्रीमती लालती देवी व पिता, परिनिवृत श्री जगदीश प्रसाद मौर्य की संतान के रूप में जन्में अजय भाई बचपन से कठिन परिश्रम और बड़े सपने देखने में विश्वास करते थे । वर्ष 2006 में उनसे मेरी पहली मुलाक़ात रायबरेली में तब हुई जब मैं अपनी पहली किताब संघर्ष और निर्माण की टाइपिंग तथा कम्पोजिंग के लिए अग्रवाल प्रिंटिंग प्रेस पर लगभग प्रतिदिन आता-जाता था । वहीं अजय भाई कम्प्यूटर के सम्बन्धित सभी काम निबटाते थे । यद्यपि वह अपने काम के अलावा कोई बात नहीं करते थे बावजूद इसके मैंने एक दिन अपनी आदत के मुताबिक़ उनसे उनका नाम और परिचय पूछा । उन्होंने पहली बार उसे अनसुना कर दिया लेकिन मैंने दूसरी बार पूछ लिया । बड़े अनमने ढंग से और बिना हमारी ओर नज़र मिलाए उन्होंने जबाब दिया-अजय । मैंने पुनः पूरक प्रश्न पूछा- पूरा नाम बताइए । उन्होंने कहा कि-अजय कुमार मौर्य । उसी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित बातचीत से मैंने समझ लिया कि यह बंदा सम्मान और स्वाभिमान से विपरीत परिस्थितियों में भी समझौता करने वाला नहीं है । लेकिन मैंने भी तय किया कि इससे मैं जुड़कर रहूँगा । तब का दिन है और आज लगभग 18 साल बाद का दौर है हमारी मित्रता में कोई बदलाव नहीं आया । वर्षों से मैं प्यार से उन्हें राजा कहकर बुलाता हूँ । निजी तौर पर अजय भाई का जीवन बहुत साफ सुधरा है । उनके अंदर उस हर व्यक्ति के लिए प्यार है जो नि:स्वार्थ और छल कपट से दूर है । लेकिन धोखा देने वालों और छल कपट करने वालों की पिटाई करने में भी उन्हें देर नहीं लगती… अंजाम चाहे कुछ भी हो । मेरे लेखकीय जीवन में अजय भाई का बहुत बड़ा योगदान है जिसे मैं कभी नहीं भुला सकता । मैं अजय भाई के लिए, उनकी पत्नी श्रीमती शीला के लिए और बेटी पीहू के लिए ख़ुदा से सलामती और ख़ुशहाली की दुआ करता हूँ । आज जब मैं सपरिवार उनके सरकारी आवास पर पहुँचा तो अचानक सारी स्मृतियाँ मन-मस्तिष्क में घुमड़ आईं और अनायास ही गला भर आया ।

इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, शामला हिल्स भोपाल

भोपाल भ्रमण के क्रम में हमारा पहला लक्ष्य बच्चों को इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय मानव संग्रहालय दिखाना था । इसे मानव विज्ञान संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है । लगभग 200 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ यह संग्रहालय भारत ही नहीं बल्कि एशिया में मानव जीवन की उत्पत्ति और विकास को लेकर बनाया गया विशालतम संग्रहालय है । इस संग्रहालय में देश के विभिन्न हिस्सों में पायी जाने वाली जनजातियों की सभ्यता, संस्कृति, रहन- सहन, परिवेश, परम्परा, पहनावा, त्योहार, रीति- रिवाज, खाने के बर्तन, रसोई, कामकाज के उपकरण, अन्न भंडार, हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियाँ और स्मृति चिन्हों इत्यादि को बड़ी कुशलता और जीवंतता के साथ दिखाया गया है । बस्तर दशहरे का प्रदर्शित किया गया रथ यहाँ आकर्षक का केन्द्र है । यहाँ घूमते हुए आप महसूस करेंगे कि आप सचमुच उन्हीं लोगों के बीच हैं । विभिन्न आदिवासी समाजों के जनजीवन की बहुरंगी झलक देखकर भारत की विविधता की हमारी समझ में इज़ाफ़ा होता है । यहाँ एक सुसज्जित पुस्तकालय भी है जहॉं पूरे देश के आदिवासी समुदाय से जुड़ा महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध है । लेकिन यहाँ साहित्य की बिक्री नहीं की जाती । केवल वहाँ बैठकर पढ़ने की सुविधा दी जाती है जिसका वार्षिक सदस्यता शुल्क रू 2,000 है । संग्रहालय में 32 पारम्परिक एवं प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय भी हैं । विश्व संग्रहालय दिवस 18 मई को मनाया जाता है । पहले इस संग्रहालय की स्थापना दिनांक 21 मार्च, 1977 को नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में खोला गया था किन्तु दिल्ली में पर्याप्त ज़मीन तथा स्थान के अभाव में इसे भोपाल में लाया गया है । सोमवार को यह संग्रहालय बन्द रहता है । यदि आपकी रुचि यह जानने में है कि दुनिया कैसे बनी, जीव कैसे बना, इंसान कैसे बना, घर कैसे बना, हथियारों का निर्माण और विकास का क्रम क्या है, आग कहॉं से आई, परिवार की अवधारणा कैसे विकसित हुई और उसकी आवश्यकता क्या थी और चित्रों का निर्माण क्यों और कैसे प्रारम्भ हुआ ? तो आप यहाँ अवश्य आइए । आपकी बहुत सी जिज्ञासाओं का समाधान हो जाएगा । यहाँ पर मैम, सपना, अजीत भाई और बबलू ने खूब फ़ोटोग्राफ़ी की और मैंने भी एक छोटी सी वीडियो क्लिप बनायी । इस संग्रहालय के अवलोकन हेतु रुपया 50 प्रति व्यक्ति शुल्क लगता है । हम सब के टिकट का भुगतान अजय भाई ने किया था ।

मानव संग्रहालय का अवलोकन करने के बाद हम लोग पुनः अजय जी के आवास पर आए । यहाँ शीला ने सबको चाय पिलायी । अब तक शाम के 6 बज गए थे । अब बारी थी बच्चों को डी. बी. मॉल घुमाने और रात्रि का खाना बाहर खाने की । एक बार फिर राजा ने गाड़ी को भोपाल शहर के लिए मोड़ा । इस बार अजय भाई भी सपरिवार अपनी गाड़ी से आगे-आगे चल रहे थे । थोड़ी देर बाद हम लोग डी. बी. मॉल आ गए । यहाँ गाड़ी पार्क किया गया और सभी लोग आधुनिकता, ग्लैमर और रौशनी से चकाचौंध मॉल में प्रवेश किया । बहुत ख़ूबसूरत और विविध प्रकारों के सामानों से यह मॉल सुसज्जित है । अजीत भाई ने यहाँ गेम खेलने का आनंद उठाया, मैम ने एक जयपुरिया कॉटन चादर ख़रीदा जबकि बाक़ी हम सब ने उस उस ग्लैमर की दुनिया के नज़ारे को आँखों में क़ैद किया । यहाँ से निकलकर हम लोग पास के ही एक रेस्टोरेंट, मिलन रेस्टोरेंट, एम.पी. नगर, में आए । यहाँ सभी ने अपनी पसंद का स्वादिष्ट भोजन किया । वापस सभी लोग अजय भाई के निवास ए. जी. कॉलोनी आ गए । सपना की नौकरी मिलने की मिठाई राजा को खिलानी थी इसलिए वहीं पास के एक रेस्टोरेंट से उनके लिए मिठाई ली गई । वापस उनके आवास पर रात्रि विश्राम किया गया । यह तय किया गया कि कल प्रातः 8 बजे यहाँ से चलकर सॉंची स्तूप का दर्शन करना है ।

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सॉंची दर्शन, दिनांक- 28-12-2023, दिन बृहस्पतिवार

हमारी यात्रा का अगला और आख़िरी पड़ाव मध्यप्रदेश के जनपद रायसेन में स्थित पवित्र सॉंची स्तूप था । भोपाल शहर से सॉंची की दूरी लगभग 45 किलोमीटर पूर्वोत्तर है । इस रास्ते में ही भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कर्क रेखा के गुज़रने वाले बिन्दु को रेखांकित करते हुए वहीं पर एक डेस्टीनेशन प्वाइंट बनाया गया है । बच्चों ने यहाँ पर रुककर उसे गौर से देखा तथा फ़ोटोग्राफ़ी किया । मैम ने यहाँ मीठे और स्वादिष्ट अमरूद ख़रीदा । बबूल, राजा और मैम ने अमरूदों का आनंद लिया । अगले कुछ देर के बाद हम लोग साँची पहुँच गए । स्तूप पर जाने के पहले प्रवेश द्वार पर सपना ने सभी के लिए प्रवेश तथा म्यूज़ियम देखने का टिकट ख़रीदा । यहाँ से लगभग 700 मीटर की चढ़ाई पार कर मुख्य स्तूप के दर्शन होते हैं ।

भारत के महान सम्राट अशोक के द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी में भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थि अवशेष पर निर्मित साँची स्तूप आज यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासत (1989) स्थल की सूची में शामिल है । साँची स्तूप का व्यास 36.5 मीटर और ऊँचाई लगभग 21.64 मीटर है । यहाँ से 10 किलोमीटर की दूरी पर विदिशा नगर स्थित है जहॉं सम्राट अशोक की ससुराल थी । सम्राट अशोक की पत्नी राजकुमारी विदिशा यहीं की रहने वाली थीं और उन्हीं की इच्छा के अनुसार सम्राट अशोक ने यहाँ पहाड़ी पर स्तूप एवं विहार का निर्माण कराया तथा एक स्तम्भ स्थापित किया । सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं बेटी संघमित्रा राजकुमारी विदिशा की ही संतानें थीं जिन्होंने कालान्तर में सिरीलंका में जाकर बुद्ध के संदेशों का प्रचार और प्रसार किया । साँची स्तूप के क्रमांक 1 के चारों ओर तोरणद्वारों पर भदन्त महाकपि, वेस्सन्तर, अलम्बुस और जातक कथाएँ उत्कीर्ण हैं । स्तूप के सबसे ऊपर केन्द्र में छत्र तथा इसके चारों ओर वर्गाकार हर्मिका है । यह बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं । साँची स्तूप में की गई शिल्पकारी बेनज़ीर है । सन् 1818 में एक अंग्रेज अधिकारी जनरल टेलर ने इस स्तूप की खोज की थी । बाद में 1912 से 1919 के बीच जॉन मार्शल की देख-रेख में इस स्तूप का जीर्णोद्धार किया गया । यहाँ संग्रहालय के परिसर में आज भी सर जॉन मार्शल के निवास स्थान को सुरक्षित रखा गया है । साँची स्तूप के पास में एक सरोवर भी है जिसकी सीढ़ियाँ बुद्ध के समय की कही जाती हैं ।

साँची रेल मार्ग, सड़क मार्ग और वायु मार्ग तीनों से पहुँचा जा सकता है । सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन साँची है जो स्तूप से चंद कदमों की दूरी पर स्थित है । साँची स्तूप के किनारे से बेतवा नदी बहती है । सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित अशोक स्तम्भ की ही तरह यहाँ पर भी संग्रहालय में अशोक स्तम्भों का मुकुट, जिनमें चार शेर पीछे की ओर खड़े हैं, सुरक्षित रखा हुआ है । साँची स्तूप के परिसर में कुल 36 मठ और 18 मंदिर हैं । भगवान बुद्ध के दो प्रधान शिष्यों सारिपुत्र और महामोग्गालान के अस्थि अवशेष भी यहाँ पर सुरक्षित हैं । भारत सरकार के द्वारा जारी रूपये 200 की नोट में साँची स्तूप की प्रतिच्छाया अंकित की गई है । हम सभी लोगों ने यहाँ भगवान बुद्ध के इस पवित्र स्तूप को नमन किया, तीन बार उसकी प्रदक्षिणा की तथा सभी के लिए मंगलमय जीवन की याचना की । स्तूप परिसर में ही चैतिय बुद्ध विहार निर्मित है । यहाँ पहुँच कर हम सबने पुनः बुद्ध को नमन किया तथा कुछ ख़रीददारी की गई । लगभग दो घंटे के दर्शन और भ्रमण के पश्चात् हम सब लोग स्तूप से उतरकर नीचे आ गए । यहाँ पर सभी लोगों ने पोहा और चाय लिया । बेटी सपना के साथ मैंने वहाँ के संग्रहालय का दौरा किया तथा वहीं सर जॉन मार्शल के घर का दीदार किया । बहुत अच्छा लगा ।

साँची, विदिशा, ललितपुर और वापस झाँसी

साँची से भगवान बुद्ध से बिदा लेकर हम सब वापस गाड़ी में बैठे और राजा ने गाड़ी की स्टीयरिंग को विदिशा होते हुए ललितपुर और झाँसी की ओर मोड़ा । सबको वापस झाँसी जाना अच्छा नहीं लग रहा था और ऐसा लगता था कि अभी और देश को घूमना तथा देखना चाहिए । जब मैंने बेटी सपना से पूछा कि बेटा थकान तो नहीं है तो वह तुरंत और तपाक से बोली बिल्कुल नहीं पापा । क़रीब क़रीब यही हाल सब का था लेकिन समय सबको अनन्तकाल काल तक की घूमने की अनुमति नहीं देता । बबलू भाई को गाँव में अपना व्यवसाय देखना है, मुझे अपनी सरकारी ड्यूटी से सम्बन्धित ज़िम्मेदारियों को पूरा करना है, बेटी को गुड़गाँव जाना है, अजीत भाई को स्कूल की अपनी पढ़ाई में लौटकर जुटना है, मैम को घर की ज़िम्मेदारियों को निभाना है… इसलिए वापस लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था । यहीं से मैंने बुन्देलखण्ड कॉलेज के अपने वरिष्ठ साथी और प्रोफ़ेसर डॉ. बृजेन्द्र सिंह को मोबाइल फ़ोन करके कॉलेज में खेल विभाग के प्राध्यापक और विभाग प्रमुख डॉ. आनंद कुमार जी का मोबाइल नंबर लिया और साँची से निकलते हुए मैंने डॉ. आनंद कुमार जी को फ़ोन किया । चूँकि वह विदिशा शहर में ही रहते हैं इसलिए उन्होंने हम सबको अपने घर पर चाय पीने के लिए आमंत्रित किया । मेरी बड़ी दिली तमन्ना थी कि मैं आनन्द जी की चाय पियुं लेकिन समय अब इसकी अनुमति नहीं दे रहा था । मैंने आनन्द जी को आमंत्रण के लिए शुक्रिया अदा किया और न पहुँच पाने के लिए माफ़ी माँग ली । अब हमारी गाड़ी विदिशा बाइपास से होकर तेज़ी से गुजरती हुई आगे आ गई । लगभग दो घंटे के सफ़र के बाद हम लोग सागर- ललितपुर हाइवे के क़रीब पहुँच गए । यहाँ एक सुसज्जित होटल अरिहंत पैलेस पर राजा ने गाड़ी खड़ी किया और सभी लोगों ने अपनी- अपनी पसंद का खाना खाया ।

वहाँ से निकलकर लगभग 6 बजे सायंकाल में हम सब यात्री अपनी 7 दिनों की यात्रा पूरी कर वापस झाँसी आ गए । मैम ने आते समय सदर बाज़ार में शाम के भोजन के लिए हरी शब्जी ख़रीदा और सपना ने चाय के लिए अमूल दूध की दो पैकेट ख़रीदा… हम सब लोग फिर से अपने पूर्ववर्ती दैनिक जीवन में ढलने की कोशिश में लग गए..!

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उपसंहार

बेटी इंजीनियर सपना मौर्या के दिल्ली, एन. सी. आर. के अतिरिक्त देश को देखने और भ्रमण करने की इच्छा और राजा के गाड़ी चलाने की हिम्मत ने हम सबको दिनांक 22 दिसम्बर, 2023 से दिनांक 28 दिसम्बर, 2023 तक लगभग 2,500 किलोमीटर का सफ़र तय करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान किया । हमारी गाड़ी के चालक राजा भी इस सफ़र के अहम् किरदार थे । बहुत कम बोलना लेकिन बारीकी के साथ मूल्यांकन करना कोई राजा से सीखे । उत्तर प्रदेश के शहर झाँसी से शुरू होकर शिवपुरी, गुना, होते हुए इंदौर और इंदौर से साँई की नगरी शिरडी, शिरडी से नासिक होते हुए मुम्बई तक की हमारी यात्रा बेहद रोमांचक और नए-नए अनुभवों से परिपूर्ण रही । इस यात्रा ने हमें गाँवों के गली, कूचे, मुहल्ले, खेत और खलिहान के ग्रामीण भारत से लेकर इंदौर और मुम्बई जैसे महानगरों में आबाद शहरी इंडिया को देखने का सुअवसर प्रदान किया । देश की बहुरंगी संस्कृति, सामाजिक और सांस्कृतिक बहुलता, भौगोलिक विविधता, खान-पान, रहन- सहन, बोली-भाषा, खेती- किसानी, उद्योग-धन्धे सभी को नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला । हमारी कितनी ही पीढ़ियाँ, कितने पुरखे इस मिट्टी में ज़मींदोज़ और दफन हैं, उनकी समाधियों, मज़ारों और चैत्यों तथा स्तूपों पर जाना तथा उन्हें नमन कर पुष्प अर्पित करने का सौभाग्य हमें इस यात्रा ने प्रदान किया ।

गंगा, यमुना, बेतवा, नर्मदा और ताप्ती जैसी निरंतर, अविराम, अनन्तकाल से बहती हुई पावन, पवित्र और जीवनदायनी नदियों ने हमारे कितने ही पूर्वजों के अस्थि अवशेषों और उनकी राख को बहाकर समुद्र तक पहुँचाया है । आज हम उसी निरंतरता और बदलाव की एक कड़ी हैं, जीवन के इस सत्य को एहसास करने और उससे अपने को जोड़ने का अवसर भी इस यात्रा से मिला । उन हरे-भरे मैदानों, खेतों और बाग़ानों को नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला जो अपनी कोख से अन्न उपजाकर धरती के सभी जीवों का भरण-पोषण करते हैं । उन पर्वतों, कन्दराओं, गुफाओं और घाटियों के नज़दीक से गुजरने का मौक़ा मिला जो अनादिकाल से योगियों की तप स्थली और साधना भूमि रही है । उदारीकरण और निजीकरण का क्या मिला- जुला प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, इसका भी ज्ञान मिला । महानगरों की गगनचुंबी इमारतें, बड़े- ब्रिज, फोरलेन की चौड़ी-चौड़ी सड़कें, नवनिर्मित एक्सप्रेस हाइवे बदलते हुए भारत की तस्वीर हैं ।

अन्ततः कुल मिलाकर इस यात्रा ने हमारी समझदारी में इज़ाफ़ा किया है । मैं सभी को भारत भ्रमण के लिए प्रोत्साहित करता हूँ, अवसर निकालिए लोग आपकी प्रतीक्षा में हैं..!

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Dr. Raj Bahadur Mourya:

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