राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 15)

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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी । फ़ोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी- डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी, उत्तर प्रदेश (भारत) email : drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : themahamaya. Com

(काशी प्रसाद जायसवाल, क्लॉद लेवी स्त्रॉस, कांशीराम, किशन फागूजी बनसोडे, क्लिफ़र्ड गीट्ज, केरल, केशवराव बलिराम हेडगेवार, कोंस्तांनिन सेर्गेइविच स्तानिस्लाव्स्की, खालसा, गजानन माधव मुक्तिबोध, गठजोड़ राजनीति, गाडगे बाबा, गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक, कार्ल गुन्नार मिर्डाल, सतनामी आन्दोलन, गेटकीपिंग, गोपनीयता, गोपाल कृष्ण गोखले, गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, गोविन्द सदाशिव घुर्ये, गोवा, ग्योर्की लूकाच, गियोर्ग विल्हेम फ्रेडरिख हीगल, फिनोमिनोलॉजी, चौधरी चरण सिंह, चारु मजूमदार, चार्ल्स द मोंतेस्क्यू, चिपको आन्दोलन, चैतन्य महाप्रभु)

1– दिनांक, 27 नवम्बर, 1881 को उत्तर- प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में जन्में भारत के राष्ट्रवादी इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल (1881-1937) ने अपनी रचनाओं में भारत के अतीत, उसके इतिहास, उसकी विधि संहिताओं और राज- व्यवस्था का सराहनापूर्ण चित्र उपस्थित किया है ।द कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया और हिस्टोरी दु मोन्स जैसी स्थापित और मानक कृतियों में उद्धृत और संदर्भित होने वाली जायसवाल की कृतियों की दुनिया भर की प्राच्यवादी पत्रिकाओं ने प्रशंसा की है ।

2- वर्ष 1942 में प्रकाशित काशी प्रसाद जायसवाल का विख्यात ग्रन्थ हिंदू पॉलिटी मुख्यतः प्राचीन राज व्यवस्था को दो भागों में बाँट कर देखता है । एक भाग वैदिक सभाओं और हिंदू गणराज्यों पर है और दूसरा भाग राजतंत्र और साम्राज्यवादी व्यवस्था पर है ।जायसवाल के अनुसार, “ वैदिक काल में हिंदू समाज कबीलों या गणों में बंटा हुआ था और गणों के सदस्य इटैलिसाइज कहलाते थे । इसी से वैश्य यानी जनसाधारण शब्द निकला है ।

3- अपनी रचना मनु एंड याज्ञवल्क्य, अ कम्पेरिजन एंड ए कंट्रास्ट : ए ट्रीटाइज ऑन द बेसिक हिंदू लॉ (1930) में काशी प्रसाद जायसवाल ने विश्लेषण करके बताया कि मनु आधारित सिद्धांत रिवाजमूलक थे जो ब्राह्मणवाद के प्रभाव से व्यवस्थागत पवित्र नियमों में बदल गए ।कौटिल्य के अर्थशास्त्र का काल निर्धारण करते हुए जायसवाल ने इसे मनु के काल से भी पहले का अर्थात् ईसा पूर्व 300 का माना ।

4– 1300-25 के दौरान मूलतः संस्कृत में लिखी गई चंडेश्वर की कृति राजनीति रत्नाकर का विषय राजनीति था ।सोलह तरंगों अर्थात् अध्यायों में बंटी यह कृति क्रमशः राजा, मंत्री, राज प्रासाद, प्रद्विवेक या मुख्य न्यायाधीश, दुर्ग, मंत्रणा- परिषद, कोष, सैन्य शक्ति, सेना, दूत- गुप्तचर- मित्र, राजा के कर्तव्य, दंड, राजा द्वारा राज्य का हस्तांतरण, मृत्यु उपरांत प्रतिनिधि शासन और राज्याभिषेक का विवेचन प्रस्तुत करती है ।

5– प्रसिद्ध सांस्कृतिक मानवशास्त्री क्लॉद लेवी स्त्रॉस (1908-2010) ने संरचनावाद के सैद्धान्तिक विकास को गहराई से प्रभावित किया ।उनका मुख्य जोर नातेदारी, मिथ व कला के प्रभावों पर था ।उन्होंने यह सिद्ध किया कि मानव जाति के बारे में देशज समुदायों का अध्ययन हमें गहन अंतर्दृष्टियों से सम्पन्न कर सकता है ।स्त्रॉस ने नातेदारी की संरचना पर व्यापक अनुसंधान किया और अपने निष्कर्षों के माध्यम से समाज की बनावट के मूल तत्वों और नियमों का सूत्रीकरण करने की कोशिश की ।

6- क्लॉद लेवी स्त्रॉस की 1949 में प्रकाशित रचना द एलीमेंट्री स्ट्रक्चर ऑफ किनशिप मानवशास्त्र की एक क्लासिकल कृति मानी जाती है ।अपनी किताब स्ट्रक्चरल एंथ्रोपोलॉजी में उन्होंने कहा कि व्यक्ति, सम्पत्ति, वस्तु, भाषा और स्त्री आदि का विनिमय करते हैं ।समाज की नातेदारी प्रणाली मुख्यतः स्त्रियों के विनिमय पर ही टिकी रहती है और इसी संदर्भ में उन्होंने क्रास कजिन मैरिज का भी अध्ययन किया ।प्राचीन आदिम समाजों को उन्होंने कोल्ड सोसाइटीज के रूप में सम्बोधित किया ।

7– पंजाब के रोपड ज़िले के खवासपुर गाँव के एक दलित रामदसिया सिक्ख परिवार में 15 मार्च, 1934 में जन्मे कांशीराम (1934-2006) ने बीसवीं सदी के आख़िरी दो दशकों में भारतीय राजनीति को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया । वे उत्तर आम्बेडकर दलित राजनीति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धांतकार और सफलतम संगठक थे ।उन्होंने ज्योतिबा फूले द्वारा प्रतिपादित आर्य बनाम अनार्य थिसिज को उत्तर भारत में पुनर्जीवित करके बहुजनवादी विचारधारा गढ़ी ।उनकी रचना द चमचा एज मशहूर है ।

8- कांशीराम ने 6 दिसम्बर, 1978 को पूरी तरह से अपंजीकृत, अनौपचारिक, गैर धार्मिक और गैर राजनीतिक संगठन ऑल इंडिया बैकवर्ड ऐंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाइज फेडरेशन की स्थापना किया ।उन्होंने बामसेफ के सदस्यों को बहुजन आंदोलन के ब्रेन बैंक, टेलेंट बैंक और फ़ाइनेंशियल बैंक के रूप में देखा ।इसके ठीक 3 साल बाद 6 दिसम्बर, 1981 को कांशीराम ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति का गठन किया ।14 अप्रैल, 1984 को उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के गठन का काम किया ।

9- दिनांक 18 फ़रवरी, 1879 को नागपुर के समीप मोहपा गाँव के एक महार परिवार में जन्मे किशन फागूजी बनसोडे (1879-1946) एक स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, नाटककार और सामाजिक कार्यकर्ताओं में अग्रपंक्ति में हैं उन्होंने दलित साहित्य की परम्परा में विपुल लेखन करते हुए वह रास्ता दिखाया जिस पर दलित साहित्यकारों तथा पत्रकारों की नई पीढ़ियाँ चलीं ।1910 में बनसोडे ने निराश्रित हिंद नागरिक पत्रिका की शुरुआत की ।1913 में विशाल विध्वंशक, 1918 में मजूर तथा 1913 में चोखामेला पत्रिका की शुरुआत की ।

10अमेरिकी मानवशास्त्री क्लिफ़र्ड गीट्ज(1926-2006) को मुख्यतः संस्कृति- अध्ययन के क्षेत्र में व्याख्यात्मक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है ।उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं द इंटरप्रिटेशंस ऑफ कल्चर, एग्रीकल्चरल इनवोल्यूशन, पैडलर एंड प्रिंसेज: सोशल डिवलपमेंट एंड इकॉनॉमिक चेंज इन टू इंडोनेशियन टाउन्स ।

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11- कींस के प्रमुख सिद्धांत उनकी विख्यात कृति जनरल थियरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट ऐंड मनी (1936) में दर्ज हैं ।कींसवाद को मुख्यतः सरकार की राजकोषीय नीतियों के ज़रिए घाटे की अर्थव्यवस्था चलाकर रोज़गार के अवसरों का सृजन करने की नीति के लिए जाना जाता है ।कींस का एक महत्वपूर्ण योगदान अल्पावधि के अर्थशास्त्र का प्रवर्तन भी है, जिसका प्रतिपादन उन्होंने अपनी रचना अ ट्रैक्ट ऑन मोनेटरी रिफॉर्म्स (1923) में किया है ।

12- फ़्रांसीसी अर्थशास्त्री ज्यां बापतीस्त ने अर्थशास्त्र में से के नियम का प्रतिपादन किया ।उनके अनुसार अर्थव्यवस्था में उत्पादन की अधिकता कभी हो ही नहीं सकती, क्योंकि ख़रीददारी बिके हुए माल से होने वाली आमदनी से होती है ।इस तरह से आपूर्ति अपनी माँग ख़ुद पैदा करती है ।

13- 1950 के दशक के आख़िरी वर्ष में घटित हुई क्यूबा की सशस्त्र क्रांति अमेरिकी साम्राज्यवाद पर राष्ट्रवाद और मार्क्सवाद के गठजोड़ की विजय के तौर पर जानी जाती है ।इस क्रांति का नेतृत्व फ़िदेल कास्त्रो के संगठन 26 जुलाई मूवमेंट के हाथों में था ।सारे विश्व के वामपंथी युवाओं को अनुप्राणित करने वाली चे गुएवारा जैसी हस्ती इसी क्रांति की देन है ।1 जनवरी, 1959 को क्यूबा की क्रांति सफल हुई थी ।

14- भारत के दक्षिणी- पश्चिमी भाग में स्थित केरल का राज्य के रूप में गठन नवम्बर, 1956 में हुआ ।इस राज्य का निर्माण उन क्षेत्रों को मिलाकर किया गया जहां मुख्य रूप से मलयालम बोली जाती थी ।केरल शब्द दो मलयाली शब्द केरा और अलम से मिलकर बना है ।केरा का अर्थ होता है नारियल का पेड़ तथा अलम मतलब स्थान ।इस तरह केरल का अर्थ हुआ नारियल का स्थान ।राज्य का कुल क्षेत्रफल 38 हज़ार, 863 वर्ग किलोमीटर है ।इसके उत्तर में कर्नाटक, दक्षिण और पूर्व में तमिलनाडु है ।पश्चिम में अरब सागर है ।

15– सौ फ़ीसदी शिक्षा की दर वाले राज्य केरल में एक सदनीय विधायिका है, जिसमें कुल 141 सदस्य हैं ।यहाँ से लोकसभा के 20 तथा राज्य सभा के 9 सदस्य चुने जाते हैं ।यहाँ का सामाजिक और शैक्षिक विकास शानदार रहा है ।यहाँ 100 फ़ीसदी विद्युतीकरण है ।

16- 1 अप्रैल, 1889 को वेदपाठी तेलगू ब्राह्मण परिवार में जन्मे केशवराव बलिराम हेडगेवार (1889-1940) बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हिन्दुत्ववादी राजनीति की प्रमुख हस्ती थे ।हिंदू राष्ट्रवाद को अखिल भारतीय स्तर पर सांगठनिक रूप देने के लिए उन्होंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना किया ।डॉ. हेडगेवार की वैचारिक और सांगठनिक कल्पनाशीलता के आधार पर ही भारतीय राजनीति की सबसे मज़बूत दक्षिणपंथी हिस्से की रचना हुई ।

17– 1929 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं की बैठक में हेडगेवार ने तय किया कि संगठन का एक सर्वोच्च नेता होना चाहिए जिसे सरसंघचालक कहा जाएगा ।उसकी आज्ञा बिना किसी हीले- हवाली के सभी को माननी होगी ।उन्होंने सरकार्यवाह (महामंत्री) और सेनापति के दो मुख्य पद और बनाए ।21 जून, 1940 को अपनी मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था ।

18– महान रंगकर्मी और अभिनय के आचार्य कोंस्तांतिन सेर्गेइविच स्तानिस्लाव्स्की (1863-1963) ने मनोविज्ञान को केन्द्र में रखकर रंगमंच को वैज्ञानिक रूप, सुनिश्चित आकार और तर्कसंगत पद्धति देने का प्रयास किया ।उन्होंने अपने चिंतन में कहा कि मनोवैज्ञानिक अनुभव और उनकी शारीरिक अभिव्यक्ति के बीच एक अटूट रिश्ता है ।बिना बाह्य शारीरिक प्रदर्शन के आंतरिक अनुभव सम्भव नहीं है ।उन्होंने बताया कि ध्यान का केन्द्रीयकरण सृजनशीलता के लिए एक ज़रूरी तत्व है ।

19खालसा के दो अर्थ लिए जाते हैं ।पहला, यह शब्द अरबी मूल के खालिश शब्द से उपजा है यानी इसका मतलब है खालिस या शुद्ध/ खरा पंथ ।साथ ही यह सम्प्रभु/ आज़ाद पंथ भी है ।इसी ने पुरूषों के नाम के पीछे सिंह और स्त्रियों के नाम में कौर लगाने की परम्परा डाली ।इसके 5 ककार हैं- केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कछरिहा ।दाएँ हाथ की कलाई में लोहे का कड़ा कमर के बाईं ओर पहनी कृपाण को म्यान से बाहर निकालता है ।कृपाण अन्याय के खिलाफ ही उठे, द्वेष के कारण नहीं– इसका ध्यान कड़ा दिलाता है जो विवेक, नैतिकता और संयम का प्रतीक है ।

20– नवम्बर, 1917 में श्योपुर (ग्वालियर) में जन्मे हिंदी साहित्य में छायावादोत्तर साहित्य- सृजन और चिंतन की प्रमुख हस्ती के रूप में गजानन माधव मुक्तिबोध (1917-1964) ने आत्मा के कारख़ाने में बैठकर नए सृजन का समाजशास्त्र और सौन्दर्यशास्त्र रचा ।राजनीतिक आतंक और सामाजिक शोषण को सघनता से रेखांकित करने के कारण मुक्तिबोध को जनता का जनवादी कवि कहा जाता है ।भारतीय जीवन की विवेकानन्दी- गांधीवादी लय मुक्तिबोध का संसार रही है ।

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21 मुक्तिबोध की प्रकाशित पुस्तकों में चांद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल, काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, कामायनी- एक पुनर्विचार, नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, एक साहित्यिक की डायरी और भारत: इतिहास तथा संस्कृति प्रमुख हैं ।उन्होंने कविता की व्याख्या को विकासमान सामाजिक वस्तु बनाया ।मुक्तिबोध ने कहा कि, काव्य एक सांस्कृतिक प्रकिया है- काव्य में संस्कृति एवं परम्परा का समाहार होता है ।मुक्तिबोध की व्याख्याओं पर क्रिस्टोफ़र कॉडवेल और ग्योर्गी लूकॉच के विचारों की छाप है ।

22 मुक्तिबोध मानते हैं कि कवि भीतर के विशिष्ट को बाहर के सामान्य से मिला देता है- यह सामान्य ही जीवन मूल्य है, जीवन दृष्टि है जो कवि ने वाह्य जीवन जगत से पायी है ।कवि विशिष्ट को सामान्य बताने के लिए भाव सम्पादन, भाव- संशोधन करता है ।इससे भाव पक्ष का समाजीकरण हो जाता है ।कविता की यही दृष्टि हमें समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की ओर ले जाती है ।हमारी भाव सम्पदा, ज्ञान सम्पदा और अनुभव सब इस व्यवस्था के अंग बन जाते हैं ।

23गठजोड़ राजनीति शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले थामस पाइन ने 1782 में अमेरिकी राज्यों के आपसी संबंधों को अभिव्यक्त करने के लिए किया था ।सत्तर के दशक में पर्यावरण आंदोलन ने गठजोड़ राजनीति का मुहावरा सफलतापूर्वक विकसित किया था ।उनका नारा था, ‘भूमंडलीय पैमाने पर सोचो, स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करो ।” इसका परिणाम ग्रीन मूवमेंट में निकला । इसी तर्ज़ पर पश्चिम में नेबरहुड और सेव अवर सबअर्ब जैसे आंदोलन सामने आए ।विश्व सामाजिक मंच का गठन भी इसी सोच का नतीजा है, जिसका नारा है, “दूसरी दुनिया मुमकिन है”

24गवर्नेंस नवउदारवादतावादी वैश्विक अर्थव्यवस्था को न्यायसंगत ठहराने तथा इसके प्रसार को सुनिश्चित करने के मक़सद से गढ़ा गया विचारधारात्मक औज़ार है ।यह संरचना चाहती है कि आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप कम हो, सरकार बाज़ार के खिलाड़ियों की आपसी प्रतिस्पर्धा और आर्थिक गतिविधियों का संचालन करे ।राज्य की लोकोपकारी ज़िम्मेदारियों को समाप्त कर दिया जाए ।नौकरशाही को निपुण बनाया जाए तथा सरकार कम खर्च में अधिक काम करे ।

25– सामाजिक क्रांति के अग्रदूत गाडगे बाबा (1876-1956) का नाम महाराष्ट्र के उन समाज सुधारकों में लिया जाता है जिन्होंने पुस्तकीय ज्ञान से नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप में हासिए के लोगों के बीच चेतना जगाने का कार्य किया ।इसलिए उन्हें समाज ने लोक- शिक्षक की उपाधि दी ।गाडगे वेशभूषा के नाम पर फटे- पुराने कपड़े पहनते थे ।सिर पर टोपी, एक हाथ में झाड़ू तथा दूसरे हाथ में मिट्टी का गडुआ रहता था ।वे जब चलते तो रास्ता साफ़ करते हुए जाते थे ।चूँकि उनके पास हमेशा मिट्टी का गडुआ रहता था इसीलिए उनका नाम गाडगे महाराज पड़ गया ।

26– माता सखुबाई और पिता झिंगराजी के सुपुत्र गाडगे बाबा का संदेश सहज था वे कहते थे, “भगवान न तो तीर्थ में है और न ही मूर्ति में ।वह तो दरिद्र नारायण के रूप में स्वयं तुम्हारे सामने खड़ा है ।उसकी प्रेम से सेवा करो ।यही आज का सच्चा धर्म है, यही सच्ची भक्ति और भगवान की पूजा है ।वह कहते थे कि बच्चों को पढ़ाओ ।कहते हो पैसा नहीं है, तो हाथ की थाली बेच दो, हाथ पर रोटी रखकर खाओ ।पत्नी के लिए कम क़ीमत की साड़ी ख़रीदो ।रिश्तेदारों की ख़ातिर करने में पैसा मत बहाओ ।”

27- उत्तर औपनिवेशिकता की प्रमुख सिद्धांतकार, अंतरानुशासनिक विद्वान और नीतिशास्त्रीय दार्शनिक गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक (1942 -) ने अपनी उपनिवेश- उपनिवेशित के सम्बन्धों को परिभाषित करने के लिए विसंरचनावादी पद्धति का प्रयोग किया ।स्वयं को एक व्यावहारिक- मार्क्सवादी- नारीवादी- विसंरचनावादी कहने वाली स्पिवाक को पहली ख्याति जॉक देरिदा की रचना द लॉ ग्रैमेटोलॉजी के अनुवाद और उसकी भूमिका लिखने के कारण मिली ।महाश्वेता देवी की तीन महत्वपूर्ण कहानियों द्रौपदी, जसोदा और डायन का स्पिवाक ने अंग्रेज़ी में बेस्ट स्टोरीज़ नाम से अनुवाद किया ।

28– स्वीडिश विद्वान कार्ल गुन्नार मिर्डाल (1898-1987) को अर्थशास्त्र में परम्परागत रूप से प्रचलित संतुलनावस्था विश्लेषण का सैद्धान्तिक विकल्प पेश करने का श्रेय दिया जाता है ।उन्होंने विश्व स्तर पर वास्तविक आर्थिक मुद्दों की शिनाख्त की और मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय और सांस्कृतिक कारकों का सहारा लेकर एक नया अर्थशास्त्र रचने का प्रयास किया ।उन्होंने दिखाया कि आर्थिक प्रक्रिया के आरम्भ में अगर निवेश बचत के स्तर से ज़्यादा हो तो मुनाफ़े और आमदनी में वृद्धि के कारण बचत की मात्रा और बढ़ेगी ।लेकिन अगर प्रक्रिया के आरम्भ में बचत निवेश से अधिक हुई तो परिणाम मंदी में निकलेगा, नौकरियाँ चली जाएँगी और मुनाफ़ा गिर जाएगा ।

29 गुन्नार मिर्डाल ने दक्षिण एशियाई ग़रीबी की जाँच पड़ताल की और एशियन ड्रामा जैसी विख्यात पुस्तक लिखी ।यहाँ पर उन्होंने स्प्रेड इफ़ेक्ट और बैकवाश इफ़ेक्ट की थिसिज दी । अगर एक इलाके का विकास होता है तो उसके प्रभावों का विस्तार होता है और दूसरे इलाक़े भी प्रभावित होते हैं ।जबकि ग़रीबी अपने गर्भ से ग़रीबी को जन्म देती है ।दरिद्र इलाक़ों में जन्म दर अधिक होती है, पोषण का स्तर गिरा हुआ होता है और श्रम की उत्पादकता कम रहती है ।

30- अठारहवीं सदी में सतनामी आंदोलन के माध्यम से अछूत समझी जाने वाली जातियों में सामाजिक- सांस्कृतिक चेतना का प्रसार करने वाले गुरू घासीदास (1756-1836) ने एकेश्वरवाद का संदेश दिया ।उन्होंने निराकार और अनन्त के रूप में ईश्वर की पैरवी किया, जातिगत विभेदों की निंदा की और सामाजिक समता का उपदेश दिया ।उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य बराबर हैं, ईश्वर एक है और उसका नाम सतनाम ( सत्यनाम) है ।दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर आदि ज़िलों में इस आंदोलन का प्रभाव अधिक रहा है ।गुरू घासीदास के पिता का नाम मंहगूदास और माँ का नाम अमरोतिन था ।

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31- गेटकीपिंग का शाब्दिक अर्थ है- चौकीदारी करना । यह शब्द सामाजिक मनोविज्ञान के अनुशासन की देन है, जिसे सबसे पहले सोशल साइकोलॉजिस्ट कर्ट लेविन ने 1953 में गढ़ा था ।कर्ट लेविन ने अपने लेख फोर्सेज बिहाइंड फूड हैबिट एंड मैथेड ऑफ चेंज में लिखा था कि कैसे खाने की एक वस्तु खेत से लेकर स्टोर तक, फिर स्टोर से लेकर खाने की टेबल तक एक लम्बी प्रक्रिया से पहुँचती है ।यह सिद्धांत 1950 में मीडिया- विमर्श का हिस्सा बना ।

32गोपनीयता को सामान्य व्यवहार में किसी महत्वपूर्ण और उपयोगी सूचना को दूसरों से छिपाना होता है ।गोपनीयता को समाजशास्त्रीय अध्ययन और विश्लेषण के तौर पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय जर्मन समाजशास्त्री जार्ज जिमेल को जाता है ।जिमेल ने गोपनीयता के अध्ययन में विश्लेषण के जिन नए सूत्रों का प्रतिपादन किया था उनका प्रभाव आज तक बरकरार है ।उनका यह सूत्र आज भी प्रासंगिक है कि जब कोई व्यक्ति दूसरे से झूठ बोलता है तो दूसरे व्यक्ति को सिर्फ़ धोखा ही नहीं दिया जाता बल्कि वह झूठ बोलने वाले की वास्तविक मंशा के बारे में भी भ्रांति का शिकार होता है।

33- महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के एक गाँव में 9 मई, 1866 को एक साधारण मध्यवर्गीय चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे, भारतीय उदारतावाद के पितामह, समाज सुधारक, शिक्षाविद और राजनेता गोपाल कृष्ण गोखले (1866-1915) भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन की नींव डालने वाली चंद हस्तियों में से एक थे ।अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने उन्हें अपने गुरु की संज्ञा दी है ।उन्नीसवीं सदी के आख़िरी और बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में सक्रिय रहे गोखले को भारतीय राजनीतिक पुनर्जागरण के संदर्भ में जस्टिस रानाडे और गांधी के बीच की कड़ी माना जाता है ।

34- गोपाल कृष्ण गोखले के मानस पर फ़्रांसिस बेकन के निबन्धों, एडमंड बर्क द्वारा की गई फ़्रांसीसी क्रांति की आलोचना और जॉन स्टुअर्ट मिल के उदारतावाद की गहरी छाप पड़ी थी । उनको एडमंड बर्क की पुस्तक रिफ्लैक्शन्स ऑन द फ़्रेंच रिवोल्यूशन कंठस्थ थी । वे महादेव गोविन्द रानाडे को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे । रानाडे के सहयोग एवं मार्गदर्शन से गोखले ने डेक्कन सभा की स्थापना किया । 1902 में गोखले सर्वोच्च विधायी परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए अंग्रेज़ों की इंसाफपसंदी, ईमानदारी और नेक इरादों में विश्वास रखने वाले गोखले ने 1905 में सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना किया ।1906 में उन्हें कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में अध्यक्ष चुना गया । गोखले की धार्मिक सहिष्णुता के कारण मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने आप को मुस्लिम गोखले बनाने का उद्गार प्रकट किया ।

34-A- गोपाल कृष्ण गोखले को अंग्रेजों ने सी.आई.ई. के ख़िताब से सम्मानित किया था । उन्हें अर्थशास्त्र सम्बन्धी गहन ज्ञान था ।गोखले संवैधानिक आन्दोलन के द्वारा देश में आवश्यक और अनुकूल परिवर्तन लाना चाहते थे । वे भारत के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं पुनर्जीवन के लिए क्रमिक विकास का सहारा लेना चाहते थे । सहिष्णुता के आदर्श को अपनाकर एकजुट होने का संदेश भारत के निवासियों के लिए गोखले की सामाजिक विरासत थी । भारत के आध्यात्मिक गौरव एवं तत्वज्ञान की अभिव्यक्ति उनके सामाजिक विचारों का मूल थी । वह जर्मन अर्थशास्त्री फ़्रेडेरिक लिस्ट से अत्यधिक प्रभावित थे । दिनांक 19 फ़रवरी, 1915 को उनका निधन हो गया । उनकी मृत्यु पर तिलक ने गोखले को भारत का हीरा कहकर श्रद्धांजलि अर्पित की ।

35– मूलतः उत्तराखंड के निवासी तथा इलाहाबाद में जन्में स्वातंत्र्योत्तर भारत के सर्वाधिक मान्य और प्रतिष्ठित अध्येताओं में से एक गोविंद चन्द्र पाण्डेय (1923-2011) ने आजीवन इतिहास, दर्शन और संस्कृति जैसे विषयों में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।परम्परा के मूल स्वर एवं साहित्य, शंकराचार्य: विमर्श और संदर्भ, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं ।वह प्रयाग, गोरखपुर और जयपुर में प्राचीन इतिहास एवं भारतीय संस्कृति के प्रोफ़ेसर, उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के निदेशक भी रहे ।

36– प्राचीन हिंदू धर्मशास्त्रों और संस्कृत – ज्ञान के आधार पर भारतीय समाज का विश्लेषण करने वाले गोविन्द सदाशिव घुर्ये (1893-1984) भारतीय समाजशास्त्र के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे ।भारत की एकता के लिए उन्होंने उसकी सांस्कृतिक एकता पर बल दिया ।जातियों और जनजातियों की उन्होंने मानवशास्त्रीय व्याख्या की तथा सामाजिक तनाव के विभिन्न रूपों का संधान किया और भारतीय समाज में साधुओं के योगदान पर प्रकाश डाला ।तीस के दशक में लिखी गई उनकी पुस्तक कास्ट एंड रेस इन इंडिया को बडे स्तर पर सराहा गया ।1962 में उनकी चर्चित कृति एनाटॉमी ऑफ अरबन कम्युनिटी प्रकाशित हुई ।

37– भारत के दक्षिण पश्चिम में स्थित राज्य गोवा पहले पुर्तगाली उपनिवेश था ।भारतीय सेना की आपरेशन विजय की 1961 की कार्रवाई के बाद गोवा का भारत में विलय हुआ ।वास्कोडिगामा इसका सबसे बड़ा शहर है ।इसके उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व और दक्षिण में कर्नाटक और पश्चिम में अरब सागर स्थित है ।गोवा का क्षेत्रफल 3 हज़ार , 702 वर्ग किलोमीटर है और इस दृष्टि से यह भारत का सबसे छोटा राज्य है ।2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 14 लाख, 57 हज़ार, 723 है ।यहाँ की कुल साक्षरता दर 87 प्रतिशत है ।

38गोवा की विधायिका एक सदनीय है जिसमें कुल 40 सदस्य होते हैं ।गोवा से लोकसभा के दो और राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुना जाता है ।यहाँ की आधिकारिक भाषा कोंकणी है ।अपने खूबसूरत समुद्री तटों के कारण गोवा सारी दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित करता है ।यहाँ की राजधानी पणजी है ।मुम्बई उच्च न्यायालय ही गोवा का उच्च न्यायालय है जिसकी एक पीठ पणजी में स्थित है ।

39– बुडापेस्ट, हंगरी में जन्मे, बीसवीं सदी के मार्क्सवादी चिंतकों में ग्योर्गी लूकाच (1885-1971) एक अलग पहचान बनाई है ।1916 में प्रकाशित उनकी कृति द थियरी ऑफ द नॉवेल हीगेलियन सौन्दर्यशास्त्र के दृष्टिकोण से रची गई ।जबकि 1922 में प्रकाशित उनकी कृति हिस्ट्री एंड क्लास कांशसनेस मार्क्सवादी दर्शन के दायरों में एक महान रचना की हैसियत रखती है ।कई विद्वान् इस पुस्तक को मार्क्सवाद का रिनेसॉं मानते हैं ।1928 में लूकॉच ने ब्लम थिसिज पेश की जिसमें फासीवाद के विरूद्ध एक लोकतांत्रिक मोर्चा गठित करने की योजना रखी गई थी ।

40ग्योर्ग विल्हेम फ्रेड्रिख हीगेल (1770-1831) आधुनिक जर्मन भाववाद के शिखर विचारक के रूप में जाने जाते हैं ।वे अपनी पीढ़ी के सबसे प्रभावशाली दार्शनिक तो थे ही, दर्शनशास्त्र की दुनिया पर उनका असर आज भी बरकरार है ।हीगल ने 17 वीं और 18 वीं सदी के यूरोपीय ज्ञानोदय के बुद्धिवाद से निकले बेलगाम व्यक्तिवाद और इमैनुअल कांट की विशुद्ध तार्किकता के बीच का मार्ग निकाला ।बक़ौल चार्ल्स टेलर हीगल जिस महान चुनौती से रूबरू थे वह यह थी कि ख़ुदमुख़्तारी के आदर्श का परित्याग किए बिना मनुष्य के मुकम्मल वजूद को कैसे बरकरार रखा जाए ।

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41हीगल ने एक ऐसी पद्धति की पेशकश की जिसे द्वंद्वात्मक चिंतन कहा जाता है, जिसके तहत हर विरोध दरअसल अंतर्विरोध बन जाता है ।यानी दो दीगर चीजों के बीच विरोध न होकर एक सम्पूर्ण के आंतरिक विकास और गति का आधार बन जाता है ।हीगल की प्रसिद्ध रचनाओं में फिनोमिनोलॉजी ऑफ माइंड (1807), द फिलॉसफी ऑफ राइट (1821), इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फिलॉसफिकल साइंसेज़ (1861) और द साइंस ऑफ लॉजिक प्रमुख हैं ।

42घटनाक्रियाशास्त्र अथवा फिनोमिनोलॉजी दर्शन के संस्थापक जर्मन दार्शनिक एडमंड हसेर्ल (1859-1938) थे ।उनका कहना था कि सभी प्रकार की चेतना हमेशा साभिप्राय या इरादतन होती है ।यानी हम केवल सचेत नहीं होते बल्कि किसी न किसी वस्तु के प्रति सचेत होते हैं ।ज़रूरी नहीं है कि उस वस्तु का भौतिक वजूद हो ।1901 से 1913 के बीच हसर की दो रचनाएँ लॉजिकल इनवेस्टीगेशंस और आइडियाज़ पर्टेनिंग टु अ प्योर फिनॉमिनॉलॉजिकल फिलॉसफी इस दर्शन की प्रमुख ग्रन्थ मानी जाती हैं ।

43- घटनाक्रियाशास्त्र के विकास ने दर्शन के साथ साथ समाजशास्त्रीय और कला सम्बन्धी चिंतन को भी काफ़ी प्रभावित किया ।हसर के सहायक और महान दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर इस अवधारणा को अस्तित्व के तात्पर्य और मानवीय वजूद की संरचना को समझने की दिशा में ले गए ।मॉरिस मरली- पोंती और ज़्याँ पॉल सात्रे का चिंतन भी घटनाक्रियाशास्त्र से प्रभावित हुआ ।इसी आधार पर अल्फ्रेड शुज द्वारा फिनोमिनोलॉजिकल सोसियोलॉजी का विकास किया गया ।1938 में प्रकाशित अपनी रचना क्राइसिस ऑफ यूरोपियन साइंस ऐंड ट्रांसेडेंटल फिनोमिनोलॉजी में हसर ने चेतना के साभिप्राय होने की थिसिज विकसित की ।

44– उत्तर -प्रदेश की मेरठ कमिश्नरी के ज़िला ग़ाज़ियाबाद की हापुड़ तहसील के नूरपुर गॉंव में 23 दिसम्बर, 1902 को जन्में चौधरी चरण सिंह (1902-1987) कृषि लोकतंत्र के पक्षधर सिद्धांतकार थे ।गांधीवादी के समर्थक चरण सिंह की वेशभूषा में गांधी टोपी हमेशा शामिल रही ।उन्हें सुनने के लिए जनसभाओं में अपार भीड़ जुटती थी ।सादा जीवन- उच्च विचार के हिमायती चरण सिंह अनुशासन प्रिय एवं सिद्धांतवादी थे ।अपने राजनीतिक जीवन में वह प्रधानमंत्री जैसे गरिमापूर्ण पद तक पहुँचे ।परन्तु प्रधानमंत्री के रूप में संसद का एक बार भी सामना नहीं कर पाये ।

45– वाराणसी, उत्तर प्रदेश में जन्में, नक्सलवादी आंदोलन के प्रमुख सिद्धांतकार और संस्थापक चारु मजूमदार (1919-1972) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी- लेनिनवादी) के पहले महासचिव थे ।आजीवन किसानों के बीच राजनीतिक काम करने वाले चारु मजूमदार ने 1967 में उत्तर बंगाल की तराई में स्थित नक्सलबाडी इलाक़े में आदिवासी किसानों के सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया ।इस आंदोलन को रेडियो पेकिंग ने भारत में बसंत का वज्रनाद क़रार दिया था ।उन्होंने मार्क्सवाद- लेनिनवाद के साथ माओ विचार के समावेश के लिए रास्ता खोला ।

46चार्ल्स- लुई द सेकोंद मोंतेस्क्यू (1689-1755) को फ़्रांसीसी नवजागरण के महत्वपूर्ण राजनीतिक विचारक, दार्शनिक, इतिहासकार, उपन्यासकार लेखक और व्यंग्यकार माना जाता है ।उन्हें समाजशास्त्र की स्थापना का भी श्रेय दिया जाता है ।वे पहले आधुनिक चिंतक थे जिन्होंने राजनीतिक संस्थाओं पर भूगोल, पर्यावरण और अन्य बाह्य परिस्थितियों के प्रभाव को समझने का प्रयास किया ।1748 में उनकी रचना द स्प्रिट ऑफ लॉज प्रकाशित हुई ।सन् 1721 में उनकी रचना पर्शियन लेटर्स और 1734 में द काजेज ऑफ द ग्रेटनेस एंड डिक्लाइन ऑफ रोमन्स का प्रकाशन हुआ ।

47- पर्शियन लेटर्स के प्रकाशन से मांतेस्क्यू को साहित्यिक ख्याति मिली ।पत्र शैली में लिखी गई इस रचना के जरिए उन्होंने फ़्रांसीसी जीवन, रीति रिवाजों और राजनीतिक संस्थाओं पर व्यंग्यात्मक निगाह डाली ।उन्होंने दो ईरानी यात्री कल्पित किए जो फ़्रांस की यात्रा पर आते हैं और वहाँ के हालात को आश्चर्य और विनोद के भाव से देखते हैं ।मांतेस्क्यू राजनीति विज्ञान में शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के लिए भी जाने जाते हैं ।ब्रिटिश राजशाही के बारे में उन्होंने कहा था कि अगर वह मध्यवर्ती शक्तियों द्वारा संयमित हो तो सरकार का सबसे अच्छा रूप मुहैया करा सकती है ।

48- वर्ष 1973 में उत्तराखंड के जनपद चमोली में जंगल कटने से बचाने के लिए चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई ।पेड़ों को कटने से बचाने के लिए आंदोलनकारी पेड़ों से चिपक जाते थे ।इसी रणनीति के आधार पर पूरे आंदोलन को ही चिपको आन्दोलन कहा जाने लगा ।आंदोलनकारियों का आग्रह था कि पेड़ नहीं, पहले हम कटेंगे ।इस आन्दोलन की एक नायिका गौरा देवी ने नारा दिया था, “ यह जंगल हमारा मायका है और हम पूरी ताक़त से इसे बचाएँगे”। इस आन्दोलन से लगभग तीन सदी पहले राजस्थान के विश्नोई समाज के 363 लोगों ने खेजरी नामक वृक्ष बचाने के लिए उनसे चिपक कर अपने जीवन का बलिदान दे दिया था ।

49- चिपको आन्दोलन में मीरा बहन, सरला बहन, बिमला बहन, गौरा देवी, हिमा देवी, गंगा देवी, इतवारी देवी और अन्य कई स्त्रियों ने चिपको के दौरान आन्दोलन की मशाल को जलाए रखा ।इसके अतिरिक्त सुंदर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, घनश्याम सैलानी जैसे पुरूषों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया ।1988 में भारतीय भौतिक शास्त्री और पर्यावरणीय अनुसंधानकर्ता वंदना शिवा ने अपनी कृति स्टेइंग एलाइव : वुमन, इकोलॉजी एंड सर्वाइवल इन इंडिया की रचना कर पर्यावरणीय आंदोलन को सुदृढ़ता प्रदान किया ।

50– पश्चिम बंगाल के नादिया नामक स्थान पर पिता जगन्नाथ मिश्र तथा माँ शचि देवी के घर जन्में चैतन्य महाप्रभु (1485-1533) ने अचिन्त्य भेदाभेदभाव दर्शन की स्थापना की ।उन्होंने मठ और मंदिरों से बाहर आकर जनता के बीच भक्ति का रास्ता सबके लिए खोला ।उस समय की दलित, उत्पीडित तथा श्रमजीवी जनता को उससे एक सम्बल मिला ।यह सम्प्रदाय कृष्ण को परमब्रम्ह मानता है ।इसका मानना है कि वे अनन्त कल्याण गुण सम्पन्न और अनन्त शक्ति सम्पन्न हैं ।उनमें गुण और गुणी का अभेद है ।भगवान के स्वरूप, विग्रह और गुणों में कोई भेद नहीं है ।

– नोट : उपरोक्त सभी तथ्य, अभय कुमार दुबे, द्वारा सम्पादित पुस्तक “समाज विज्ञान विश्वकोष” खण्ड 2, द्वितीय संस्करण 2016, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, ISBN : 978-81-267-2849-7, पेज नंबर 397 से 511 से साभार लिए गए हैं ।

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Dr. Raj Bahadur Mourya:
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