गोदावरी नदी के तट पर स्थित नासिक, महाराष्ट्र के उत्तर- पश्चिम में मुम्बई से 150 किलोमीटर और पुणे से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सातवाहन वंश के राजाओं की राजधानी थी। मुग़ल काल में नासिक शहर को “गुलशनाबाद” के नाम से जाना जाता था। 1932 में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में अश्पृश्यों को प्रवेश दिलाने के लिए आन्दोलन चलाया था। अपने अतीत में नासिक एक बौद्ध स्थल था।
यहीं नासिक शहर से 8 किलोमीटर दक्षिण में स्थित पाण्डु लेणी ( गुफाएं) पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थल हैं। “त्रिवाष्मी हिल्स” के पठार पर बनी यह गुफाएं 2 हजार साल से अधिक पुरानी हैं। राक- कट परम्परा में निर्मित “पाण्डु गुफाएं” बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों से सुसज्जित हैं। लगभग 200 वर्षों के कालखंड में निर्मित, यहां पर गुफाओं की संख्या 24 है। समुद्र तल से 3 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इन गुफाओं में जो शिलालेख हैं उनकी भाषा “प्राकृत” तथा लिपि “ब्राम्ही” है।
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में निर्मित “पाण्डु गुफाएं” पर्वत के ठीक बीचों-बीच बनीं हैं। ऊपर तक जाने के लिए पर्वत की तलहटी से ही सीढियां बनाई गई हैं जिनकी संख्या लगभग 500 होगी। सह्याद्रि पर्वत माला के इस पर्वत का नाम “त्रि- रश्मि” पर्वत है, इसलिए इन गुफाओं को “त्रि- रश्मि गुफा” के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि बौद्ध भिक्षु पीले रंग ( पाण्डु वर्ण) के कपड़े पहनते थे इसलिए इन गुफाओं का नाम ही “पाण्डु” अथवा “पाण्डव” गुफा पड़ गया। प्रारम्भिक चरण में इन गुफाओं का सम्बन्ध बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से था। कालांतर में महायान का भी प्रभाव यहां पर पड़ा। भारत- ग्रीक वास्तुकला का उत्कृष्ट समामेलन यहां पर दृटव्य है।
गुफाओं में शिलालेख 3, 11, 12, 13, 14, 15, 19 और 20 सुपाठ्य हैं। शिलालेखों में भट्टपालिका, गौतमिपुत्र सप्तकरणी, सातवाहनों के बशिष्ठ पुत्र पुलुवामी, दो पश्चिमी क्षत्रप, उशावदाता और उनकी पत्नी दक्षिमित्रा तथा यवाना (इण्डो- ग्रीक) धम्मदेव नाम हैं। गुफा संख्या 2 में अधूरा चौरी भालू के साथ बुद्ध देव और बोधिसत्व शामिल हैं तथा दीवारों पर मूर्ति कला है।गुफा संख्या तीन गौतमिपुत्र विहार है। यह सातवाहन राजा द्वारा द्वितीय शताब्दी में बनवाया तथा समर्पित किया गया है। गुफा संख्या चार काफी नष्ट हो गया है तथा काफी गहराई से पानी भरा हुआ रहता है। गुफा संख्या 18 एक चैत्य कक्ष है जिसमें एक मनोहारी स्तूप बना हुआ है। ऊंचे-ऊंचे खम्भों से युक्त उस हाल में आवाज गूंजती है। इसी तरह की चैत्य संरचना “कान्हेरी” गुफाओं में भी है।
गुफा बौद्ध भिक्षुओं को आश्रय प्रदान करती थी। गुफा का हाल 41 फ़ीट चौड़ा और 46 फ़ीट गहरा है जिसमें तीन तरफ एक बेंच है। गुफा में सामने के पोर्च पर 6 खम्भे हैं। यहां का प्रवेश द्वार एक शैली में अशिष्टता से मूर्तिकला है जो सांची के प्रवेश द्वार की याद दिलाता है। दरवाजे पर तीन प्रतीक हैं- बोधिवृक्ष, दागोबा और चक्र, साथ में पूजा करने वाले भी हैं। प्रत्येक तरफ़ एक द्वारपाल फूलों का एक गुच्छा पकड़ रहा है। बरामदे में अष्टकोणीय स्तम्भ हैं। गुफा संख्या 6, 7, 8 में शिलालेख है जिसमें उनके दानदाताओं का जिक्र है। गुफा में सातवाहनों के राजा कृष्ण का 100-70 ईसा पूर्व का एक शिलालेख है। गुफा नं 3 में बुद्ध देव की विशाल छवि है जो 10 फ़ीट ऊंची है।कमल के फूल पर उसके पैरों से बैठी है। गुफा नं 8 एक चैत्य डिजाइन है।
यहीं पहाड़ की तलहटी पर एक आधुनिक स्तूप बना हुआ है जिसके भीतर बुद्ध देव की एक विशाल सुनहरे रंग की प्रतिमा स्थापित है। स्तूप की बनावट ऐसी है कि एक चुटकी की आवाज भी जोरों से गूंजती है।पास में ही ‘‘ दादा साहेब फाल्के म्यूजियम” है। दादा साहेब फाल्के हिन्दी फिल्म जगत के पिता माने जाते हैं। उन्होंने नासिक शहर में रहकर ही फिल्म के प्रति ज्यादा कार्य किया है। यह म्यूजियम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास को भी बयां करता है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- संकेत सौरभ ( अध्ययन रत एम. बी.बी.एस.), झांसी (उत्तर-प्रदेश)
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बेजोड़ और विस्तृत विवरण के लिए आपको साधुवाद।
Thank you very much Dr sahab
Very informative and enlightening article SIR, kudos to you and your efforts in reaching out to the world! Best wishes Sir..
Thank you very much for Dr sahab
महाराष्ट्र में नासिक शहर से ८कि भी दूर पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थल है जो २ हजार वर्ष पुराना है जो बुद्ध और बोधिसत्व को संजोए हुए है । जो बहुत ही सुन्दर और अदभुत नजारा देखने को मिलता है। यह जानकारी एतिहासिक एवं उपयोगी है।
धन्यवाद सर
शत-शत नमन गुरु देव
Excellent information on Rich Cultural Haritage of Buddhism in the area of Dacca Ghat of Maharashtra. Enjoyed to know about this.
Thank you and yes