भारत के पूर्वोत्तर में स्थित पर्वतीय राज्य सिक्किम “बौद्ध धर्म का पालना” है। प्राचीन काल में इस राज्य की स्थापना का श्रेय भी बौद्ध धर्म गुरुओं को जाता है। यहां के 32 सदस्यीय एकसदनीय विधानमंडल में एक सीट बौद्ध संघ के लिए आरक्षित है। 8 वीं सदी में बौद्ध धर्म गुरु पद्मसंभव, जिन्हें गुरु रिन्पोचे भी कहा जाता है यहां पर धर्म प्रचार के लिए आए थे।
यही सिक्किम का सबसे प्राचीन विवरण है। बौद्ध धर्म की बज्रयान शाखा का यहां पर अधिक प्रभाव है। आज भी सिक्किम में कई प्रसिद्ध बौद्ध मठ हैं जहां पर पूरी दुनिया के लोग माथा टेकने आते हैं। प्रेमायांत्से, ताशिदिंग, युकसोम, फोडोंग, फेन्सांग, रूमटेक, नगाडक, तोलुंग, आहल्य, त्सुकलाखांग, रालोंग, लाचेन,एन्चेप, सिक्किम के प्रमुख बौद्ध मठ हैं। जहां आज भी शील, समाधि और प्रज्ञा का जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है। ल्होसार, लूसोंग, सागा दाबा, ल्हाबाब, ड्यूचेन, ड्रुपका, देशी और भूमचु सिक्किम में मनाए जाने वाले बौद्ध धर्म के प्रमुख त्योहार हैं। इन त्योहारों में वहां की परम्परागत तहज़ीब और कला की झलक साफ़ दिखाई देती है।
लगभग 7,096 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए सिक्किम की आबादी लगभग 6,10,577 है। इस राज्य का आकार अंगूठे के प्रकार का है। सिक्किम के पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण- पूर्व में भूटान लगा हुआ है। दक्षिण में सिक्किम की सीमा पश्चिम बंगाल से मिलती है। अंग्रेजी, भूटिया, गुरुड़, लेपचा, लिम्बु, मगर, मुखिया तथा हिन्दी सिक्किम की आधिकारिक भाषाएं हैं।
व्यावहारिक रूप से लिखित में अंग्रेजी का अधिक प्रचलन है। गंगटोक सिक्किम की राजधानी तथा यहां का सबसे बड़ा शहर है। सिक्किम के उत्तरी- पश्चिमी भाग में नेपाल की सीमा के पास दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा है। तिब्बती भाषा में सिक्किम को ” चावल की घाटी” कहा जाता है। यहां से लोकसभा तथा राज्य सभा के लिए 1,1 प्रतिनिधि चुना जाता है।
अतीत, सिक्किम का
सिक्किम शब्द लिम्बु भाषा के दो शब्दों “सु” अर्थात् नवीन तथा “ख्यिम” अर्थात् महल को जोड़कर बना हुआ है। यह सिक्किम के पहले राजा फुन्त्सोक नामग्याल के द्वारा बनाए गए महल का संकेतक है। 1642 ई. में सिक्किम में राजतंत्र प्रारम्भ हुआ। फुन्त्योंग नामग्याल प्रथम चोग्याल ( राजा) घोषित किए गए। नाम्ग्यालों ने 333 साल तक यहां पर राज किया है। सुगौली संधि का सम्बन्ध सिक्किम और नेपाल के बीच से है। सुगौली की संधि नेपाल के राजा तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई थी। 2 दिसम्बर 1815 को इस पर हस्ताक्षर किए गए थे और 4 मार्च 1816 को इसका अनुमोदन किया गया था।
सिक्किम और ब्रिटिश भारत के बीच तितालिया की संधि हुई। जिसके परिणाम स्वरूप नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किम के क्षेत्र सन् 1817 में सिक्किम को वापस मिल गए। इस संधि को कैप्टन बर्रे ने फरवरी 1817 में निपटाया था। यह एक स्थान का नाम था जो अब बांग्लादेश के रंगपुर जिले में आता है। अंग्रेजों ने सन् 1834 में सिक्किम को भारत के साथ मिला लिया। सन् 1947 में एक जनमत संग्रह में सिक्किम का भारत में विलय अस्वीकार हुआ तथा सिक्किम, भारत का संरक्षित राज्य बना। सन् 1955 में सिक्किम में एक राज्य परिषद स्थापित की गई जिसके अधीन वहां पर संवैधानिक सरकार के गठन को मंजूरी दी गई।
1973 में सिक्किम में दंगे भड़क उठे जिसके कारण अप्रैल 1974 में सिक्किम में भारतीय सेना प्रविष्ट हुई तथा सिक्किम को भारत सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया। दिनांक 16 मई 1975 को जनमत संग्रह (97.5) के द्वारा सिक्किम भारतीय गणराज्य का 22 वां प्रदेश बना तथा वहां राजशाही का अन्त हुआ। वर्ष 2003 से पहले चीन, सिक्किम को एक स्वतंत्र राज्य मानता था जिस पर भारत ने अतिक्रमण कर रखा है। 2003 में चीन ने सिक्किम को भारत के एक राज्य के रूप में स्वीकार किया। बदले में भारत ने तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग स्वीकार किया।
दिनांक 6 जुलाई 2006 को चीन के प्रधानमंत्री वेनजियाबाओ और भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें सिक्किम को भारतीय सीमा का अंग माना गया तथा हिमालय के नाथुला दर्रे को सीमावर्ती व्यापार के लिए खोल दिया गया। नाथुला दर्रा सिक्किम को ल्हासा से जोड़ता है। यह प्राचीन रेशम मार्ग का हिस्सा था। 1962 में भारत- चीन युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इस रास्ते से ऊन, छाल और मसालों का व्यापार होता था।
रूमटेक मठ
सिक्किम की राजधानी गंगटोक से लगभग 24 किलोमीटर दूर स्थित रूमटेक मठ अद्भुत, खूबसूरत तथा बौद्ध धर्म की संस्कृति और सभ्यता का जीवंत केन्द्र है। समुद्र तल से लगभग 5,800 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित चार मंजिला भवन में स्थित है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र तथा सिक्किम का सबसे बड़ा मठ है। इसे बौद्ध धर्म की परम्परा में धर्म चक्र के केन्द्र के रूप में जाना जाता है। इसका निर्माण तिब्बत के सुरफू मठ जैसा है।
तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद 16 वें ग्यालवा करमापा रूमटेक के इस पवित्र मठ में आए थे।उनका अस्थि अवशेष इसी मठ में सुरक्षित रखा गया है। अस्थि अवशेष के ऊपर एक स्वर्ण स्तूप है।मठ के पीछे सुसज्जित कर्मा नालंदा इंस्टीट्यूट आफ़ बुद्धिस्ट स्टडीज का भव्य कैम्पस है जहां पूरी दुनिया के छात्र अध्ययन के लिए आते हैं।
रूमटेक धर्म चक्र केंद्र मठ से दो किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पर धार्मिक ग्रंथों और कला वस्तुओं का संग्रह है। इस मठ का निर्माण नवें करमापा द्वारा सन् 1740 में किया गया था। यह मठ बुद्ध देव के पांच परिवारों, अमिताब ( चक्र), वैरोचना (घंटी), अमोघ सिद्धि (कलश), अक्षोब्या और रत्न संभव (रत्न) को दर्शाता है।
मठ के अंदर बुद्ध देव की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित है। इस मठ में आकर सारी मोह माया से दूर सुकून मिलता है। यहां की प्रात: कालीन प्रार्थना कर्ण प्रिय तथा करुणा मय होती है। गंगटोक में इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी बना हुआ है जिसमें बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्य प्राचीन अवशेष तथा धर्म ग्रंथ रखे हुए हैं।
लांचुंग तथा रालांग मठ
गंगटोक से लगभग 124 किलोमीटर दूर पवित्र लांचुंग बौद्ध मठ है। समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मठ नि्यंगमापा बौद्धों का है। इस मठ की स्थापना 1806 में हुई थी। लांचुंग से यूमथांग घाटी 24 किलोमीटर आगे है। यूमथांग घाटी को पूर्व का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। गंगटोक से लगभग 65 किलोमीटर दूर रालांग बौद्ध मठ है। यह बौद्ध धर्म की काग्युपा शाखा से संबंधित है।
यहां पर यांग लाब्सोल नानक पर्व मनाया जाता है। मठ के पास ही बगल में एक विशाल बौद्ध पार्क है जो तीन एकड़ में फैला हुआ है। इसके केन्द्र में 130 फ़ीट ऊंची बुद्ध देव की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस पार्क का औपचारिक उद्घाटन भगवान बुद्ध की 2050 वीं जयंती पर दिनांक 25 मार्च 2013 को 14 वें दलाई लामा ने किया था।
यहीं पर समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर युकसोम बौद्ध मठ स्थापित है। युकसोम कभी सिक्किम की राजधानी हुआ करता था। यह प्रतीकात्मक रूप से सिक्किम की तीसरी आंख का प्रतिनिधित्व करता है। युकसोम का शाब्दिक अर्थ है- तीन लामाओं की बैठक का स्थान। यहीं तारन हाइडिंग मठ भी है जो बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण है। गुरु पद्मसंभव ने यहां का दौरा किया था।
सन् 1701 में निर्मित दुबडी मठ भी यहां पर है। इसे चोग्यार नामग्याल द्वारा स्थापित किया गया था। 1705 में स्थापित तीन मंजिला पेम्यांग्त्से मठ भी यहां पर है। गंगटोक को स्थानीय भाषा में- पहाड़ की चोटी कहते हैं। यह शिवालिक की पहाड़ियों पर 5,500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की आबादी लगभग 40 हजार है।
भौगोलिक स्थिति
सिक्किम एक कृषि प्रधान राज्य है। इस प्रदेश का एक तिहाई हिस्सा घने जंगलों से आच्छादित है। यहां पर 28 पर्वत चोटियां, 21 हिमानी तथा 227 झीलें हैं। 5 गर्म पानी के चश्मे तथा 100 से अधिक नाले हैं। 8 पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। यहां बर्फ से निकली कई धाराएं दक्षिण और पश्चिम में घाटियां बन गई हैं। यह धाराएं मिलकर तीस्ता और रंगीत नदियां बनाती हैं।
टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा कहा जाता है। यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। सिक्किम कुल चार जिलों पूर्वी सिक्किम, पश्चिमी सिक्किम, उत्तरी सिक्किम और दक्षिणी सिक्किम हैं। सम्पूर्ण भारत में इलायची की सर्वाधिक पैदावार सिक्किम में होती है। सिक्किम का निकटतम रेलवे स्टेशन जलपायी गुड़ी है जो सिलीगुड़ी से 16 किलोमीटर दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-31 A, सिलीगुड़ी को गंगटोक से जोड़ता है।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- संकेत सौरभ, झांसी
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aj ka भारत
आपके इस लिखावट की सटीकता के साथ सिक्किम का अद्भुत चित्रण व लिखित रूपांतरण किया गया है और इतनी मेहनत और सुंदरता के साथ हमें यह लिखावट उपलब्ध कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपसे अधिक अच्छा और किसी वेबसाइट ने ऐसी लिखावट व सटीक जानकारी का वर्णन नहीं किया है
बहुत बहुत धन्यवाद आपको,शिवम जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपको,शिवम जी, प्रेरणा दायी टिप्पणी के लिए।
आपके इस लिखावट की सटीकता के साथ सिक्किम का अद्भुत चित्रण व लिखित रूपांतरण किया गया है और इतनी मेहनत और सुंदरता के साथ हमें यह लिखावट उपलब्ध कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपसे अधिक अच्छा और किसी वेबसाइट ने ऐसी लिखावट व सटीक जानकारी का वर्णन नहीं किया है
बहूत ही सुन्दर वर्णन है सिक्किम मे बौध्द
बहुत बहुत धन्यवाद आपको सर, उत्साह वर्धन के लिए।
बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब
समग्र रूप से बहुत ही समृद्ध और ज्ञानवर्धक लेख । आपका श्रम सार्थक और सराहनीय है।