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आदिवासी समुदाय “खासी”…

Posted on मार्च 27, 2020जुलाई 12, 2020

“खासी” आदिवासी पूर्वोत्तर भारत में मुख्य रूप से “मेघालय” में पाये जाते हैं। यह उत्तर में कामरूप व नौगांव जिला, पूर्व में जयंतियां पहाड़ियों तथा पश्चिम में गारो पहाड़ियों के बीच रहते हैं। खासी आदिवासी कई उप -जनजातीय समूहों में बंटे हुए हैं।

यह लोग भारत में आने वाले मंगोलों की पहली खेप के वंशज माने जाते हैं। इनकी भाषा “मौंखमेर भाषा परिवार” की जीवित बच गई कुछ भाषाओं में से एक है।इनका परिवार मातृ सत्तात्मक होता है। यहां दहेज हत्या बिल्कुल नहीं होती हैं। मां, परिवार के केन्द्र में होती है। उसी से वंश चलता है। परिवार में मामा और सबसे छोटी बेटी की स्थिति काफी महत्वपूर्ण होती है। खासी आदिवासियों में विवाह या तो माता -पिता की स्वीकृति से होते हैं अथवा प्रेम के आधार पर। विभिन्न स्थितियों में विवाह -विच्छेद का भी प्राविधान है,जो ग्राम पंचायत तय करती है। महिला और पुरुष दोनों को पुनर्विवाह का अधिकार होता है।

खासी समुदाय पारम्परिक रूप से कृषि पर निर्भर है। यह लोग शुरू से ही झूम खेती करते आए हैं, परंतु अब नए कानूनों के कारण अब झूम खेती सम्भव नहीं है। इसलिए खासियों ने अब नए व्यवसायों को भी अपनाया है। खेती के अलावा यह पशुपालन भी करते हैं। यह बांस की चटाइयां तथा टोकरियां आदि भी बनाते हैं। व्यापार आदि में महिलाओं की भूमिका अहम होती है। यह देवी देवताओं के रूप में अपने पितरों को पूजते हैं। उनके सम्मान में यादगार पट्टिकाएं स्थापित की जाती हैं। पांच दिनों तक चलने वाला “का – पाबलेंग” खासियों का एक प्रमुख धार्मिक त्यौहार है।यह “नोंगक्रेम” नाम से भी प्रसिद्ध है। यह प्रतिवर्ष शिलांग से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्मित नाम के गांव में मनाया जाता है। इस त्योहार में लगातार तीन रातों को,जो क्रमशः पम्टियाह, उम्नी, तथा इयुडूह कहलाती हैं, लोग ईश्वर को श्रृद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

“शाद मिनसीम” खासियों का एक अन्य महत्वपूर्ण पर्व है। यह हर वर्ष अप्रैल के दूसरे सप्ताह में शिलांग में मनाया जाता है। शिलांग का नाम भी शाइलौंग नामक देवी के नाम पर पड़ा है। इस देवी के रहने का स्थान एक पर्वत चोटी पर स्थित है जिसे शिलांग चोटी कहते हैं।”वेइकिंग” नृत्य खासी जाति के रूप- गुण को दर्शाता है। शारीरिक गतिविधियां,हाथ पैर हिलाना, नर्तक नर्तकी के चेहरे का भाव बहुत कुछ स्त्री -पुरुष के सम्पत्ति सम्बंधित उत्तरदायित्व को बताता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे रिवाज पर आधारित है। तलवार सहित नृत्य करना खासी पुरुष द्वारा अपने देश, रिश्तेदारों व अपनी जाति की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहने का परिचय देता है। मेघालय में नृत्य को “का शाद” कहा जाता है। एक खासी का घर रंगमंच होता है। खासी समुदाय नारी की महत्ता और पवित्रता को मान्यता देते हैं।वह नारी को “लासूबोन” नामक मुकुट पहनाकर सम्मानित करते हैं।

देश की आजादी से पूर्व राजतंत्र में खासी राज्यों की संख्या 25 थी। यहां के शासकों को “सियम लिंगदोह” और “सोरदार” कहलाते थे। अगस्त 1946 में इन राज्यों ने अपना एक औपचारिक संघ “खासी स्टेट फेडरेशन बनाया था।डेजमंड एल.खारमाओफ्लांग खासी के लोक साहित्यकार हैं। सन् 1971 में उत्तर पूर्व पुनर्गठन अधिनियम पारित होने के साथ ही मेघालय एक पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।मेघालय की राजधानी शिलांग है जिसको अक्सर “पूर्व का स्काट लैण्ड” कहा जाता है।इसे “बादलों का घर” की भी उपमा दी गई थी। यदि आप शिलांग के आकाश में उड़ते हवाई जहाज से नीचे की ओर देखें तो चांदी की तरह चमकीले रूई के गोले के से सुंदर बादलों को लटके हुए देख सकते हैं। शिलांग को “सात कुटीरों का देश” भी कहा जाता है। यह समुद्र तल से 1,496 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह अपनी सुन्दरता के लिए मशहूर है। मेघालय वासी स्वभाव से विनोदी तथा मेहमान नवाज होते हैं।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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1 thought on “आदिवासी समुदाय “खासी”…”

  1. अनाम कहते हैं:
    मार्च 28, 2020 को 3:19 पूर्वाह्न पर

    Nice description about khasi but gorou tribles also lives their between garou khasi jayanti hills in Meghalay. Meghalay 80% coverd with forest. Pineapple is main crop and also grow rice.

    प्रतिक्रिया

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