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baba saheb ambedkar nagpur lucknow

ममता का मानवीय रूप- बोधिसत्व बाबा साहेब डा.भीमराव अम्बेडकर

Posted on दिसम्बर 6, 2020दिसम्बर 6, 2024
  • डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी, (उत्तर- प्रदेश) email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website: themahamaya.com

भारत के महान सपूत, भारतीय संविधान के निर्माता, आधुनिक भारत के शिल्पी, बुद्ध की करुणा के संवाहक, भारत रत्न, बोधिसत्व बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर का आज महापरिनिर्वाण दिवस है। पूरी दुनिया में बाबा साहेब के अनुयाई इस दिन उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा उनके बताए हुए रास्ते पर चलने व मिशन को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं। आज यह एक स्थापित सच्चाई है कि कभी बाबा साहेब देश और दुनिया की महान हस्तियों के बारे में पढ़ते थे लेकिन आज दुनिया की विख्यात शख़्सियतें अपने विजन और मिशन को आगे बढ़ाने के लिए बाबा साहेब का अध्ययन करती हैं । दुनिया का शायद ही कोई पुस्तकालय हो जहाँ बाबा साहेब का लिखा हुआ साहित्य न पहुँचा हो। उनके लेखन की गहराई और विस्तार को समझने की कोशिश करती हैं । यह अनायास ही नहीं है कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को आज दुनिया में ज्ञान का प्रतीक माना जाता है । चुनॉंचे उन्हें दुनिया की 9 भाषाओं का बहुत अच्छा ज्ञान था । अपने जीवन में उन्होंने लगभग 64 विषयों में परास्नातक की डिग्री हासिल की थी । लगभग 32 डिग्रियाँ उनकी प्रतिभा और योग्यता को दुनिया में प्रमाणित करती हैं । आज बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के द्वारा लिखा गया साहित्य, उनकी आलोचना और समालोचना में लिखा गया साहित्य बड़े- बड़े पुस्तकालयों का आकार ले चुका है । अभी बाबा साहेब के द्वारा उठाए गए बहुत सारे सवालों का जवाब आना बाक़ी है ।

दिनांक 6 दिसम्बर 1956 ईस्वी को लगभग 64 वर्ष, 7 माह की उम्र में शारीरिक रूप से इस दुनिया को अलविदा कहने वाले परम पूज्य बाबा साहेब डा. आम्बेडकर बुद्ध की करुणा से प्रेरित, ममता के मानवीय रूप हैं। एक व्यक्तित्व, जिनके अंदर स्नेह की अभिव्यक्ति और गहन मानवीय संवेदनाओं की पराकाष्ठा है। उनके द्वारा स्थापित की गई मानवीय गरिमा आज भी समस्त मानवीय जगत में गुंजायमान है। वर्ष 1954 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित विश्व बौद्ध सम्मेलन में बाबा साहेब को बोधिसत्व की उपाधि से सम्मानित किया गया था । बाबा साहेब के एक अनुयायी मान्यवर बी. सी. खैरमोडे ने उन्हें बाबा साहेब की उपाधि दिया था । जिस अमेरिका के न्यूयार्क शहर में स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय में बाबा साहेब ने अध्ययन किया था उसी विश्वविद्यालय ने वर्ष 2015 में अपने विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की कांस्य प्रतिमा स्थापित की है । इस प्रतिमा का अनावरण अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने किया था । उसे सिम्बल ऑफ नॉलेज का प्रतीक कहा गया ।

आज भी उनकी हाथ खोलकर पुकारने वाली तन्मयता पूछ रही है कि संसार में विषमता की निष्ठुरता क्यों है ? इसके सृजन की चेतना का अन्त कब होगा ? उनके स्पर्श में आज भी एक अद्भुत चेतना है।आज भी उनके संदेश इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि विषमता के खिलाफ लड़ो। उनकी पुकार न्याय और करुणा की मांग कर रही है। उनके संदेशों का अंतर्निहित सार है कि यह संसार मूलतः यातना नहीं है, दुःख नहीं है बल्कि यह तो एक सुंदर रचना है जिसमें प्रेम है, आकर्षण है, नवीन सृजन है, जो दिन-दिन निखार लाती है। यातना, मनुष्य द्वारा पैदा की गई विषमता के कारण है जिसे ठीक किया जाना जरूरी है।

Chaitya bhoomi mumbai
चैत्यभूमि, दादर, मुंबई

बाबा साहेब का जीवन संघर्ष हमें सिखाता है कि जीवन की सार्थकता व्यक्तिगतता में नहीं सामूहिकता में परिपूर्ण होती है। ठीक उसी प्रकार जिस तरह इकाई की सार्थकता उसके निजत्व में बिन्दु बनकर नहीं बल्कि अनन्त बनकर सिन्धुत्व में है, जहाँ पर उसका कोई अन्त नहीं होता। वह सीख देते हैं कि किसी मजबूर की मजबूरी का फायदा उठाकर उस पर जुर्म मत करो।

उनकी आवाज में सहिष्णुता है जो अपनी ओर खींचती है। उनके स्वर में ईष्या, अधिकार या उपेक्षा का भाव नहीं बल्कि जीवन के प्रति प्रेम की अभिन्न गौरव गाथा है। उनमें सांसारिक जीवन के आकर्षण की अखंड शक्ति है,वही जो जीवन की स्वाभाविक मुक्ति है।

वस्तुत: विचार जीवन की यथार्थ विषमताओं में ही जन्मता है। दुःख एक अजीब वस्तु है जिसमें इंसान सिर्फ इंसान बनके रह जाता है। सुख में इंसान के फ़र्क शुरू होते हैं, वह धनी और गरीब बनता है। बाबा साहेब के लेखन में वंचितों की दशा का ह्रदय विदारक, करुण क्रन्दन हाहाकार करता हुआ सबके ह्रदय को झकझोरता है। यह उनके कठिन जीवन संघर्षों से गहन रूप से अंतर्गुम्फित है। उनका क्रांतिकारी उद्बोधन है कि वह गुलाम है जो अपने मन की नहीं कर सकता। उनका दर्द है कि तूने ऐसा इंसान क्यों बनाया जिसे कोई हक नहीं। आजादी वह होती है जिसमें सुबह भी अपनी हो और रात भी अपनी हो।

विषमता, अन्याय और जुर्म के समाज में आज भी बाबा साहेब डा. आम्बेडकर का ममता से परिपूर्ण मानवीय रूप करोड़ों लोगों की आंखों में जीवन्त है, उनके लिए आशा की एक किरण है, अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरक शक्ति है जो नश्वर सृष्टि तथा भाषा से परे आकर्षण का प्रतीक बनकर युग युगांतर और देश देशान्तर की सीमाओं को पार कर रहा है। क्योंकि चलने के निशान छोड़ना सिर्फ आदमी के पांव जानते हैं।

उन सबकी तरफ से जिनके जीवन के तुम प्रकाश हो, मैं अरदास करता हूं- मेरे मसीहा तू रहम दिल है, सबको पनाह दे, मैं तुम्हें सजदा करता हूं।

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8 thoughts on “ममता का मानवीय रूप- बोधिसत्व बाबा साहेब डा.भीमराव अम्बेडकर”

  1. Brijesh Kumar कहते हैं:
    दिसम्बर 6, 2022 को 8:48 पूर्वाह्न पर

    सर बहुत ही रोचक जानकारी साझा किया आपने,नमो: बुद्धाय जय भीम ।।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 6, 2022 को 2:39 अपराह्न पर

      नमो बुद्धाय, जय भीम, ब्रजेश जी । धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  2. आर यल मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 20, 2020 को 5:33 अपराह्न पर

    बहूत ही सुन्दर व उपयोगी तथ्यात्मक लेख है डा राजबहादुर जी को इस लेख के लिये धन्यवाद

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 21, 2020 को 1:02 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको सर

      प्रतिक्रिया
    2. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 21, 2020 को 8:00 अपराह्न पर

      आपको, धन्यवाद,सर

      प्रतिक्रिया
  3. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 6, 2020 को 2:07 अपराह्न पर

    बाबासाहेब का योगदान स्वतंत्र भारत के निर्माण में बहुत ज्यादा है। काश की उस समय की सरकार उनका पूरा लाभ ले पाती तो हमारे देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही उन्नत होती। मेरा करबद्ध नमन ऐसे महापुरुष को💐💐

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 6, 2020 को 7:11 अपराह्न पर

      जी बिल्कुल

      प्रतिक्रिया
    2. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 9, 2020 को 2:09 अपराह्न पर

      सत्य वचन, डॉ साहब

      प्रतिक्रिया

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